13.7.13

अनुवर्तन

कार्यालय से आते समय सड़क पर एक दृश्य देखा, दृश्य बहुत ही रोचक था। उस प्रक्रिया के लिये कोई एक शब्द ढूढ़ना चाहा जिसे शीर्षक रूप में रख सकूँ, तो वह तुरन्त मिला नहीं। कई शब्द कौंधे मन में, पर सब के सब प्रक्रिया में निहित भाव को समग्रता से समेट नहीं पाये, कुछ उसे अर्धव्यक्त कर पाये, कुछ प्रक्रिया के हाव भाव समझे तो मूल मंतव्य न समझ पाये। बड़ी ही उहापोह की स्थिति बनी रही। शब्द कोष में खोजा, वहाँ भी नहीं मिला। आधुनिक प्रबन्धन में समझने का प्रयास किया, वहाँ भी नहीं मिला। अन्त में जब प्रशासनिक शब्दकोष में देखा, तब कहीं उपयुक्त शब्द मिला, अनुवर्तन।

पहले अनुवर्तन का शाब्दिक अर्थ समझ लें। उसकी आवश्यकता साहित्य, प्रबन्धन आदि में कम क्यों है और प्रशासन में उसके सूत्र क्यों पाये जाते हैं? यह समझने के लिये, जो दृश्य देखा है, जो प्रक्रिया देखी है, उसे अपने पूर्ण रूप में व्यक्त होना आवश्यक है।

अनुवर्तन का अर्थ है, बार बार कहना या करना। कह कर कुछ याद दिलाना हो, कुछ समझाना हो, कुछ पता करना हो, किसी की स्थिति जाननी हो, हर रूप में अनुवर्तन का प्रयोग किया जा सकता है। जहाँ प्रवर्तन का प्रयोग किसी कार्य को निश्चित रूप से करवाने के लिये होता है, अनुवर्तन का प्रयोग किसी कार्य के पीछे भीषण रूप से लग जाने के लिये होता है, बार बार उसकी परिस्थिति समझने के लिये, बार बार संबंधित निर्देश देने के लिये और इसी प्रकार की कार्य संबंधी व्यग्रता दिखाने के लिये।

अब उदाहरण देख लेते हैं, तत्पश्चात यह देखेंगे कि साहित्य और प्रबन्धन इस प्रशासनिक सिद्धान्त व संबद्ध प्रक्रिया से कैसे लाभान्वित हो सकते हैं?

वाहन की गति अतिमन्द थी, सिग्नल तो कोई नहीं था पर वाहनों की गति बरनॉली प्रमेय को पूर्णतया पालन कर रही थी। जहाँ पर गति अधिक होती है, दबाव कम हो जाता है। इसे उल्टा कर देखें तो जहाँ यातायात पर दबाव अधिक होता है, उसकी गति कम हो जाती है। बरनॉली जी को यह सब समझने के लिये द्रव्य पर प्रयोग करने पड़े थे, यहाँ होते और एक दो दिन बंगलोर में घूम लिये होते तो यह सिद्धान्त दो दिनों में ही उद्घाटित हो गया होता। वाहनों की यह दुर्दशा भी किसी सिद्धान्त का पालन कर सकती है, सोच कर आश्चर्य ही हो सकता है।

बाहर देखा तो एक व्यक्ति पर्चे बाँट रहा था, दूर से दिख नहीं रहा था कि किसके पर्चे थे। पर उसका पर्चा बाँटना सामान्य नहीं लग रहा था, गति कुछ कम लग रही थी। सामान्यतः पर्चे बाटने वाले बड़ी त्वरित गति से पर्चे बाँटते हैं, किसी को एक देते हैं, किसी समूह को तीन चार एक साथ पकड़ा देते हैं, कभी वाहन की खुली खिड़की देख अन्दर टपका देते हैं, तो कभी पार्क किये हुये वाहनों के वाइपर में फँसा देते हैं। संक्षिप्त में कहा जाये तो बड़ी व्यग्रता से बाँटे जाते हैं पर्चे, जो दिख जाये, जैसा दिख जाये, जब दिख जाये। इसका पर्चा बाँटना पर विचित्र लग रहा था। वह व्यक्ति बड़े ही व्यवस्थित और अनुशासित ढंग से पर्चे बाँट रहा था, धीरे धीरे।

पर्चे प्रमुखतः प्रचार के लिये बाँटे जाते हैं। जब ज्ञात हो कि किसी क्षेत्र विशेष में प्रचार की आवश्यकता है तो उसके लिये सर्वाधिक उपयुक्त माध्यम पर्चे ही होते हैं। समाचार पत्र आदि में प्रचार देना पर्याप्त मँहगा पड़ता है और वे लक्षित क्षेत्र से कहीं अधिक प्रचार कर जाते हैं। पर्चों के माध्यम से जितने क्षेत्र में आवश्यक हो, प्रचार किया जा सकता है। कभी आपने देखा हो कि सुबह के समाचार पत्रों में इस तरह के पर्चे निकल आते हैं, कभी हम उन पर ध्यान देते हैं, कभी हम उन्हें रद्दी में डाल देते हैं। इसी प्रकार भीड़ भरे स्थानों में भी पर्चों को बाँटा जाता है, पर बहुधा वहाँ भी वे व्यर्थ ही होते हैं।

पर्चों के बारे में ऐसी ही कुछ धारणा थी, जब उस व्यक्ति को इतने व्यवस्थित ढंग से पर्चे बाँटते देखकर मन ठिठका। उसे चार पाँच और लोगों को बाँटते हुये देखा। हर बार पर्चा देकर वह तनिक ठहर रहा था, जैसे कि किसी को कुछ दिखाना चाह रहा है। थोड़ा दूर देखा तो एक दूसरा व्यक्ति उसकी फोटो ले रहा था। रोचक, हर बार वह फोटो ले रहा था, जितने पर्चे मेरे सामने बँटे, हर बार फोटो उतारी गयी, इतनी दूर से कि पर्चे पाने वाले को पता न चले।

मेरे स्यानु तन्तु पूरी तरह से जग चुके थे, ऐसा मैं पहली बार देख रहा था। सबसे पहले तो मैंने पर्चा देखा, सौभाग्यवश हमारे ड्राइवर महोदय के पास एक प्रति थी। उसकी एक प्रति लेकर हमारे ड्राइवर महोदय न चाहते हुये भी अपनी फोटो दे चुके थे। देखा तो पास में एक नया होटल खुला था, पर्चे पर चित्र बड़ा मनोहारी था, देखकर लार आ जाना पक्का था।

पर्चे के हर वितरण की फोटो खींचे जाने के दो अर्थ स्पष्ट थे। पहला यह कि वितरक पर दृष्टि रखी जा रही है और यह तथ्य वितरक को ज्ञात भी है। दूसरा यह कि फोटो के रूप में उसका साक्ष्य भी रखा जा रहा है। जब दृष्टि रखी ही जा रही थी तो साक्ष्य रखने का क्या अर्थ? संभवतः उन दोनों के ऊपर जो बैठता हो, उसे दिखाने के लिये। हो सकता है कि एक भी पर्चा व्यर्थ न जाये, इसके लिये उसने अतिरिक्त व्यक्ति को कैमरे के साथ भेजा हो।

पर्चे के व्यर्थ न होने के लिये एक और व्यक्ति को भेजने के पीछे कारण आर्थिक तो पक्का नहीं हो सकता। जितना पैसा एक व्यक्ति को दृष्टि रखने के लिये दिया जा रहा होगा, उतने से कहीं अधिक पर्चे छपवाये जा सकते थे। उद्देश्य तो शत प्रतिशत पर्चों का वितरण कराने का था। कितने पढ़े गये या नहीं, पर एक भी पर्चा व्यर्थ न हो, इसके लिये कितना भी पैसा लगाने को तैयार दिखते हैं प्रचारक महोदय। प्रचार कार्य को इतने गहन ढंग से करने के लिये प्रबन्धन के सामान्य शब्द साथ छोड़ देते हैं। इस ुूरी प्रक्रिया के लिये अनुवर्तन ही सटीक दिखता है।

अब फोटो तो डिजिटल हो चली हैं, कितनी भी खींच ली होंगी, उसमें तो अधिक धन लगना नहीं है। हाँ यदि रील वाला समय होता तो निश्चय ही प्रचारक महोदय को इस प्रक्रिया में तगड़ा चूना लगता। आगे प्रचारक महोदय ने यह भी सुनिश्चित किया ही होगा कि लोग उन पर्चों को पढ़े और होटल भी आयें भी, तब कहीं जाकर उनका प्रचारचक्र पूरा होगा।

यह भी एक उद्देश्य हो सकता है कि यह पता किया जाये कि पर्चे द्वारा प्रचार करना कितना प्रभावी होता है? जितने लोगों को पर्चे दिये गये, उनमें से कितने लोग होटल पधारे, यही वितरण के प्रभाव का मानक है और यही भविष्य में पर्चे द्वारा किये गये प्रचार के योगदान को सिद्ध कर सकेगा। यह पता करने के लिये वितरण के समय उतारे गये फोटों और ग्राहकों की फोटो का मिलान आधुनिक डिजिटल तकनीक से बड़ी आसानी से किया जाना संभव है। संभव है जब हमारे ड्राइवर महोदय जायें तो पर्चा वितरण की सार्थकता सिद्ध हो जाये और विश्लेषण की स्क्रीन पर टूँ स्वर का उद्घोष हो।

जिस प्रकार से उद्देश्य पाने के लिये जिस गहनता और जीवटता से प्रक्रिया पर दृष्टि और उपदृष्टि रखी गयी, उसके लिये अनुवर्तन से अधिक सटीक शब्द मिला ही नहीं। साहित्य लेखन में और किताबी प्रबन्धन में इतनी जीवटता होती तो यह शब्द वहाँ भी उपस्थित रहता। साहित्य में लेखक इसी अनुवर्तन का आधार लेकर अपने अच्छे लेखन को अपने पाठकों तक भी पहुँचा सकते हैं, ठीक वैसे ही जैसे होटल के प्रचारक महोदय ने अपने ग्राहकों को अच्छे व्यंजनों का स्वाद चखाने के लिये किया।

37 comments:

  1. कुछ तो खास था, शायद किसी अध्ययन का हिस्सा रहा होगा

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  2. अनुवर्तन बड़ा ही यथेष्ट वह अर्थपूर्ण लगा,हमारे सीमित हिंदी शब्दग्यान में इस सुंदर शब्द के उपहार हेतु आभार ।परंतु एक बात ध्यान देने की है कि अतिरेक अनुवर्तन भी क्वचित् उद्देश्यहीन सिद्ध हो सकता है जो कि किसी भी भीड़, चाहे वह मनुष्य की हो अथवा सूचना की,के साथ विडंबना यह है कि उसकी सार्थकता वर्ष उद्देश्य भीड़ में ही खो जाता है ।विचारपूर्ळ सुंदर लेख ।

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  3. pahali baar aayee
    aur andaz ho gaya ki aap
    bade achche student rahe honge...
    "area kam to pressure zyada " wala Barnoli Funda 10 marks ka tha 11th me!
    aur aapko 9 1/2 mile honge..:)
    waise science se sahity tk ki Anuwartn Yatra pyari lagi.

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  4. अनुवर्तन का व्यावसायिक परावर्तन..

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  5. अनवरत,कुछ नया

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  6. स्टडी भी हो सकती है.

    रामराम.

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  7. एक शब्द पर इतनी प्रशस्त व्याख्या -क्या बात है! :-)
    हम तो बस फालो अप से काम चलाते रहे हैं :-)

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  8. दुकान चलाने की जुगत है।

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  9. अनुवर्तन..एक नई बात, एक नई जुगत..

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  10. रोचक लेख

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  11. सूक्ष्म दृष्टि .... पर्चे बांटने के विशिष्ट तरीके से अनुवर्तन की व्याख्या .... रोचक लेख ।

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  12. रोचक आलेख.....अनुवर्तन ...बढ़िया व्याख्या....
    साभार....

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  13. आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (14 -07-2013) के चर्चा मंच -1306 पर लिंक की गई है कृपया पधारें. सूचनार्थ

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  14. पोस्ट का टाइटल देखकर मैं भी नहीं समझ पाया कि ये अनुवर्तन क्या है..पर पूरा पढ़ने पर इस शब्द के मायने भी समझ सका और ये पोस्ट का टाइटल क्यों है ये भी...सुंदर प्रस्तुति।।

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  15. जब पूरा पढ़ा तब समझ में आया -दुकान चले इसके के लिए क्या-क्या उपाय करते हैं लोग !
    शीर्षक बहुत आकर्षक है !

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  16. बाज़ार से जुड़ी एक गतिविधि को जीवन और साहित्य से जोड़ उसकी व्याख्या करना बहुत प्रभावी लगा ..... सच कितना कुछ होता है विश्लेषण किये जाने को ....

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  17. बहुत खूब .. अनुवर्तन की यह प्रक्रिया अनुकरणीय हैं

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  18. मैनेजमेंट फंडे है ..
    आप पर भी ज्ञानदत्त जी का असर आ गया है ..
    :)

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  20. आधुनिक प्रबंधन का एक पहलू .
    डिजिटल कैमरों ने कितना कुछ आसान मगर तनाव पूर्ण कर दिया है.
    अब उस बाँटने वाले को और तस्वीर लेने वाले दोनों को ही स्ट्रेस में काम करना पड़ रहा होगा.दूसरी ओर बिना बताए किसी की तस्वीर ले लेना एक तरह से गलत है.क्योंकि इन तस्वीरों का सही इस्तमाल होगा या इन्हें प्रचार हेतु लिया जाएगा या कुछ ओर..यह कोई नहीं जानता.

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  22. रोचक!! आपने एक शब्द की जोरदार व्याख्या की!! आभार

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  23. व्‍यावसायिक उद्देश्‍य हेतु और इसमें सफलता की आशा के आधार पर आपने अपने आलेख 'अनुवर्तन' की सफलता को जिस प्रकार साहित्‍य में प्रयोग करके भी भुनाने का सूत्र दिया है, वह थोड़ा सा असहज लगा। पूर्ण व्‍यावसायिकता के लिए यदि साहित्‍य सृजन हो रहा है तब तो अनुवर्तन व्‍याख्‍या को साहित्यिक क्षेत्र में भी अपनाने में कोई समस्‍या नहीं है। परन्‍तु साहित्‍य सृजन यदि सामाजिकता, जीवन के ऊंचे सिद्धांतों के लिए है तो मुझे लगता है इसमें 'व्‍यावसायिक' सरीखे अनुवर्तन की आवश्‍यकता नहीं है। ...............हालांकि आपने अनुवर्तन शब्‍द का विचारणीय उल्‍लेख किया है।

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  24. वाह्ह गहरी पकड ... जिन बातो पर अमुमन किसी क ध्यान नही जाता ..उस पर गहन ओर सुक्ष्म अध्ययन .. ः)

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  25. अनुवर्तन एक नया शब्द और सुन्दर व्याख्या ...
    संगीत के लिए बड़ा ही उपयोगी शब्द .....क्योंकि स्वरों के अनुवर्तन से ही होता है स्वरों में आवश्यक परिवर्तन .....!!

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  26. जहाँ प्रवर्तन का प्रयोग किसी कार्य को निश्चित रूप से करवाने के लिये होता है, अनुवर्तन का प्रयोग किसी कार्य के पीछे भीषण रूप से लग जाने के लिये होता है, बार बार उसकी परिस्थिति समझने के लिये, बार बार संबंधित निर्देश देने के लिये और इसी प्रकार की कार्य संबंधी व्यग्रता दिखाने के लिये।
    दिया गया विवरण अनुवर्तन शीर्षक की पुष्टि करता है .सटीक .

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  27. फोटो नहीं खेंचते तो आपका ध्‍यान नहीं जाता, यह भी प्रचार का एक माध्‍यम है।

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  28. रोचक ... प्रबंधक की दृष्टि हर जगह/दृश्य को कैद कर लेती है ... सूक्ष्म अध्यन ...

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  29. अनुवर्तन को खूब समझाया आपने। काम आयेगा और भूलेगा भी नहीं..धन्यवाद।
    पोस्ट रोचक है। आप अक्सर कुछ नवीन लेकर आते हैं, कुछ सिखा जाते हैं।
    वो मीठे पानी और खारे पानी वाली व्याख्या भी कभी नहीं भूलती..

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  30. अनुवर्तन का प्रयोग किसी कार्य के पीछे भीषण रूप से लग जाने के लिये होता है,
    शब्‍द परिचय .... रोचकता से भरा आपका लेखन
    हमेशा ही उत्‍कृष्‍ट होता है ....

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  31. रोचक अभिव्यक्ति...बहुत बहुत बधाई...

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  32. अनुवर्तन बहुत ही सही शीर्षक दिया है आपने इस लेख को ।

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