22.6.13

औरों को हम

आदर्शों की छोटी चादर,
चलो ढकेंगे,
औरों को हम।

आंकाक्षा मन पूर्ण उजागर,
चलो छलेंगे,
औरों को हम।

इसकी उससे तुलना करना,
चलो नाप लें,
औरों को हम।

निर्णायक बन व्यस्त विचरना,
चलो ताप लें,
औरों को हम।

हमने ज्ञान निकाला, पेरा,
चलो पिलायें,
औरों को हम।

बिन हम जग में व्याप्त अँधेरा,
चलो जलायें,
औरों को हम।

पूर्ण नियन्त्रण, ध्येय महत्तम,
चलो बतायें,
औरों को हम।

फिर क्यों उछलें, अत्तम-बत्तम,
चलों सतायें,
औरों को हम।

काँटे जन जन, पुष्प मधुर हम,
चलो सजा दें, 
औरों को हम।

सुप्त प्राण, हो गुञ्जित मधुबन,
चलो बजा दें,
औरों को हम।

जब हम जागे,
तभी सभी का उदित सबेरा,
जब हम आगे,
तब विकास पथ रत्न बिखेरा,

हम तो हम हैं,
तुम हो, तम है,
हम साधेंगे, सारी रचना,
हम ढोते हैं, जग संरचना,
धर्म हमारा, कर्म हमारा,
न समझो तुम मर्म हमारा,

औरों के हम, समझे जन जन,
यही सिखाते, औरों को हम।

49 comments:

  1. सही है , हम से अधिक विद्वान् कौन ?? :)

    शिक्षण की शिक्षा लेते हैं ,
    गुरुशिष्टता मर्म न जाने !
    शिष्यों से रिश्ता बदला है
    जीवन के सुख को पहचाने
    आरुणि ठिठुर ठिठुर मर जाएँ,आश्रम में धन लाएं खींच !
    आज कहाँ से ढूँढें ऋषिवर, बड़े दुखी हैं, मेरे गीत !

    बधाई इस प्यारी रचना के लिए !!

    ReplyDelete
    Replies
    1. मुझे भले कुछ कह लें सतीश जी मगर खबरदार मेरे स्वयंभू शिष्य को कुछ नहीं--मैं बर्दाश्त नहीं कर सकूंगा :-)

      Delete
    2. सही गुरु हैं प्रभू :)

      Delete
    3. बेहद सुन्दर प्रस्तुति ....!
      आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा कल बुधवार (26-06-2013) के धरा की तड़प ..... कितना सहूँ मै .....! खुदा जाने ....!१२८८ ....! चर्चा मंच अंक-1288 पर भी होगी!
      सादर...!
      शशि पुरवार

      Delete
  2. काँटे जन जन, पुष्प मधुर हम,
    चलो सजा दें,
    औरों को हम।................ बड़ा ही तीखा व्यंग्य है, बहुत ख़ूब।

    'गुञ्जित'........ इस तरह की टाइपिंग बहुत कम हो चली है आजकल। बधाई .... कुछ दिनों से मैं "ड़, ञ्, ण" वर्णों का प्रयोग करने की कोशिश कर रहा हूँ, वही दृश्य यहाँ देख कर मन प्रसन्न हुआ।

    ReplyDelete
  3. ...इस काम में हम माहिर हैं !

    ReplyDelete
  4. इसकी उससे तुलना करना,
    चलो नाप लें,
    औरों को हम।
    ......... प्यारी रचना .........

    ReplyDelete
  5. पर उपदेश कुशल बहुतेरे

    ReplyDelete
  6. .
    .
    .
    नहीं झांकते, भीतर अपने
    सदा आंकते, औरों को हम !

    अच्छी रचना, आभार आपका...


    ...

    ReplyDelete
  7. हम तो हम हैं,
    तुम हो, तम है,
    हम साधेंगे, सारी रचना,
    हम ढोते हैं, जग संरचना,
    धर्म हमारा, कर्म हमारा,
    न समझो तुम मर्म हमारा,

    औरों के हम, समझे जन जन,
    यही सिखाते, औरों को हम।

    कोमलता से किया गया कटाक्ष ..... सुंदर रचना

    ReplyDelete
  8. जय हो सुन्दर रचना के लिए ... बधाई

    ReplyDelete
  9. अच्छी चोट है अहम् पर !

    ReplyDelete
  10. हम तो हम हैं,
    तुम हो, तम है,
    हम साधेंगे, सारी रचना,
    हम ढोते हैं, जग संरचना,
    धर्म हमारा, कर्म हमारा,
    न समझो तुम मर्म हमारा,

    औरों के हम, समझे जन जन,
    यही सिखाते, औरों को हम।--
    अहंकारियों पर करारा चोट
    latest post परिणय की ४0 वीं वर्षगाँठ !

    ReplyDelete
  11. ऐसे ही हैं हम ...

    ReplyDelete
  12. बहुत ही सुन्दर और सार्थक प्रस्तुतिकरण,आभार।बधाई इस प्यारी रचना के लिए !

    ReplyDelete
  13. एक सुंदर भावपूर्ण रचना

    ReplyDelete
  14. हम तो हम हैं,
    तुम हो, तम है,
    हम साधेंगे, सारी रचना,
    हम ढोते हैं, जग संरचना,
    धर्म हमारा, कर्म हमारा,
    न समझो तुम मर्म हमारा,

    बहुत सुंदर रचना, शुभकामनाएं.

    रामराम.

    ReplyDelete
  15. सच कहा है ..
    हम ऐसे ही रहेंगे ... पता नहीं थे या नहीं ... पर अब ऐसे ही रहेंगे ...
    बहुत प्रभावी ...

    ReplyDelete
  16. खुद में व औरों में कुछ तो फर्क रखना ही पड़ता है.

    ReplyDelete
  17. हम ही हम हैं , तो क्या हम हैं !

    ReplyDelete
  18. हम ही हम..

    बहुआयामी संदेश देती इस कविता के लिये आभार प्रवीण जी।

    ReplyDelete
  19. विचारणीय भाव
    इस नाप जोख में ही उलझें हैं हम सब ....जाने क्यों..?

    ReplyDelete

  20. आत्म श्लाघा गहना मेरा ,चलो दिखा दें औरों को हम

    ॐ शान्ति .

    ReplyDelete

  21. आत्म श्लाघा गहना मेरा ,चलो दिखा दें औरों को हम

    ॐ शान्ति .

    ReplyDelete
  22. देते ज्ञान
    औरों को हम !!

    ReplyDelete
  23. फिर क्यों उछलें, अत्तम-बत्तम,
    चलों सतायें,
    औरों को हम।

    अच्छा व्यंग्य है ...सही लिखा है ....समसामयिक ....!!आजकल इतनी ही सोच रह गयी है ....!!

    ReplyDelete
  24. हम साधेंगे, सारी रचना,
    हम ढोते हैं, जग संरचना,

    बहुत सुंदर.

    ReplyDelete
  25. हम से है ज़माना सारा
    हम ज़माने से है नहीं !!!

    ReplyDelete
  26. जब हम जागे,
    तभी सभी का उदित सबेरा,
    जब हम आगे,
    तब विकास पथ रत्न बिखेरा..
    बहुत सुन्दर नपी तुली सार्थक रचना ...

    ReplyDelete
  27. Dere all
    कितने प्यारे है ये सदेश तुम्हारे जिसे मे हर रोज पडता हूँ।

    ReplyDelete
  28. कविता कहती है कि आप तो बस आप हैं ।

    ReplyDelete
  29. हम तो हैं हम ......सटीक व्यंग...

    ReplyDelete
  30. कविता में गज़ब का व्यंग्य है.
    शिल्प की दृष्टि से भी कविता में ताजगी है .
    हम सभी का सच यही है.

    ReplyDelete
  31. काँटे जन जन, पुष्प मधुर हम,
    चलो सजा दें,
    औरों को हम-----एक सटीक सार्थक कविता जिसके हर बंद में व्यंग्य का पुट है बहुत खूब कहना आसान है दूसरों के लिए करना कुछ करना कौन चाहता है बहुत बहुत बधाई इस प्रस्तुति हेतु

    ReplyDelete
  32. समाज को दर्पण दिखाती रचना।

    ReplyDelete
  33. एक सुन्दर और अर्थपूर्ण कविता |

    ReplyDelete
  34. हम साधेंगे, सारी रचना,
    हम ढोते हैं, जग संरचना,
    धर्म हमारा, कर्म हमारा,
    न समझो तुम मर्म हमारा

    gahre arth ko samete mahtvpoorn panktiyan .......sadar aabhar.

    ReplyDelete
  35. This comment has been removed by the author.

    ReplyDelete
  36. हम तो हम हैं,
    तुम हो, तम है,
    हम साधेंगे, सारी रचना,
    हम ढोते हैं, जग संरचना,
    धर्म हमारा, कर्म हमारा,
    न समझो तुम मर्म हमारा,

    ....आज के यथार्थ की सटीक अभिव्यक्ति...बहुत सुन्दर..

    ReplyDelete
  37. "बिन हम जग में व्याप्त अँधेरा,
    चलो जलायें,
    औरों को हम।"
    बहुत ही प्रभावशाली पंक्तियाँ... बहुत बहुत बधाई...

    @मानवता अब तार-तार है

    ReplyDelete
  38. अरे! वाह! यह तो बडी उपयोगी रचना दे दी आपने। खूब काम में आएगी मुझे तो। शुक्रिया।

    ReplyDelete
  39. हम से बढकर कौन .............।

    ReplyDelete
  40. काँटे जन जन, पुष्प मधुर हम,
    चलो सजा दें,
    औरों को हम।

    सटीक, बहुत सुन्दर !

    ReplyDelete
  41. aise hi hain ham ...
    bhi :)
    shandaar
    aapke pratibha ke kayal hain ham !!

    ReplyDelete
  42. कड़वी एवं सार्थक कविता !

    ReplyDelete
  43. आपके लिखे पर comment करना
    शुरू से अंत तक उलझन में ही रह गई
    कभी व्यंग लगा तो कभी गूढ रहस्य
    यह ही सत्य हैं ....

    ReplyDelete
  44. देश के नेताओं पर अच्‍छा कटाक्ष।

    ReplyDelete
  45. ब्लॉग बुलेटिन की ५५० वीं बुलेटिन ब्लॉग बुलेटिन की 550 वीं पोस्ट = कमाल है न मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

    ReplyDelete