29.12.10

तड़प, उत्साह, प्रश्न, निष्कर्ष और लेखन

यदि यह एक टिप्पणी नहीं आती तो संभवतः तड़प, उत्साह, परिपक्वता, प्रश्न और निष्कर्ष जैसे शब्द मुँह बाये न खड़े होते। साहित्य का विषय जब विषयों से परे जा इन शब्दों में ठिठक जाता है, रोचकता अपने चरम पर पहुँच जाती है। ऐसे में उस पर कुछ न कहना मानसिक प्रवाह की अवहेलना करना सा होता।

कप्पा अधिवेशन के तीसरे स्तम्भ का परिचय नहीं दे पाया था, भूल मेरी ही थी, शीर्षक की झनझनाहट उस भूल का कारण थी। कप्पा अधिवेशन का आयोजन अनिल महाजन जी के भारत आगमन के उपलक्ष्य में ही किया गया था। तीन उन्मत्त साहित्य प्रेमियों का यूँ मिल जाना एक सुयोग ही था। मैं जो अवलोकन न कर पाया, उस पर टिप्पणी कर पोस्ट को पूर्णता प्रदान करने की महत कृपा की है। अनिल महाजन जी भी मेरे वरिष्ठ रहे हैं। पहले वह टिप्पणी पढ़ लें।

पोस्ट जोरदार है। नीरज का यह परिचय, मेरे ख्याल से बहुत उपयुक्त है। उसकी तड़प, उत्साह, दोनों घुले मिले हैं। तड़प छेड़ो तो उत्साह भड़कता है। उत्साह कुरेदो तो अनुभव, तड़प निकल निकल आते हैं। साहित्यकार का इससे अच्छा परिचय, लक्षण क्या हो सकता है। नीरज को हिन्दी के झरोखे तक ले जाने के लिये धन्यवाद। इससे उपयुक्त क्या हो सकता था, मुझे भी नहीं मालूम। अब झक मारकर वे और लिखेंगे और हमें पढ़ने को मिलेगा अलग से।

बात आगे बढ़ाने की कोशिश करता हूँ। परिपक्व लेखन हम किसे माने? जो समाधान दे, निष्कर्ष दे या जो प्रश्नों को सचित्र सामने ला रखता जाये। जो समाधान, निष्कर्ष देगा, उसने तो सब समझ लिया। उसे सिर्फ यही लगेगा न, कि मुझसे मार्गदर्शन लो। प्रश्नों की उलझन, प्रक्रिया जो ऊर्जा, जो आनन्द देती है, वह समाधानों में नहीं। अज्ञेय, मुक्तिबोध में प्रश्नों की छटपटाहट दिखती है, चित्र दिखते हैं, राह दिखती है, पर अन्त नहीं, समाधान नहीं। पर, इसका अर्थ यह भी कतई नहीं कि साहित्य सिर्फ यथातथता है या फिर इतिवृत्तात्मक है। नहीं, मेरे जैसे पाठक यह भी नहीं मान पायेंगे। उनके लिये तो प्रश्नों के झगड़े ही लेखन है। जीवन का अनुभव सिर्फ प्रश्न है और उन प्रश्नों को उकेर कर सामने रख देना ही संभवतः लेखन है। परिपक्वता तो मानसिक कयास है। हाँ यदि, पाठक कितनी जल्दी से तदात्म्य बना ले, यह कसौटी है, तो बात अलग है, क्योंकि तब दुनिया का लिखा प्रत्येक वाक्य किसी न किसी को भाता जरूर है और अपने जीवन के धुँधले चित्र(विचारी या अविचारी) वहाँ उसे दिख जाते हैं। वह उसके लिये अपना बन जाता है, साहित्य बन जाता है। कितना परिपक्व, वह सुधीजन जाने, हम तो ठहरे निपठ।
इति
अनिल

ब्लॉग जगत में इस तड़प और उत्साह का मिश्रण देखने को तरसते रहते हैं हम। आकाशीय बिजलियों की भाँति चमक कर पुनः छिप जाते हैं बादल के पीछे अपने सुरक्षा कवचों में। कहीं कोई बखेड़ा न खड़ा कर दे हमारी स्पष्टवादिता।

साहित्य में प्रश्न उठें या उत्तर मिलें या हो कोई उपनिषदों जैसा प्रश्नोत्तरी स्वरूप, पूर्वपक्ष, प्रतिपक्ष और निष्कर्ष। जीवन भर प्यास जगाना या प्यासों को अमृत चखाना। हमें क्या अच्छा लगता है, वह प्रश्न जो हमारा चिन्तन प्रवाह बढ़ायें या वह निष्कर्ष जो सागर सी स्थिरता मन में लाये।

प्रश्न अनिल महाजन जी के हैं, चर्चा ब्लॉग पर है, संवाद का मूक दर्शक बन ज्ञान प्राप्त करने की इच्छा में स्थित मैं, तड़प और उत्साह की साधना में रत।

75 comments:

  1. प्रश्‍न होते रहना जरूरी है, उनका स्‍पष्‍ट और एकमात्र उत्‍तर वह भी हाथ के हाथ मिले, जरूरी नहीं होता. साहित्‍य के लिए तो बड़ों ने अनुकरणीय बातें कही ही हैं, ब्‍लॉग लेखन में शायद अनजाने ही लक्ष्‍य टिप्‍पणीकर्ता पाठक (प्रभावी कारक) होने लगता है. गंभीर चर्चा छेड़ी है आपने, टिप्‍पणी में इस विषय पर अधिक कुछ कह पाना कठिन है, मेरे लिए.

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  2. जीवन भर प्यास जगाना या प्यासों को अमृत चखाना।
    xxxxxxxxxxxxxxx
    साहित्यकार के लिए यह दोनों कर्म जरुरी हैं ....चिंतन पोस्ट को समझने को प्रेरित करता है .....बहुत गंभीर ...शुक्रिया

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  3. अनिल महाजन जी के विचारों को नमन।

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  4. ओह हेवी पोस्ट :)
    टिप्पणी आते रहेंगे मेरे इन्बोक्स में...पढता रहूँगा लोग क्या क्या कह गए इस पोस्ट पे :)

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  5. कहीं कोई बखेड़ा न खड़ा कर दे हमारी स्पष्टवादिता।................क्या आप भी अपनी स्पष्टवादिता से डरते है ? होता है | जहा मुखोटे लगाए रखने वालो की संख्या ज्यादा हो वहा डरना पड़ता है |

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  6. टिप्नियाँ मार्गदर्शक तो होती है ....
    कोई सोना ,तो कोई चांदी
    मेरे भी ब्लॉग पर आकर मार्गदर्शन करे
    नए साल की बधाई

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  7. आज सिर्फ़ पढ़ रहे हैं, समझने की कोशिश कर रहे हैं।

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  8. ब्लॉग जगत में इस तड़प और उत्साह का मिश्रण देखने को तरसते रहते हैं हम।
    यह मत अधिक युक्तिसंगत प्रतीत होता है।

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  9. संतुष्ट हुए। तृप्त हुए।

    @
    ब्लॉग जगत में इस तड़प और उत्साह का मिश्रण देखने को तरसते रहते हैं हम। आकाशीय बिजलियों की भाँति चमक कर पुनः छिप जाते हैं बादल के पीछे अपने सुरक्षा कवचों में। कहीं कोई बखेड़ा न खड़ा कर दे हमारी स्पष्टवादिता।

    और भी ग़म हैं जमाने में मुहब्बत के सिवा... क्या कीजिएगा।

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  10. अनिल महाजन जी ने बिलकुल सही बात कही है। हमारी रचना मेरे विचार में तभी संपूर्ण होती है जब वह कोई सवाल छोड़कर जाती है। यानी पाठक को कुछ सोचने को मजबूर करती है।

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  11. अनिल महाजन के साथ सत्संग करवाने के लिए आभार प्रवीण भाई !

    ब्लॉग जगत में पढने लायक और अच्छे पाठक न के बराबर ही हैं

    अधिकतर लोग यहाँ दूसरे को पढ़कर अपना समय जाया नहीं करते हैं , पहली और आखिरी कुछ लाइनों से समझ ना आये तो किसी अच्छे ब्लागर की टिप्पणी पढ़ कर, अपनी टिप्पणी ठोक देने से काम चला जाता है ! हाँ कभी विवाद होने पर, समझकर, जो राय बने, उसे कायम कर, मूर्ख को कालिदास और कालिदास को मूर्ख मान लेते हैं !

    ब्लॉगजगत में पिछले वर्ष की उपलब्धियों के नाम पर कुछ ख़ास नहीं मिल पाया जो दिल को तसल्ली मिले प्रवीण भाई ....

    हाँ कुछ ऐसे विद्वान् जरूर मिले जो यह समझा गए कि कुछ अच्छा लिखा करो तो लोग तारीफ़ भी करेंगे :-)

    अपने काम के प्रति लोगों की बुद्धि समझ कर, अपने बाल नोचने का दिल करता है यार ....

    इस वर्ष तो यही समझ आया प्रवीण भाई !

    सच्चे मन से अगले वर्ष की शुभकामनायें दे जाना हमारे ब्लॉग पर...बहुत जरूरत है

    शुभकामनायें चाहिए कि अगले साल " हमें समझ जाने वाले" कम मिले :-))

    कुछ अच्छे लोगों की तलाश पूरी हो जाएँ कुछ अच्छा पढ़ पायें, जिनसे हम कुछ सीख सकें !

    हम अपनी शिक्षा भूल चले -सतीश सक्सेना

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  12. प्रश्‍न भी चाहिएं और समाधान भी।

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  13. nipat anadi hai hum to is jagat main----

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  14. बहुत ही सुन्‍दर विचारों का संगम हैं यहां पर ..बधाई के साथ आभार ।

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  15. प्रवीण जी बहुत अच्छी प्रस्तुति
    आप को नव वर्ष की बहुत सारी शुभ कामना
    नया साल मुबारक हो,
    साथ ही सभी ब्लॉग लेखक और पाठक को भी नव वर्ष की शुभ कामना के साथ
    दीपांकर कुमार पाण्डेय (दीप)
    http://deep2087.blogspot.com

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  16. लेखन में तड़प और उत्साह दोनों ही हों तो बढ़िया..

    वैसे ब्लॉग जगत में जो हों रहा है वह सतीश सक्सेना ने अपनी टिप्पणी में साफ़ कर ही दिया, फिर भी आप हैं, हम हैं तो उम्मीद कायम है :)

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  17. गज़ब का चिन्तन है।

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  18. ... saarthak charchaa ... kabhee kabhee kuchh lekhan ki saarthakataa savaalon par hi tikee hotee hai !!!

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  19. हर रचना जो पाठक को सोचने पर मजबूर करे वो सार्थक है ...और सोचा तभी जायेगा जब उसमें कुछ प्रश्न छिपे होंगे ...

    अच्छा चिंतन

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  20. सवाल उठते हैं, तभी जवाब भी निकलता है।

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  21. भाई परिपक्व लेखक तो हम भी नहीं हैं इसलिए इस विषय पर कुछ कहने की योग्यता नहीं रखते।

    दूसरों के विचार पढ़कर अपनी समझ बढ़ाने की कोशिश कर रहा हूँ।

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  22. दुनिया का लिखा प्रत्येक वाक्य किसी न किसी को भाता जरूर है और अपने जीवन के धुँधले चित्र(विचारी या अविचारी) वहाँ उसे दिख जाते हैं। वह उसके लिये अपना बन जाता है, साहित्य बन जाता है
    हमारी समझ में तो बस यही आता है .बाकी सुधिजन जाने....

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  23. पूर्णता के लिए तो चिंतन,अकुलाहट,और प्रश्न के साथ साथ समाधान भी आवश्यक है !
    नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ !
    -ज्ञानचंद मर्मज्ञ

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  24. अनिल महाजन के प्रेरक विचार

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  25. आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
    प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
    कल (30/12/2010) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
    देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
    अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
    http://charchamanch.uchcharan.com

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  26. गहरा चिंतन है....अनिल जी के विचार काफी उत्प्रेरक हैं..

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  27. चिरन्‍तन जिज्ञासा, उससे उपजे प्रश्‍न और उत्‍तर में आए प्रति प्रश्‍न - यह सब न हो तो जीवन निरर्थक ही हो जाए। सन्‍तोष और समाधान तो ठहराव है। एक के लिए जो समाधन हो, वह दूसरे के लिए अधूरी बात हो सकती है। लिहाजा, निरन्‍तर चिरन्‍तरता ही जीवन लगती है।

    अच्‍छा विमर्श शुरु हुआ है। बात दूर तलक जाए तो मुझे भी कुछ मिले।

    अग्रिम धन्‍यवाद।

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  28. लेखन क्या है यह कह पाना असंभव से कतई कम नहीं मेरे लिए। किन्तु एक साधारण पाठक की हैसियत से कहूँ तो परिपक्वता संभवतः मानसिक कयास ही है।

    और तो जो गिरिजेश जी कह गए वही दोहराऊंगा, "और भी गम हैं...."

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  29. अनिल महाजन जी बातो से पूर्णतः इत्तिफाक रखता हूँ . सुन्दर आलेख .

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  30. महाजन जी के विचार प्रशंसनीय हैं. लेकिन अपना वक्तव्य दे पाने में असमर्थ पा रहा हूँ..

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  31. वास्तविक लेखन वही है जिसे तुलसी बाबा ने भी कहा है,"सुरसरि सम सब कह हित होई",और यह लेने वाले के ऊपर भी है कि वह इसको किस प्रकार ग्रहण करता है !

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  32. ‘ कितना परिपक्व, वह सुधीजन जाने, हम तो ठहरे निपठ।’

    काश! हम भी ऐसे निपठ होते :)

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  33. आपने अपनी इस पोस्ट में बहुत कुछ सहजता से कह दिया है!

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  34. 'प्रश्नों के झगड़े ही लेखन है। जीवन का अनुभव सिर्फ प्रश्न है और उन प्रश्नों को उकेर कर सामने रख देना ही संभवतः लेखन है। परिपक्वता तो मानसिक कयास है।'
    -वाह! बहुत खूब बात कही है अनिल जी ने.
    स्कैन किया पत्र देख आकर अच्छा लगा ,अरसे बाद 'हाथ से लिखा कुछ देखने को मिला.
    .................
    कहीं कोई बखेड़ा न खड़ा कर दे हमारी स्पष्टवादिता।आकाशीय बिजलियों की भाँति चमक कर पुनः छिप जाते हैं बादल के पीछे अपने सुरक्षा कवचों में-
    -सच कहते हैं .
    स्पष्टवादी होना भी एक दुर्गुण है इस आज के ज़माने में .
    [धूमिल जी की एक कविता याद आ गयी..]

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  35. अनिल महाजन जी ओर उन के विचार बहुत अच्छॆ लगे आप का धन्यवाद इन से मिलाने के लिये, आप भाई यह चंदर बिंदु केसे डालते हे... जेसे ब्लाग के ऊपर(ब्लॉग) मेरा की बोर्ड जर्मन का हे, शायद ना डाले, लेकिन फ़िर भी आप के बताने पर कोशिश करुंगा.

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  36. लेखन क्या है यह कह पाना असंभव से कतई कम नहीं मेरे लिए। .......बहुत गंभीर .

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  37. प्रसंशनीय आलेख ,बधाई .

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  38. ----सच ही कहा अनिल जी ने मुक्तिबोध व अग्येय मे सिर्फ़ प्रश्न दिखाई देते हैं--समाधान नही...साहित्य सिर्फ़ इतिहास वर्णन या तथ्य वर्णन नहीं---यदि साहित्य समाधान या उसकी दिशा का सूचक नहीं तो वह साहित्य नहीं अपितु सिर्फ़ समाचार है जो नित्यप्रति अखवारों में मिल ही जाता है...

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  39. अनिल जी के विचार उत्तम हैं।
    प्रेरक प्रस्तुति।

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  40. वाह !!!!

    और क्या कहूँ ????
    सदैव संभव नहीं हो पाता अनुभूतियों को शब्द दे पाना...

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  41. @ Rahul Singh
    प्रश्न और उत्तर होते रहें, यही संवाद साहित्य है।

    @ : केवल राम :
    साहित्यकार अपने अपने कर्म में निरत रहते हैं और निर्मित होता है एक हिमालय।

    @ ZEAL
    बहुत धन्यवाद आपका।

    @ abhi
    साहित्य और ब्लॉग के बारे में मूल प्रश्न कभी कभी गम्भीर हो जाते हैं। मेरे लिये भी इनका चिन्तन गूढ़ है।

    @ नरेश सिह राठौड़
    स्पष्टवादिता को कप्पा अधिवेशन के तीसरे सूत्र के माध्यम से व्यक्त किया जा सकता है।

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  42. @ babanpandey
    टिप्पणियाँ पोस्टों की दिशा निर्धारित करती हैं, साहित्य का भी कर सकती हैं।

    @ मो सम कौन ?
    यही प्रश्न तो हम तो कब से समझने का प्रयास कर रहे हैं।

    @ मनोज कुमार
    काश यह तड़प और उत्साह बना रहे सबके अन्दर।

    @ गिरिजेश राव
    कुछ गम हमारे हैं, कुछ तुम्हारे हैं,
    जो समझ रहे हैं, वही दुनिया सम्हाले हैं।

    @ राजेश उत्‍साही
    सोचने का प्रवाह बढ़ा दे प्रश्न ऐसे ही हों। जिज्ञासा बुझाने वाले प्रश्न साहित्य से दूर कर जाते हैं।

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  43. @ सतीश सक्सेना
    अच्छा लिखने वाले कम हैं, अच्छा पढ़ने वाले कम है। पर यह तो निश्चित है कि अच्छा पढ़ने से ही अच्छा लिखना संभव है।

    @ ajit gupta
    प्रश्न उठते हैं, सब धुँधला जैसा लगता है, पर जब सब हटता है, परिदृश्य स्पष्ट होता है।

    @ Poorviya
    निपठ हम भी हैं, तभी प्रश्न प्रस्तुत कर उत्तर की प्रतीक्षा कर रहे हैं।

    @ sada
    बहुत धन्यवाद आपका।

    @ दीप
    बहुत धन्यवाद आपका।

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  44. @ Manoj K
    उम्मीद फिर भी कायम है।

    @ वन्दना
    बहुत धन्यवाद आपका।

    @ 'उदय'
    कभी प्रश्न महत्वपूर्ण हो जाते हैं, उत्तरों से भी अधिक, और अधिक दे जाते हैं, उत्तरों से अधिक।

    @ संगीता स्वरुप ( गीत )
    चिन्तन बना रहे, प्रश्न चढ़े रहें।

    @ satyendra...
    प्रश्न प्रथम था। उत्तर अब तक आ रहे हैं।

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  45. @ Harman
    बहुत धन्यवाद आपका।

    @ सोमेश सक्सेना
    पढ़ने के विषय में हम आपके पीछे खड़े हैं।

    @ shikha varshney
    विचारणीय वाक्य है, हर वाक्य किसी न किसी के लिये साहित्य है, कुछ नहीं तो स्वयं के लिये।

    @ ज्ञानचंद मर्मज्ञ
    तब तो उपनिषदों का स्वरूप श्रेष्ठ है, सब समाहित है उसमें।

    @ Arvind Mishra
    प्रेरक भी, उत्प्रेरक भी।

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  46. @ वन्दना
    बहुत धन्यवाद आपका।

    @ rashmi ravija
    हम भी इसी चिन्तन में डूबे हैं।

    @ विष्णु बैरागी
    समस्या और समाधान के बीच में एक सामेय है, गति के स्वरूप में।

    @ Avinash Chandra
    विचार या तो प्रश्न के रूप आते है या उत्तर के रूप में। यह तो हमें ही निश्चय करना हैं कि क्या प्रस्तुत करें।

    @ ashish
    बहुत धन्यवाद आपका।

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  47. @ सम्वेदना के स्वर
    इन्हीं विचारों के मध्य लटका साहित्य और जीवन।

    @ अनामिका की सदायें ......
    दोनों ही पक्ष ठीक लगते हैं अलग अलग समय में।

    @ बैसवारी
    सुन्दर उदाहरण। सत्य है, उसी वाक्य में कोई प्रश्न ढूढ़ ले, कोई उत्तर।

    @ cmpershad
    इतना विचारवान वक्तव्य दे शालीनता व्यक्त कर देना हम भी सीख रहे हैं।

    @ डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक"
    प्रश्न अभी भी मूलभूत हैं।

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  48. @ अल्पना वर्मा
    हाथ का लिखा इतना दमदार था कि टाइप करना पड़ा, पर टाइप कर देने में कहाँ मिलता है प्रश्नों का उत्तर।

    @ राज भाटिय़ा
    अनिल जी के विचार कहीं न कहीं हम सबके विचार भी हैं।

    @ संजय भास्कर
    यदि यही समझ लिया कि लेखन क्या है तो इस पर लिखना कैसा।

    @ अशोक बजाज
    बहुत धन्यवाद आपका।

    @ Dr. shyam gupta
    यदि कुछ समाधान न आया तो सच में सब समाचार ही है।

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  49. @ Er. सत्यम शिवम
    बहुत धन्यवाद आपका।

    @ ज़ाकिर अली ‘रजनीश’
    बहुत धन्यवाद आपका।

    @ mahendra verma
    बहुत धन्यवाद आपका।

    @ रंजना
    अनुभूतियों की अभिव्यक्ति कई समस्याओं का समाधान हो सकता है। अतः लिखते रहें।

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  50. अनिल जी के विचारों से मिलवाने का बहुत-बहुत शुक्रिया...
    परन्तु आजकल आप सबको चिंतन में क्यूं डाल रहे हैं... पिछले दो बार से कोई-न-कोई लेखन, ब्लॉग से संबधित विषय उठा कर खुद की चिंता और पोस्ट से दूसरों के माथे पर शिकन ला देते हैं... सिर्फ मज़ाक कर रही थी... परन्तु ये भी चिंतन विषय है... पोस्ट तो आपकी बेहतरीन होती ही है...

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  51. @ POOJA...
    वर्ष के अन्त में चिन्तन का कोटा पूरा करने के लिये चिन्तन पर इतना चिन्तन करना चिन्ता का कारण है। प्रश्नों को और उनके उत्तरों को यहाँ विश्राम, नये वर्ष में इतनी गरिष्ठता न आये लेखन में।

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  52. चूँकि अब धीरे-धीरे हम सब एक बिलकुल नए-नवेले साल २०११ में पदार्पण करने जा रहे है,
    अत: आपको और आपके परिवार को मेरी और मेरे परिवार की और से एक सुन्दर, सुखमय और समृद्ध नए साल की शुभकामनाये प्रेषित करता हूँ ! भगवान् करे आगामी साल सबके लिए अच्छे स्वास्थ्य, खुशी और शान्ति से परिपूर्ण हो !!

    नोट: धडाधड महाराज की बेरुखी की वजह से ब्लोगों पर नजर रखने हेतु आपके ब्लॉग को मै अपने अग्रीगेटर http://deshivani.feedcluster.com/से जोड़ रहा हूँ, अगर कोई ऐतराज हो तो कृपया बताने का कष्ट करे !

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  53. आदरणीय ब्लागमित्र

    नमस्कार और नये साल 2011 की शुभकामनाऐं

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  54. आपके जीवन में बारबार खुशियों का भानु उदय हो ।
    नववर्ष 2011 बन्धुवर, ऐसा मंगलमय हो ।
    very very happy NEW YEAR 2011
    आपको नववर्ष 2011 की हार्दिक शुभकामनायें |
    satguru-satykikhoj.blogspot.com

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  55. जीवन में प्रश्नों का सिलसिला कब थमता है, उनको जानने समझने में ही उम्र बीत जाती है. सोचने को विवश करती विचारणीय आलेख. आभार.

    अनगिन आशीषों के आलोकवृ्त में
    तय हो सफ़र इस नए बरस का
    प्रभु के अनुग्रह के परिमल से
    सुवासित हो हर पल जीवन का
    मंगलमय कल्याणकारी नव वर्ष
    करे आशीष वृ्ष्टि सुख समृद्धि
    शांति उल्लास की
    आप पर और आपके प्रियजनो पर.

    आप को भी सपरिवार नव वर्ष २०११ की ढेरों शुभकामनाएं.
    सादर,
    डोरोथी.

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  56. swaal uthne hi chahiye jwaab ki tlash me .

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  57. महाजन जी के विचारों से शत प्रतिशत सहमत .बिल्कुल सही बात .... सुंदर प्रस्तुति......नूतन वर्ष २०११ की आप को हार्दिक शुभकामनाये.

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  58. prastuti aur prashn dono hi achchhe hain.

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  59. सर्वस्तरतु दुर्गाणि सर्वो भद्राणि पश्यतु।
    सर्वः कामानवाप्नोतु सर्वः सर्वत्र नन्दतु॥
    सब लोग कठिनाइयों को पार करें। सब लोग कल्याण को देखें। सब लोग अपनी इच्छित वस्तुओं को प्राप्त करें। सब लोग सर्वत्र आनन्दित हों
    सर्वSपि सुखिनः संतु सर्वे संतु निरामयाः।
    सर्वे भद्राणि पश्यंतु मा कश्चिद्‌ दुःखभाग्भवेत्‌॥
    सभी सुखी हों। सब नीरोग हों। सब मंगलों का दर्शन करें। कोई भी दुखी न हो।
    बहुत अच्छी प्रस्तुति। नव वर्ष 2011 की हार्दिक शुभकामनाएं!

    सदाचार - मंगलकामना!

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  60. नव वर्ष की हार्दिक मंगल कामनाएं

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  61. नववर्ष आपके लिए मंगलमय हो और आपके जीवन में सुख सम्रद्धि आये…एस.एम् .मासूम

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  62. आप को सपरिवार नववर्ष 2011 की हार्दिक शुभकामनाएं .

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  63. उत्तर के लिये प्रश्न का होना जरूरी है और निष्कर्ष के लिये तथ्य का. यहां तो सब कुछ है.

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  64. सर्वे भवन्तु सुखिनः । सर्वे सन्तु निरामयाः।
    सर्वे भद्राणि पश्यन्तु । मा कश्चित् दुःख भाग्भवेत्॥
    सभी सुखी होवें, सभी रोगमुक्त रहें, सभी मंगलमय घटनाओं के साक्षी बनें, और किसी को भी दुःख का भागी न बनना पड़े .

    नव - वर्ष 2011 की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं !

    -- अशोक बजाज , ग्राम चौपाल

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  65. kya baat hai praveenji.damdaar lekhni hai. badgai.navvarsh i shubhkamanayen.

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  66. @ sanjay jha
    बहुत धन्यवाद आपका।

    @ पी.सी.गोदियाल "परचेत"
    आपको भी शुभकामनायें।

    @ yogendra
    आपको भी शुभकामनायें।

    @ RAJEEV KUMAR KULSHRESTHA
    आपको भी शुभकामनायें।

    @ Dorothy
    आपको भी शुभकामनायें।

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  67. @ RAJWANT RAJ
    सवाल भी उठें और उनके जबाब भी। यही प्रवाह साहित्य कहलाता है।

    @ उपेन्द्र ' उपेन '
    यही प्रश्न ही साहित्य और ब्लॉग के मूल में बसे हैं।

    @ ललित शर्मा
    आपको भी बधाई नववर्ष की।

    @ Hari Shanker Rarhi
    इन प्रश्नों के उत्तर भी साहित्य का हिस्सा हैं।

    @ मनोज कुमार
    आपको भी बधाई नववर्ष की।

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  68. @ HEY PRABHU YEH TERA PATH
    आपको भी शुभकामनायें नववर्ष की।

    @ एस.एम.मासूम
    आपको भी शुभकामनायें नववर्ष की।

    @ यशवन्त माथुर
    आपको भी शुभकामनायें नववर्ष की।

    @ भारतीय नागरिक - Indian Citizen
    प्रश्न, चिन्तन, तथ्य और उत्तर। संभवतः यही क्रम हो।

    @ अशोक बजाज
    आपको भी शुभकामनायें नववर्ष की।

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  69. @ santosh pandey
    बहुत धन्यवाद और बधाई नववर्ष की।

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