19.6.13

जो है, सो है

अपने मित्र आलोक की फेसबुक पर बदले चित्र पर ध्यान गया, उसमें कुछ लिखा हुआ था। आलोक प्रमुखतः चित्रकार हैं और उसके सारे चित्रों में कुछ न कुछ गूढ़ता छिपी होती है, अर्थभरी कलात्मकता छिपी रहती है। आलोक बहुत अच्छे फोटोग्राफर भी हैं और उनकी मूक फोटो बहुत कुछ कहती हैं। आलोक को पढ़ते पढ़ते दार्शनिकता में डुबकी लगाने में भी रुचि है, उनसे किसी भी विषय पर बात करना एक अनुभव है, हर बार कुछ न कुछ सीखने को मिल जाता है।

चित्र में उनके रेत पर चलते हुये पैर का धुँधला दृश्य था, उनके ही पैर का होगा क्योंकि आलोक गोवा में रहते हैं। उस पर लिखा था, Whatever is could not be otherwise - Eckhart Tolle. अर्थ है, जो है, वह उससे इतर संभव नहीं था। या कहें कि जो है, वह उसके अतिरिक्त कुछ और हो भी नहीं सकता था। पर इसे पढ़ते ही मेरे मन मे जो शब्द आये, वे थे, 'जो है, सो है'।

जो है, सो है। बड़े दार्शनिक शब्द हैं ये। समय, व्यक्ति और स्थान की तुलनात्मक जकड़न से सहसा मुक्त करते शब्द हैं ये। न पहले सा समय आ सकता है, न हम औरों से ही बन सकते हैं और न ही हम किसी समय किसी और स्थान पर ही हो सकते हैं। यदि ऐसा होता तो वैसा हो जाता, यदि ऐसा न होता तो वैसा न हो पाता। ऐसे ही न जाने कितने मानसिक व्यायाम करते रहते हैं, हम सभी। ऐसा लगता है कि औरों की तुलना में सदा ही स्वयं को स्थापित करने के आधार ढूढ़ते रहते हैं हम। न जाने कितना समय व्यर्थ होता है इसमें, न जाने कितनी ऊर्जा बह जाती है इस चिंतन में। उस सभी विवशताओं से मुक्ति देता है, यह वाक्य। जो है, सो है।

एक्हार्ट टॉल के लेखन में आध्यात्मिकता की पर्याप्त उपस्थिति रहती है। उनकी लिखी पॉवर ऑफ नाउ नामक पुस्तक आप में से कइयों ने पढ़ी भी होगी। वर्तमान में जीने की चाह का ही रूपान्तरण है, उनकी यह पुस्तक। मन में एकत्र स्मृतियों और आगत के भय में झूलते वर्तमान को मुक्त कराते हैं, इस पुस्तक के चिन्तन पथ। अभी के मूलमन्त्र में जीवन जी लेने का भाव सहसा हर क्षण को उपयोगी बना देता है, जैसा उस क्षण का अस्तित्व है।

मन बड़ा कचोटता है, असंतुष्ट रहता है। कोई कारण नहीं, फिर भी अशान्त और व्यग्र सा घूमता है। कोई कारण पूछे तो बस तुलना भरे तर्क बतलाने लगता है। समय, व्यक्ति और स्थान की तुलना के तर्क। ऐसे तर्क जो कभी रहे ही नहीं। ऐसे जीवन से तुलना, जो हम कभी जिये ही नहीं। क्योंकि हम तो सदा वही रहे, एक अनोखे, जो हैं, सो हैं।

हम पहले जैसे प्रसन्न नहीं हैं, या भविष्य में अभी जैसे दुखी नहीं रहना चाहते हैं, यही तुलना हमें ले डूबती है। क्या लाभ उस समय को सोचने का जिसे हम भूतकाल कहते हैं और जिसे हम बदल नहीं सकते हैं। क्या लाभ उस समय को सोचने का जो आया ही नहीं और जिसकी चिन्ता में हम भयनिमग्न रहते हैं। मन हमें सदा ही तुलना को बाध्य करता रहता है और हम हैं कि उन्हीं मायावी तरंगों में आड़ोलित होते रहते हैं, अस्थिर से, आधारहीन से। वर्तमान ही है जिसे जीना प्रस्तुत कर्म है और हम इसी से ही भागते रहते हैं।

मन हमें या तो भूतकाल में या भविष्य में रखता है, वर्तमान में रहना उसके बस का नहीं। यदि मन वर्तमान में रहना सीख जायेगा तो वह स्थिर हो जायेगा, उसकी गति कम हो जायेगी, उसका आयाम कम हो जायेगा। किसी चंचल व्यक्तित्व को भला यह कैसे स्वीकार होगा कि उसकी गति कम हो जाये या उसके आयाम सिकुड़ जायें।

जब समय की विमा से हम बाहर आते हैं और वर्तमान में रुकते हैं, तब भी मन नहीं मानता है। किसी और स्थान से तुलना करना प्रारम्भ कर देता है, सोचने लगता है कि संभवतः किसी और स्थान में हमारा सुख छिपा है, यहाँ की तुलना में अच्छा विस्तार छिपा है। हमारा मन तब यहाँ न होकर वहाँ पहुँच जाता है और तुलना करने के अपने कर्म में जुट जाता है। यदि उस स्थान से किसी तरह सप्रयास आप वापस आ जायें, तो तुलना अन्य व्यक्तियों से प्रारम्भ हो जाती है।

मन अपनी उथल पुथल छोड़ नहीं सकता है, उसे साथी चाहिये अपने आनन्द में, हमें भी साथ ले डूबता है। मन को उछलना कूदना तो आता है, पीड़ा झेलना उसने कभी सीखा ही नहीं। मन छोटी से भी छोटी पीड़ा हम लोगों को सौंप देता है और चुपचाप खिसक लेता है।

पता नहीं, आलोक की तर्करेखा भी मेरी तर्करेखा से मिलती है या नहीं, कभी पूछा भी नहीं। पर एक स्थान से चले यात्री कुछ समय पश्चात पुनः एक स्थान पर आकर मिल जायें तो पथ का प्रश्न गौड़ हो जाता है। चित्र में एक पथ दिख रहा है, एक पग दिख रहा है, वर्तमान की दिशा का निर्देशित वाक्य दिख रहा है, यह सब देख मुझे तो यही लगता है कि आलोक मेरे पथ पर ही है। वह तनिक आगे होगा, मैं तनिक पीछे। वह तनिक गतिशील होगा, मैं तनिक मंथर।

यह चित्र एक और बात स्पष्ट रूप से बता रहा है, इसमें न पथ का भविष्य दिख रहा है, न पथ का भूतकाल, बस पथ दिख रहा है, बस पग दिख रहा है। सब के सब वर्तमान की ओर इंगित करते हुये। आप भी बस अभी की सोचिये, यहीं की सोचिये, अपने बारे में सोचिये। मैं तो कहूँगा कि सोचिये ही नहीं, सोचना आपको बहा कर ले जायेगा, आगे या पीछे। आप बस रहिये, वर्तमान में, जो है, सो है।

41 comments:

  1. सही कहा आपने जो है वह वर्तमान है, यदि वर्तमान अच्छा है तो भविष्य अपने आप ही अच्छा होगा!

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  2. @ मन अपनी उथल पुथल छोड़ नहीं सकता है, उसे साथी चाहिये अपने आनन्द में, हमें भी साथ ले डूबता है। मन को उछलना कूदना तो आता है, पीड़ा झेलना उसने कभी सीखा ही नहीं। मन छोटी से भी छोटी पीड़ा हम लोगों को सौंप देता है और चुपचाप खिसक लेता है।

    मनन योग्य लेख है , काश हम समझें भी !!
    आभार आपका !!

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  3. पग कैसे भी उठे , बस रखने से पहले पल भर को दिशा और दशा का मनन कर लें ....वही पग अन्य के लिए दिशा सूचक हो जाएगा । "जो है सो है " तो ठीक है परन्तु "अब जो होगा वह जैसा सोचा वैसा ही होगा" की भी ठान लें तो होता भी है ।

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  4. कल ही रमण महर्षि के आश्रम से लौटा हूँ और आज यह पढ्ने को मिल गया। आभार.

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  5. गत आगत में निरूद्देश्य डोलना ही व्यर्थ है. 'यह होता तो या वह होता तो' का भटकाव उद्देश्यहीन है उसी अपेक्षा से "जो है सो है" उचित ही है किंतु सीख की अपेक्षा से गत से सीखना, वर्तमान संवारना और आगत के मार्गा का पूर्व नियोजन विकास के आवश्यक चरण है.

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  6. आदरणीय पाण्डे सर यह सच है मन हमें या तो भूतकाल में या भविष्य में रखता है, वर्तमान में रहना उसके बस का नहीं , दरअसल वो वर्तमान में रहा तो लगता है उसकी चंचलता खत्म हो जायेगी जो कि उसकी पहचान होती है , मैंने भी अपने अल्प ज्ञान से मन को समझने की कौशिश करके अपने ब्लॉग चित्रांशसोल पर कुछ लाइनें लिखी थी जो आज आपकी इन भावपूर्ण लाइनों को पढ़कर स्मरण हो आई , आपको बधाई !

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  7. विज्ञान कथाकार ऐसा नहीं मानते -वे कहते है जो है उससे अलग भी है -हाँ परम तत्व एक भले हो ......हम इसी दिक्काल की एक पृथक विमा में किसी अलग कलेवर में मौजूद हो सकते है -जिसे विज्ञान कथाकारों ने अल्टरनेट हिस्ट्री कहा है !
    रोचक दार्शनिक विवेचन !

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  8. यदि वर्तमान अच्छा है तो भविष्य अपने आप ही अच्छा होगा! poorntah sahmat

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  9. "जो है सो है" यह सूत्र मन को शांत करने का सर्वोत्तम उपाय है.

    भूत भविष्य और इन दोनों के मध्य वर्तमान, ये तीनों मिलकर एक ऊर्जा त्रिकोण बनाते हैं. इनमें से किसी एक का भी असंतुलन पूरा किया कराया बिगाड देता है. इनमें भी वर्तमान बुद्ध का बताया हुआ मध्य है.

    यदि इन तीनों का संतुलन बन जाये तो सर्वोत्तम जीवन का आनंद लिया जा सकता है.

    बहुत ही सुंदर आलेख, शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  10. क्या बात है....
    ---हर वर्त्तमान अपने भूतकाल का भविष्य होता है और भविष्य का भूतकाल | काल स्वयं काल निरपेक्ष है..
    ---कौन कब कहाँ खडा है कौन जाने ...अतः...

    भूतकाल से सीखें ,
    भविष्य से आशान्वित रहें ...
    वर्तमान में जीयें ...

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  11. Jo hai use sweekar lena bade pahunche huon kaam hai....ham aksar apne jaal me tadapdte rahte hain...

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  12. gyan tantuon ko kriyanvit kar dete hain aap :)

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  13. काबिले-तारीफ रोचकतापूर्ण दार्शनिक विवेचन किया आपने,,,,

    RECENT POST : तड़प,

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  14. आप बस रहिये, वर्तमान में, जो है, सो है।

    यही मानना आसान नहीं इंसान के लिये

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  15. अच्छा दर्शन है । सुन्दर विश्लेषण । न मेरे विचार से एक दायरे में सिमटे सर्वांग एकाकीपन में,और किसी भी तरह मन को शान्त बनाए रखने के लिये यह अभ्यास ( सिर्फ वर्तमान में जीना )अच्छा है ,कल्याण कारी है लेकिन कहीं न कहीं व्यक्ति को आत्मकेन्द्रित भी बनाता है क्योंकि अतीत की जमीन और भविष्य के आसमान बिना कम से कम सृजन और परिवर्तन की संभावना मन्द होसकती है ।

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  16. बहुत बढ़िया वैचारिक आलेख ...

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  17. क्या बात कही है प्रवीण जी आपने "जो है, सो है"...
    जीनव का मुल मंत्र ही यही है। जो होना है वो होके रहेगा ओर जो हो चुका वह हो गया । हम तो केवल वर्तमान को बदल सकते है।...

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  18. वैसे तो जो है उसी मिज रह के सोचना आसां नहीं होता क्योंकि साँसें हैं जो आगे ले जाने को मजबूर करती हैं ...

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  19. आपकी पोस्ट को आज के ब्लॉग बुलेटिन 20 जून विश्व शरणार्थी दिवस पर विशेष ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। सादर ...आभार।

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  20. वर्तमान में, जो है, सो है

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  21. बीते हुए को भूल जाओ और आने वाले की चिंता न करो | वर्तमान में जियो और सुखी रहो |

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  22. आपकी यह प्रस्तुति कल के चर्चा मंच पर है
    धन्यवाद

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  23. यह चित्र एक और बात स्पष्ट रूप से बता रहा है, इसमें न पथ का भविष्य दिख रहा है, न पथ का भूतकाल, बस पथ दिख रहा है, बस पग दिख रहा है। सब के सब वर्तमान की ओर इंगित करते हुये। आप भी बस अभी की सोचिये, यहीं की सोचिये, अपने बारे में सोचिये। मैं तो कहूँगा कि सोचिये ही नहीं, सोचना आपको बहा कर ले जायेगा, आगे या पीछे। आप बस रहिये, वर्तमान में, जो है, सो है।


    बहुत सुन्दर -जो भी है बस यही एक पल है इसे देख इसे निचोड़ जी भरके ....जो है सो है ..बहुत अच्छा है जो भी है .....

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  24. चंचल: हि मनः कृष्ण प्रमाथि बल्वद दृढं
    तस्याहं निग्रहं मन्ये वायोरिव सुदुष्करम्
    श्री कृष्ण भी मानते हैं कि मन को वश मे करना कठिन है ....!किन्तु मन का साथ जब बुद्धि और विवेक देते हैं तो जीवन यात्रा सहज हो जाती है .....आज इस पल को जीता हुआ चलता है मनुष्य ....न कल था ...न कल होगा ....जो है सो आज है ....

    सुन्दर बात ....!!

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  25. विगत का परिणाम वर्तमान है उसे नहीं बदल सकते हम ,लेकिन बढ़नेवाले कदम को दिशा दी जा सकती है.
    (एकदम से जो दिमाग़ में आया वही लिख दिया - ज्ञानीजनों के विचार ग्रहण कर रही हूँ ) .

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  26. अधिकांश रूप से इंसान या तो भूतकाल में जीता है या भविष्य मेन वर्तमान को भूल जाता है .... जो है सो है को अपना ले तो काफी चिंताएँ खत्म हो जाएँ ...

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  27. जो है, सो है..... जीवन का मूलमंत्र! आप और अलोक जी साथ-साथ हैं.

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  28. यकीनन जो है सो है...इस बात पर दार्शनिक व्याख्या 'क्रमबद्धपर्याय' के सिद्धांत के माध्यम से की जाती है...बेहद सुंदर प्रस्तुति।।।

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  29. वर्तमान ही तो जीवन है, देखिये केदारनाथ में भविष्य की ओर उन्मुख लोग, वर्तमान में ही महाशिव में समा गये। कहां गया भविष्य?

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  30. बस यही एक विधायक पल है .जो हो रहा है कल्याण - कारी ड्रामा अनुसार .कर्म की परछाईं तेरे साथ चले है आज का सोच ,जो है यही है ......

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  31. वर्तमान ही है वह पल जिसमे जीना है !

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  32. Jo hai so hai...bahut badhiya. Vartmaan me rehne kii seekh bilkul naye tarike se.

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  33. Time is a very misleading thing. All there is ever, is the now.

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  34. सच ! बस यही एक पल ..चलता चल ..

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  35. अध्यात्म का सार और जीने की कला यही है, लेकिन आसान नहीं है ।

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  36. वर्तमान ही शाश्‍वत सत्‍य है, यही जाना एक बार फिर, आपकी इस पोस्‍ट से।

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  37. हमारे पास तो वर्तमान ही होता है वास्‍तविक रुप में।

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  38. रोचकतापूर्ण विवेचन किया आपने,,,,

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  39. जो है, सो है

    सत्य!

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