24.11.10

ट्रेन में क्या कर सकते हैं

कुछ दिन पहले समीरलाल जी का बज़-तश्तरी पर रखा हुआ उड़न-प्रश्न आया था कि 17 घंटे की ट्रेन यात्रा में क्या कर सकते है? प्रश्न तो समय-भावना से प्रेरित था, सोचने बैठा तो उत्तर संभावनाओं से पूरित लगा।

ट्रेन-यात्रा में क्या नहीं कर सकते, प्रश्न यह होना था। सतीश पंचम जी ने ट्रेन की ऊपरी सीट पर बैठे बैठे एक के बाद एक, तीन पोस्टें दाग दी, वह भी बैटरी चुकने से पहले और नेटवर्क से आँख मिचौली करते हुये। वह तो भला हो कि ट्रेन के स्लीपर कोच में मोबाइल चार्जिंग प्वांइट नहीं लगाये गये हैं, नहीं तो जितना वह देख पा रहे थे और जितना समय उनके पास था, उसमें दस पोस्टें तो बड़ी सरलता से दागी जा सकती थीं।

ट्रेन में कुछ कर सकने के लिये क्या चाहिये होता है, ब्लॉगरों के लिये नेटवर्क और चार्जिंग प्वांइट। यदि यह मिले तो शेष आपकी कल्पना शक्ति पर निर्भर करता है। आँख बन्द कीजिये, ट्रेन आपको धीरे धीरे डुलाती है, आपके जीवन के सारे जड़ भावों को तरल करती हुयी, डूब जाईये अपने भावों की तरलतम व सरलतम गहराईयों में और निकाल लाईये एक कालजयी कविता। खिड़की के बाहर खेतों, जंगलों और पहाड़ों को निहारते रहिये, घंटों भर, बदलते प्रकृतिक दृश्य आप के अन्दर के पन्त को बाहर निकाल लायेंगे। सहयात्री के जीवन अनुभव सप्रयास सुनने लगिये, उसमें यदि जीवन का सत्य न भी निकले, एक ब्लॉग पोस्ट तो निकल ही आयेगी।

पंकज, प्रशान्त और अभिषेक जैसे अविवाहितों के लिये कोच के बाहर लगा रिजर्वेशन चार्ट किसी संभावना-पत्रक से कम महत्वपूर्ण नहीं होता है। उनकी आँखें यह मनाती हैं चार्ट से कि उनके आसपास के सहयात्री  रोचक हों, सही उम्र आदि के हों। बहुधा ईश्वर प्रार्थनायें सुन लेता है और यात्रा में "रब ने बना दी जोड़ी" जैसी मानसिक-पेंगे भी बढ़ जाती हैं। दो निकटस्थ युगलों को जानता हूँ जिनके ऊपर उपकार है उन रेल यात्राओं के, जिन्होने उनके प्रेम सम्बन्धों को विवाह तक पहुँचाने में सहायता की। कई बार ऐसी परिस्थितियाँ देखी हैं जहाँ पर बिहारी लाल का "कहत, नटत, रीझत, खिझत, मिलत खिलत, लजियात। भरे भवन में करत हैं नयनन हीं सों बात।" जीवन्त होते देखा है।
 
मेरे कई मित्र हैं जिन्हें ट्रेन में अपने महीनों की नींद पूरी कर लेने की इतनी शीघ्रता रहती है कि सामान में ताला लगाते ही सो जाते हैं, नाश्ते और भोजन के समय ही उठते हैं और खाना खाकर पुनः पसर जाते हैं। पुस्तक पढ़ते, मोबाइल पर बतियाते और गेम खेलते, फिल्में देखते, गाने सुनते, ताश खेलते, अन्ताक्षरी में सुर खंगालते, ऊँघते, खाद्य मुँह में भर जुगाली करते, पूरा का पूरा रुचिकर संसार दिख जाता है ट्रेन में।


हम यह तथ्य भी कैसे भूल सकते हैं कि गाँधीजी ने ट्रेन में घूम घूम कर देश जोड़ दिया।

मैं समय बाँट लेता हूँ, सहयात्री यदि रुचिकर है तो उत्सुकता-रस में डूब जाता हूँ, जब बाहर निकल पाता हूँ अपना लैपटॉप खोल कर बैठ जाता हूँ। पहले प्रशासनिक कार्य व्यवस्थित करता हूँ, कार्यानुसार मोबाइल फोन से मंत्रणा और उसके बाद सारा समय अपनी अपूर्ण कविताओं और पोस्टों को। यदि कोई नया विचार मिलता है तो वह प्रकल्प-सूची में चला जाता है। मेरे ब्लॉग पर आयी कई पोस्टें और कवितायें ऐसी ही उत्पादक ट्रेन यात्राओं के सुमधुर निष्कर्ष रहे हैं। एक बार 28 घंटे की यात्रा ने जीवन के कई छिपे कोमल भावों को उद्घाटित करने में लेखन को उकसाया था।

ऐसा भी नहीं है कि सारी ट्रेन यात्रायें इतनी रोमांचक व उत्पादक हों। पूरी यात्रा में कोई एक छोटी सी घटना और व्यग्रमना सहयात्री आपका सारा आनन्द चौपट कर देने की सामर्थ्य रखते हैं। बगल की सीट में बेसुध पड़े सज्जन यदि रात भर खर्राटे लेते रहें तो आप चाह कर भी उनका कुछ नहीं कर सकते हैं।

पर आप अपनी ट्रेन यात्रा में बहुत कुछ कर सकें, बहुत कुछ पा सकें, समीरलालजी को व आप सबको  अतिशय शुभकामनाओं के साथ......

भारतीय रेल आपकी मंगलमयी यात्रा की हार्दिक कामना करती है।

86 comments:

  1. ट्रेन यात्रा और जीवन यात्रा में बहुत साम्यता है।

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  2. अरे वाह! यह पोस्ट तो अत्यंत उपयोगी है मेरे लिये. मैं 13 घंटे की यात्रा करके अपने गृहनगर वाराणसी 1 दिसम्बर को जा रहा हूँ. समय का सदुपयोग करूँगा.

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  3. ट्रेन में टिकट कटा कर चढते हैं, और ज़िन्दगी में अगर टिकट कटा .... तो ........

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  4. एक पूरी चिट्ठा चर्चा हमने तो हिमगिरी की जम्मू से कोलकाता की यात्रा में रच डाली थी। धन्य हो रेलवालों को जो लैपटॉप चलाने के लिए प्वायन्ट देने लगे हैं।

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  5. मुंबई की लोकल ट्रेनों में महिलाओं को सब्जी काटते- छिलते , स्वेटर बुनते, जन्मदिन मानते देखा जा सकता है ...
    दौड़ती ट्रेन से धीरे -धीरे होती सुबह को देखना बहुत अच्छा लगता है !

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  6. दिल्ली से ग्वालियर तक समता एक्सप्रेस में शुक्रवार को देखते हैं कितना समय मिलता है :) अरे २ बच्चे भी साथ में हैं न !!

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  7. मैंने तो पहले भी लिखा था कि रेलवे का नमक मेरी रग़ों में दौड़ रहा है.. लेकिन जब सुबह नौ बजे पहुँचने वाली ट्रेन लगातार शाम को चार बजे आने लगें तो एक भी पोस्ट लिखना दूभर हो जाता है..ख़ास कर तब जब आपको उस दिन ऑफिस जाना बहुत ज़रूरी हो और रास्ते भर नौ बजे से फोन आने शुरू हो चुके हों कि कहाँ पहुँचे... और आप बाहर झाँककर देखें कि एक कृषि प्रधान देश के किसी खेत में खड़ी है आपकी गाड़ी.. वैसे रेलवे के विषय में ज़्यादा शिकायत नहीं करता, स्वर्गीय पिताश्री के नाराज़ हो जाने का डर है!!

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  8. रेल यात्रा का अवसर कम मिलता है। होता भी है तो वह तीन से पाँच घंटों का होता है। पहला काम तो निद्राकोष का घाटा पूरा करने का होता है। दूसरा काम किसी पुस्तक को पढ़ना होता है। वस्तुतः वकालत के काम से असम्बद्ध पुस्तकें तो ऐसी यात्राओं में ही पढ़ी जा सकती हैं। तीसरा काम होता है सहयात्री रुचिकर मिल गए तो उन से मित्रता करना। मुझे अनेक मित्र केवल रेल यात्रा में ही मिले हैं। और भी कई काम हो सकते हैं। हमारे मित्र शिवराम के एक पुत्र अपनी पत्नी की सहायता से रेल में एक महिला को प्रसव भी करवा चुके हैं।

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  9. हाँ, ट्रेन-यात्रायें खूब की हैं और निर्विघ्न काम भी जब जैसा मन किया ,पढ़ाई -लिखाई ,बुनाई ,तो है ही लोगों के रोचक अनुभव ,मजेदार डायलाग्ज़ सुनना-गुनना ,और लोक-जीवन और प्रकृति का तो कहना ही क्या.ट्रेन के साथ अपनी एक निराली यात्रा भी तो चलती हैं !

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  10. कामना तो करती है. लेकिन गन्दी बहुत रहती है. गन्दे टायलेट्स से मुझे बड़ी खीज होती है. हर ट्रेन में वही आलम. सुनते हैं कि सफाई भी निजी हाथों में दे दी है, लेकिन आलम वही है.
    जिन ट्रेनों में खाना मुफ्त होता है, उनमें अन्त में उगाही के लिये खड़े हो जाते हैं खाना खिलाने वाले.
    कुछ ट्रेनों के डिब्बों के अन्दर पुलिसवाले और कुली पहले ही घुस जाते हैं और पैसे लेकर सवारियों को अन्दर आने देते हैं.
    अपना स्कूटर बुक कराओ तो पहले पचास रुपये दो अन्यथा पता नहीं कितने दिन बाद चढ़ाया जायेगा. चढ़ाये कितने भी दिन बाद, इसकी कोई सीमा नहीं, लेकिन बिना सूचना आने के बाद रेल का मीटर चालू.
    पार्किंग का ठेकेदार किस हिसाब से पैसे लेता है, उसका कोई हिसाब नहीं. और जितने नम्बर अखबार में दिये जाते हैं, विजिलेन्स के, अधिकारियों के, वे उठते नहीं..
    यदि ये दिक्कतें खत्म हो जायें तो रेल यात्रा का आनन्द सौ गुना बढ़ जाये...

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  11. खुद को तलाश सकते हैं कि एक दिन हमारे जीवन कि यात्रा भी किसी मोड़ पर संपन होगी ..ट्रेन कि यात्रा कि तरह ...शुक्रिया

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  12. बढ़िया रोचक लेख ... आगे से कोशिश करेंगे आपकी बातों को ध्यान में रखने के लिए ...
    वैसे आज तक यही होता आया है कि जैसे ही सब सामान वगैरह ठीक थक रख दिए और बैठ गए ... ट्रेन चलना शुरू की, कि इधर हमें वो ज़बरदस्त नींद आ जाती है की पूछिए मत ...

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  13. रेल यात्राओ का रोमांच और द्रुत गति से चलती ट्रेन में कल्पना के घोड़े खुले छोड़ने का सुअवसर तो मिलता ही है . और बहुत सारी संभावनाओं की तरफ आपने इशारा किया है जहा देखने के अपने दिन तो निकल चुके है .३ दिन पहले रेल के एक मुख्य अभियंता साहब जो हमारे चचेरे भाई है इस बारे में मैंने पूछ लिया था की बन्धु अब तो हिंदुस्तान में करोडो मोबईल धारी है इस सत्य को स्वीकार करके रेलवे सेकंड क्लास में चार्जिंग की व्यवस्था क्यू नहीं करती . उनका जवाब था की रेलवे बोर्ड को ये संज्ञान में लेना चाहिए .

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  14. ट्रेन की यात्रा में चार चाँद लग जाते हैं अगर आपका सहयात्री रोचक हो ..या फिर आपके अपने दोस्त ही हों...
    मैं जब शिमला विश्वविद्यालय से इंजीनियरिंग कर रहा था तब वहां से घर तक तक की यात्रा लगभग ३८ घंटों की होती थी जिसमे ३3 घंटे रेलगाड़ी में गुजरते चूंकि पटना तक तो बहुत सारे दोस्त साथ साथ होते थे....तो समय का पता ही नहीं चलता था |
    कई बार तो हम लोगों की संख्या २५-३० होती थी और हमारी सीट भी साथ ही होती थी ..
    अब आप भी अंदाज़ा लगा सकते हैं कि डब्बे के बाकी यात्रियों का क्या हाल होता होगा ...
    . इतने सारे हुडदंगी इंजिनियर्स एक साथ हो तब तो माहौल ही अलग होता है....
    बहुत ही यादगार और रोचक अनुभव हैं रेलयात्रा के...
    समय मिलने पर कभी अपने ब्लॉग पर श्रंखला शुरू करूंगा |

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  15. रेल के कई रोचक अनुभव सबके पास होंगे .. यह चीज़ ही ऐसी है.. भारत की पहचान है रेलवे.. रोचक पोस्ट ..

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  16. बुधवार और इस पोस्ट का इंतज़ार तो उसी दिन से कर रहा था मैं..
    वैसे अब हम रिजर्वेशन चार्ट पर बस एक नज़र फेर लेते हैं..अब वैसी उत्सुकता नहीं रही इन सब बातों में.....पहले कॉलेज के दिनों में तो रिजर्वेशन चार्ट को रट से जाते थे हम :) दो तीन मित्र तो ऐसे हैं जो ये रटते रहते की किस बोगी में कौन है..
    जिस बोगी में पता चले की लड़कियों की संख्या ज्यादा हैं, उसी बोगी में आना जाना लगा रहता था..:)
    (आप तो सहयात्री रोचक हों लिखकर निकल लिए, मैंने अच्छे से बता दिया कमेन्ट के जरिये :) )

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  17. मैं भी जब कभी बंगलौर से भोपाल ट्रेन से जाता हूं तो लगभग 24 घंटे का सफर करना होता है। ऐसे में अगर थ्री टियर या टू टायर एसी का टिकट हो तो समय का उपयोग आसानी से हो जाता है। बशर्ते आपके पास लैपटाप और डाटाकार्ड हो। संयोग से मेरे पास दोनों हैं। हां अब एसी का टिकट मिलना भी जरूरी है।
    बहरहाल मेरे बहनोई रेल्‍वे में इलेक्ट्रिकल इंजीनियर हैं सो उनसे यही बात हो रही थी कि सेंकेड स्‍लीपर में हर विंडो पर मोबाइल चार्जर पाइंट क्‍यों नही दे बना रहे हैं। उनका कहना था कि कूपे की खि‍ड़कियां जो ऊपर तरफ जाती हैं उनकी वजह से कुछ समस्‍या आ रही है। पर जल्‍दी ही यह भी हो जाएगा।

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  18. वैसे ट्रेन में किताबें पढ़ना, कुछ लिखना और खिडकी के बाहर देखते हुए सोच में खो जाना मुझे अच्छा लगता है...
    ट्रेन की चाय से लोगों को शिकायत रहती है, मुझे भी है लेकिन फिर भी जब तक ट्रेन में रहता हूँ चाय नॉन स्टॉप चलती रहती है..

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  19. ट्रेन में बैठकर बाहर के प्राकृतिक नज़ारे निहारने का आनंद है किसी और साधन में नहीं मिल सकता ......वैसे ट्रेन का हर सफ़र कुछ यादें ज़रूर छोड़ जाता है... कभी खट्टी कभी मीठी .... रोचक पोस्ट

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  20. सही बात है मैने भी कल दिल्ली से आते हुये नातिन के स्वेटर की एक बाजू बुनी और एक गज़ल अधी अधूरी लिख डाली।िस से अच्छा समय का स्दुपयोग क्या हो सकता है। उमदा विचार। शुभकामनायें।

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  21. रेल यात्रा के दौरान क्या कर सकते हैं पर रोचक बातें ....मुझे पत्रिकाएं पढ़ना बहुत अच्छा लगता है ...

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  22. बहुत ही रोचक पोस्ट्।

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  23. अरे साहेब ...... कहाँ कहाँ तक पहुंचा दिया रेल में सफर को.......

    आजकी पोस्ट से ये भी पता चला की सफल ब्लोगर को झोलेछाप कम्पुटर की बहुत आवश्यकता है.. साथ ही उसको चलाने की भी.

    बेहतरीन लेख.

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  24. प्रवीण जी... ये प्रश्न या पोस्ट कम, idea ज्यादा था... न जाने कितनी पोस्ट्स लिखी जा सकती थीं इस टोपिक पर... मुझे तो लगता है की "ललित जी" एक प्रतियोगिता आयोजित करा सकते हैं इस पर... और-तो-और आपने कुछ छुपे हुए ideas भी दे दिए हैं, कुछ शैतान दिमागों को... और अविवाहितों को प्रेरणा भी...
    jokes apart... हमेशा की तरह आपकी इस पोस्ट को पढ़कर भी मज़ा आया, कुछ जानने को मिला, कुछ हंसी भी आई...

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  25. हाँ जी एक बात और, मेरी यात्राएं रेल की तो जो होतीं हैं सो हटतीं हैं, रोड की ज्यादा होतीं हैं... कुछ-न-कुछ जरूर लिखूंगी इस पर...

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  26. 18 वर्ष हो गये जी प्रतिदिन 4 घंटे की रेलयात्रा करनी ही पडती है। अब क्या-क्या करता हूँ, कैसे बताऊं।
    लेकिन कभी-कभी यूं लगता है जिन्दगी भी रेल की तरह सीधी दौडी जा रही है। किसी यात्री से मधुर सम्बन्ध हो जाते हैं, तो किसी से मनमुटाव। कोई बीच स्टेशन से चढता है तो कोई रास्ते में छोडकर उतर जाता है।

    प्रणाम

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  27. ट्रेन की उत्पादकता पर रोचक जानकारी |

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  28. रोचक लेखन.. ट्रेन में एक और बात बहुत अच्छी होती है, वह आप भूल गए :) "कुल्लड की चाय".
    वैसे भारतीय ट्रेन में सफर किये अरसा हो गया हो सकता है कुल्लड का चलन खत्म हो गया हो ऐसी स्थिति में मैं अपना कुल्लड वापस लेती हूँ :)

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  29. ... shaandaar post ... rochak yaatraayen rahtee hain !!!

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  30. समीर जी के लिए क्या मुश्किल है एक पोस्ट दाग़ दें और टिप्पणी गिनते रहें १७ गनते आराम से पार हो जाएंगे.
    भाई अपना तो एक ही काम है ट्रेन मैं:

    आराम बड़ी चीज़ है मुह ढक के सोइए
    किस किस को देखिये अजी किस किस को रोइए

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  31. अब तो वो वाले १७ घंटे बीत चुके, जल्दी बताते हैं कि क्या किया मगर इतना तो हो ही गया कि आपसे एक बेहतरीन पोस्ट निकलवा ली. :)

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  32. ट्रेन में लंबे सफ़र का अवसर आजकल मिलता ही नहीं।
    प्लेन से सफ़र करते हैं क्योंकि आजकल किराए में फ़र्क उतना ज्यादा नहीं है।
    दो चार घंटे का सफ़र तो हम अपनी कार में ही या बस में कर लेते हैं।

    बेंगळूरु तो दक्षिण भारत में ऐसी जगह स्थित है जहाँ से केरळ, आन्ध्र प्रदेश, तमिल नाडु के प्राय सभी जगह रातों रात पहुंच सकते हैं। हमारा चक्कर तो बस इन्ही प्रान्तों तक सीमित है। हम हमेंशा रात की गाडी में ही सफ़र करने की कोशिश करते हैं। सोते सोते समय कट जाता है। बाकी का समय, सहयात्रियों से बात करने की कोशिश करते है या कोई पत्रिका पढने में व्यस्त हो जाते हैं।

    ट्रेन में लैपटॉप का प्रयोग अब तक किया नहीं। सोच रहा हूँ जब I pad जैसे उपकरण आम हो जाएंगे उसके सहारे समय काट लेंगे। मोबाइल फ़ोन चार्जर की अब तक हमें आवश्यकता महसूस नहीं हुई। रवाना होने से पहले पूरा चार्ज कर लेते हैं. फ़िर, दो तीन दिन तक चार्ज करने की कोई जरूरत नहीं होती।

    शुभकामनाएं
    जी विश्वनाथ

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  33. उत्तम विचार पाया वर्मा साहब अपने, मगर यह देख लीजिएगा कि आखें मजबूत हों , क्योंकि अगर आंखे कमजोर है तो बढ़बड़ाकर दौडती ट्रेन में लेप टॉप के की बोर्ड पर उंगलिया चलाना भी एक टेडी खीर है !

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  34. बढ़िया रेलयात्रा करवाने के लिए धन्यवाद ! :

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  35. सही कहा आपने, रेलगाड़ी में क्या नहीं किया जा सकता ?...रोचक आलेख।

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  36. हम तो दिल में कैद कर लेते हैं, कुछ कहानियों को और फिर घर आकर लिखते हैं।

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  37. .

    ये लेख पढ़कर ऐसा लगा मनो रेल-यात्रा कर रहे हों। सच में सुखद और मंगलमय रही यह यात्रा।

    .

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  38. पिछले तीस सालों में ट्रेन में सौ बार से भी ज्यादा यात्रा करने के बाद भी खिड़की वाली सीट ही लपकने का मन करता है. लेकिन अब वैसा मजा कहाँ जब जनरल के डिब्बे में छकर-पकर करते हुए धुंआ उगलते भाप वाले इंजन के पीछे लगे डिब्बे में बैठने में आता था. घूमती हुई गाड़ी को देखते थे तो आँख में कोयले की किरमिच चली जाती थी. मिट्टी की सुराही लेकर चलते और छोटे स्टेशनों पर उसे भरने की होड़ मचती. ट्रेन के सूरदास भिखारी, चनेवाले, खिलौने बेचनेवाले, सब आँखों के सामने जीवंत हो उठते हैं.
    अभी भी मन करता है कभी छकड़ा पैसेंजर में यात्रा करके देखें पर हिम्मत नहीं होती.
    एक काम जो सफ़र में अक्सर करता हूँ वह यह है कि स्याह रात में खिड़की से तारे देखता हूँ. शहर में उतना खुला काला आकाश नहीं दीखता. वादियों से गुज़रती ट्रेन से सूर्योदय का देखना दिव्य अनुभव लगता है मुझे.
    अब स्नौबरी इतनी फैलती जा रही है कि सहज संवाद स्थापित नहीं हो पाता. ज्यादा खुलता हूँ तो श्रीमतीजी चौकन्ना कर देतीं हैं, कहीं जहरीले बिस्कुट न खिला दे.

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  39. एक बात मुझे और याद आती है, रूस में मॉस्को से ब्लौदीवोस्तोक की यात्रा दस दिन में होती है और गाड़ी अनेक टाइम ज़ोन से गुज़रती है. दस दिनों की यात्रा में बीस अखबार पढने को मिलते हैं. ऐसी यात्रा का भी अपना मज़ा (या संत्रास) होता होगा.

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  40. वाकई प्रेरणादायक पोस्ट है, पोस्ट लिखने के लिये क्योंकि हम सभी ट्रेन की यात्राएँ करते ही रहते हैं, ट्रेन की यात्रा के दौरान अगर अकेले हैं तो समय किताब पढ़ते हुए या गप्पे मारते हुए या फ़िर गाने सुनते हुए बहुत अच्छॆ से कटता है और अगर परिवार के साथ हैं तो पारिवारिक हो जाते हैं।

    वैसे ये सही बात है कि पता नहीं कितनी पोस्ट ठेलायमान की जा सकती हैं सफ़र के दौरान।


    हमने तो चैन्नई से मुंबई की छोटी सी हवाईयात्रा के दौरान एक पोस्ट लिख डाली थी,
    पास वाले सहयात्री हमारी और टुकुर टुकुर देख रहे थे कि हिन्दी में कितनी तेजी से टाईप करते हैं।

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  41. ट्रेन यात्रा की बड़ी अच्छी यादें है. पुणे पटना में २४ घंटे से ज्यादा की यात्रा हो जाती थी. और अक्सर घर जाना तभी होता था जब कॉलेज में भी छुट्टियां होती थी. भीड़ भाड़ भी खूब होती. आपको पता ही होगा पटना जाने वाली ट्रेन की हालात और वो भी जब पुणे में सैकड़ों कॉलेज हैं.
    किताबें पढना और सोना दो प्राथमिकता होती है... जो पुणे पटना में कभी न हो पाता था. लोग उठा देते थे बात करने के लिए और २४ घंटे भी बोर नहीं लगते थे. अमेरिका में २ घंटे की ट्रेन यात्रा में भी किताब के कई पन्ने ख़तम हो जाते हैं. कभी कोई किसी से बात ही नहीं करता !
    बाकी अपने भारतीय रेल में चलने वाले लोगों के पास आईडिया बहुत होते हैं. दिल्ली कानपूर बनारस लाइन में खासकर :) एक पोस्ट तो मैं भी लिखने की सोच रहा हूँ इस पर.

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  42. @ मो सम कौन ?
    ट्रेन और जीवन में उपस्थित समानता ही प्रेरित करती है ट्रेन यात्रा को आनन्दपूर्वक व्यतीत करने के लिये। धीरे धीरे यही विचारधारा जीवन को लाभान्वित करेगी।

    @ M VERMA
    आपको शुभकामनायें, आपके अनुभव ब्लॉग पर भी आयें तो हम भी लाभान्वित होंगे।

    @ मनोज कुमार
    जीवन में पहले से ही ईश्वर को पुराने जन्मों के अच्छे कर्मों का टिकट देकर मानव जीवन में आये हैं, अब तो यात्रा करनी है।
    यह तो मानना पड़ेगा कि ट्रेन में बहुत कुछ किया जा सकता है। लगता है कि अब स्लीपर में चार्जिंग प्वाइंट लगाने पड़ेंगे।

    @ वाणी गीत
    ट्रेनों में और प्लेटफार्मों में एक पूरा का पूरा जीवन तन्त्र चल रहा है, कई बार ध्यान से देखा है और अनुभव किया है।

    @ राम त्यागी
    मथुरा में कान्हा को नमन, आगरा का पेठा और ताज और चम्बल की घाटी। लीजिये, आ गया ग्वालियर।

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  43. ‘ 17 घंटे की ट्रेन यात्रा में क्या कर सकते है?’
    इस मासूम से प्रश्न का उत्तर इस पर निर्भर करेगा कि यह प्रश्न कौन कर रहा है.... बच्चा, जवान या बूढा:)

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  44. @ चला बिहारी ब्लॉगर बनने
    आप को रेलवे का अनुभव है और बिहार का भी। दानापुर में परिचालन का कार्य देख लेने के बाद बस इतना ही कह सकता हूँ कि यदि जनता ट्रेन को अपने घर के सामने रोकने का बालहठ छोड़ दे तो ट्रेनों का परिचालन बहुत कुछ सुधर जायेगा।
    दक्षिण में परिचालन बहुत सुगढ़ है, कारण संभवतः यही है।

    @ दिनेशराय द्विवेदी Dineshrai Dwivedi
    यही तीनों कार्य बहुतों को सुहाते हैं। प्रसव कराना तो सच में एक साहसिक कार्य है।

    @ प्रतिभा सक्सेना
    ट्रेन यात्रा के साथ, कई और यात्रायें चलती हैं। सब की सब निराली।

    @ भारतीय नागरिक - Indian Citizen
    इन सारी समस्याओं को निदान करने का भरसक प्रयत्न कर रही है भारतीय रेलवे। हम लगे हैं स्थितियाँ सुधारने में क्योंकि हम भी उसी समाज के अंग हैं जिसकी सेवा कर रहे हैं।
    आप फिर भी सप्रयत्न यात्रा करें और उसका सदुपयोग करें।

    @ केवल राम
    ट्रेन यात्राओं में कितना कुछ जानने को मिल जाता है। पर ट्रेन यात्राओं में गंतव्य निर्धारित होता है।

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  45. ट्रेन में क्‍या कर सकते हैं यह सवाल उच्‍चतर दरजे के डिब्‍बों के लिए अधिक होता है, वरना खिड़कियों का खुला शीशा, बैठे और आते-जाते सहयात्री, अगल-बगल की बौद्धिेक चर्चाएं, जिनमें आप शामिल भी हो स‍कते हैं. लेन-देन का सतत व्‍यापार, क्‍या नहीं चलता होता. आप चाहें तो दर्शक बने, चाहें तो भोक्‍ता और चाहें तो उपभोक्‍ता, आपकी मरजी.

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  46. @ Indranil Bhattacharjee ........."सैल"
    ट्रेन की हौले हौले हिलाती यात्रायें नींद के लिये सबसे उपयुक्त होती हैं और नींद भी बहुत गहरी आती है।

    @ ashish
    कल्पनाओं के घोड़े दौड़ने लगते हैं। निश्चय ही पूरी ट्रेन में मोबाइल और लैपटॉप चार्ज करने की सुविधा बहुत ही प्रशंसनीय कार्य होगा।

    @ Shekhar Suman
    अपने सहयात्रियों पर कई कवितायें लिख चुका हूँ, समय आने पर लिखूँगा। यदि मित्र साथ में हो तो रात भर नींद नहीं आती है कभी कभी और पूरी यात्रा पता ही नहीं लगती है। आपके अनुभवों की प्रतीक्षा रहेगा।

    @ अरुण चन्द्र रॉय
    रेलवे एक राष्ट्रीय पहचान है। अभी भी यह सशक्त माध्यम है यातायात के लिये।

    @ abhi
    पहली सफाई आ गयी। हम भी विवाह के बाद ही सुधरे हैं, नहीं तो हम भी ऐसे ही थे। हौसला मत खोईये, हो सकता है भगवान ने आप के लिये ट्रेन में ही कोई डऊड़ रखी हो। उत्सुकता कम न होने दें वत्स।

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  47. @ राजेश उत्‍साही
    निश्चय ही यह सुविधा आनी प्रारम्भ हो ही जायेगी, तब देखियेगा कि कितना साहित्य-सृजन हो जायेगा ट्रेन में। हो सकता है तब ट्रेन साहित्यिक राजधानी हो जाये देश की।

    @ डॉ॰ मोनिका शर्मा
    प्रकृति का विहंगम नृत्य देखना हो तो एक बार कोकण रेलवे की यात्रा अवश्य कर लें।

    @ निर्मला कपिला
    सच में, बड़ी उत्पादक हैं ट्रेन यात्रायें।

    @ रश्मि प्रभा...
    बहुत धन्यवाद आपका।

    @ संगीता स्वरुप ( गीत )
    पत्रिकायें बहुत अधिक मात्रा में पढ़ी जाती हैं ट्रेनों में।

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  48. @ वन्दना
    बहुत धन्यवाद आपका।

    @ दीपक डुडेजा DEEPAK DUDEJA
    संभवतः बिना लैपटॉप के ट्रेनों में साहित्यिक क्रान्ति असंभव सी लगती है।

    @ POOJA...
    रेल यात्राओं के समय हुये कई अनुभवों को इस लेख के माध्यम से बाटने का प्रयास किया है। सड़क यात्रायें भी बड़ी रोचक होती हैं। ढाबे में खाना और उतर कर कोई मन्दिर या रमणीक स्थान देख लेना। आपकी पोस्ट की प्रतीक्षा रहेगी।

    @ अन्तर सोहिल
    आप अपने अनुभव का भण्डार हम सबसे भी बाटिये।

    @ नरेश सिह राठौड़
    सच में बड़ी उत्पादक रहती हैं ये ट्रेन यात्रायें।

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  49. @ shikha varshney
    कुल्हड़ की चाय बीच में प्रारम्भ हुयी थी, अब चलन कम हो गया है।

    @ 'उदय'
    बहुत धन्यवाद आपका।

    @ एस.एम.मासूम
    सच कह रहे हैं, आराम कर लेना चाहिये।

    @ Udan Tashtari
    बहुत धन्यवाद आपका, आपके माध्यम से ही इस विषय पर विचार घनीभूत हो पाये।

    @ G Vishwanath
    रात भर की यात्राओं में वह आनन्द नहीं आता है जो दिन वाली यात्राओं में आता है। अब आप जैसा मोबाईल लेना ही पड़ेगा।

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  50. @ पी.सी.गोदियाल
    प्रयोग कर के देख चुके हैं, लैपटॉप पर टाइप करना किसी पुस्तक पढ़ने से अधिक सुविधाजनक है। ट्रेन यात्राओं में अब तो लेखन अधिक होता है, पाठन कम।

    @ सतीश सक्सेना
    बहुत धन्यवाद आपका।

    @ mahendra verma
    अब चिन्तन इस बात पर चल रहा है कि ट्रेन में क्या नहीं किया जा सकता है।

    @ ajit gupta
    पर सच में आपको कितना याद रह पाता होगा पूरे चिन्तन में। हमें तो याद ही नहीं रहता है अतः उसी समय लिखते जाते हैं हम।

    @ ZEAL
    बहुत अच्छा लगा सुनकर कि आपकी यात्रा अच्छी रही।

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  51. @ hindizen.com
    सच कह रहे हैं, इतने अनुभव होते हैं मानव संवेदनाओं के। दस दिन की यात्रा तो सच में बहुत ही अधिक लम्बी है।

    @ Vivek Rastogi
    पर एक बात निश्चित ही रही है अब तक कि कोई दो यात्रायें एक जैसी नहीं रही हैं अब तक।

    @ अभिषेक ओझा
    यह भी यात्राओं का एक सच है कि 24 घंटे की यात्रा झट से निकल जाती है और दो घंटे की यात्रायें उबाऊ हो जाती हैं।

    @ cmpershad
    बच्चों के लिये तो एक पूरा विश्व खुल जाता है ट्रेनों में, आनन्द भी पूरा आता है।

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  52. रोचक पोस्ट...लेकिन ये तब संभव है जब एकांत हो...और स्त्रियों पर ऐसी वक्त की मेहरबानी कम ही होती है. :)

    हाँ लेकिन खिडकी के बाहर का नज़ारा देख और ट्रेन के झूले खाते खाते जिंदगी भी अपने सफर पर बरबस ही दौडती चली जाती हैं यादो की पटरियों पर.

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  53. रोचक पोस्ट प्रवीन जी ... बहुत रेल यात्राएं कर चुकी हूँ ... और सब के साथ अच्छे अनुभव ही जुड़े है ... भगवान् की दया से कोई बुरा अनुभव नहीं रहा ... पहले तो सो जाया करती थी ... पर अब बेटा हर बर्थ पर जा जा कर यात्रियों से दोस्ती करने में लगा रहता है .. तो उसके पीछे भागते रहते हैं .... :)

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  54. रेल यात्रा का विवरण पढ़ कर अच्छा लगा .

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  55. मुझे अलग अलग स्टेशनों से खाना खाना बहुत अच्छा लगता है और सुंदर सुंदर वादियाँ, खेत, पहाड़ देखने में भी बहुत मज़ा आता है... पेट भरा हो तो प्राकृतिक सुन्दरता और भी प्रेरणादायक होती है :-)

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  56. यात्रा का अपना रोमांच होता है.यह मज़ा तब दोगुना हो जाता है अगर 'ढंग'का सहयात्री भी मिल जाए !हमने भी कई बार बस व रेलयात्रा में अपनी डायरी ख़राब की है.कई बार तो हम यूं ही दूसरों की निगाह में पढ़े-लिखे होने का 'नाटक-सा' करते हैं तो कई बार सच्ची-मुच्ची में कुछ नया पा लेते हैं.कई बार बड़ी-बड़ी राजनैतिक बहसें भी जन्म लेती हैं.
    असली भारत को देखना हो तो 'खिड़की' की बर्थ बुक करवा के देख लो,जीवन का वास्तविक आनंद भी आयेगा !

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  57. @ Rahul Singh
    जहाँ पर अधिक एकान्त रहता है, वहाँ पर ही सोचा जा सकता है कि क्या करना है। जहाँ पर प्रवाह पहले से ही उपस्थित है, वहाँ तो बैठकर प्रक्रिया का आनन्द लेना है।

    @ अनामिका की सदायें ......
    एकान्त आपको यह सोचने का समय देता है कि क्या करना है। खिड़की के बाहर निहारते रहिये और देखते रहिये देश की प्राकृतिक सम्पदा को।

    @ क्षितिजा ....
    छोटे बच्चों के साथ ट्रेन भर में भागना पड़ता है पर बच्चों को तो यही अच्छा लगता है।

    @ अशोक बजाज
    बहुत धन्यवाद आपका।

    @ Anjana (Gudia)
    कई स्टेशन अपने विशेष खाद्यों के लिये बड़े प्रसिद्ध हैं। झाँसी से कानपुर जाते समय कभी भी उरई में रसगुल्ला नहीं छोड़ा है।

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  58. @ संतोष त्रिवेदी ♣ SANTOSH TRIVEDI
    असली आनन्द चुपचाप बैठकर प्रवाह का रस लेने में है। कभी कभी हाँकने के चक्कर में आनन्द चला जाता है, केवल बहस ही रह जाती है।

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  59. सुंदर पोस्ट. अप्रतिम रचना.
    अप्रतिम रचना.
    बहुत ही खुबसूरत.
    कुछ रचनाये ऐसी होती हैं, जिनकी तारीफ में कहे गए शब्द कम पड़ जाते हैं.

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  60. @ विनोद शुक्ल-अनामिका प्रकाशन
    बहुत बहुत धन्यवाद उत्साहवर्धन का।

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  61. मैं तो झन्खता हूँ लम्बी ट्रेन यात्राओं के लिए -मेरे कई आलेख पूरे हो जाते हैं ...

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  62. @ Arvind Mishra
    मैं भी अपने लेखों को और कविताओं को पूरा कर लेता हूँ।

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  63. a very nice post. enjoyed reading

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  64. रोचक
    और
    पठनीय
    विवरण ...

    शुभकामनाओं के लिए शुक्रिया .

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  65. @ SEPO
    बहुत बहुत धन्यवाद।

    @ daanish
    बहुत बहुत धन्यवाद।

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  66. बहुत कुछ रचनात्मक कर सकते है ट्रेन में जो अपने बहुत ही सुगढ़ता से पेश कर दिए |अगर बेचलर्स को अपने साथी नहीं मिलते तो बेचारो को हम जैसे अंकल आंटी के साथ ही मनोरंजन करके गुजारा करना पड़ता है |बेंगलोर से जयपुर वाली ट्रेन में अधिकतर साफ्टवेअर इंजिनियर ही होते है |और तब हमारे साहब भी अपना लेपटोप खोलकर अपना ज्योतिषी ज्ञान भरपूर बांटते है और हमारी तो नज़र हमेशा कोई मारवाड़ी परिवार अगर साथ है तो उसके खुशबूदार टिफिन पर ही लगी रहती है |

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  67. ट्रेन यात्रा वाकई जीवन को बहुत से संस्मरण दे जाता है.... बहुत ही बढ़िया आलेख.

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  68. अच्छा लगा आपको पढ़ना, कई दिन बाद.
    अच्छी लगी आपकी यात्रा भी... मेरी यात्राओं में sketches है..अधूरे..आधे..

    पर बहुत पसंद है मुझे रेल यात्राएँ..खासकर झारखण्ड के जंगलों की.

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  69. praveen ji

    20 saal se train me ghoom raha hoon apne marketing job ki khaatir .

    aur hamesha hi train ka safar mujhe kuch naya sikha jaata hai ...

    aapki is post ne meri bahut si yaade taaza kar di hai

    aapko dil se badhayi

    vijay
    kavitao ke man se ...
    pls visit my blog - poemsofvijay.blogspot.com

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  70. यदि सेकेण्ड एसी का टिकट कन्फर्म हो,आस पास कूड़ा कचड़ा फैलाने वाले सहयात्री न हों और खूब लम्बी यात्रा हो,तो इससे सुखद मुझे और कुछ लगता ही नहीं...

    संयोग वस् मुझे लम्बी यात्राओं के खूब अवसर मिलते हैं या यह भी कह सकते हैं कि मैं सायास यह निकाल लेती हूँ. यही वे अवसर होते हैं जब मैं निश्चिन्त होकर किताबें पढ़ पाती हूँ,जी भरकर सो पाती हूँ और मन भर कल्पनालोक में विचरण कर पाती हूँ...लेकिन हाँ,एक इच्छा होती है कि यदि इस सफ़र में अबाधित नेट की भी सुविधा मिल जाती तो सोने पर सुहागा हो जाता..

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  71. आपकी पोस्ट से लग रहा है बहुत कुछ किया जा सकता है ... बहुत सी बातें तो आपने बता ही दी हैं ... रही सही टिप्पणियों ने .... बहुत बहुत शुभकामनाएं .....

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  72. ‘रेल-यात्रा’ बहुत रोमांचक होती है...बहुत कुछ किया जा सकता है यात्राओं के दौरान....मेरी तमाम ग़ज़लो-कविताओं ने ट्रेन में ही जन्म लिया और देश की तमाम पत्रिकाओं में पाठकों का प्यार-दुलार पाया!

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  73. praveen ji
    aapne to sir sameer ji ke prashn ka uttar yun chutkiyo me itne vistrit dhang se de diya ki hame to lalaga ki ham waqai me rail -yattra karrahe hai aur yattra ke saare njaare jo aapne axhrshah saty likhe hain vo najroon ke samne parilaxhit ho rahe hain.
    bahut hi be hatreen dhang se prastut karne ke liye bahut bahut badhi swkaren
    dhanyvaad
    poonam

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  74. bahoot hi rochak aur behatareen post...... rail yatra secundrabad exp dwara varanasi se hyderabad poore 21 hrs late pahoochana bahoot hi majedar anubhav raha hai abtak.

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  75. अविवाहितों वाला प्रसंग मजेदार लगा. कभी आप भी अविवाहित रहे होंगे... :P
    ऐसे विचार मन में आना इसकी पुष्टि करता है. :)

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  76. प्रवीण बाबू ये दोहा घनानंद का है.

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  77. दोहे से सम्बंधित टिप्पणी छापने की आवश्यकता नहीं है सिर्फ दुरस्त कर लें. इतने विद्वान ब्लोगर टिप्पणी देकर गए और दोहा पढ़ा ही नहीं किसी ने ?

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  78. @ शोभना चौरे
    हर रोचक वस्तु क्रियाशील हो जाती है ट्रेन में। अभी आते समय दो प्यारे बच्चे मिले ट्रेन में, उनसे बतियाते आये, बदले में तीन कार्टून फिल्में दिखानी पड़ी अपने लैपटॉप पर।

    @ विनोद कुमार पांडेय
    हर ट्रेन यात्रा संस्मरणों से भरी होती है और रोचक भी।

    @ Avinash Chandra
    अपनी यात्राओं को लेखनी के माध्यम से उतार दीजिये अपनी पोस्टों पर।

    @ Vijay Kumar Sappatti
    इतनी ट्रेन यात्रायें कर लेने के बाद तो आपके पास यादों का अथाह भण्डार होगा। उड़ेलें हम अल्पज्ञों पर भी।

    @ रंजना
    आसपास के सहयात्रियों पर निर्भर करता है कि आपकी यात्रा कैसी बीतने वाली है? भगवान की कृपा है कि बहुधा रोचक ही यात्री मिलते आये हैं।

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  79. @ दिगम्बर नासवा
    टिप्पणियों से तो हमारा भी ज्ञान संवर्धन हो गया है।

    @ जितेन्द्र ‘जौहर’ Jitendra Jauhar
    कहीं ट्रेनें शीघ्र ही देश की साहित्यिक राजधानी न बन जायें।

    @ JHAROKHA
    पर अभी तक समीरलाल जी ने खुलासा नहीं किया है कि उन्होने इस समय का उपयोग कैसे किया?

    @ उपेन्द्र
    इन 21 घंटों की रोचकता पोस्ट के माध्यम से भी व्यक्त हो।

    @ Manish
    हम भी अविवाहित रहे हैं और उस समय हम में अविवाहितों के सारे गुण भी रहे हैं। कभी उस पर भी लिखा जायेगा पर पढ़ने की शर्त यह है कि आप शर्मायेंगे नहीं।

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  80. @ Kishore Choudhary
    संभवतः बिहारीलाल जी का ही है, फिर भी मैं पुनः निश्चित कर लेता हूँ।

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  81. aapke lekh hamesha hi padhne ke uprant man ko khush kar dete hain.aap aur gyandutt pandey ji hindi blogging ke do alag alag tarah ke shayad sabse achche bloger hain.
    dhanyawaad.

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  82. बह्त कुछ सीखने को मिल गया ।
    एक और फायदा है , ट्रेन में कई बार लिखने के लिये बहुत रोचक सामग्री भी मिल जाती है

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  83. @ rakesh ravi
    इतनी प्रशंसा के योग्य नहीं हूँ मैं, लेखन के मार्ग में बढ़ रहा हूँ, जहाँ से मिल सकता है, वह सीख कर।

    @ अपर्णा "पलाश"
    बहुत कुछ दिख जाता है, बहुत कुछ लिख जाता है ट्रेन यात्रा में।

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  84. "खिड़की के बाहर खेतों, जंगलों और पहाड़ों को निहारते रहिये, घंटों भर, बदलते प्रकृतिक दृश्य आप के अन्दर के पन्त को बाहर निकाल लायेंगे।" Praveen ji, yadi train yatra subah ki hai, wo bhi uttar bharat ke kisi bhi shahar se, to sambhavatah prakratik drashyon main, rail-line ke kinare nitya kriya karne walo ki prakritik kriya ki hi bharmar rehti hai, ya fir kisi railway se sate huye gharon ki deewaron par hakeem hashmi ke un-chahe vigyapano ki. Chah kar bhi Pant ki Chidiya Kartee Tee Whee Tut Tut nahin sunayee deti.

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  85. @ Shailendra
    आप सच कह रहे हैं, नगरीय क्षेत्र में रेल लाइन के दोनों ओर इतना अधिक अतिक्रमण हुआ है कि स्थितियाँ व्यक्त करने योग्य रही ही नहीं हैं। यह अनचाहा है, ट्रेन यात्रा में।

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