20.8.16

चीन यात्रा - ७

प्रश्न अब इस बात का नहीं रहा कि बुलेट ट्रेन हमारे लिये लाभदायक है या नहीं, प्रश्न अब यह है कि हमें किस गति से आगे बढ़ना है। चीन की तरह ही १५ वर्ष लगाकर और उसी गति से सीखते हुये या चीन व अन्य विकसित देशों के १५ वर्ष के प्राप्त अनुभव को प्रारम्भिक बिन्दु मानकर। इस समय हमारे पास तकनीक नहीं है अतः हमें तकनीक आयातित करनी पड़ेगी। पर कितनी शीघ्रता से हम उसे अपने अनुरूप ढालें और उसका विस्तार पूरे भारत में करें, निर्णय इसका लेना है। भारत के भौगोलिक क्षेत्रफल में बुलेट ट्रेन का विस्तार करने के लिये वर्तमान सामान्य ट्रैक के बराबर ही हमें हाईस्पीड ट्रैक का निर्माण करना होगा। किस तरह उसमें लगने वाला व्यय न्यूनतम हो, इस बात पर अध्ययन और शोध शीघ्रातिशीघ्र प्रारम्भ हो जाना चाहिये। फ्रेट कॉरीडोर की तरह ही बुलेट कॉरीडोर पर आगामी योजना तैयार हो जानी चाहिये, इसका निर्धारण भी होना चाहिये कि किस आर्थिक मॉडल के अनुरूप हमें आगे बढ़ना है।

उत्कृष्ट कोटि के शोध और सटीक योजना के मूल में एक पूर्णकालिक समर्पण रहता है। इसी तरह रेलवे के तन्त्र का परिचालन भी एक पूर्णकालिक कार्य है। परिचालन में डूबा व्यक्ति अपनी दैनिक समस्याओं से ऊपर नहीं उठ पाता है। उसका समय दिये गये संसाधनों का सर्वोत्तम उपयोग करने में निकल जाता है और यही उसका कर्तव्य भी है। उसे अपनी कार्यशैली से मोह हो जाता है, उसे तन्त्र की कमियों से एक भावनात्मक लगाव हो जाता है। उन्हें उजागर कर वह भला कैसे अपनी परिश्रमरतता की अवमानना करेगा। जो रेलवे के परिचालन में लगे हैं, उनसे यह आशा करना कि वे परिचालन के साथ शोध और योजना में अपना योगदान देंगे, यह तनिक कठिन लगता है। 

शोध और योजना में उत्कृष्टता को लिये जहाँ एक ओर रेलक्षेत्र में कार्य के अनुभव का लाभ लेना चाहिये वहीं दूसरी ओर रेलवे से इतर और पूर्णतः शोध में जुटे लोगों को भी जोड़ना चाहिये। आर्थिक तथ्यों और प्रकल्पों को साधने के लिये भी विशेषज्ञ आवश्यक हैं। आर्थिक औचित्य के लिये आँकड़े आवश्यक होते हैं, बिना लाभ के कोई भी इन योजनाओं में धन लगाने से हिचकेगा। आँकड़े किसी भी प्रकल्प को समझने और समझाने के लिये एक पारदर्शी वातावरण बनाते हैं। जब किसी को पहले से यह ज्ञात ही न हो कि किसी स्टेशन पर कितने व्यक्तियों के आने की संभावना है, तो वह अपने व्यवसाय का आर्थिक मॉडल किस आधार पर बनायेगा। सर्वेक्षण संस्थानों की यही उपयोगिता उन्हें परिवहन के क्षेत्र में इतना महत्वपूर्ण बना देती है। चीन में सर्वेक्षण संस्थान हों या  रेल विश्वविद्यालय, वहाँ के प्रत्येक प्रोफेसर अपने क्षेत्र में सिद्धहस्त है। उनके क्षेत्र में आधुनिकतम क्या चल रहा है, उन्हें ज्ञात है। वे दैनिक परिचालन में व्यस्त नहीं हैं और शान्ति और निष्पक्षता से बैठकर तकनीक और अर्थ की दिशा और दशा समझ सकते हैं। भारत में रेलवे के क्षेत्र में इस गहनता और गहराई का आभाव है। आईआईटी और आईआईएम जैसे उच्च संस्थानों में रेल संबंधित शोधों और आँकड़ों की संख्या बहुत कम है। इस प्रकार के शोधों और आँकड़ों को योजना और निर्माण का आधार बनाने के लिये रेल विश्वविद्यालयों और सर्वेक्षण संस्थानों का यथाशीघ्र स्थापित होना अत्यन्त आवश्यक है।

चीन में रेल विश्वविद्यालयों और सर्वेक्षण संस्थानों का उपयोग लम्बी दूरी के बुलेट या सामान्य रेलमार्गों की योजना, निर्माण और परिचालन के लिये तो किया ही जाता है, उनका उपयोग नगरीय यातायात की परियोजनाओं में भी व्यापक है। मेट्रो, नगरीय बस, बीआरटी आदि सभी साधनों की योजना भी सर्वेक्षण संस्थानों के आँकड़ों से ही प्रारम्भ होती है। आर्थिक, सामाजिक, यातायात के साधन, कार्य, मनोरंजन, विद्यालय और व्यापार के स्थानों से संबंधित आँकड़ों के आधार पर मेट्रो आदि की रूपरेखा को सुनिश्चित किया जाता है। नगर की संरचना का प्रभाव नगरीय यातायात के साधनों पर भी पड़ता है। यदि सारे व्यापारिक प्रतिष्ठान, कार्यालय, विद्यालय आदि नगर के केन्द्र में हों तो यातायात अत्यन्त दुरूह हो जायेगा। सारी भीड़ एक स्थान पर ही न हो जाये, इस बात का समुचित ध्यान नगरीय संरचना में रखा जाता है। कभी कभी यातायात को सरल बनाने के लिये नगरीय संरचना में सकारात्मक परिवर्तन भी किये जाते है। 

चीन के दो बड़े नगर देखे, दोनों ही ३००० वर्ष से अधिक पुराने नगर हैं, दोनों में ही इतने लम्बे कालखण्ड में अनियन्त्रित विकास हुआ होगा। फिर भी बीजिंग और चेन्दू की नगर संरचना ने मुझे अत्यन्त प्रभावित किया। चीन के मुख्य नगर रिंगरोडों में विभाजित हैं। चेन्दू में ४ रिंग रोड और बीजिंग में रिंगरोडों की संख्या ६ है। जब भी विकास की आवश्कता होती है, एक रिंग रोड और बढ़ जाती है, पुराने नगर को बिना छेड़े। रिंग रोड को यदि साइकिल का पहिया माने तो साइकिल की तीलियों की तरह १२ सड़कें केन्द्र से बाहर की ओर निकलती हैं। जहाँ पर भी ये सड़कें रिंग रोड को काटती हैं वहाँ पर हर दिशा में जाने के लिये विधिवत फ्लाईओवर। ये सारी सड़कें १४ लेन की दिखीं, एक दिशा में ७, ४ लेन सीधे जाने वालों के लिये, २ लेन आगे से मुड़ने वालों के लिये और एक लेन साइकिल मार्ग के लिये। सड़कों के किनारे दुकानें और व्यापारिक प्रतिष्ठान, पर दुकानों के बाहर पैदल चलने वालों के लिये २०-३० मीटर चौड़े रास्ते। इसी यातायात व्यवस्था के सामानान्तर भूमिगत मेट्रो की लाइनें भी बिछी हैं। 

यह मेरे लिये बड़े ही आश्चर्य का विषय था क्योंकि पुराने नगरों में इतनी चौड़ी सड़क बना पाना असम्भव है। सारे मकान कहाँ गये, यह प्रश्न स्वाभाविक था। सारे मकान दुकानों के बाद में थे, कॉलोनी रूप में, २४ तल की एक अट्टालिका, १२० मकानों की एक अट्टालिका, बड़ी कॉलोनी में ऐसी २० अट्टालिकायें, २४०० परिवारों या १०००० जनसंख्या की एक कॉलोनी। एक तल का कोई भी मकान चेन्दू और बीजिंग की नगरीय सीमा में नहीं दिखा। स्पष्ट है कि नगरीय संसाधनों और सुविधाओं के लिये स्थान निकालने के लिये भूमि की तीसरी विमा का उपयोग किया गया, बिना किसी को उनके मूल स्थान से विस्थापित किये हुये। कोई भी भूमि का छूटा टुकड़ा नहीं दिखायी पड़ा जहाँ पर पेड़ न लगें हों, जिस पर हरियाली या उद्यान न हों। प्रक्रिया बड़ी सुस्पष्ट है, मेट्रो के स्टेशन के लिये एक कॉलोनी को तोड़ना था, पास में ही एक दूसरी कॉलोनी बनायी गयी, सारे परिवारों को उसमें संस्थापित किया गया और मेट्रो निर्माण का कार्य प्रारम्भ। कोई मुआवजा नहीं, मकान के बदले मकान, मकानों की गुणवत्ता पहले से कहीं अच्छी क्योंकि भ्रष्टाचार के लिये मृत्युदण्ड है वहाँ।

इस परिदृश्य में नये नगरों और बुलेट रेलमार्गो के निर्माण को आपस में जोड़ना आवश्यक हो जाता हो। दिल्ली से चेन्नई के बीच हर ५० किमी पर नये नगरों का निर्माण करने से लगभग ४० नये नगर अस्तित्व में आ जायेंगे। इसी प्रकार पूर्वी और चार महानगरों को जोड़ने के क्रम में ५ और बुलेट रेलमार्ग और १६० नये नगर अस्तित्व में आ जायेंगे। अच्छा हो कि ये नगर अत्यन्त छोटे कस्बों के पास आयें जिससे भूमि आदि के अधिग्रहण में समस्या न हो, यदि हो तो भूमि की तीसरी विमा का उपयोग कर उसे साधा जाये और यथासंभव कृषियोग्य भूमि को बचाया जाये। इससे विकास का भौगोलिक विस्तार भी होगा। नगरों की कल्पना विश्व भर से प्राप्त अनुभवों के आधार पर आधुनिकतम और श्रेष्ठतम हो। ऊँचे भवन, निजी वाहनों के स्थान पर नगरीय सेवाओं का प्रयोग, पेट्रोलियम के स्थान पर सौर ऊर्जा और बिजली का प्रयोग, हरे भरे उद्यान, चौड़ी सड़कें, एक किमी के घेरे में प्राप्त सारी जनसुविधायें। वर्तमान नगरों की समस्याओं से त्रस्त नागरिकों को एक नया स्वप्न देगी यह योजना। आईटी के आने से वैसे ही बहुत सी सेवायें अपनी स्थानबद्धता से मुक्त हो गयी हैं। नये नगरों का निर्माण और उन्हें बुलेट ट्रेन से जोड़ने का उपक्रम भारतीय जनमानस को अपने जीवन को विश्वस्तरीय बनाने का एक अनूठा अवसर देगा।


चीन के जीवन के अन्य पक्ष अगले ब्लॉग में।

2 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (21-08-2016) को "कबूतर-बिल्ली और कश्मीरी पंडित" (चर्चा अंक-2441) पर भी होगी।
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    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. कम समय मे इतनी अधिक सूचनाये एकत्रित करना ही यात्रा की सफलता है।

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