17.4.13

एक दुपहरी

एक दुपहरी, गर्म नहीं, गुनगुनी,
मन अकेला, व्यग्र नहीं, अनमना,
मिलकर सोचने लगे, क्या करें,
समय का रिक्त है, कैसे भरें,
कुछ उत्पादक, सार्थक, ठोस,
या सुन्दर, जैसे सुबह पड़ी ओस,
जो उत्पादक, सजेगा रत्न सा,
सुन्दर सुखमय, पर स्वप्न सा,
सोचा, कौन अधिक उपयोगी,
सोचा, किससे प्यास बुझेगी?

प्रश्न जूझते, उत्तर खिंचते,
दोनों गुत्थम गुत्था भिंचते,
समय खड़ा है, खड़े स्वयं हम,
उत्तर आये, बढ़ जाये क्रम,
उपयोगी हो या मन भाये,
रत्न मिले या सुख दे जाये,
किन्तु दुपहरी, अब तक ठहरी,
असमंजस मति पैठी गहरी,
मन भी बैठा रहा व्यवस्थित,
गति स्थिरता मध्य विवश चित,

गर्म दुपहरी, व्यग्र रहा मन
निर्णय में उलझा है चिन्तन।

54 comments:

  1. द्विधा-ग्रस्तता में यही हाल होता है- गति स्थिरता मध्य विवश चित.

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  2. मन के अन्तर्द्वन्द से निकली एक सार्थक कविता |

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  3. शानदार रचना

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  4. व्यग्रता से उपजा चिंतन
    विचारों का गहन मंथन॥

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  5. अमुमन अन्तर्द्वन्द मौन रहता है,आज अभिव्यक्त हुआ.....

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  6. मन ही उलझन को सुलझायेगा.

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  7. विचारों का गहन मंथन
    शानदार रचना

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  8. अंतर्मन की व्यथा का एक रूप ये भी

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  9. अन्तर्विरोध कई बार दुपहरियां हराम करते हैं !

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  10. अंतर्द्वंद्व में घिरा मन .....तन मन दोनों को शिथिल सा कर जाता है .... सुंदर रचना ।

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  11. कह दे माँ अब क्या देखूँ
    देखूँ खिलती कलियाँ या
    प्यासे सूखे अधरों को
    चिर यौवन सुषमा देखूँ
    या जीवन का जर्जर देखूँ .....
    महादेवी जी ने भी ऐसी ही दुविधा को अंकित किया है । लगभग हर संवेदनशील व्यक्ति को यही दुविधा होती है और बहुत सा वक्त यों ही गुजर जाता है । बहुत सुन्दर ..।

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  12. हमें तो ऐसे विचार अलसुबह ही आते है, आप कुछ ज्यादा स्राजनशील होंगे जो दोपहर में भी एस सर्जन करने में सक्षम है… :)
    किन्तु दुपहरी, अब तक ठहरी,
    असमंजस मति पैठी गहरी,
    मन भी बैठा रहा व्यवस्थित,
    गति स्थिरता मध्य विवश चित,

    बहुत अच्छे, लिखते रहिये ...

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  13. समय समय पर इस प्रकार के चिंतन में उलझना ज़रूरी है ....तभी सुल्स्झता है मन और एक सार्थक राह निकलती है ...एक सामंजस्य स्थापित होता है ...
    सार्थक चिंतन करती रचना ...!!

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  14. शानदार रचना, अंतर्मन की व्यथा का एक रूप ये भी

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  15. उत्कृष्ट , भावपूर्ण रचना

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  16. मन की दुविधा को सुन्दर शब्दों के माध्यम से बाँधा है ...
    उम्दा काव्य ..

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  17. द्वंद की भावपूर्ण और सटीक अभिव्यक्ति, शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  18. इस गर्म दुपहरी में पढ़ना छाया बन जाना हुआ

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  19. दुपहरियां व्यग्र करती ही हैं वो चाहे जीवन की हो या प्रकृति की !

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  20. दोपहरी,दुविधा, मंथन , चिंतन
    सब सार्थक.

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  21. आदरणीय प्रवीण जी आपने अन्त: द्वन्द की सुन्दरता शिल्पकारी की है।साथ ही यथार्थ भी स्पष्ट गोचर हो रहा है।
    सुन्दर रचना।
    समय मिले तो कभी यहां भी पधारें-
    http://wings-vandana.blogspot.com

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  22. झकड़ा जड़ की तरह ज़टिल कविता लिखा भी एक कला है। :)
    बढ़िया।

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  23. व्यग्र मना ,अन -मना,अन्यमनस्क हम जब तब होते रहते हैं .बस किसी भी वजह से लय टूटे की देर है लेकिन रुककर सोचने का मौक़ा देती हैं यही स्थितियां .बढ़िय मन :उधेड़ बुन रचनात्मकता ढूंढती .तौलती स्थितियों को .रचती हुई नए क्षितिज रचनात्मकता के .

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  24. व्यग्र मना ,अन -मना,अन्यमनस्क हम जब तब होते रहते हैं .बस किसी भी वजह से लय टूटे की देर है लेकिन रुककर सोचने का मौक़ा देती हैं यही स्थितियां .बढ़िय मन :उधेड़ बुन रचनात्मकता ढूंढती .तौलती स्थितियों को .रचती हुई नए क्षितिज रचनात्मकता के .

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  25. व्यग्र मना ,अन -मना,अन्यमनस्क हम जब तब होते रहते हैं .बस किसी भी वजह से लय टूटे की देर है लेकिन रुककर सोचने का मौक़ा देती हैं यही स्थितियां .बढ़िय मन :उधेड़ बुन रचनात्मकता ढूंढती .तौलती स्थितियों को .रचती हुई नए क्षितिज रचनात्मकता के .

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  26. आपकी यह प्रस्तुति कल के चर्चा मंच पर है
    कृपया पधारें

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  27. मेरे मै के स्वरूप से होता जब
    औरों की अनबन
    ऐसे में पास आती
    एक दोपहरी,,,,आभार,

    RECENT POST : क्यूँ चुप हो कुछ बोलो श्वेता.

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  28. आज की ब्लॉग बुलेटिन गूगल पर बनाइये अपनी डिजिटल वसीयत - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  29. किन्तु दुपहरी, अब तक ठहरी,
    असमंजस मति पैठी गहरी,
    मन भी बैठा रहा व्यवस्थित,
    गति स्थिरता मध्य विवश चित,

    .....कभी कभी यह अंतर्द्वंद कर देता है स्थिर एक बिंदु पर, लेकिन आगे बढ़ना एक नियति है जो स्थिर नहीं रहने देती अधिक देर एक बिंदु पर...

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  30. बहुत खूब साब | सुन्दर रचना |

    कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
    Tamasha-E-Zindagi
    Tamashaezindagi FB Page

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  31. अंतर्द्वंद अक्सर एक नयी ऊर्जा की ज़मीं होते हैं ......कुछ सार्थक उपजता है .....

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  32. सुंदर द्वंद समास.

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  33. मन असमंजस में होता है जब कि क्या करें क्या नहीं ..और समय गुजरता जाता है..ऐसे ही मनोभाव उमडते हैं.

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  34. असमंजस त्यागना ही पड़ता है।

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  35. बधाई हो बधाई जअनाम दिन कि तुमको.......... मिलेंगे लड्डू हमको ?

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  36. उसी चिंतन से निकला हुआ सुन्दर रत्न..

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  37. मन में उलझे तानो बानो की ग्रंथियाँ खोलने की कोशिश सुन्दर भाव बढ़िया प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई प्रवीण जी |

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  38. वाह! क्या बात है बहुत ख़ूब!

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  39. वाह! क्या बात है बहुत ख़ूब!

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  40. कुछ देने का, सृजन का भाव ही कितना सुखद है..इसी से तो रची गयी यह कविता..

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  41. है शांत मुखर पर लहर समाया
    अंतर्द्वंद हिचकोले खाया।
    हम बैठे और करे इंतजार
    लेखनी जैसे मोतियन की हार।
    अती सुन्दर उत्कृष्ट रचना

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  42. गर्म दुपहरी, व्यग्र रहा मन
    निर्णय में उलझा है चिन्त....बढ़ि‍या..

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  43. इक गर्म दुपहरी और है चिंतन
    दुविधा में ठहरा है कहीं अंतर्मन

    खिंचते- खींचते
    भिंचते- भींचते

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  44. दोपहरी में ही यह एहसास शुभ संकेत है. लोग तो शाम को भी जागृत नहीं होते।

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  45. मन की उलझन समझे कौन,
    मेरा अंतर्मन भी मौन!!

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  46. दोपहरी है वह समयगति
    होती जब दम्‍भ की क्षति
    मनुष्‍य चेतना स्‍ववशीभूत
    मानव धर्म,कर्म,श्रम का दूत


    समय का रिक्‍त कैसे भरें? मैं कहता हूँ क्‍या जरुरत है दोपहरी के रिक्‍त को भरने की! मुझे तो गर्म दोपहरें ही वो माध्‍यम लगती हैं, जिनके प्रभाव से मनुष्‍य अपनी औकात में रहता है। नहीं तो मौसमीय और भौतिक सुख-सुविधाओं में मानवता का दम घुटने पर लगा हुआ है।

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  47. ...करते-थकते हो गई शाम।
    चलते रहना,पर अविराम ।।

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  48. गर्म दुपहरी जलता तन मन
    ऊपर से झुलसाता चिंतन!!

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  49. गर्म दुपहरी, व्यग्र रहा मन
    निर्णय में उलझा है चिन्त..बहुत सुन्दर..

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