25.12.10

कब लिखोगे ? मरने के बाद ?

यह झंकृत कर देने वाला शीर्षक न रखता, यदि सुना न होता। लिख कर रखा होगा किसी ने, बोलने के पहले, लिखने, न लिखने के बारे में यह उद्गार। बिना अनुभव यह संभवतः लिखा भी न गया होगा। आप पढ़कर व्यथित न हों, मैं सुनकर हो चुका हूँ, सब बताता हूँ।

अनेकों विचार हैं, अनुभवों के अम्बार हैं, प्रकरणों के आगार हैं आपके मन में। किसलिये? व्यक्त करने के लिये और व्यक्त करेंगे भी। पर क्या करें, समय नहीं है, घर-बार है, व्यापार है, दिनभर की नौकरी है, समस्याओं की गठरी है। सब निपटा लें, तब लिखेंगे। पर मान लीजिये, न लिख पाये तो? तब क्या करेंगे? गाना गायेंगे।

हजारों ख्वाहिशें ऐसी कि हर ख्वाहिश पे दम निकले, 
हमें जिस बोझ ने मारा, सम्हालो तुम, कि हम निकले।

यह सब मैं आपको पहले से इसलिये बताये दे रहा हूँ क्योंकि मैं जानता हूँ कि जब आप नीरज जी से मिलेंगे तो यही उत्तर देंगे। पहले तो आपका उत्तर सुनकर वह ठहाका मारकर हँसेंगे, आप भी गब्बरसिंह के सामने वाली कालिया की फँसी हुयी हँसी में मुस्कराने लगेंगे। तब सहसा आपके कानों में यह शीर्षक सुनायी देगा, व्यंगात्मक क्रूरता में। कब लिखोगे ? मरने के बाद ?

क्या करें, अभी तक कानों में झनझना रहा है, यह वाक्य। पता नहीं कितनों वर्षों की नींद से उठाकर खड़ा कर दिया हो, एक एक चिन्तन-तन्तु पूरी तरह झिंझोड़कर। जेपी नगर के कप्पा रेस्टॉरेन्ट में गले के अन्दर गयी और कप में रह गयी कॉफी की भी नींद उड़ गयी होगी, यह सुनकर।

विषय परिचय पहले हो गया, अब सूत्रधार के बारे में भी संक्षिप्त परिचय दे देता हूँ। मुझसे 8 वर्ष बड़े हैं, विद्यालय में, आई आई टी में मेरे वरिष्ठ रहे हैं, हिन्दी  व अंग्रेजी में एकरूप सिद्धहस्तता, पता नहीं कितना साहित्य डकार चुके हैं, अब निकालने की प्रक्रिया में हैं। एक पुस्तक लिख चुके हैं, शीर्षक है, "कुछ अलग : सब हैं खिसके, कुछ ज्यादा खिसके"। पता नहीं कितनी और पुस्तकें लिख डालेंगे, पता नहीं कितना और खिसका डालेंगे।

संदेश स्पष्ट है, पूरी तरह। जितना कुछ आपने सोच रखा है, उस पुस्तक की प्रस्तावना तो आज ही लिख दें, पर यह पोस्ट पढ़ने के बाद।

कप्पा अधिवेशन के तीन मुख्य बिन्दु इस प्रकार थे।

पहला, लिखना प्रारम्भ कर दीजिये, प्रवाह अपने आप बन जाता है। टूथपेस्ट बहुत दिन से उपयोग में न लायें तो वह भी कड़ा हो जाता है, साधारण दबाव में नहीं निकलता है, अधिक शक्ति लगानी पड़ेगी। विचार भी पड़े पड़े कड़े हो जाते हैं, प्रयास कर के निकालिये, लिखना प्रारम्भ करिये।

दूसरा, जीवन को फैलाते अवश्य रहें और आवश्यक भी है वह, सर्वार्जन के लिये, पर एक समय के बाद जीवन को समेटने की प्रक्रिया प्रारम्भ कर देनी चाहिये, जीवन को सरल कर देना चाहिये। यही साहित्य में भी होता है, परिपक्व लेखन प्रश्न कम उठाता है, निष्कर्ष अधिक बताता है, जीवन के अनुभवों को निचोड़कर अभिव्यक्ति की तरलता में।

तीसरा, ज्ञान, दर्शन, तर्क, संदेश कितने भी भारी हों, पाठकों के हृदय में उतारे जा सकते हैं, मनोरंजन के माध्यम से। आपका कठिनतम ज्ञान भी सरलतम भाषा में पगा हो, मन का रंजन हो, मन को आकर्षित करने वाले तत्व हों। मनोरंजन को इस महत कार्य के माध्यम के रूप में प्रयोग करने के स्थान पर मनोरंजन की नग्नता परोसना, उस तरलता को व्यर्थ कर देने जैसा है।

तो आमन्त्रण है,
जिन्हें सत्संग का इच्छा है नीरज जी से,
कप्पा या कॉफी हॉउस में,
पर,
बिल आप भरेंगे,
हम साथ में रहेंगे,
बस ज्ञान प्राप्त करेंगे,
हमें भी कुछ पुस्तकें पूरी करनी हैं,
जीवन निकलने से पहले।

93 comments:

  1. नीरज जी से परिचय के लिए आभार । उनके लिखे साहित्य से परिचय करवाते रहिएगा।
    धाँसू शीर्षक रखा है
    आभार।

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  2. CUPPA
    life refreshed

    और आपकी पोस्ट का शीर्षक?

    जिनकी आप तारीफ़ कर रहे हैं, वाकई तारीफ़ के काबिल होंगे। उम्मीद करते हैं कि कभी कुछ पढ़ पायेंगे उनका लिखा।

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  3. शीर्षक तो वाकई एक स्पष्ट धांसू सन्देश है |
    नीरज जी के बारे जानकर अच्छा लगा |

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  4. ... ye hui na koi baat ... shaayad kal hi maine aisee hi koi "sheershak" vaalee post padhee hai yaa neeraj ji ke blog par shaayad ... theek se yaad nahee aa rahaa hai ... !!!

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  5. लिखना तो वह चाहिये है जो मरने के बाद भी पढा जाये

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  6. बहुत प्रेरणादायक पोस्ट! बातें वाकई पते की हैं मगर हम जैसे ब्लॉगरों को पते (पता?) लग गयीं और सारे ब्लॉगर अभी पालन करना शुरू कर दें तो एक दिन में ब्लॉग्स्पॉट का दम निकल जायेगा। छपाने चले तो धरा वृक्षविहीन हो जायेगी।

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  7. कृश्‍न चंदर की कहानी 'सबसे बड़ा लेखक' याद आई, जिसने मानों अपना जीवन ही रच दिया.

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  8. वाकई सोचने की बात है ...!

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  9. कोई ईबारत तो लिखनी पड़ेगी,जीते जी ही।
    नीरज जी से परिचय के लिए आभार।

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  10. इस परिचय के लिए आभार।

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  11. कप्पा अधिवेशन के तीनो बिन्दुओ से सहमत. नीरज जी से मिलाने के लिए शुक्रिया . इंतजार रहेगा उनकी साहित्यिक कृतियों का .

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  12. बहुत खूब!
    पिछले साल मैंने अपने ब्लौग पर यह अमेरिकी लेखक का यह संस्मरण पोस्ट किया था:

    महान उपन्यासकार सिंक्लेयर लुईस को किसी कॉलेज में लेखक बनने की इच्छा रखने वाले विद्यार्थियों को लंबा लैक्चर देना था। लुईस ने लैक्चर का प्रारम्भ एक प्रश्न से किया:

    “आप सभी में से कितने लोग लेखक बनना चाहते हैं?”

    सभी लोगों ने अपने हाथ ऊपर कर दिए।

    “ऐसा है तो” – लुईस ने कहा – “आपको मेरी सलाह यह है कि आप इसी समय घर जायें और लिखना शुरू कर दें”।

    इसी के साथ ही वह वहां से चले गए।

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  13. साहित्‍य का अर्थ ही होता है जो सरल हो और लोगों के दिलों तक बिना रूकावट के उतर जाए। कभी बैंगलोर आना हुआ तो अवश्‍य मिलेंगे नीरजजी से और हाँ कॉफी का बिल भी हम ही भरेंगे। हमारे यहाँ रिवाज है कि बड़े ही पेमेण्‍ट करते हैं। अब आप तो छोटे हैं ना।

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  14. लिखना प्रारम्भ कर दीजिये, प्रवाह अपने आप बन जाता है। टूथपेस्ट बहुत दिन से उपयोग में न लायें तो वह भी कड़ा हो जाता है, साधारण दबाव में नहीं निकलता है, अधिक शक्ति लगानी पड़ेगी। विचार भी पड़े पड़े कड़े हो जाते हैं,
    waakai

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  15. लेखन क्या हुआ जैसे बाएं हाथ का खेल हो गया -वैसे नीरज जी का खैर मकदम !
    सबके वश की बात नहीं लिखना ,दुनिया में और भी काम हैं इक लेखन के सिवा
    मसलन जूते की पालिश ,मूंगफली ,सब्जी ठेला ,दलाली ,वकालत ,पत्रकारिता आदि आदि !
    नीरज जी सब धान बाईस पसेरी समझते हैं क्या ?

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  16. "मनोरंजन को इस महत कार्य के माध्यम के रूप में प्रयोग करने के स्थान पर मनोरंजन की नग्नता परोसना, उस तरलता को व्यर्थ कर देने जैसा है।"

    पता नहीं .. मगर 'बिन मॉरल' मनोरंजन का भी अलग मजा है... ज्यादा भाषण सुन कर भी बदहजमी हो जाती है ;-)
    वैसे हैप्पी क्रिसमस :)

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  17. हाँ ,बात तो ठीक हैं - काल करे सो आज कर !

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  18. आपकी तो छुट्टी होगी , किन्तु ऑफिस पहुँचते ही आपका लेख पढ़ कर माँ पुलकित हो गया . नीरज जी से परिचय के लिए आभार लिखने में हमारा भी अनुपुक्त टूथ पेस्ट की तरह लेखन और विचारों में कड़ा पन आ चुका है .

    एक बात और आपकी पोस्ट पर हमेशा ४. बजे का समय होता है प्रातः का या सायंकालीन . कब लिखते है की सुबह ६ बजे ही लोग समीक्षा बाण चलाना शुरू कर देते है.

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  19. लिखना तो वह चाहिये है जो मरने के बाद भी पढा जाये

    "मेर्री क्रिसमस" की बहुत बहुत शुभकामनाये

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  20. नीरज जी के बारे में जानकार अच्छा लगा लेकिन आपसे सीनीयर है मतलब की उनका लिखा हमारे चौबारे से ऊपर के निकल जाएगा | राम राम |

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  21. मेरे हिसाब से लेखन देश का भला चाहने वाले हर व्यक्ति को करना चाहिये. जरूरी नहीं कि वह कागज और कम्प्यूटर पर ही हो. मन में लिखे और लोगों में प्रसारित करे. सद्विचार तो कैसे भी प्रसारित किये जा सकते हैं... एक अच्छी पोस्ट के लिये बधाई.

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  22. वाह! क्या सही बात कही है..
    मैं तो इस बात को लेखनी से आगे बढाकर कहता हूँ..

    कब मस्ती करोगे? मरने के बाद?
    भैया कल का तो अता-पता नहीं है.. आज तो जी लो.. पर लोग दुनिया की भीड़ में भागे चले जा रहे हैं अपने अरमानों और सपनों को कुचलते हुए..

    आशा करता हूँ कि लोग जल्द ही जागृत होंगे!

    मैं भी अभी एक पोस्ट (एक लम्हां) लिखी है इसी विषय पर पढियेगा ज़रूर..

    आभार

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  23. बात तो सही कह रहे हैं नीरज जी……………जो करना है कर लो कल किसने देखा है।

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  24. नीरज जी का व्यक्तित्व अनुकरणीय है और साहित्य अवश्य पठनीय होगा, इसमें संदेह की कोई गुंजायश नहीं... और इस शीर्षक ने ही एक दिन मुझे झकझोरा था और जो लेखन मैं 25 साल पहले छोड़ चुका था वो पुनः शुरू किया मैंने.
    प्रवीण जी! आभार आपका! दुआ है कि आपका (नीरज जी का भी)यह संदेश दसों दिशाओं में फैले. आमीन!!

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  25. Christmas is not a time nor a season, but a state of mind. To cherish peace and goodwill, to be plenteous in mercy, is to have the real spirit of Christmas.
    Merry Christmas
    Lyrics Mantra Jingle Bell

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  26. ‘ कब लिखोगे ? मरने के बाद ?’

    लो जी, हम अभै लिखे देते हैं.... टिप्पणी :)

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  27. जो कहो मगर प्रेरणा सटीक दी है आपके इन वरीष्ठ ने !

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  28. नीरज जी से मिलना अच्छा लगा ...

    लिखते रहो प्रवाह खुद बन जाता है ...सटीक ..अक्सर टूथपेस्ट की तरह महसूस किया है ...जब ख़याल बामुश्किल निकलते हैं ;)
    तीनों बातें सटीक ...प्रेरणादायक पोस्ट ...

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  29. मस्त लिखा जी लेकिन मरने के बाद पढे गा कोन? सभी प्रेमचंद तो नही बन सकते ना,लेकिन हम तो लिख रहे हे, उलटा सीधा जेसा भी आता हे,
    नीरज जी से मिलना हमे भी अच्छा लगा, धन्यवाद

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  30. ---प्रबोधक आलेख---

    कागद काले जग करे,लेखक होय न कोय ।
    शब्द एकही प्रेम का लिखे सो लेखक होय ॥

    नित-नित लिख हांफ़त भया,बिरथा लेखन जोय।
    लिखे जो देश समाज हित ,लेखक कहिये सोय।।

    आज अभी लिख लीजिये,सद-लेखन सब कोय
    कल न कभी भी आयगा, बिरथा जीवन होय॥

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  31. टूथपेस्ट बहुत दिन से उपयोग में न लायें तो वह भी कड़ा हो जाता है, साधारण दबाव में नहीं निकलता है, अधिक शक्ति लगानी पड़ेगी। विचार भी पड़े पड़े कड़े हो जाते हैं, प्रयास कर के निकालिये, लिखना प्रारम्भ करिये।


    kya saandar compare kiya aapne..:)

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  32. नीरज हमेशा ही कमाल होते हैं :)

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  33. कहते है प्रतिभा सबमे होती है बस उसे प्रोत्साहन की दरकार होती है आज आपके आलेख से उसे गति मिली है |नीरजजी से मिलवाने का आभार |

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  34. इस परिचय के लिए आभार।

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  35. शीर्षक कमाल ,लेखक भी कमाल.

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  36. क्रिसमस की शांति उल्लास और मेलप्रेम के
    आशीषमय उजास से
    आलोकित हो जीवन की हर दिशा
    क्रिसमस के आनंद से सुवासित हो
    जीवन का हर पथ.

    आपको सपरिवार क्रिसमस की ढेरों शुभ कामनाएं

    सादर
    डोरोथी

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  37. पुरानी कहावत है,करने की कोई उम्र नहीं होती !लिखना या बोलना(सत्य के पक्ष में)भी उसी करने का हिस्सा है.जब तक हम लिखना टालते हैं टालते रहेंगे और जब लिखना शुरू करेंगे तो बत्ती बुझने के बाद भी बिस्तर से उठकर लिखेंगे.यह तभी होगा जब लगन होगी और हमारी रूचि होगी !
    किताबों के ढेर अलमारियों में पड़े हैं,
    बाद में पढने के लिए
    पता नहीं वह 'बाद' कब होगा
    तब तक शायद हमीं 'बाद' हो जाएँ !

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  38. नीरज जी का परिचयनामा बहुत बढ़िया रहा!

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  39. आदरणीय प्रवीण जी
    शीर्षक ने झकझोर दिया ...नीरज जी का परिचय करवाने के लिए बहुत बहुत आभार

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  40. sabhi khud ko dusron ke beech pratishthit karna chaahte hain...sabhi ke man me bahut se vichar hote hain...lekin vo kala to sab me nahi hoti na...to pahle khud ko maanjna jaruri hai.

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  41. 'लिखना प्रारम्भ कर दीजिये, प्रवाह अपने आप बन जाता है। टूथपेस्ट बहुत दिन से उपयोग में न लायें तो वह भी कड़ा हो जाता है, साधारण दबाव में नहीं निकलता है, अधिक शक्ति लगानी पड़ेगी। विचार भी पड़े पड़े कड़े हो जाते हैं,;
    --बहुत सही बात कही है.

    -नीरज जी से परिचय कराने के लिए आभार.

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  42. बात में तो दम है आपकी। बिल तो खैर हम दे देंगे। इसकी कोई फ्रिक नहीं। ये अलग बात है कि आपके बटुए की तरफ भी ध्यान होगा हमारा। क्या पता काफी के बदले कुछ डिनर या लंच करने का मौका मिल जाए फ्री में....

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  43. प्रवीण जी , नीरज जी के व्यक्तित्व से परिचित होना काफी अच्छा रहा. शीर्षक तो धासु है ही एंडिंग भी CUPPA life refreshed सच में रिफ्रेश क़र गयी.... सुंदर प्रस्तुति.
    फर्स्ट टेक ऑफ ओवर सुनामी : एक सच्चे हीरो की कहानी

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  44. बात तो बिलकुल सच है। मेरे गुरु रविजी (श्री रवि रतलामी) ब्‍लॅग जगत में पेरे प्रवेश के पहले ही क्षण यह सब मुझे समझा चुके थे। किन्‍तु मुझ पर असर नहीं हुआ।

    संक्षप में अपनी बात सफलतापूर्वक कहने का गुर मुझे सचमुच में आपसे सीखना ही पडेगा।

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  45. ये बात तो मैंने भी महसूस की है कि जब लिखने लगो तो प्रवाह अपने आप बन जाता है और बहुत दिन ना लिखने पर लेखनी को जंग लग जाता है.
    नीरज जी का हँसता हुआ चेहरा ही उनके व्यक्तित्व का दर्पण लग रहा है कि वे कितने जिंदादिल इंसान हैं.

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  46. अच्छा लगा नीरज जी के बारे में जानकर.

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  47. हमारे जैसे आलसियों के लिए तो उत्प्रेरक टाइप है आपका शीर्षक....

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  48. आपके लेख का शीर्षक देख कर लगा जैसे आप मेरी ही खिंचाई कर रहे हैं क्यूंकि मै भी तकरीबन महीने से लिखने पढने की फुर्सत नही पा रही हूँ । और भी काम हैं जमाने में इक लिखाई के सिवा जो करते जा रहे थे । पर आपके जो ये सीनीयर हैं नीरज जी कमाल के हैं इतना सारा कैसे कर लेते हैं । टाइम मैनेजमेन्ट जानते हैंगे अचछी तरह से । होगी किस्मत तो मुलाकात भी हो जायेगी । वरना ये कि लिखने का समय नुकालो और लिखो ..प्रवाह अपने आप बन जायेगा अच्छा लगा । करते हैं कोशिश ।

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  49. नीरज बसलियाल जी ने ठीक ही कहा है.. नीरज लाजवाब होते हैं.. गोपाल दास नीरज को ही लीजिये.. एक स्वयं नीरज बसलियाल हैं.. आपके नीरज जी के साहित्य का इन्तजार शुरू हो गया है..

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  50. आपकी अति उत्तम रचना कल के साप्ताहिक चर्चा मंच पर सुशोभित हो रही है । कल (27-12-20210) के चर्चा मंच पर आकर अपने विचारों से अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।

    http://charchamanch.uchcharan.com

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  51. ब्लॉग जगत में नीरज भैया का परिचय आपसे अच्छी तरह शायद कोई नहीं दे सकता था..
    नीरज भैया बचपन से ही हम सबके प्रेरणा स्रोत रहे हैं. पिछले 5 साल से उनको ब्लॉग लिखने के लिए समझाता रहा हूँ पर लगता है की वो आपकी ही मानेंगे सो अगर फिर से मुलाकात हो आपकी तो उनसे कहियेगा की "ब्लॉग कब लिखेंगे..- - - - के बाद??"

    नीरज भैया की वैसे तो बहुत सी बातें हैं जो प्रेरणा देती हैं पर अभी ये दो पंक्तियाँ याद आ रही हैं जो उन्होंने मुझे एक पत्र में लिखी थी द्वादश के बाद -
    करामातें सारी धरी रह जायेंगी
    वहीं जिद्दी लगन काम आयेगी..||

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  52. ह्म्म्म... सबसे पहले तो नीरज जी से मिलवाने के लिए धन्यवाद...
    रही बात टूथपेस्ट की, तो चलिए हम अब उसे कदा नहीं होने देंगें...
    और कप्पा रेस्टोरेंट आयेंगें, बिल भी भर देंगें पर प्रवचन कोई ले तब, क्या पता किस बात पर डांट पड़ जाए... मुझे उससे बहुत दर लगता है... :)
    thank you so much again...

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  53. मैंने कल ही आपका ब्लॉग देखा था लेकिन पढ़ने का मन नहीं था कल तो वापस चला गया :P...बस शीर्षक देख के...खतरनाक शीर्षक है :)

    बाकी तीनो विचार उत्तम लगे!!

    मैं तो अपने मित्र रवि जी को बोलता हूँ यही बात की आप लिखना प्रारम्भ करें, अच्छा लिखेंगे, हिंदी में काफी ज्ञान है उन्हें..

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  54. बहुत सुंदर .

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  55. आपकी रचना वाकई तारीफ के काबिल है .

    * किसी ने मुझसे पूछा क्या बढ़ते हुए भ्रस्टाचार पर नियंत्रण लाया जा सकता है ?

    हाँ ! क्यों नहीं !

    कोई भी आदमी भ्रस्टाचारी क्यों बनता है? पहले इसके कारण को जानना पड़ेगा.

    सुख वैभव की परम इच्छा ही आदमी को कपट भ्रस्टाचार की ओर ले जाने का कारण है.

    इसमें भी एक अच्छी बात है.

    अमुक व्यक्ति को सुख पाने की इच्छा है ?

    सुख पाने कि इच्छा करना गलत नहीं.

    पर गलत यहाँ हो रहा है कि सुख क्या है उसकी अनुभूति क्या है वास्तव में वो व्यक्ति जान नहीं पाया.

    सुख की वास्विक अनुभूति उसे करा देने से, उस व्यक्ति के जीवन में, उसी तरह परिवर्तन आ सकता है. जैसे अंगुलिमाल और बाल्मीकि के जीवन में आया था.

    आज भी ठाकुर जी के पास, ऐसे अनगिनत अंगुलीमॉल हैं, जिन्होंने अपने अपराधी जीवन को, उनके प्रेम और स्नेह भरी दृष्टी पाकर, न केवल अच्छा बनाया, बल्कि वे आज अनेकोनेक व्यक्तियों के मंगल के लिए चल पा रहे हैं.

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  56. कागज पर लिख, स्कैन कर भेजी, अनिल महाजन जी की टिप्पणी। सारगर्भित पोस्ट सी।

    पोस्ट जोरदार है। नीरज का यह परिचय, मेरे ख्याल से बहुत उपयुक्त है। उसकी तड़प, उत्साह, दोनों घुले मिले हैं। तड़प छेड़ो तो उत्साह भड़कता है। उत्साह कुरेदो तो अनुभव, तड़प निकल निकल आते हैं। साहित्यकार का इससे अच्छा परिचय, लक्षण क्या हो सकता है। नीरज को हिन्दी के झरोखे तक ले जाने के लिये धन्यवाद। इससे उपयुक्त क्या हो सकता था, मुझे भी नहीं मालूम। अब झक मारकर वे और लिखेंगे और हमें पढ़ने को मिलेगा अलग से।
    बात आगे बढ़ाने की कोशिश करता हूँ। परिपक्व लेखन हम किसे माने? जो समाधान दे, निष्कर्ष दे या जो प्रश्नों को सचित्र सामने ला रखता जाये। जो समाधान, निष्कर्ष देगा, उसने तो सब समझ लिया। उसे सिर्फ यही लगेगा न, कि मुझसे मार्गदर्शन लो। प्रश्नों की उलझन, प्रक्रिया जो ऊर्जा, जो आनन्द देती है, वह समाधानों में नहीं। अज्ञेय, मुक्तिबोध में प्रश्नों की छटपटाहट दिखती है, चित्र दिखते हैं, राह दिखती है, पर अन्त नहीं, समाधान नहीं। पर, इसका अर्थ यह भी कतई नहीं कि साहित्य सिर्फ यथातथता है या फिर इतिवृत्तात्मक है। नहीं, मेरे जैसे पाठक यह भी नहीं मान पायेंगे। उनके लिये तो प्रश्नों के झगड़े ही लेखन है। जीवन का अनुभव सिर्फ प्रश्न है और उन प्रश्नों को उकेर कर सामने रख देना ही संभवतः लेखन है। परिपक्वता तो मानसिक कयास है। हाँ यदि, पाठक कितनी जल्दी से तदात्म्य बना ले, यह कसौटी है, तो बात अलग है, क्योंकि तब दुनिया का लिखा प्रत्येक वाक्य किसी न किसी को भाता भाता जरूर है और अपने जीवन के धुँधले चित्र(विचारी या अविचारी) वहाँ उसे दिख जाते हैं। वह उसके लिये अपना बन जाता है, साहित्य बन जाता है। कितना परिपक्व, वह सुधीजन जाने, हम तो ठहरे निपठ।
    इति
    अनिल

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  57. बाप रे! हमारा लेखन तो किन्ही बिंदुओं पर खरा नहीं उतरता...क्या करूँ?
    पोस्ट का टाइटल बहुत एकदम सोलिड है, फेविकोल के मजबूत जोड़ जैसा. पोस्ट अच्छी लगी...कुछ नीरज जी का लिखा पढ़ने भी मिल जाता तो और अच्छा लगता.

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  58. मरने के बाद तो सिर्फ भूत लिखते हैं...हा..हा..हा..

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  59. आपका कार्य प्रशंसनीय है, साधुवाद !

    हमारे ब्लॉग पर आजकल दिया जा रहा है
    बिन पेंदी का लोटा सम्मान ....आईयेगा जरूर
    पता है -
    http://mangalaayatan.blogspot.com/2010/12/blog-post_26.html

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  60. आपकी पोस्ट पढ़कर मजा आया ,और दिमाग भी ठिकाने पर आया ,बहुत महीनो के बाद मैंने आज ही एक पोस्ट डाली हैं .अब याद रखूंगी ..आखिर मरने से पहले लिखना जरुरी हैं :-)

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  61. @ ZEAL
    नीरज जी को ब्लॉग लिखने के लिये उकसा रहा हूँ, यह पोस्ट उस दिशा में पहला प्रयास है। लेखन कागजों में बिखरा है, समेट कर लाना होगा।

    @ मो सम कौन ?
    समारम्भ और समापन, दोनों ही सम्बद्ध हैं। प्रश्न और निष्कर्ष, दोनों ही हैं। तो लिखना प्रारम्भ कर दीजिये।

    @ Ratan Singh Shekhawat
    और सामयिक भी, हम सब ब्लॉगरों के लिये। नीरज जी का लेखन सबको लाभान्वित करेगा, भविष्य में।

    @ 'उदय'
    यदि मन सामान्य रूप से टहलाये तो उसे झंकृत कर देना चाहिये।

    @ dhiru singh {धीरू सिंह}
    स्तरीय तो सदैव ही पढ़ा जायेगा पर यदि व्यस्तता का बहाना बना कर कुछ लिखा ही न जाये, तब।

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  62. @ Smart Indian - स्मार्ट इंडियन
    ब्लॉग ने लेखन व उसकी पहुँच का सरलीकरण कर दिया है। अब कहीं भी भागने की आवश्यकता नहीं। बस बैठिये और गुणवत्ता भरा लेखन प्रारम्भ कर दीजिये।

    @ Rahul Singh
    लेखन में बहुत शक्ति है।

    @ वाणी गीत
    यदि सोच लिया हो तो लिख डालिये सोचने पर ही।

    @ ललित शर्मा
    यदि कुछ सार्थक लिखा तभी कुछ अवसर है, नहीं तो सबकी तरह ही हम लोग भी चल देंगे, बोरिया बिस्तर बाँध कर।

    @ मनोज कुमार
    बहुत धन्यवाद आपका।

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  63. @ ashish
    अब उन्हें चढ़ा तो दिया है, देखते हैं क्या लिखकर उतरते हैं।

    @ Nishant
    सच कह रहे हैं कि बस लिखना प्रारम्भ कर दिया जाये।

    @ ajit gupta
    आपकी प्रतीक्षा रहेगी, श्रीमतीजी को भी आपसे विस्तार से बात करने की इच्छा है। कप्पा का प्रचार कर दिया है, कुछ तो डिस्काउण्ट मिलना चाहिये अब।

    @ रश्मि प्रभा...
    बहुत दिनों बाद लिखने बैठें तो बड़ा यत्न करना पड़ता है भावों को उभारने के लिये। प्रवाह में रहने से बस विषय की आवश्यकता रहती है, शब्द स्वतः बह जाते हैं।

    @ Arvind Mishra
    नीरज जी सबको लेखक नहीं बनाना चाहते हैं, कुछ पाठक भी रहें। पर जिनके अन्दर क्षमता है लिखने की और विचारों की स्पष्टता है, वह भी दुनियादारी में उलझे रहेंगे और लेखन को सेवानिवृत्ति के बाद के लिये छोड़ देंगे, तो उनको इंगित है यह उद्बोधन।

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  64. @ Saurabh
    सच है, सदा गरिष्ठ खाने से बदहज़मी हो जाती है। कुछ हल्का फुल्का भी होते रहना चाहिये।

    @ प्रतिभा सक्सेना
    आज करे सो अब।

    @ गिरधारी खंकरियाल
    विचार चालायमान रहेंगे तो लेखन कड़ा नहीं पड़ेगा। सुबह 4 बजे का समय पहले से ही रखता आ रहा हूँ, रात में ही सेट कर के सोता हूँ।

    @ संजय कुमार चौरसिया
    लिख पाये तो पढ़ा भी जायेगा, अभी तो लिखने में ही समस्या है।

    @ नरेश सिह राठौड़
    नहीं, नहीं, बड़ा अच्छा लिखते हैं। यह संदेश तो समझ में आ ही गया होगा।

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  65. @ भारतीय नागरिक - Indian Citizen
    अच्छे लोग लिखेंगे तो अच्छा ही लिखेंगे, साहित्य संवर्धन होगा उससे।

    @ Pratik Maheshwari
    सच है, जीवन जी लें, समय काटने तो हम आयें ही नहीं हैं, इस दुनिया में।

    @ वन्दना
    मन आज ही पूरा कर लें, लेखन जैसे पुनीत कार्य में तो और भी।

    @ चला बिहारी ब्लॉगर बनने
    आपकी लेखनी बह निकली, मेरा पोस्ट लिखना सार्थक हो गया, नीरज जी को भी बड़ी प्रसन्नता होगी।

    @ Harman
    आपको भी बहुत बधाई।

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  66. @ cmpershad
    अब टिप्पणी के बाद लेख भी लिख डालिये, फिर पुस्तक।

    @ पी.सी.गोदियाल "परचेत"
    हम तो सुनकर दौड़ चुके हैं।

    @ संगीता स्वरुप ( गीत )
    बातें तो और भी थीं पर यही तीन ब्लॉग जगत पर अधिक उपयोगी हैं।

    @ राज भाटिय़ा
    यदि नहीं लिख पाये तो वैसे भी कोई नहीं पढ़ पायेगा।

    @ Dr. shyam gupta
    सच यही है कि कल कभी नहीं आयेगा।

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  67. @ Mukesh Kumar Sinha
    विचारों का रुक जाना, मानसिक स्वास्थ्य के लिये घातक हो सकता है।

    @ नीरज बसलियाल
    सच कहा आपने, सभी नीरज दमदार होते हैं।

    @ शोभना चौरे
    सबसे बड़ा प्रोत्साहन मुझे मिला है, लेखन के बारे में।

    @ Patali-The-Village
    बहुत धन्यवाद आपका।

    @ shikha varshney
    बहुत धन्यवाद आपका।

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  68. @ Dorothy
    आपको भी बहुत बहुत शुभकामनायें।

    @ बैसवारी
    कोई उम्र नहीं है लेखन की, अनुभव सिखाते हैं हमें। हमारे चुकने के पहले यह ऋण चुकाना होगा।

    @ डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक"
    बहुत धन्यवाद आपका।

    @ केवल राम
    मुझे भी झकझोर दिया था, इस वाक्य ने।

    @ अनामिका की सदायें ......
    स्वयं को प्रतिष्ठापित करने से भी अधिक महत्वपूर्ण है, स्वयं को व्यक्त करना। सबके लिये कुछ न कुछ निकल आयेगा उसमें।

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  69. @ अल्पना वर्मा
    विचारों का प्रवाह बनाये रखे चिन्तनशील और व्यक्त होकर।

    @ boletobindas
    कॉफी का बिल आपका, भोजन मेरे घर।

    @ उपेन्द्र ' उपेन '
    लेखन प्रारम्भ कर देंगे तो जीवन तरोताजा बना रहेगा।

    @ विष्णु बैरागी
    हमने तो सीख ले ली, अब उसमें अमल करना है।

    @ mukti
    नीरज जी के साथ बैठने के बाद प्राणों में शक्ति आ जाती है और मन में ऊर्जा। लेखन जारी रखा जाये।

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  70. आपका शीर्षक ही काफी था ...यहां तक लाने के लिये ...बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति नीरज जी से परिचय के लिये आभार ...।

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  71. @ सोमेश सक्सेना
    बहुत धन्यवाद आपका।

    @ Satish Chandra Satyarthi
    मेरा भी आलस्य दुम दबा कर भाग गया।

    @ Mrs. Asha Joglekar
    मैं केवल अपनी खिचाई कर रहा हूँ, झटका भी मुझे ही पड़ा है। समय बहुत कम है, बहुत लिखना है।

    @ अरुण चन्द्र रॉय
    गोपाल दास नीरज से अब तक। कमलवत।

    @ वन्दना
    बहुत धन्यवाद आपका इस सम्मान के लिये।

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  72. आज क्या?
    ज्ञानार्जन... संभवतः कभी कुछ लिखा जाए मुझसे भी.
    नीरज जी से मिलवाने का आभार, आशा है उनका लिखा पढने को मिलेगा जल्द ही.

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  73. @ अखिल तिवारी
    करामातें सारी धरी रह जायेंगी
    वहीं जिद्दी लगन काम आयेगी..||

    बहुत दमदार पंक्तियाँ। मैं फिर लगता हूँ ब्लॉग लिखने के लिये।

    @ POOJA...
    आपके लिये कोई बिल की बाध्यता नहीं, कॉफी व भोजन की जिम्मेदारी हमारी, पर लिखना तो आपको ही पड़ेगा।

    @ abhi
    खतरनाक शीर्षक देखकर पढ़ने का मन नहीं किया कि पहले थोड़ा लिखकर इसे पढ़ा, जिससे कि अपराधबोध न्यूनतम रहे।

    @ muskan
    बहुत धन्यवाद आपका।

    @ पुष्पा बजाज
    बहुत धन्यवाद आपका।

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  74. नीरज बाबू से मिलवाने का शुक्रिया। वैसे शीर्षक आप गजब गजब के लाते हो प्रवीण भाई। इत्‍ते सारे कमेंट में इसका भ कुछ न कुछ योगदान है।

    ---------
    अंधविश्‍वासी तथा मूर्ख में फर्क।
    मासिक धर्म : एक कुदरती प्रक्रिया।

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  75. @ अनिल महाजन
    आपके अवलोकनों पर अलग से चर्चा की आवश्यकता है, लिख रहा हूँ।

    @ Puja Upadhyay
    आपका लेखन चिन्तन को प्रवाह दे जाता है, गति भी आवश्यक है लेखन के लिये, लहरों में वह गति है।

    @ Akshita (Pakhi)
    तभी तो हम कह रहे हैं कि पहले लिख डालो।

    @ मनोज पाण्डेय
    बहुत धन्यवाद आपका।

    @ डॉ.राधिका उमडे़कर बुधकर
    आपका तो ठीक है, दिमाग तो हमारा भी ठीक कर दिया है, इस वाक्य ने।

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  76. @ sada
    शीर्षक सुनकर हमारा मन झन्न हो गया, नीरज जी को शीघ्र ही लिखने पर विवश किया जायेगा।

    @ Avinash Chandra
    और लिखेंगे तो पढ़ने को भी मिलता रहेगा। हम भी ज्ञानार्जन में लगे रहेंगे।

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  77. सशक्त पोस्ट!बधाई.नव वर्ष की शुभकामनाएँ.

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  78. आपकी रचना वाकई तारीफ के काबिल है .

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  79. नीरज जी,ने बात तो सही कही है....पर ब्लॉग जगत तो इसका पालन करता दिख रहा है

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  80. नीरज जी का परिचय थोडा और विस्तार मांग रहा है. उसे समुचित तरीके से पूरा किया जाय.

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  81. @ ज़ाकिर अली ‘रजनीश’
    शीर्षक मेरा नहीं, नीरज जी का है, मेरा योगदान उनका आपसे परिचय कराने का है।

    @ Meenu Khare
    बहुत धन्यवाद आपका।

    @ संजय भास्कर
    बहुत धन्यवाद आपका।

    @ rashmi ravija
    सच है कि ब्लॉग जगत लिख रहा है पर अपनी क्षमताओं के अनुरूप लिख पा रहा है कि नहीं यह सबका अन्तरमन बतायेगा।

    @ Er. सत्यम शिवम
    बहुत धन्यवाद आपका।

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  82. @ अभिषेक ओझा
    अगली पोस्ट में उनकी तड़प और उत्साह के बारे में चर्चा है, पर पूर्ण परिचय तो लेखन पढ़ने के बाद ही आ सकता है।
    लेखक अपने लेखों के माध्यम से जितना व्यक्त होता है, उतना परिचय कोई भी नहीं दे सकता है किसी का। हम भी उनसे कहेंगे ब्लॉग लिखने के लिये।

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  83. हजारों ख्वाहिशें ऐसी कि हर ख्वाहिश पे दम निकले,
    हमें जिस बोझ ने मारा, सम्हालो तुम, कि हम निकले।

    ....चौंकाने वाले शीर्षक के भीतर बहुत सार्थक सन्देश पढ़कर बहुत अच्छा लगा ...|
    नीरज जी के बारे में जानकारी प्रदान के लिए धन्यवाद ..

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  84. बोलती बंद हो गयी...चिंतन आरम्भ जो हो गया...

    और क्या कहूँ...

    आपकी लेखनी ...ओह...जुग जुग जिए...फले फूले...और प्रेरणा प्रसारित करता रहे अहर्निश......

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  85. @ कविता रावत
    शीर्षक चौकाने वाला अवश्य है पर बात बहुत सोच समझ कर कही है, नीरज जी ने।

    @ रंजना
    अब तक चिन्तन बहुत हो गया होगा, लिख बी डालिये।

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  86. धाँसू शीर्षक और सच भी कहा है. जीते जी ही लिखना होगा. आपके ब्लॉग की सादगी अच्छी लगी.

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  87. Ab to Neeraj ji ka likha hua jaroor padhungi.....

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  88. @ Bhushan
    सच कहा है, लिखना ही पड़ेगा तभी संतुष्टि मिलेगी।

    @ JHAROKHA
    अब पुनः उकसाता हूँ नीरज जी को लिखने के लिये।

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  89. bilkul sahi kaha hai Neeraj ji ne...badiya post

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  90. @ zindagi-uniquewoman.blogspot.com
    तब लिखना प्रारम्भ कर दीजिये आज से ही।

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  91. "गब्बरसिंह के सामने वाली कालिया की फँसी हुयी हँसी"

    हा हा, आपकी ऑब्जर्वेशन तगड़ी है।

    हमारे जैसे आलसी ब्लॉगरों को आप यों ही कर्मयोग की शिक्षा देते रहें।

    @Smart Indian - स्मार्ट इंडियन,
    सही कहा, सभी ब्लॉगर आलस त्याग दें तो ब्लॉगर बाबा को बोरिया-बिस्तर समेटना पड़ जायेगा। :-)

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  92. @ ePandit
    आलस्य तो त्यागना ही पड़ेगा, ब्लॉग भरभरा जायेगा तो दूसरा बन जायेगा। आपका लिखा छूट गया तो कैसे मिलेगा?

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