1.11.15

दावानल सा

कैसे सहज, मधुर हो बोलूँ,
सौम्य आत्म कोई छलता है ।
वाणी से कुछ दूर दृष्टि में,
दावानल सा जलता है ।।

नहीं विवादों में उलझा, बस हाँ की,
छलित वहीं पर, जहाँ नहीं शंका की ।
आज विरोधों से पूरित स्वर, बढ़ता और बदलता है ।
वाणी से कुछ दूर दृष्टि में, दानावल सा जलता है ।। १।।

नहीं कृष्ण हूँ, ना ही कोई शपथ धरी है ,
शस्त्र उठाने की इच्छा फिर हो सकती है ।
प्रत्युत्तर का अंकुर मन में, फलता और मचलता है ।
वाणी से कुछ दूर दृष्टि में, दावानल सा जलता है ।। २।।

रुका हुआ था, स्वयं बनाये अवरोधों से,
नहीं कभी भी क्रोध लुप्त, था हुआ रगों से,
आज धैर्य का सूर्य, हृदय से दूर कहीं पर ढलता है ।
वाणी से कुछ दूर दृष्टि में,दानावल सा जलता है ।। ३।।

नहीं कंठ रुकता, केवल यह कह कर,
अन्तः का आवेश उमड़ता रह कर,
नहीं गूँज यह नयी, हृदय में कोलाहल यह कल का है ।
वाणी से कुछ दूर दृष्टि में,दानावल सा जलता है ।। ४।।

15 comments:

  1. अपने-अपने कुरुक्षेत्र!

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  2. अपने-अपने कुरुक्षेत्र!

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  3. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" मंगलवार 03 नवम्बबर 2015 को लिंक की जाएगी............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!

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  4. बहुत दिन बाद पढ़ पा रही हूँ । बहुत अच्छा ।

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  5. बहुत दिन बाद पढ़ पा रही हूँ । बहुत अच्छा ।

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  7. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, ब्लॉग बुलेटिन: प्रधानमंत्री जी के नाम एक दुखियारी भैंस का खुला ख़त , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  8. सुन्दर रचना ........... मेरे ब्लॉग पर आपके आगमन की प्रतीक्षा |

    http://hindikavitamanch.blogspot.in/

    http://kahaniyadilse.blogspot.in/

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  9. क्यो सर कोई पुरूस्कार आपको भी लौटाना है? दावानल से लेखको का आजकल देश में पारा चढ़ा है। अन्यथा न ले।

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  10. अंतर्द्व्न्द तीव्रता से मुखर हो रहा है ....

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  11. बहुत उम्दा , ये उलझनें सबके हिस्से हैं ।

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  12. प्रत्युत्तर का अंकुर मन में, फलता और मचलता है ।
    वाणी से कुछ दूर दृष्टि में, दावानल सा जलता है ।।
    आपकी कही सब की बीती।

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  13. नहीं कृष्ण हूँ, ना ही कोई शपथ धरी है ,
    शस्त्र उठाने की इच्छा फिर हो सकती है ।
    प्रत्युत्तर का अंकुर मन में, फलता और मचलता है ।
    वाणी से कुछ दूर दृष्टि में, दावानल सा जलता है ।। २।।

    सुंदर पंक्तियां।

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  14. अंतःकरण का सुन्दर गान ..

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