30.11.13

क्या बोलूँ मैं

मैं,
बैठकर आनन्द से,
वाद के विवाद से,
उमड़ते अनुनाद से,
ज्ञान को सुलझा रहा हूँ,

सीखता हूँ,
सीखने की लालसा है,
व्यस्तता है इसी की,
और कारण भी यही,
कुछ बोल नहीं पा रहा हूँ । 

39 comments:

  1. सुन्दर-भाव-पूर्ण-प्रवाह-पूर्ण प्रस्तुति । स्वगत-कथन ।

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  2. नया अंदाज़ है , बधाई !!

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  3. बहुत खूब !

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  4. सुन्दर चिंतन...
    बना रहे क्रम!

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  5. कभी हजार शब्‍दों पर एक चुप.

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  6. बहुत बढ़िया ....शुभकामनायें

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  7. गागर में सागर हो गया है।

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  8. कोई बात नहीं -कभी कभी मौन भी मुखर होता है !

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  9. अरे आप इस रूप में भी हैं ….
    इस बार बंगलोर में आप से मिलने की इच्छा थी .....
    लेकिन .............................................
    हार्दिक शुभकामनायें
    !!

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  10. आप बोलिए मत.
    बस लिखते जाइए!
    शुभकामनाएं
    जी विश्वनाथ

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  11. बहुत सुंदर उत्कृष्ट रचना ....!
    ==================
    नई पोस्ट-: चुनाव आया...

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  12. क्या बात है....शानदार....
    वह व्यस्तता भी क्या भली,
    जिसमें न हम कुछ कर सकें |
    न दो घड़ी के लिए भी,
    याद उनको कर सकें |

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  13. जीवन सुलझाती हुई व्यस्तता …… उलझन सुलझती हुई सी प्रतीत हो रही है .... सुन्दर अभिव्यक्ति। …

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  14. मूँद कर आँखें करो उस का ख़याल
    नाभि तक उस का उजाला जायेगा

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  15. कुछ बोल नहीं पा रहा हूँ ,

    इसीलिए बार बार सिर खुजला रहा हूँ।

    सुन्दर प्रस्तुति है सर जी।

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  16. ब्लॉग जगत में आपकी सार्वत्रिक सार्वकालिक उपस्थिति अनुकरणीय है शुक्रिया आपकी सद्य टिप्पणियों का।

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  17. सीखने की लालसा ही मानव को सभी प्राणियों से अलग रखती है सर।

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  18. संवेदनशील लोगों के मन की बात।

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  19. मन मस्त हुआ अब क्या बोले...

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  20. कम शब्दो में ही बहुत कुछ कह गए आप...अजीत जी की बात से सहमत हूँ वाकई गागर में सागर हो गया।

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  21. कभी कभी चुप रहकर भी कितना कुछ कहा जा सकता है। …… यह तो आपकी भावाभिव्यक्ति ही बता रही है बहुत खूब सर

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  22. सीखने की लालसा है,
    व्यस्तता है इसी की,
    और कारण भी यही,
    कुछ बोल नहीं पा रहा हूँ ।
    ....क्या कहें इसके बाद.....बहुत खूब!

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  23. सीखने की लालसा चुप कर रही तो मौन ही बेहतर !

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  24. सीखता हूँ,
    सीखने की लालसा है,
    व्यस्तता है इसी की,
    और कारण भी यही,
    कुछ बोल नहीं पा रहा हूँ ।
    सीखता हूँ -

    सीखने की प्रवृत्ति जुड़ी ,

    है मेरे होने से। बढ़िया प्रस्तुति। नए आयाम अभिव्यक्ति के।

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  25. यह मौन भी सुनाई दिया .

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  26. मौन को पियो, सत्य को जिओ। कुछ मत कहिए, और कहने को क्या रह गया .

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  27. जब मन करे, तभी बोलें।

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  28. आत्म विवेचन के दौर में ऐसा ही होता है, शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  29. न बोलने पर भी बहुत कुछ बोलता है मन ..
    बहुत बढ़िया प्रस्तुति ...

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  30. शब्द स्वयं ही राह खोज लेता है..

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  31. बहुत खूब ... इस व्यस्तता में भी कमाल किया है शब्दों के साथ ...

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  32. उत्कृष्ट रचना ....!

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  33. भावों का बेहतरीन प्रेषण

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  34. ज्ञानार्जन के लिए मौन नितांत आवश्यक है...

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  35. sun raha huuuun maiin....keh raha hai tuuuuu..... chhoti aur sundar rahcna....

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