7.2.16

रूपसी

यादों के चित्रकार ने थे, अति मधुर चित्र तेरे खींचे,
तब हो जीवन्त कल्पना ने, ला अद्भुत रंग उसमें सींचे ।
सौन्दर्य-देव ने फिर उसमें, भर दी आकर्षण की फुहार,
मेरे जीवन की स्वप्न-तरी, चल पड़ी सहज तेरे पीछे ।।

तेरे यौवन से हो वाष्पित,
सौन्दर्यामृत का सुखद नीर ।
रस-मेघ रूप में आच्छादित,
मैं सिंचित होने को अधीर ।।

उमड़ रहे रस-मेघों को,
बरसा मन उपवन में समीर ।
चख यौवन मधुरस उत्सुक है,
मधुमय हो जाने को शरीर ।।


18 comments:

  1. सुंदर काव्य रचना ....

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  2. प्रथम पंक्ति को ऐसे सम्पादित करके देखे "यादों के चित्रकार ने,अति मधुर थे तेरे चित्र खींचे,"

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  3. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (08-02-2016) को "आयेंगे ऋतुराज बसंत" (चर्चा अंक-2246) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  4. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, " बेवक़्त अगर जाऊँगा " , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  5. चख यौवन मधुरस उत्सुक है,
    मधुमय हो जाने को शरीर

    बहुत सुंदर।

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  6. सुंदर रचना |श्रृंगार रस|

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  7. बहुत सुन्दर और भावमयी रचना...

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  8. बहुत सुन्दर और भावमयी रचना...

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  9. ऐसा मधुरस मिलता रहे तो कौन नहीं मधुमाय जो जाना चाहेगा ... उत्तम रचना ...

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  10. सुन्दर मधुरम कृति ...

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  11. सुन्दर रचना के लिए साधुवाद!

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  12. अद्भुत रंग ...

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  13. प्रेमपूर्ण कविता।

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  14. भावमयी सुन्दर पंक्तियां .......

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