27.12.14

पृथु जीवन के प्रथम वर्ष पर

पृथु, जीवन के प्रथम वर्ष पर,
नहीं समझ में आता, क्या दूँ ?

नहीं रुके, घुटनों के राही,
घर के चारों कोनो में ही,
तुमने ढूँढ़ लिये जग अपने,
जिज्ञासा से पूर्ण हृदय में,
जाने कितनी ऊर्जा संचित,
कैसे रह जाऊँ फिर वंचित,
सुख-वर्षा, मैं भी कुछ पा लूँ,
नहीं समझ में आता, क्या दूँ ?

भोली मुसकी, मधुर, मनोहर,
या चीखों से, या फिर रोकर,
हठ पूरे, फिर माँ गोदी में,
बह स्वप्नों से पूर्ण नदी में,
डरते, हँसते, कभी भूख से,
होंठ दुग्ध पीने वश हिलते,
देख सहजता, हृदय बसा लूँ,
नहीं समझ में आता, क्या दूँ ?

कृत्य तुम्हारे, हर्ष परोसें,
नन्हे, कोमल, मृदुल करों से,
बरसायी कितनी ही खुशियाँ,
चंचलता में डूबी अँखियाँ,
देखूँ, सुख-सागर मिल जाये,
मीठी बोली जिधर बुलाये,
समय-चक्र उस ओर बढ़ा दूँ,
नहीं समझ में आता, क्या दूँ ?

(पृथु के एक वर्ष होने पर लिखी थी, १३ वर्ष बाद आज भी लगता है कि जैसे कल की बात हो)

6 comments:

  1. सार्थक प्रस्तुति।
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (28-12-2014) को *सूरज दादा कहाँ गए तुम* (चर्चा अंक-1841) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. मेरा अभिवादन भी स्वीकार करें ।>> http://zindagikenasheme.blogspot.in/2012/03/floting-wishes.html >> http://zindagikenasheme.blogspot.in/2014/12/aane-wale-tera-swagat.html

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  3. वाह! बहुत सुन्दर लिखा है ...

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  4. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।

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  5. बेहद सुन्दर रचना , मंगलकामनाएं पृथु को !!

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