17.7.22

जीवन जीने चढ़ आता है


जब छूट गया, सब टूट गया,

विधि हर प्रकार से रूठ गया,

मन पृथक, बद्ध, निश्चेष्ट दशा,

सब रुका हुआ हो, तब सहसा,

वह उठता है, बढ़ जाता है,

जीवन जीने चढ़ आता है।


जब घोर अन्ध तम आच्छादित,

सिमटे समस्त उपक्रम बाधित,

जब आगत पंथ विरक्त हुये,

आश्रय अवगुंठ, विभक्त हुये,

तब विकल प्रबल बन जाता है,

जीवन जीने चढ़ आता है।


जब लगता अर्थ विलीन हुये,

जब स्पंदन सब क्षीण हुये,

सब साधे जो, प्रत्यंग विहत,

तब नाभि धरे अमरत्व अनत,

अद्भुत समर्थ, जग जाता है।

जीवन जीने चढ़ आता है।


क्या जानो, कितना है गहरा,

कितना गतिमय, कितना ठहरा,

कब उगता, चढ़ता और अस्त,

कब शिथिल और कब अथक व्यस्त,

बस, साथ नहीं तज पाता है,

जीवन जीने चढ़ आता है।

19 comments:

  1. कितने सुंदर भाव .... हर बार टूट-बिखरकर फ़िर जुड़ जाता जीवन और जीने की जिजीविषा
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  2. Anonymous17/7/22 12:06

    बेहतरीन

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  3. Anonymous17/7/22 12:34

    अद्भुत…..

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  4. Anonymous17/7/22 12:48

    बहुत ही यथार्थ पंक्तियाँ, सर।

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  5. Just amazing. अद्भुत, अकल्पनीय

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  6. Anonymous17/7/22 12:58

    Lekin mujhe abhi bhi nahi

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  7. Anonymous17/7/22 13:03

    मेरे लिए अभी की परिस्थितियों के लिए एकदम प्रासंगिक
    महेन्द्र जैन
    कोयंबटूर
    ९३६२०९३७४०

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  8. Anonymous17/7/22 13:24

    अदभुत सदैव के समान सर🙏

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  9. सही बात ...... जीवन तो चलता ही रहता है ।

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  10. Anonymous17/7/22 14:05

    पूर्ण प्रासंगिक व अद्भूत लयबद्ध।

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  11. Anonymous17/7/22 15:51

    सम सामयिक

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  12. Anonymous17/7/22 16:18

    सुंदर क्या बात है भैया

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  13. Anonymous17/7/22 17:39

    बहुत अच्छा

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  14. Anonymous17/7/22 19:27

    🙏बहुत सुंदर हमेशा की तरह👌👌

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  15. Anonymous17/7/22 19:35

    साधो साधो

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  16. Anonymous18/7/22 11:43

    भावपूर्ण कविता

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  17. अर्थपूर्ण रचना !!चलते ही रहना है !!

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  18. अत्यंत अत्यंत सुंदर!!!!

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