10.9.11

तरणताल में ध्यानस्थ

तैरना एक स्वस्थ और समुचित व्यायाम है, शरीर के सभी अंगों के लिये। यदि विकल्प हो और समय कम हो तो नियमित आधे घंटे तैरना ही पर्याप्त है शरीर के लिये। पानी में खेलना एक स्वस्थ और पूर्ण मनोरंजन है, मेरे बच्चे कहीं भी जलराशि या तरणताल देखते हैं तो छप छप करने के लिये तैयार हो जाते हैं, घंटों खेलते हैं पर उन्हें पता ही नहीं चलता है, अगले दिन भले ही नाक बहाते उठें। सूरज की गर्मी और दिनभर की थकान मिटाने के लिये एक स्वस्थ साधन है, तरणताल में नहाना। गर्मियों में एक प्रतीक्षा रहती है, शाम आने की, तरणताल में सारी ऊष्मा मिटा देने की। कोई भी कारण हो, तैरना आये न आये, आकर्षण बना रहता है, तरणताल, झील, नदी या ताल के प्रति।

उपर्युक्त कारणों के अतिरिक्त, एक और कारण है मेरे लिये। पानी के अन्दर उतरते ही अस्तित्व में एक अजब सा परिवर्तन आने लगता है, एक अजब सी ध्यानस्थ अवस्था आने लगती है। माध्यम का प्रभाव मनःस्थिति पर पड़ता हो या हो सकता है कि पिछले जन्मों में किसी जलचर का जीवन बिताया हो मैंने। मुझे पानी में उतराना भाता है, बहुत लम्बे समय के लिये, बिना अधिक प्रयास किये हुये निष्क्रिय पड़े रहने का मन करता है। मन्थर गति से ब्रेस्टस्ट्रोक करने से बिना अधिक ऊर्जा गँवाये बहुत अधिक समय के लिये पानी में रहा जा सकता है। लगभग दस मिनट के बाद शरीर और साँसें संयत होने लगते हैं, एक लय आने लगती है, उसके बाद घंटे भर और किया जा सकता है यह अभ्यास।

प्रारम्भिक दिनों में एक व्यग्रता रहती थी तैरने में, कि किस तरह जलराशि पार की जाये। तब न व्यायाम हो पाता था, न ही मनोरंजन, होती थी तो मात्र थकान। तब एक बड़े अनुभवी और दार्शनिक प्रशिक्षक ने यह तथ्य बताया कि जलराशि शीघ्रतम पार कर लेने से तैरना नहीं सीखा जा सकता है, तैरना चाहते हो तो पानी में लम्बे समय के लिये रहना सीखो, पानी से प्रेम करो, पानी के साथ तदात्म्य स्थापित करो। शारीरिक सामर्थ्य(स्टैमना) बढ़ाने और पानी के अन्दर साँसों में स्थिरता लाने के लिये प्रारम्भ किया गया यह अभ्यास धीरे धीरे ध्यान की ऐसी अवस्था में ले जाने लगा जिसमें अपने अस्तित्व के बारे में नयी गहराई सामने आने लगी। इस विधि में शरीर हर समय पानी के अन्दर ही रहता है, बस न्यूनतम प्रयास से केवल सर दो-तीन पल के लिये बाहर आता है, वह भी साँस भर लेने के लिये। पानी के माध्यम में लगभग पूरा समय रहने से जो विशेष अनुभव होता है उसका वर्णन कर पाना कठिन है, तन और मन में जलमय तरलता और शीतलता अधिकार कर लेती है। पता नहीं इसे क्या नाम दें, जल-योग ही कह सकते हैं।

कभी कभी इस अवस्था को जीवन में ढूढ़ने का प्रयास करता हूँ। समय बिताना हो या समय में रमना हो, समय बिताने की व्यग्रता हो या समय में रम जाने का आनन्द, जीवन भारसम बिता दिया जाये या एक एक पल से तदात्म्य स्थापित हो, जीवन से सम्बन्ध सतही हो या गहराई में उतर कर देखा जाये इसका रंग? यदि व्यग्रता से जीने का प्रयास करेंगे तो वैसी ही थकान होगी जैसे कि तैरते समय पूरे शरीर को पानी के बाहर रखने के प्रयास में होती है। साँस लेने के लिये पूरे शरीर को नहीं, केवल सर को बाहर निकालने की आवश्यकता है। जिस प्रकार डूबने का भय हमें ढंग से तैरने नहीं देता है, उसी प्रकार मरने का भय हमें ढंग से जीने नहीं देता है।

तैरने का आनन्द उठाना है तो ढंग से तैरना सीखना होगा। जीवन का आनन्द उठाना है तो ढंग से जीना सीखना होगा।

76 comments:

  1. प्रकॄति ने सब कुछ उपलब्ध कराया है,बस उसके साथ रहना सीख लेने से ही हर जगह ध्यानस्थ हुआ जा सकता है ,भय कहीं भी हो कुछ भी ढंग से करने नहीं देता है,भयमुक्त जीवन जीना ही शायद जीना कहलाता है ...एक अच्छा आलेख..

    (तो बहुत दिन हो गए -इन्तजार है भयमुक्त होने का....)

    ReplyDelete
  2. शनिवार (१०-९-११) को आपकी कोई पोस्ट नयी-पुरानी हलचल पर है ...कृपया आमंत्रण स्वीकार करें ....aur apne vichar bhi den...

    ReplyDelete
  3. तिरा सो तरा.

    ReplyDelete
  4. मनुष्य के उत्पत्ति /विकास की एक संकल्पना यह भी बताती है कि हामरे पूर्वज जलचर थे ..प्रमाण में वे नवजातों के तैरने का उदाहरण देते हैं -मनुष्य नवजात जन्म के तत्काल बाद भी पानी में हाथ पैर चलाते देखे जाते हैं -
    निश्चय ही तैरना एक उल्लासपूर्ण अनुभव है -व्यायाम तो नम्बर एक है ही !

    ReplyDelete
  5. तैरने का लाभ चाहकर भी नहीं उठा पाया.गंगाजी के पास रहते हुए भी इस ओर प्रगति नहीं हो पाई,इसकी बड़ी वज़ह यह रही कि इस मामले में मैं डरपोक रहा.
    तैरना एक उत्तम व्यायाम है.शीतल जल वैसे ही सारी थकान दूर कर देता है.दो-चार छींटे जहाँ किसी की बेहोशी ख़त्म करने को पर्याप्त होती हैं और यदि जल में ही क्रीडा करने लगे कोई तो क्या होगा,यह बताने की ज़रुरत नहीं है !

    ReplyDelete
  6. कोशिश जारी है,मेरी..तैरना सीखने की भी और जीवन जीने की भी

    ReplyDelete
  7. जीवन का विकास ही जल में हुआ.....तभी तो कहाजाता है ...जल ही जीवन है...

    ReplyDelete
  8. bahut achcha aalekh likha hai.really tairna bahut achchi exercise hai.bahut kuch yesa hi anubhav hota hai jab main swimming karti hoon.dheere dheere abhyaas se kitna hi stemina develop kar sakte hain.jo bhi kam dil ki gahraaiyon se karen usi me aanand aata hai.

    ReplyDelete
  9. मुझे तो पानी में पैर लटकाकर बैठना अच्छा लगता है या फिर ट्यूब-वैल की धारा/उसके गड्ढ़े में नहाना.

    ReplyDelete
  10. मुझे भी तैरना बहुत अच्छा लगता है और अगर एकाँत भी हो तो मन एकदम शाँत हो जाता है!

    ReplyDelete
  11. तैरना क्या सीख पायेंगे इस उम्र मे .... हां ढंग से जीना सीखने का प्रयत्न तो कर ही रहे है

    ReplyDelete
  12. तैरना अच्छा तो लगता है पर यह एक काम हो गया है आज... सबसे पहले तो समय निकाल कर मन बनाओ, फिर मौसम देखो, फिर देखो कि आज पूल बंद तो नहीं होगा, फिर वहां जाने का उपक्रम करो, पूल में घुसने से पहले नहाओ...फिर निकल कर नहाओ, कपड़े बदलने के रूम में आओ, फिर गाड़ी उठा कर घर लौटना...

    बहुत याद आता है, गांव का पोखर... वहां से गुजरते हुए जब जी चाहा कपड़े उतारे, डुबकी लगा ली....

    शहर में तैरना.... अब क्या कहूं

    ReplyDelete
  13. dhiru singh {धीरू सिंह} ने कहा…

    तैरना क्या सीख पायेंगे इस उम्र मे .... हां ढंग से जीना सीखने का प्रयत्न तो कर ही रहे है

    जरुर धीरू भाई ||

    मैंने २५ की आयु में तैरना सीखा ||

    हाँ पर नहर पार कर सकता हूँ नदी नहीं |

    बधाई प्रवीण जी ||

    ReplyDelete
  14. तैरने का आनन्द उठाना है तो ढंग से तैरना सीखना होगा। जीवन का आनन्द उठाना है तो ढंग से जीना सीखना होगा।


    तैरने के विषय में पोस्ट है जो जीवन में खुद को तारने की राह बता रही है..... सुंदर

    ReplyDelete
  15. बहुत तत्वपूर्ण चिंतन!

    ReplyDelete
  16. जिस प्रकार डूबने का भय हमें ढंग से तैरने नहीं देता है, उसी प्रकार मरने का भय हमें ढंग से जीने नहीं देता है।

    जलयोग भी इसी मूलभूत आनंद को प्राप्त करने की एक विधि लगत्ती है मुझे तो. शुभकामनाएं.

    रामराम.

    ReplyDelete
  17. जिस प्रकार डूबने का भय हमें ढंग से तैरने नहीं देता है, उसी प्रकार मरने का भय हमें ढंग से जीने नहीं देता है.

    बहुत गहरी बात कही है .. गंभीर चिंतन

    ReplyDelete
  18. काजल कुमार जी ने मेरे दिल की बात कह दी . तैराकी पूर्ण व्यायाम है और सुकून प्रद भी .

    ReplyDelete
  19. doobne ka dar tairne nahin deta...shayd isliye tairna seekhne ki sari koshish nakam rahi hai meri...
    shayad aapke tarike se ho sake, agli baar dhyan sthir karke dekhti hun.

    ReplyDelete
  20. हर एक के समझने के लिए जरूरी ....कि..???

    जिस प्रकार डूबने का भय हमें ढंग से तैरने नहीं देता है, उसी प्रकार मरने का भय हमें ढंग से जीने नहीं देता है।
    स्वस्थ रहें!

    ReplyDelete
  21. सुन्दर आलेख. हमारे पुश्तैनी घर में एक चौड़ी बावड़ी हुआ करती थी जो हमेशा लबालब रहती थी. छुट्टी मनाने आये कुछ बच्चे डूब रहे थे. उन्हें बचा तो लिया गया परन्तु हमारे पिताश्री ने उस तरन ताल को पटवा दिया. अब फिर से उसका पुनरुद्धार होगा.

    ReplyDelete
  22. सहमत।
    भाई प्रवीण जी यहां दिल्ली में देखता हूं कि लोग स्वीमिग सीखने के लिए बहुत पैसे खर्च करते हैं। हम तो मिर्जापुर गंगा किनारे के रहने वाले हैं। लोगों की मर्जी के खिलाफ उन्हें तैरना सिखा दिया करते थे।

    ये सही कि अब वक्त नहीं है इसके लिए, पर स्वास्थ्य के लिए तो वाकई रामबाण है।

    ReplyDelete
  23. कमाल है जी आप तो हर चीज में दर्शन ढूँढ लेते हैं। वैसे पानी में रहना सचमुच आनन्ददायक है। मैं एक-दो बार ही गया हूँ लेकिन फिर निकलने का मन ही नहीं करता।

    ReplyDelete
  24. जब तैरा करती थी तब चिंतन की शक्ति नहीं .. जब से चिंतन की शक्ति विकसित हुई है .. तैर पाना संभव नहीं .. अब तो हिलोरे लेते पानी में पैर रखने में भी डर होता है .. प्रकृति से दूर रहते हुए हम जीना क्‍या सीख पाएंगे ??

    ReplyDelete
  25. जिस प्रकार डूबने का भय हमें ढंग से तैरने नहीं देता है, उसी प्रकार मरने का भय हमें ढंग से जीने नहीं देता है।

    ये क्या कह दिया है आपने,प्रवीण जी.
    पढकर ही 'ध्यानस्थ'होने का मन कर रहा है.

    ReplyDelete
  26. अपना तैरने का प्रेम भी आप जैसा ही है.

    ReplyDelete
  27. ढंग ही तो मायने रखता है...

    ReplyDelete
  28. सोच रहा हूं जलपरी के पुलिंग को क्या कहते होंगे...

    जय हिंद...

    ReplyDelete
  29. "जिस प्रकार डूबने का भय हमें ढंग से तैरने नहीं देता है, उसी प्रकार मरने का भय हमें ढंग से जीने नहीं देता है।"
    आपके नाम से बार बार इस 'कोटेशन' का ज़िक्र होगा..बहुत गहरी बात कह दी आपने ..

    ReplyDelete
  30. Anonymous10/9/11 14:30

    वर्षा को तो एन्जॉय कर लेती हूँ लेकिन बहुत सी जलराशि से थोडा सा फोबिया है! :(

    ReplyDelete
  31. तैरने का आनन्द उठाना है तो ढंग से तैरना सीखना होगा। जीवन का आनन्द उठाना है तो ढंग से जीना सीखना होगा।

    सुचारू जीवन का शुभ सन्देश दे रहा है आपका लेख ....ये बात सिर्फ तैरने में नहीं बल्कि जीवन के हर क्षेत्र में लागू होती है......उपयोगी आलेख है ...!!

    ReplyDelete
  32. जलपाखी कैसा रहेगा ?

    ReplyDelete
  33. बहुत ही रोचक पोस्ट,पढ़ते-पढ़ते आभास ही न हुआ कि कब हमें जीने की सीख दे दी...

    ReplyDelete
  34. तैरते सामान तो नहीं, हाँ तरणताल के किनारे खड़ी हो ये ज़रूर सोचती हूँ की उतरा जाए ? एक बार TRY किया जाए ?

    ReplyDelete
  35. अब तो ऐसा समझ में आ रहा है कि यदि जीवन का आनन्द उठाना है तो ढंग से तैरना सीखना होगा।वाह क्या बात है, आपका लेख पढ़कर आनंद आ गया।

    ReplyDelete
  36. तैरना सब को आना चाहिए न जाने कब जरुरत पड जाये लाजवाब बहुत सुन्दर प्रस्तुति ||
    बधाई ||

    ReplyDelete
  37. स्वास्थ्योपयोगी जीवन को दृष्टि देता बहुत अच्छा आलेख....

    ReplyDelete
  38. अद्भुत ज्ञान सरोवर में गोते लगाने सा आनंद!!

    ReplyDelete
  39. very nice meaningful creation

    ReplyDelete
  40. धरती से पहले समस्त विश्व में जल था- ऐसा ज्ञानी लोग कहते हैं। शायद इसीलिए हम स्वाभाविक पानी से आकर्षित होते हैं। नमक खाना भी शायद एक कारण है कि हम आज भी समुद्र से जुडे हुए हैं :)

    ReplyDelete
  41. तैरने की प्रक्रिया में साधा गया संतुलन ही जीवन जीने में भी काम आता है ...... कुछ पल अपनी रुचि से बिताना ही सांस लेने के लिये ऊपर आना है ....

    "जिस प्रकार डूबने का भय हमें ढंग से तैरने नहीं देता है, उसी प्रकार मरने का भय हमें ढंग से जीने नहीं देता है।" .... इस विचार के लिये आपको नमन !

    ReplyDelete
  42. तैरने की प्रक्रिया में साधा गया संतुलन ही जीवन जीने में भी काम आता है ...... कुछ पल अपनी रुचि से बिताना ही सांस लेने के लिये ऊपर आना है ....

    "जिस प्रकार डूबने का भय हमें ढंग से तैरने नहीं देता है, उसी प्रकार मरने का भय हमें ढंग से जीने नहीं देता है।" .... इस विचार के लिये आपको नमन !

    ReplyDelete
  43. तैरने की प्रक्रिया में साधा गया संतुलन ही जीवन जीने में भी काम आता है ...... कुछ पल अपनी रुचि से बिताना ही सांस लेने के लिये ऊपर आना है ....

    "जिस प्रकार डूबने का भय हमें ढंग से तैरने नहीं देता है, उसी प्रकार मरने का भय हमें ढंग से जीने नहीं देता है।" .... इस विचार के लिये आपको नमन !

    ReplyDelete
  44. हम तो कभी ठीक से तैरना सीख नहीं पाये। बस किनारे पर छप-छप करने का आनंद ले लेते हैं ... ज़िन्दगी में भी।

    ReplyDelete
  45. तैरना चाहते हो तो पानी में लम्बे समय के लिये रहना सीखो, पानी से प्रेम करो, पानी के साथ तादात्म्य स्थापित करो।........
    यह तो सूक्ति हो गई. बड़े काम की है.

    ReplyDelete
  46. तैरना प्राकृतिक योग है . तन-मन स्वस्थ रहता है . अच्छा लेख . अनंत चतुर्दशी की बधाई .
    इस पोस्ट को आप पढ़ ही चुकें है ----
    " विकलांग बना चैंपियन "

    http://www.ashokbajaj.com/2011/07/blog-post_05.html

    ReplyDelete
  47. तैरना मुझे भी अच्छा लगता है बस तैरना नहीं आता :)

    ReplyDelete
  48. पानी में रहना अच्छा तो लगता है पर तैरना अभी भी सीख नहीं पाया। पानी की सतह पे फ्लोटिंग करते वक़्त अच्छा तो लगता है पर असली आनंद पूरी तरह पानी के भय से अपने आपको मुक्त कर के ही पाया जा सकता है।

    ReplyDelete
  49. हमारे शरीर का बहुलांश भी तो पानी ही है .इसीलिए पानी से एक सहज लगाव रहता है .मन मुक्त होता है स्नान से .स्नान तो संध्या आराधना ही है .और तैरना उस रीत से जो आपने बताई है एक विश्राम ही है मन और काया का .आभार .

    ReplyDelete
  50. बहुत खूब... तैरना वाकई कुछ खास ही है... कभी मस्ती, कभी व्यायाम, कभी पिकनिक का हिस्सा, कभी परिवार के साथ तो कभी दोस्तों के साथ... नर्मदा मैया में तैरना सबसे ज्यादा याद आता है... अभी भी गाँव जाते हैं तो एक लालच रहता ही है कि तालाब जाने का मौका मिले और बस...
    एक चीज़ में सबसे ज्यादा मज़ा आता था, वो था अन्दर तक जाना, अपनी ही सीमाएं तोड़ना... जितना अन्दर जाना या देर तक अन्दर रहना, उतनी ही तेज़ी से बाहर आना... शायद लड़ना भी वहीं से सीखा... और वही ज़स्बा बैठ गया है कहीं अन्दर मन में... बहुत-बहुत धन्यवाद ये लेख लिखने के लिए और पूरे वक़्त का fast-replay आँखों के सामने लाने के लिए...

    ReplyDelete
  51. कहते तो आप ठीक हैं, लेकिन हम तो यही कहेंगे कि अपनी ये इच्छा रह ही गई। अब तो डैड सी में ही कभी..।

    ReplyDelete
  52. सर तरणताल के करीब रहा पर तैरना न सीखा क्यों की पानी के अन्दर जाने से डर लगता रहा ! वाकई तैराकी एक स्वस्थ व्यायाम है !

    ReplyDelete
  53. बचपन में नदी में नहाने के खूब नज़ारे लेते थे| आप के लेख ने वे दिन याद दिला दिए| धन्यवाद|

    ReplyDelete
  54. आप की पोस्ट पढ़ कर तैरने का मन हो आया है

    ReplyDelete
  55. अलबत्ता तरन ताल का स्वच्छ होना भी लाजिमी है क्लोरिन का स्तर दुरुस्त हो वरना कान का संक्रमण ,चमड़ी रोग की सौगात भी खूब मिलती है कई को .फंगल इन्फेक्शन bhi .

    ReplyDelete
  56. जीवन का आनन्द उठाना है तो ढंग से जीना सीखना होगा।
    यह तो जीवन है और यही विचारणीय आज के दौर में ...आपका आभार

    ReplyDelete
  57. तैरने का आनन्द उठाना है तो ढंग से तैरना सीखना होगा। जीवन का आनन्द उठाना है तो ढंग से जीना सीखना होगा।
    बेहद सशक्‍त लेखन ... आभार ।

    ReplyDelete
  58. सुंदर आलेख और सही विवेचना.

    ReplyDelete
  59. मुझे तैरना तो नही आता पर हां पानी का प्रचंड आकर्षण है और पानी में उतरना हमेशा बहुत आनंद देता है ।

    ReplyDelete
  60. समय बिताना हो या समय में रमना हो, समय बिताने की व्यग्रता हो या समय में रम जाने का आनन्द, जीवन भारसम बिता दिया जाये या एक एक पल से तदात्म्य स्थापित हो, जीवन से सम्बन्ध सतही हो या गहराई में उतर कर देखा जाये इसका रंग? यदि व्यग्रता से जीने का प्रयास करेंगे तो वैसी ही थकान होगी जैसे कि तैरते समय पूरे शरीर को पानी के बाहर रखने के प्रयास में होती है। साँस लेने के लिये पूरे शरीर को नहीं, केवल सर को बाहर निकालने की आवश्यकता है। जिस प्रकार डूबने का भय हमें ढंग से तैरने नहीं देता है, उसी प्रकार मरने का भय हमें ढंग से जीने नहीं देता है।....

    इससे सुन्दर और क्या कहा जा सकता है....

    वाह !!!!

    ReplyDelete
  61. बिलकुल सही लिखा है आपने की जीने का ढंग हर ठोकर से सीखना ही चाहिए...तभी असल जीने का आनंद आएगा....

    ReplyDelete
  62. Gyaanvardhak post..Abhar.

    ReplyDelete
  63. Are wah kya lekh hai.

    humare ghar aaee ek nanhee paree ko jab vo teen mahine kee thee tabhee se swiming sikhaaee gayee hai aur ab vo ek saal kee hai aur panee dekhte hee jump karne lagtee hai khushee se . hum to mazak me kahte hai apnee bitiya se ki tumharee betee fish rahee hogee pichale janm me.
    han aapke kathnanusar usane bhee jeena seekh hee
    liya....:)

    ReplyDelete
  64. हम तो नहर के किनारे वाले ........... तैरना सीखना ज्यादा मुश्किल नहीं. लगा. सच अच्छा व्यायाम हो जाता है .
    .
    पुरवईया : आपन देश के बयार

    ReplyDelete
  65. जल से प्रेम है..पर तैरने की जगह नहीं थी आसपास ..इतना प्यार शायद न रहा हो इसलिए तैरना सीखा नहीं अब तक..पर जल में रहकर आनंद और शांति का सुख अनेकर बार लिया है..

    ReplyDelete
  66. बहुत ही उम्दा पोस्ट -
    रहिमन पानी राखिये बिन पानी सब सून
    पानी गए न ऊबरे मोती मानुष ,चून

    ReplyDelete
  67. बहुत ही उम्दा पोस्ट -
    रहिमन पानी राखिये बिन पानी सब सून
    पानी गए न ऊबरे मोती मानुष ,चून

    ReplyDelete
  68. इस भव सागर से तरने के लिए तैरना सीखना जरुरी है..सुन्दर आलेख...आभार

    ReplyDelete
  69. जल के महत्व और जीवन को एकजुट कर दिया आपने ...

    ReplyDelete
  70. शायद यह दर्शन ....'तब एक बड़े अनुभवी और दार्शनिक प्रशिक्षक ने यह तथ्य बताया कि जलराशि शीघ्रतम पार कर लेने से तैरना नहीं सीखा जा सकता है, तैरना चाहते हो तो पानी में लम्बे समय के लिये रहना सीखो, पानी से प्रेम करो, पानी के साथ तदात्म्य स्थापित करो।' हर क्रिया कलाप पर लागू होता है.यदि किसी तरह हर काम, मजबूरी में भी किए जाने वाले काम, पर भी यह आजमाया जाए तो काम अपेक्षाकृत सरल लगेगा.
    घुघूती बासूती

    ReplyDelete
  71. तैरना और जकूजी में पानी में पड़े रहने का ऐसा शौक है...कि आप निश्चिंत होकर जलचर कह सकते हैं हमको...

    ReplyDelete
  72. वाह यह पोस्ट तो और भी बढ़िया है। तैरते तैरते आध्यात्म में डूबोया फिर दर्शन का चब्बो दे दिया।
    चब्बो..! काशिका बोली में एक तैराक के द्वारा दूसरे को पानी में जबरी गोते लगवाने को कहते हैं।)

    ReplyDelete
  73. 'तैरना चाहते हो तो पानी में लम्बे समय के लिये रहना सीखो' यह तो 'मेनेजमेण्‍ड का फण्‍डा' है। पोस्‍ट ने आनन्‍द दिया।

    ReplyDelete
  74. bahut hi rochak prastuti hai sir

    ReplyDelete
  75. Swimming the best of all :)

    ReplyDelete