18.1.14

सत्य जो है

हम कहेंगे, तुम कहोगे, तथ्य जो है,
तभी निकलेगा हृदय से, सत्य जो है।

रंग पक्षों के चढ़ाये घूमना था,
क्यों बताओ सूर्य का शासन चुना था?

मूढ़ से मुण्डी हिलाते, हाँ या ना,
सीखनी थी मध्य की अवधारणा।

गुण रहे आधार, चिन्तन-मूल के,
तब नहीं हम व्यक्ति को यूँ पूजते।

भय सताये, प्रीति आकुल, भ्रम-मना,
मिल रही है सत्य को बस सान्त्वना।

मन बहे निष्पक्ष हो, निर्भय बहे,
तार झंकृत, स्वरित लहरीमय बहे।

नियत कर निष्कर्ष, बाँधे तर्क शत,
बुद्धिरथ दौड़ा रहे, आश्वस्त मत।

हो सके तो सत्य को भी बाँट लो,
यथासुविधा, हो सके तो छाँट लो।

या तो फिर निर्णय करो, मिल बैठ कर,
तथ्य के आधार, गहरे पैठ कर।

त्यक्त संशय, धारणा, मन व्यक्त हो,
जूझना, जब तक न एकल सत्य हो। 

साधनारत बुद्धि का उत्पाद जग को चाहिये,
एक सम्मिलित सार्थक संवाद जग को चाहिये।

कहें पीड़ा और की हम, कथ्य जो है,
आज सब मिलकर कहेंगे, सत्य जो है।

42 comments:

  1. सत्य की जय हो ....

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  2. अभिव्यक्त क्या हम कर सकें वे तथ्य जो हैं सत्य पूरित
    सत्य तो जीवन हृदय और भावना को सहज मौन करता

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  3. अभिव्यक्त क्या हम कर सकें वे तथ्य जो हैं सत्य पूरित
    सत्य तो जीवन हृदय और भावना को सहज मौन करता

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  4. हम कहेंगे, तुम कहोगे, तथ्य जो है,
    तभी निकलेगा हृदय से, सत्य जो है।

    रंग पक्षों के चढ़ाये घूमना था,
    क्यों बताओ सूर्य का शासन चुना था?
    बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति |

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  5. "सत्यमेवजयतेनानृतम् ।" सत्य की ही विजय होती है असत्य की नहीं ।

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  6. पर कितना भी मुलम्मा चढाया जाये रहेगा सत्य ही

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  7. दुर्भाग्य हम सत्य कहने का साहस भी नहीं जुटा पा रहे
    अपनी इच्छा को रोज ही दबा रहे
    हर अच्छे बुरे को नियती मानकर
    अपनी ही लुटिया नित दुबा रहे

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  8. दुर्भाग्य हम सत्य कहने का साहस भी नहीं जुटा पा रहे
    अपनी इच्छा को रोज ही दबा रहे
    हर अच्छे बुरे को नियती मानकर
    अपनी ही लुटिया नित दुबा रहे

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  9. सत्‍य ही शाश्‍वत है।

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  10. रचना बहुत पसन्द आई ।

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  11. साधनारत बुद्धि का उत्पाद जग को चाहिये,
    एक सम्मिलित सार्थक संवाद जग को चाहिये।.. बहुत खूब .. सुन्दर रचना

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  12. सत्य अटल , अडिग , अविजित ।सुंदर सशक्त अभिव्यक्ति ।

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  13. "सत्यमेवजयतेनानृतम् ।सुंदर सशक्त अभिव्यक्ति ।

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  14. अति सुंदर...... सत्य कहाँ छुपता है....

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  15. सही बात कहनेवालों की सुषुप्‍तावस्‍था ने ही बुरी बात कहनेवालों का दुस्‍साहस बढ़ाया है। आपकी कविता सुषुप्‍त बैठे हुओं को अवश्‍य जागृत करेगी, ऐसी शुभकामनाएं हैं।

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    1. कुछ पल अपने,
      दिन तो बीता आपाधापी,
      यथारूप हर चिंता व्यापी,
      अब निद्रा हो, अपने सपने,
      कुछ पल अपने। ......................मेरी नई ब्‍लॉग रचना पर इतनी महत्‍वपूर्ण पंक्तियां मात्र टिप्‍पणी के रूप में खर्च न हों। आपसे अनुरोध इनके आधार पर एक कविता का सृजन करें और उसे ब्‍लॉग पर प्रसारित करें।

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    2. जी निश्चय ही यह कविता पूरी करेंगे।

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  16. होते नहीं निर्णय कभी, मिल बैठ कर,
    वे तो बस हैं साझा कारोबार ही |
    स्वार्थवश या बल से नत हर पक्ष होता,
    और कभी दृड़ , दूरगामी नहीं होता |

    नीति-निर्धारण सदा ही 'व्यक्ति' करता |
    एक निश्चित मत व क्रिया-ज्ञान देता |
    व्यक्ति जब होते हैं परशुराम से ,
    अथवा गांधी,बुद्ध कृष्ण व राम से |

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  17. सुन्दर अभिव्यक्ति...

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  18. इन दिनों कविता के ज़रिये आपकी भावाभिव्यक्ति काफी प्रभावित कर रही है इनमें भी आपके लेखों की तरह काफी गहराई है।।।

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  19. सत्यं शिवं सुंदरम ...

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  20. सत्य तो कह लेंगे हम सहजता से
    अकुलाएँगे फिर भी कह जायेंगे
    तुम मान पाओगे उस सत्य को सहजता से
    या ऐंठ कर रह जाओगे ! नहीं होता सत्य का तथ्य आसान

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  21. This comment has been removed by a blog administrator.

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    1. कविता अब झर-झर बहती
      कवि का अंतस् फूट रहा।
      बँधा हुआ जो युगों युगों से,
      वह बंधन अब छूट रहा।
      कब तक थामोगे प्रवाह को,
      वो वेगवान है,चंचल जल सा।
      रोके कभी रुका अरुणोदय,
      भीष्म पितामह के प्रण सा।

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    2. अहा, कविता का उत्साह जगाती आपकी कविता।

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    3. यह भी आपने निकाली।डिलीट करना भी शुभ रहा:-)

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    4. उत्तर देने के प्रयास में धोखे से दब गया था, निष्कर्ष अच्छे ही रहे।

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  22. @सीखनी थी मध्य की अवधारणा।
    सही है , सामयिक है !!

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  23. कहें पीड़ा और की हम, कथ्य जो है,
    आज सब मिलकर कहेंगे, सत्य जो है ...
    कविता के माध्यम से दिल के गहरे भाव अभिव्यक्ति हुए हैं ... लाजवाब अभिव्यक्ति ...

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  24. सुंदर सशक्त सृजन बेहतरीन प्रस्तुति...!
    RECENT POST -: आप इतना यहाँ पर न इतराइये.

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  25. हमेशा की तरह सुन्दर विचार ।

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  26. त्यक्त संशय, धारणा, मन व्यक्त हो,
    जूझना, जब तक न एकल सत्य हो।
    ....एक शाश्वत सन्देश...बहुत प्रभावी...

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  27. पहली दो पंक्तियाँ बहुत शानदार हैं !

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  28. सीखनी थी मध्य की अवधारणा !
    हा और ना के मध्य में ही व्यक्ति समझ पायेगा सत्य को !!

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  29. एकम सद विप्राः बहुधा वदन्ति! :-)

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  30. साधनारत बुद्धि का उत्पाद जग को चाहिये,
    एक सम्मिलित सार्थक संवाद जग को चाहिये।

    कहें पीड़ा और की हम, कथ्य जो है,
    आज सब मिलकर कहेंगे, सत्य जो है

    काश ऐसा ही होङम सत्य कह पायें बिना डरे।

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  31. bahut sundar...dharapravah...

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  32. हर शेर अपने आप में मुकम्मल।
    और इस शेर का तो क्या कहना। हासिल-ए-ग़ज़ल शेर है.
    त्यक्त संशय, धारणा, मन व्यक्त हो,
    जूझना, जब तक न एकल सत्य हो।

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  33. प्रवीण भाई आप अपने कवि को उभरने दीजिये

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