22.9.10

चार प्रभातीय अध्याय

वैवाहिक जीवन की सीमायें आपको बहुत अधिक बहकने नहीं देती हैं, किसी भी दिशा में। जब मुझे अपने मानसिक ढलान को रोकने के 21 दिवसीय प्रयास सफल होते दिख रहे थे, श्रीमती जी की आपत्ति, सीमा बना कर ठोंक दी गयी। आप तो स्वयं युवा होते जा रहे हैं, पर मेरा क्या? क्या करना है? सुबह सुबह टहलने चलते हैं फ्रीडम पार्क, साथ साथ, नित चार चक्कर, कुल 4 किलोमीटर, बस केवल 21 दिन के लिये। इतने निश्चय व आत्मविश्वास के सम्मुख मेरी कई व्यस्ततायें और तर्क ध्वस्त हो गये।

जब तेज चलने वाले को, किसी का साथ देने के लिये धीरे धीरे चलना पड़े तो शाऱीरिक व्यायाम तो असम्भव ही है पर मानसिक व्यायाम में कहाँ के पहरे लगे हैं? पिछले कई दिनों में चार चक्करों के मंथन में विचारणीय अवलोकन जन्म ले रहे हैं। आज सब के सब साथ में उपस्थित थे। आईये, एक एक कर के देखते हैं।

पार्क के बाहर ही एक खुले मैदान में टेन्ट लगा है। पर्युषण पर्व पर बड़ी संख्या में श्रद्धालु प्रवचन सुन रहे हैं। बाहर विविध प्रकार के व्यंजन मेजों पर सजे हैं, भण्डारे की तैयारी है। उन पर अलिप्त सी दिखने वाली संलिप्त दृष्टि डाल कर पार्क में टहलना प्रारम्भ कर देता हूँ। पहले चक्कर में श्रीमती जी की महत्वपूर्ण सी लगने वाली कई बातों पर हाँ, हूँ तो किया पर मन उसी भण्डारे पर टिका रहा। सुबह सुबह प्रवचन का इतना कैलोरिफिक उत्सव?

दूसरे चक्कर के प्रारम्भ में ही एक युवा युगल दिखता है, अविवाहित क्योंकि उनके चेहरे पर भविष्य को लेकर असमंजस स्पष्ट था। पिछले कई दिनों से नित अपनी समस्याओं के भँवर में डूबते उतराते दिख रहे हैं दोनों। प्रेम विवाह के इस उबड खाबड़ रास्तों से हम तो बचे रहे पर सुबह सुबह उन्हें वहाँ देख दो विचार ही मन में आये। पहला, घर में क्या बोल कर आते होंगे, संभवतः स्वास्थ्य बनाने। दूसरा, कितने भाग्यशाली हैं कि रात में एक दूसरे को स्वप्नों में निहार कर सुबह पुनः उसे मूर्त रूप देने में लग जाते हैं।

तीसरे चक्कर में एक विदेशी दिखते हैं, दौड़ लगा रहे हैं। यहाँ किसी बैठक में आये होंगे क्योंकि उन्हे पहली बार ही देखा है। दिन प्रारम्भ करने के पहले शरीर पर ध्यान देना एक गुणवत्तापूर्ण जीवन का पर्याय है। उन्हें देख कर हमारी भी दौड़ने की इच्छा बलवती हुयी पर तुरन्त अपनी भूमिका का भान होता है और हम अपनी चाल ढीली कर पुनः मानसिक व्यायाम में उतर जाते हैं। सुबह की दो विभिन्न गतियों पर मन बहुत देर तक खिंचा रहा।

चौथे चक्कर में, पाँच लड़कियों को देखता हूँ, पिछले कई दिनों से देख रहा हूँ, सप्ताहान्त को छोड़कर। निश्चय ही आसपास के किसी कॉलेज से होंगी। कॉलेज खुलने से पहले का समय पार्क की शीतल हवा में व्यतीत करती हैं और कहीं बेंच पर बैठ कर या तो बातें करती हैं या कोई पुस्तक पढ़ती हैं। प्राकृतिक वातावरण में और सुबह की ग्राह्य वेला में समय का सुन्दर उपयोग। मुझे भी पुस्तक पढ़ना अच्छा लगता है सुबह सुबह पर श्रीमती जी के सामने उस विषय पर दी टिप्पणी व दिखायी गयी उत्सुकता घातक हो सकती थी अतः अन्यत्रमना से प्रतीत होते हुये टहलते रहे।

कारसेवा कर वापस आते समय तक भंडारा प्रारम्भ हो चुका था। कई पकवान दिख रहे थे। कदम ठिठके, सोचा कि घुल मिल लेते हैं क्योंकि चेहरे से पूरी तरह अहिंसक और निर्लिप्त जैनी लग रहे थे। आशाओं को अर्धांगिनी का समर्थन न मिलने से अर्धमना होकर रह गये।

घर पर पाँचवाँ अध्याय प्रतीक्षा में था।

ब्लॉगिंग का। हमें तो आपका ही सहारा है।

63 comments:

  1. मुझे लगता है चक्करों की संख्या बढ़ानी होगी. चार चक्करों में चार अध्याय तो मात्र तीन और बढ़ा देने से पूरे सात ... और फिर तीन अध्याय और ..

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  2. आपकी सुबह-सुबह के बारे में सुबह-सुबह पढ़ा। सैर के फायदों के बारे में सोचकर हमारा भी सैर करने का मन करता है पर अन्दर का आलसी जीव आइडिया कैंसिल करवा देता है।

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  3. सुबह सुबह प्रवचन का इतना कैलोरिफिक उत्सव । आप इस उत्सव में शामिल होने से वंचित रह गये खेद है । पर सात सात वचन दिये थे बहुरानी को सो निभाने तो पडेंगे न । पांचवा पर्याय ही सही है आपके लिये भी और हमारे लिये भी ।

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  4. पाँचवा अध्याय ही अब अपने बस का...बाकी पर तो बस इसी अध्याय में कहानी लिख सकते हैं.

    मस्त!

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  5. ये स्वयंस्फूर्त विचार भी साथ के प्रभाव से आ रहे हैं ..अनुभव बताता है की ये प्रातः साथ ज्यादा दिन नहीं चलने वाला ..और दब विचारों को खुल कर प्रस्फुटित होने का सुअवसर होगा -ब्लॉगर तो आपके साथ हो ही लिए हैं ..कुछ सुबह आत्मना सैर पर भी जाते होंगे ... :)

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  6. हम तो सुबह उठकर सीधा ही ये पांचवां अध्याय ही शुरू करते है

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  7. मतलब ...सुबह की सैर में सेहत ख़राब होने के भी पूरे इंतजाम होते हैं ...:):)

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  8. हम त ई सब बखेड़ा से हमेसा दूर रहे..मगर एक बार बुरा संगत में पड़कर हमको भी सुबह पार्क में घूमने का बिमारी लग गया था.. देखे एक रोज कि एगो परिचित मित्र बहुत मजे में हर फिक्र को धुँए में उड़ाते चले जा रहे थे. हम पूछ बईठे, “अऊर ठीक ठाक??” जवाब मिला, हाँ ताजा हवा ले रहा हूँ! उसके बाद त हमरा ताजा हवा में घूमना बंद हो गया... ऑफिस में नींद आता था अऊर बॉस का डाँट के आगे हमरा हवा बंद हो जाता था.

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  9. सैर के दौरान की गतिविधियों का अच्छा विश्लेषण, हम भी अब पाँचवे अध्याम में ही रत हैं जल्दी ही वापिस से जॉगिंग पार्क जायेंगे अब बारिश रुक सी गई है।

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  10. बहुत अच्छी प्रस्तुति।

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  11. क्‍या बात है प्रवीण जी, यहाँ भी 4 किमी का ही चक्‍कर लगा पाते हैं। लेकिन सुबह-सुबह ही आपको क्‍लोरिफाई दरबार कहाँ मिल गया? हमें भी कल मिला था लेकिन सुबह तो उखड़ा तम्‍बू था और बेचारे खाली हुए प्‍लास्टिक के गिलास हवा के साथ इधर-उधर डोल रहे थे। आजकल तो उदयपुर मे फेतहसागर लबालब भर गया है तो उसके किनारे घूमने का आनन्‍द ही कुछ और है। बढिया प्रस्‍तुति।

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  12. लग रहा है चौथे वाले पड़ाव पर विशेष ध्यान है ..फोन करें भाभी जी को ?

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  13. सुबह सुबह जी जला दिया आपने। हमारे शहर में ले देकर एक पार्क है, जिसका कुल आकार एक माईक्रो पोस्ट के बराबर है।

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  14. दूसरे अध्याय के बारे में अधिक चिंतन न करें. उसका असर पांचवें पर पड़ सकता है.

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  15. ..अब तो हर अध्याय से गुजरना पड़ेगा.

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  16. जिंदगी का तो बस एक ही गोला है, उसी में बार बार घूमना है, उसी पुराने चक्कर में रोज नए नज़ारे मिलें तो दिल लगा रहे ...

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  17. प्रवीण जी बहुत अच्छा लगा आपका लेख.

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  18. चलिए अच्छा है शारीरिक ना सही मानसिक व्यायाम तो हुआ...... बहुत बढ़िया पोस्ट

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  19. चलिए हमने तो ब्लॉग में ही चक्कर लगा लिए जाने कितने पर आपको तो शगुन के सात चक्कर लगाने थे शायद कुछ और भी मिल जाता पर ये चार लड़कियों का चक्कर समझ नहीं आया बाकी लोग तो अकेले या दुकेले थे पर ये लड़िक......

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  20. `श्रीमती जी की आपत्ति, सीमा बना कर ठोंक दी गयी'

    ये सीमा कौन है!!!!!! ये पांचवां चक्कर क्या है:)

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  21. हम तो खूब घूमते हैं, और वहां से उठा कर कई दृष्य से आपको परिचित करा चुके हैं।बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!

    देसिल बयना-गयी बात बहू के हाथ, करण समस्तीपुरी की लेखनी से, “मनोज” पर, पढिए!

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  22. बहुत सटीक और प्रभावी लिखा है। बधाई।

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  23. श्रीमति जी का शारीरिक व्यायाम और आपका मानसिक ...और आपके यह चार अध्याय .. चरों का वर्णन बहुत खूब ...वैसे पांचवें अध्याय में ( ब्लोगिंग ) घुस कर बाकी अधयाय कहाँ याद आते होंगे ...पर सुबह तो रोज होती है ..पुनरावृति भी होती होगी ..लगता है पांच लडकियों से बहुत प्रभावित हुए :):)

    लिखने की शैली बहुत बढ़िया है

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  24. सामंजस्य बनाए रखिये पांचो अध्यायों का.....शुभकामनायें।

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  25. अच्छी जोगिंग पोस्ट है :) चलिए कुछ फायेदा तो हुआ ही न .

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  26. प्रवीण जी , ब्लाग लिखने की विधा में आपकी प्रवीणता में उत्तरोतर निखर आ रहा है , आपका बड़ा भाई होने के नाते ईश्वर से एक प्रार्थना करूंगा कि सतही लेखन से आपको हमेशा सुरक्षित रखे -
    मोहन कानपुर

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  27. ओह! यही व्यायाम तो हम भी कर पाते हैं ....वैसे हमारी पत्नी श्री चाहे जितना ठेलें ...हम सुबह एक महीने से ज्यादा नियमित कभी ना रहे !

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  28. चतुर्थ अध्याय सबसे रोचक है...

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  29. चलिये सुबह की सैर ने कितने अध्याय पढा दिये…………कुछ तो सीखा ही।

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  30. चारों अध्याय पर नज़र बड़ी gahri रखी....पर ये मानसिक व्यायाम था या,शारीरिक व्यायाम के साथ मानसिक रिलैक्सेशन

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  31. @ M VERMA
    सात चक्कर में खतरा है। फ्रीडम पार्क पुरानी जेल रही है और एक जेल को साक्षी मानकर सात चक्कर लगाने का पर्याय है, वैवाहिक जीवन का जेलवत हो जाना। खैर वैसे भी है ही, उसे पुनरपि क्यों स्थापित करें?

    @ ePandit
    उस आलस्य के वायरस को मेरे घर भी भेज दीजिये, श्रीमतीजी से परिचय करा दिया जायेगा।

    @ Mrs. Asha Joglekar
    सच में बहुत मन था और उसके लिये दो अतिरिक्त चक्कर लगाने को तैयार भी था। अधिक जिद करने में सुबह का भोज तो हो जाता पर शेष दिन का आहार खतरे में पड़ जाता।

    @ Udan Tashtari
    असली आनन्द तो पाँचवे अध्याय में मिला जब पहले चार अध्यायों को छाप डाला।

    @ Arvind Mishra
    हम कढ़ीले बैल की तरह हैं जो फ्रीडम पार्क का नाम डुबो रहे हैं। चलिये घूमने में फ्रीडम न सही, सोचने में किसने मना किया है।

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  32. @ Ratan Singh Shekhawat
    हमारी आदत तो तोड़ दी गयी, कम से कम आप सबका पाँचवा अध्याय मुखरित रहे।

    @ वाणी गीत
    सारे के सारे तो सेहत बनाने के पर्याय हैं।

    @ चला बिहारी ब्लॉगर बनने
    इन अध्यायों के परिशिष्ट का तो वर्णन नहीं किये हैं पर शेष दिन में बहुत प्रभाव डाल रहे हैं ई अध्याय।

    @ Vivek Rastogi
    मानसिक टहलना शारीरिक टहलने से श्रेयस्कर है यदि गति कम हो। पाँचवा अध्याय तो द्रुत गति से भागता है।

    @ हास्यफुहार
    बहुत धन्यवाद।

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  33. @ ajit gupta
    पर्युषण पर्व का महोत्सव चल रहा था। अगले दिन कुछ भी नहीं मिला, सब साफ। उदयपुर में तीन माह का प्रशिक्षण पाया है, झील की बहुत याद आती है।

    @ राम त्यागी
    भाभी जी तो साथ में ही रहती हैं, सजग।

    @ मो सम कौन ?
    आईये बंगलोर, यहाँ पर आपको महाउद्यानों का भ्रमण करायेंगे।

    @ P.N. Subramanian
    पर हम तो दूसरे अध्याय पर एक पोस्ट तैयार करने की प्रक्रिया में हैं।

    @ KK Yadava
    आप तो समुद्र किनारे कितना भी टहल आयें, आनन्द ही आनन्द।

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  34. @ Majaal
    पुराने चक्कर हैं, नित नये नज़ारे हैं, दिल लगा है।

    @ सत्यप्रकाश पाण्डेय
    बहुत धन्यवाद।

    @ डॉ. मोनिका शर्मा
    पूरा का पूरा मानसिक ही हुआ।

    @ रचना दीक्षित
    ये लडंकियाँ पास के कॉलेज की हैं और दूर से आती हैं पढ़ने के लिये। ट्रैफिक से बचने के लिये अपने घर से जल्दी निकलती हैं। मिले हुये अतिरिक्त समय का पार्क में सदुपयोग करती हैं। इतनी खोजी पत्रकारिता तो कर ही सकते हैं।

    @ cmpershad
    पाँचवा चक्कर ब्लॉग का है। सीमा तो सबके घरों में है, अनुशासन के रूप में।

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  35. @ मनोज कुमार
    आपके घुमक्कड़ी अध्याय भी खूब पढ़े हैं, रोमांचपूर्ण।

    @ शोभा
    बहुत धन्यवाद आपका।

    @ संगीता स्वरुप ( गीत )
    असली आनन्द तो ब्लॉग झील में उतर कर ही आया। समय के सदुपयोग से कौन न प्रभावित हो भला?

    @ ZEAL
    सामञ्जस्य बनने का प्रयास बहुत ऊर्जा खा जायेंगे, हमारा तो पूरा ध्यान पाँचवे में ही लगा हुआ है।

    @ shikha varshney
    हमारा टहलना व्यर्थ नहीं गया।

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  36. @ Mohan
    बहुत धन्यवाद। जहाँ तलहटी में जाकर रत्न ढूढ़ना उत्पादक है वहीं सतह पर तैर कर आनन्द उठाना भी। लेखन की वैचारिक जड़ता का स्वरूप देने में डर लगता है।

    @ प्रवीण त्रिवेदी ╬ PRAVEEN TRIVEDI
    पता नहीं, आपका रिकॉर्ड हम तोड़ पायेंगे कि नहीं?

    @ भारतीय नागरिक - Indian Citizen
    कुछ अध्यायों की रोचकता यथावत ही रहने दी जाये अन्यथा परिणाम शोचक हो सकते हैं।

    @ वन्दना
    किसी ने कहा है कि जहाँ भी अवसर मिले, कुछ न कुछ सीख लेना चाहिये।

    @ rashmi ravija
    यह मानसिक व्यायम के साथ शारीरिक रिलैक्शेसन था।

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  37. प्रभातीय अध्याय पढ़कर मज़ा आया, विशुद्ध आनंद, आपकी कलम का कमाल देखकर लगता है एक बार जीवन मौका दे तो आपके दर्शन ज़रूर करें.

    फिलहाल चौथा और पांचवा रोचक है. :)
    मनोज खत्री

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  38. बहुत बढ़िया,आप कम से कम चार कि मी का चक्कर तो लगा आये, मानसिक रूप से दस कि मी हो गया। दूसरे अध्याय वाला जोड़ा कॉलेज का बहाना कर के ही आता होगा। पार्क बहुत सुंदर लग रहा है।
    हम सोच रहे हैं आप अपनी जेलर की तस्वीर क्युं नहीं लगाते? अगली पोस्त में जेलर मोहतरिमा से परिचय करवाया जाए।

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  39. कुछ चीजें न चाह कर भी दिखती हैं शायद और कुछ जो हम चाहते हैं देख लेते हैं. वैसे दृश्‍य रोचक बने हैं. टिप्‍पणी और उस पर टिप्‍पणी से अध्‍याय की गिनती क्‍या रामायण ही पूरा हो गया जान पड़ता है.

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  40. पोस्ट लिखने का मतलब समझ में नहीं आया। प्रवीण जी कुछ स्पष्ट कर सकें तो अच्छा लगेगा।

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  41. ईपण्डित से सहमत!

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  42. मैं सोच रहा हूँ की मैं भी जॉगिंग के लिए जाता हूँ.... तो मैं भी कुछ ऐसा ही लिखूं जैसा की आपने लिखा है.... एक बात तो है ... की शारीरिक व्यायाम के साथ साथ मानसिक व्यायाम भी चलता ही रहता है.... जॉगिंग के दौरान.... और एक लिखने वाले के लिए कीन ऑब्ज़र्वर होना बहुत ज़रूरी है... जो की आप हैं....

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  43. भण्डारे के बारे में अधिक जानकारी अपेक्षित है, धन्यवाद!

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  44. morning walk ko puri tarah se ji liya aapne.

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  45. हरियाली, रास्‍ता और आपकी युगल जोड़ी। बहुत अच्‍छा है। हंसते-हंसते, कट जाएंगे रस्‍ते :)

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  46. हम भी कल से दुबारा शुरू करते हैं !

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  47. "इति श्री सत्यनारायण व्रत कथायाम पंचमोध्याय "
    अभी अभी पूनम थी तो कथा बांची, कित्नु आप भी बताइयेगा पांचवे अध्याय में कौन क्या बना ?
    भंडारा देने वाले ,भंडारा पाने वाले ,युगल प्रेमी ,कालेज की लडकिया और हमारी प्यारी सी भाभी और आप ?
    '

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  48. पाचवां अध्याय में चारो का वर्णन बहुत बढ़िया लगा |

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  49. @ Manoj K
    हम इतने दर्शनीय नहीं हैं बन्धुवर पर आपसे मिलने की उत्कण्ठा हमारी भी बलवती हो गयी है। चौथे चक्कर में मत पड़िये, पाँचवे में ही संतुष्ट रहा जाये।

    @ anitakumar
    जेलर जी से अनुमति ले ली है तस्वीर लगाने की पर शर्त के साथ कि उनके बारे में सार्थक लिखा जाये। दूसरे चक्कर वाला जोड़ा अब भी आ रहा है और अब चेहरे पर अधिक संतुष्टि के भाव झलक रहे हैं, लगता है प्रेम सही दिशा में बढ़ रहा है।

    @ Rahul Singh
    जब टहलने में मन नहीं लगता है तो इधर उधर के दृश्यों में मन अटक जाता है। कुछ दिन तो अब ब्लॉगार्थ जाना पड़ेगा।

    @ विनोद शुक्ल-अनामिका प्रकाशन
    केवल टहलने में मन न लगना, इस पोस्ट की उत्पत्ति का कारण बना। दृश्य विविधता समेटे थे अतः यह सोचकर लिखा कि सुबह का उपयोग किन किन कार्यों के लिये किया जा सकता है।

    @ अनूप शुक्ल
    आप भी आलस्य का वायरस हमें दे दें 99 वर्ष की लीज़ पर।

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  50. @ महफूज़ अली
    जब श्वासें बस में नहीं रहतीं जॉगिंग करते समय तो मन में विचारों का प्रवाह रुक जाता है। ख़रामा ख़रामा टहलने का अपना ही मज़ा है।

    @ Smart Indian - स्मार्ट इंडियन
    मेरा भी दुख वही है कि अधिक देर रुक नहीं पाया। पर था बड़ा दमदार, अभी तक खेद है।

    @ मेरे भाव
    जीने का आनन्द तो वर्तमान में रम जाने में ही है।

    @ Ashok Pandey
    घर के पास में ही है, आप आयें तो आपको भी टहला लायेंगे।

    @ सतीश सक्सेना

    सबसे पहले कौन सा अध्याय निपटायेंगे?

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  51. @ शोभना चौरे
    पाँचवे अध्याय में विजय तो हमारी ही हुयी क्योंकि आप सबको पसन्द आने वाली पोस्ट जो बन गयी।

    @ नरेश सिह राठौड़
    इति तो पाँचवे अध्याय में ही होनी थी।

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  52. हा हा हा हा...स्वादिष्ट/मनोरंजक यात्रा कराई हमें भी...
    आभार !!!

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  53. 36 साल से बेंगळूरु में रहा हूँ।
    और अब तक Freedom Park मैंने नहीं देखी।
    पहले तो वहाँ बेंगळूरु का मुख्य जेल था ।
    (Bangalore Central Jail)
    अभी कुछ ही साल हुए हैं, उस जेल को बन्द करके Freedom Park बना।
    शहर के बाहर एक नया जेल बना है और सभी कैदियों का वहाँ तबादला हुआ।
    हम तो Freedom Park से करीब १० किलोमीटर दूर रहते हैं।
    कई बार स्टेशन आते जाते समय बाहर से Freedom Park की दीवारों को और फ़ाटक को ताकता हूँ।
    बहुत बार सोचा कि अन्दर आकर देखूँ Freedom Park कैसा बना है पर हर समय बात टल गई।
    अब निश्चय ही वहाँ आएंगे। क्या कोई नियुत्क समय निर्धारित है? यदि हाँ तो कब आ सकते हैं?
    फ़ाटक कब बन्द होते हैं? क्या प्रवेश नि:शुल्क होता है? यदि नहीं तो टिकट का कितना लेते है?
    आशा करता हूँ कि जल्द ही हमें भी वहाँ आने का अवसर मिल जाएगा
    कभी कभी, रविवार को हम अपनी रेवा गाडी लेकर लाल-बाग जाते हैं टहलने के लिए।
    अब इस बार Freedom Park आएंगे।
    क्या पता हमें भी कुछ प्रेरणा मिल जाए, कुछ लिखने के लिए।

    इस ब्लॉग पोस्ट से आपका हर पोस्ट अब मुझे ई मेल द्वारा मिलने लगा है।
    चलो अच्छा हुआ। कभी आलस्य के कारण हम ब्लॉग जगत में भ्रमण नहीं करते और कई अच्छे लेखों से वंचित हो जाते हैं।
    अब तो नियमित रूप से स्तरीय लेख पढने का सौभाग्य मिल जाएगा।
    हम तो हिन्दी में quack लेखक हैं।
    कभी कभी जब सोचा "अरे वाह, आज कल तो हम भी हिन्दी में लिखने में सफ़ल हो गए हैं। हमने हिन्दी सीख ली"
    फ़िर आप जैसे लोगों का जब लेख पढता हूँ तो अन्दर से आवाज सुनाई देती है "अरे, रुको जी, अब तुम्हें और बहुत कुछ सीखना बाकी है")

    शुभकामनाएं
    जी विश्वनाथ

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  54. पाँचवा अध्याय तो अब आदत बन चुका है ...... वैसे चोथे चक्कर पर भी कुछ नज़र डालिए ......

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  55. @ रंजना
    वैसे स्वयं करने से भण्डारे में घुस लेने का अवसर भी मिल सकता है।

    @ G Vishwanath
    मेरे घर से मात्र 100 मी की दूरी पर ही है फ्रीडम पार्क। आपकी रेवा देख लेने के बाद उसमें बंगलोर घूमने का लोभ सबको ही होगा, मुझे भी है। घूमने का कोई टिकट नहीं है, नामानुसार पूर्णतया निःशुल्क। आने के 1 घंटे पहले बता अवश्य दें, स्वादानुसार भोजन बनवाने में इतना समय तो लगेगा ही, नहीं तो कामत या सुखसागर जिन्दाबाद।

    @ दिगम्बर नासवा
    चौथा चक्कर इतना प्रचारित हो गया है कि अब टहलते समय आँख बन्दकर टहलना पड़ेगा, अपनी निर्लिप्तता प्रमाणित करने के लिये।

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  56. बाँध बन्धन मे मुझे अपना बनाया इस तरह से
    कर्ज़ हमने सात फेरों का चुकाया इस तरह से
    शायद आप यही कहना चाहते हैं हा हा हा । अपकी श्रीमती जी ने इतनी बढिया पोस्ट लिखने का अवसर दिया इस से बढिया बात क्या हो सकती है मगर ये आदमी अच्छे के लिये भी पत्नि से शिकायत ही करता रहता है। अब बहु से कहना पडेगा कि सारा दिन दौड लगवाओ तकि हमे इतनी अच्छी कैलोरिफिक पोस्ट पढने को मिले। बहु को ही बधाई दिये देते हैं,उन्ही के कारण पोस्ट जो बनी है। शुभकामनायें

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  57. ऒह! इतनी छोटी सी बात मेरी समझ में क्यों नहीं आई। विश्लेषित दृष्टि से वाह्य और अन्तर्दृष्टि का साक्षात्कार! अर्थात सूक्ष्म जगत के विराट से साक्षात्कार! प्रकृति के पास रहकर ही चेतना की समझ विकसित की जा सकती है।
    बहरहाल बंगलौर के प्राकृतिक एवं सांस्कृतिक परिदृश्य पर आपके विस्तृत आलेख की प्रतीक्षा है, जिसे लिखने का आपने कहीं अन्यंत्र वादा किया है।

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  58. टहलने से कुछ नहीं होगा दौडिए. और सुबह शाम नहीं जब समय मिले तभी. कल ही यहाँ एक दोस्त से यही चर्चा हो रही थी. जब देखो यहाँ लोग दौड़ते मिल जाते हैं. और यहाँ भी अपने भारतीय टहलते हुए मिलते हैं और वो भी सुबह-शाम ही. तो स्वस्थ रहने के लिए इस धारणा से बाहर निकलना पड़ेगा. मैं भी प्रयास करता हूँ.

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  59. @ निर्मला कपिला
    जब कभी कुछ ठीक होने लगता है तो श्रीमती जी को अपने कुशलक्षेमीय सात फेरे याद आ जाते हैं। अब चक्कर में पड़े हैं तो साथ तो निभाना ही पड़ेगा। अधिक विचार न दें इस विषय पर नहीं तो सुबह सुबह हाँफते दिख जायेंगे, हम आपको। अभी उनकी कच्छप गति का एकमात्र दर्शक मैं ही रहता हूँ, जितनी गति से अब टहलती हैं, उससे अधिक गति से तो सात फेरे लगाये थे।

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  60. @ विनोद शुक्ल -अनामिका प्रकाशन
    जब शारीरिक गति और मानसिक गति में अन्तर होता है तो उसकी परणिति पाँचवे अध्याय में होती है। वाह्य क्रिया कलापों से तो श्रीमती जी को भान भी नहीं हुआ होगा कि हृदय में एक पोस्ट जन्म ले रही है।

    @ अभिषेक ओझा
    आप सच कह रहे हैं, दौड़ना पड़ेगा, कैलोरिफिक व्यय तो कुछ हुआ ही नहीं। जीवन में तो दौड़ ही रहे हैं विवाह के बाद से। सुकून से जीवन जीने के सन्दर्भ में विवाह का स्वप्न अन्तिम ही है।

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  61. aapki rachna me kai rang najar aaye aur rochak bhi lagi ,arvind ji ki baate jam gayi .sundar .

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  62. लो आ गये हम भी सहारा देने!

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  63. @ ज्योति सिंह
    मन रमेगा तो टहलना होता रहेगा पर मन तो अलबेला है।

    @ ज्ञानदत्त पाण्डेय Gyandutt Pandey
    आपका सहारा ही तो यहाँ तक ले आया है, ब्लॉग जगत में।

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