27.7.21

पिता दीन्ह मोहि कानन राजू


माँ कौशल्या का उत्साह अपरिमित है, आज उनके राम का राज्याभिषेक होगा। वैसे तो माँ के हृदय में पुत्र सदा ही राजा ही रहता है पर जन मन के अभिराम, सबके प्यारे राम, उनके लाल राम आज अयोध्या का सिंहासन सुशोभित करेंगे। प्रातः उठने के बाद से ही व्यस्तता बनी हुयी है, फिर भी न जाने कितने कार्य शेष हैं। कौन से वस्त्र पहनेंगी राजमाता, कौन से आभूषण धारण करेंगी, कौन परिचारिकायें साथ चलेंगीं, सब कुछ महत्वपूर्ण है, आज का दिन महत्वपूर्ण है।


राम के विवाह में भी समय नहीं मिला था। महाराज दशरथ ने सबको बुला भेजा जहाँ मिथिला के कुलगुरु संदेश लेकर आये थे कि उनके पुत्र राम का विवाह जनककुमारी सीता से होना है। मन में न जाने कितने सुख के भँवर उठ रहे थे और माँ कौशल्या उनमें बार बार डूबी जा रही थी। मेरे राम का विवाह, पुत्रवधू कैसी होगी, सुकुमार ने शिव धनुष कैसे तोड़ा होगा और न जाने कितने विचारों की सतत श्रृंखलायें। अगले दिन महाराज दशरथ का मिथिला के लिये प्रस्थान और विवाहोपरान्त राम का सीता के साथ आगमन। न अपने लिये अधिक कुछ कर पायी, न सुकुमारी सीता के लिये। माँ की अभिलाषायें अतृप्त ही रह गयीं, तब समय ही नहीं मिला।


राम के विवाह में परिस्थितियाँ वश में नहीं थी, विवाह का निर्णय महर्षि विश्वामित्र ने लिया था, पर कल महाराज को न जाने क्या हो गया, न कोई पूर्व सूचना, न कोई मन्त्रणा, न कोई संकेत। सायं परिचारिकायें सूचना लाती हैं कि कल रामजी का राज्याभिषेक होगा। हे ईश्वर, मेरे राम के निर्णयों में इतनी शीघ्रता क्यों? अब पुनः मुझे सारी तैयारियाँ करनी हैं, एक दिन से भी कम का समय। अर्धरात्रि की नींद त्यागने के बाद भी सब अस्त व्यस्त पड़ा हुआ है। स्वयं ही अह्लादित और विह्वल हुयी माँ स्वयं से बातें किये जा रही है।


सूचना मिलती है कि राम महल में आ रहे हैं और अकेले आ रहे हैं। आश्चर्य हुआ कि इतने प्रातः और वह भी बिना सीता के। राज्यभिषेक में निकलने के पहले सपत्नीक आकर माँ का आशीर्वाद लेने की ही तो परम्परा है, इस कुल में। पता नहीं, कहीं माँ को कोई विशेष सलाह देने या मन्त्रणा करने तो नहीं आ रहा है पुत्र? परिचारिकायें शीघ्रता से कक्ष में आती हैं और कक्ष को यथासंभव व्यवस्थित कर देती हैं।


राम माँ को प्रणाम करते हैं, आशीर्वाद लेते हैं और सामने खड़े हो जाते हैं। एक क्षण माँ पुत्र को निहारती है, सदा की भाँति मुख पर प्रशान्तमना भाव। कभी कभी तनिक क्रोध भी आता है राम पर, गम्भीर होने की भी यह कोई वय है? इस समय तो मन उल्लसित रहे, मुखमंडल खिला रहे, शरीर के अंगों से ऊर्जा प्रस्फुटित हो। कहीं राम ने राज्य के आगामी कार्यभार को अधिक गम्भीरता से तो नहीं ले लिया?


सहसा कौशल्या को लगा कि संभवतः वस्त्राभूषण आदि पर या राज्याभिषेक की तैयारियों पर कोई प्रश्न रह गया हो मन में? सदा से संकोची रहे राम कह न पा रहे हों। या संभवतः सीता के बारे में प्रश्न हो, पर उसके लिये राम को आने की क्या आवश्यकता? सहसा सब भूलकर माँ अपनी तैयारियों में लग जाती है और उसी उत्साह में राम से आभूषणों के बारे में पूछने लगती हैं। कोई स्पष्ट उत्तर न पाकर उराव में अपने आप ही उत्तर भी दिये जा रही है माँ। महाराज दशरथ ने यह तो किया होगा, व्यवस्थायें कैसी की होंगी सुमन्त्र ने? अपने आप में बतियाते हुये और राम के उत्तर की प्रतीक्षा न करते हुये वात्सल्यपूरित स्नेहिल शब्द अपने लाल पर बरसाती हुयी माँ सुखनिमग्न थी।


राम सदा ही मितभाषी और स्पष्टवादी रहे हैं, कभी वार्तालाप करने में इतना समय उन्हें नहीं लगा था। आज सब भिन्न था। प्रातः जब सुमन्त्र सहसा बुलाने के लिये रथ लाये और माँ कैकेयी के यहाँ ले गये तो उन्हें यह भान नहीं था कि काल किस करवट पलटेगा। पिता का शोकनिमग्न मुख देखकर अनर्थ का संशय हुआ था पर इतने प्रतापी राजा को किस बात का शोक और वह भी अपने पुत्र राम के रहते। माँ कैकेयी ने मौन तोड़ा और सारा वृत्तान्त राम से कह दिया। राजा दशरथ के शोक का कारण उनका राम के प्रति अथाह प्रेम ही बता कर अपना पल्ला भी झाड़ लिया।


पिता के वचनों के हित निर्णय ले चुके राम माँ कौशल्या को सूचित करने और उनसे आज्ञा लेने यहाँ पर आकर खड़े हैं। माँ की प्रसन्नता देखकर कुछ भी बताने का साहस नहीं हो पा रहा है राम को। माँ के शोकनिमग्न मुख की कल्पना भर करके राम रुक गये। कुछ कह नहीं पा रहे हैं राम। उस पर से माँ लगातार ही बोलती जा रही है, कुछ कहने का समय ही नहीं दे रही है। उपयुक्त समय न जाने कब आयेगा?


सहसा श्वास शरीर में भरती है, समय स्तब्ध सा ठिठक जाता है। एक क्षण के लिये कौशल्या की दृष्टि राम पर पड़ती है, अपने प्रश्नों के उत्तर के लिये, पर राम तो माँ को स्नेह से निहारे ही जा रहे हैं। नेत्र आर्द्र होना चाहते हैं पर बाँध सा बना है राम का अन्तस्थल। माँ सहसा रुक जाती है, वह समझ जाती है। राम कुछ विशेष कहना चाह रहे हैं। भाव अपनी पूर्णता पा लेते हैं, बस यही शब्द गूँजते हैं।


“पिता दीन्ह मोहि कानन राजू” 


माँ, पिताजी ने मुझे वन का राज्य दिया है। राम जानते थे कि ये शब्द माँ कौशल्या के अश्रुबन्ध तोड़ देंगे। स्तब्ध थे राम भी, पर क्या करें? माँ को इस प्रकार शोक देने का दैव भी ईश्वर ने राम से पुत्र को ही दिया था।



21 comments:

  1. असंख्य बार देख-पढ़ चुके हैं यह प्रसंग,हर बार माता कौशल्या की हृदय में उमड़ी असीम पीड़ा की अनुभूति
    सहज लगी, किंतु राम के मन की व्यथा उनके व्यक्तित्व की विराट अलौकिक आभा में विलीन हो जाता है। सदैव यह प्रश्न जरूर आता है कि राम को अवतार
    कहकर दैवत्व के उच्च सिंहासन पर बिठाकर उनके मानवीय मन की भावनाओं को क्यों गौण कर दिया गया।
    प्रसंग का सुंदर विश्लेषण सर।
    आपका वाचन प्रभावशाली है।

    प्रणाम
    सादर।

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    1. यही मानवीय भाव हमें राम के प्रति अगाध श्रद्धा से भर देते हैं। यदि इनको ही दैवीय मान लिया तो देव कहाँ पीड़ा पाते हैं? आभार आपका।

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  2. इस प्रसंग को न जाने कितनी बार पढ़ा होगा और दूरदर्शन पर देखा भी है । लेकिन आपका लेखन किस कदर बाँधता है बता नहीं सकती । चित्रात्मक शैली में पढ़ आनंद आया ।
    राम की व्यथा पाठक महसूस कर पाता है ।

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    1. बहुत आभार आपका, संगीता जी। प्रयास भर कर पाता हूँ, जो अच्छा होता है, वह तो रामजी की कृपा है।

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  3. लेखक का मूलभूत उद्देश्य पाठक तक पहुँचाना होता है | जिस भी विषय पर आप लिखें पाठक उसे पढ़ते हुए आत्मसात कर ले यही उद्देश्य से लेखक लिखते हैं | आपने सभी चरित्रों पर पूरा न्याय किया है | संवेदनशील लेखन है आपका !! रचना को स्वर देने से संवेदनाएं और मुखर होकर पाठकों तक पहुँच रही !!

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    1. बहुत आभार आपका अनुपमाजी। यदि मन के भाव पहुँचा पाया तो स्वयं को धन्य मानूँगा।

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    2. जब जब मानस को सुनता हूँ या पड़ता हूँ तब मन बहुत व्यथित होता है वही व्यथा आपके विश्लेषण को पढ़कर हो रही है कैसे माँ ने अंगीकार किया पुत्र विरह को जो अभी विवाह कर घर लौटा है जिसे मुनि श्रेष्ठ ले गए वह एक कोमल बालक थे लौटे तो विवाह में बंध कर एक सुकुमारी सीता के साथ अब वे पुनः वन गमन की और जाएंगे, और कैसे पुत्र राम ने अपना दुःख माँ से कहा है "पिता दीन मोहि कानन राजू"राम अवतारी हैं और हमको यही शिक्षा भी देते है कितनी भी भीषण परिस्थितियां हों धैर्य नही खोना चाहिए।
      आपके विश्लेषण के लिए बहुत बहुत साधुवाद आपके लेख और विश्लेषण सदैव प्रेरणा देते है।
      जय जय सियाराम🙏

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  4. बहुत सुंदर प्रसंग लेखन

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    1. बहुत आभार आपका मनोजजी।

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  5. बहुत ही अच्छा लगा इस तरह फिर से इस प्रसंग को सुनना। सच में मां और राम के मन की दशा का वर्णन 👌

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    1. अति सुन्दर। मां और पुत्र की मनोदशा सुन्दर शब्दों मे मार्मिक वर्णन।

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    2. जी बहुत आभार आपका अर्चनाजी। माँ के मन को समझ पाना बहुत ही कठिन है।

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  6. बेहद हृदयस्पर्शी प्रसंग। रामकथा को चाहे कितना भी पढ़ लो पर यह प्रसंग हम बार आँखों में नमी दे जाता है। बेहतरीन प्रस्तुति।

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    1. बहुत आभार आपका अनुराधा जी। यह प्रसंग हर बार आँखें नम कर देता है।

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  7. फेसबुक से...

    Ramshankar Mishra
    तुलसी के राम मर्यादा पुरुषोत्तम राम हैं।
    सीता के अपहरण के बाद राम भी सामान्य विरही अर्धविक्षिप्त पति की तरह,
    "हे खग मृग हे मधुकर श्रेनी
    तुम देखी सीता मृगनयनी"
    अपनी पत्नी की खोज में लगे हैं।
    पुष्प वाटिका के प्रसंग में भी राम एक सामान्य व्यक्ति की तरह प्रेमासक्त हो जाते हैं।
    इन कुछ प्रसंगों को छोड़कर राम मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम के रूप में ही दृष्टिगोचर होते हैं।
    बाल्मीकि रामायण में राम और लक्ष्मण सहज मानवीय प्रवृत्तियों का ही दिग्दर्शन कराते हैं।
    बाल्मीकि रामायण में राम वन गमन के प्रसंग में लक्ष्मण जी दशरथ को कामी कुटिल आदि तमाम कठोर सम्बोधन से उल्लिखित करते हैं,पर तुलसी मर्यादा के कारण,
    "लखन कहे कछु वचन कठोरा"
    से ही काम चला लेते हैं।
    आपने राम को मां कौशल्या को वनगमन की सूचना देते समय राम की मन: स्थिति का बहुत ही सजीव और हृदय स्पर्शी वर्णन किया है। पढ़ कर बहुत अच्छा लगा।
    साधुवाद।

    Kumar Lalit
    उम्दा, कौसल्या जी की व्यथा पर अधिक नहीं लिखा गया।

    Vaibhav Dixit
    प्रणाम सर 🙏🙏
    बिल्कुल सत्य माता कोशल्या के ह्रदय की पीड़ा सिर्फ मर्यादा पुरुषोत्तम ही जान सकते हैं। लेकिन रघुकुल रीति के अनुसार उन्हें वन गमन को जाना था। यह भी एक नियति का खेल ही था। लेकिन एक मां का करुणामयी ह्रदय जिसको देखकर आंखे भर आती है। बहुत मार्मिक चित्रण है यह अंश,,,,🙏🙏🙏🙏🙏
    ।। भव भय हरणं जय श्री नारायणम।।

    Madan Mohan Prasad
    यह स्वाभाविक है कि बालक को कही चोट लगती है तो वह मां के गोद में जा गिरता है।दुनिया में मां ही पहला सहारा होती है और मैं तो कहूंगा कि वही सबसे मजबूत सहारा होती है, जिन्दा भी और मरने के बाद भी।राम का बनवास एक दुर्घटना था जो कुचक्र में पड़कर पिता ने दिया था। राम नियति के प्रहार को भलीभाँति समझ रहे थे कि इसे टाला नहीं जा सकता। मां को इसकी जानकारी देना, परस्पर स्नेहिल आँसू बहाना, उन्हें सम्भालना और सम्यक वार्तालाप कर वन जाने की अनुमति ले लेना ही तो मर्यादापुरुषोत्तम का पुरूषार्थ है ? उस विकट परिस्थित से उबरना एक दुस्तर काम था। चरित्र का लिटमस जांच-परख ऐसे ही अवसर पर होता है। मैं नमन कर रहा हूं महर्षि बालमिकी को , रामायण के उनके शब्द चित्रों के लिए, और आपकी राम भक्ति के तल्लीनता को भी।जी महोदय।

    Sunil Singh
    आपकी विवेचना भावविभोर करने वाली व परिस्थितिपरक है, सर..... प्रणाम

    Praveen Bajpai
    निपुण विवेचना। सुन्दर भावाभिव्यक्ति, एक ही पंक्ति में प्रभु श्री राम का मातु संवेदना, पितृ आदर और आज्ञा पालन को समेटना। “पिता दीन्ह मोहि कानन राजू”🌹🙏

    Umesh Pandey
    साहबजी🙏
    राउर विष्लेषण अत्यंत सुक्ष्मता से कइल
    गइल बा।राउर मनन चिन्तन अद्भुत बा।
    "जिनको पुनीत वारी
    धारे सिर पे पुरारी
    त्रिपथगामिनी जसु वेद कहे गई के"
    "नख निर्गता मुनि वन्दिता
    त्रेलोक्य पावन सुरसरि
    ध्वज कुलिस अंकुश कंज जुत
    वन फिरत कंटक किन लहै
    पद कंज द्वंद मुकुन्द राम रमेश नित्य नमामहे"

    Sanjay Kumar Singh
    आपकी कहानियों से प्रेरित, आज हनुमान गढ़ी, मर्यादा पुरुषोत्तम राम की जन्मभूमि के दर्शन प्राप्त हुए।

    Rash Bihari Pandey
    Bahut preranadayi vishleshan adbhut 🙏🙏

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  8. फेसबुक से...

    Sudhir Khattri
    पढ़ा तो पहले भी है लेकिन आप की लेखनी में मां सरस्वती की असीम कृपा दृष्टि गोचर हो रही है इस प्रसंग के एक एक पल को गहराई से वर्णित करने हेतु, साधुवाद

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  9. जब जब मानस को सुनता हूँ या पड़ता हूँ तब मन बहुत व्यथित होता है वही व्यथा आपके विश्लेषण को पढ़कर हो रही है कैसे माँ ने अंगीकार किया पुत्र विरह को जो अभी विवाह कर घर लौटा है जिसे मुनि श्रेष्ठ ले गए वह एक कोमल बालक थे लौटे तो विवाह में बंध कर एक सुकुमारी सीता के साथ अब वे पुनः वन गमन की और जाएंगे, और कैसे पुत्र राम ने अपना दुःख माँ से कहा है "पिता दीन मोहि कानन राजू"राम अवतारी हैं और हमको यही शिक्षा भी देते है कितनी भी भीषण परिस्थितियां हों धैर्य नही खोना चाहिए।
    आपके विश्लेषण के लिए बहुत बहुत साधुवाद आपके लेख और विश्लेषण सदैव प्रेरणा देते है।
    जय जय सियाराम��

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    1. जी बहुत आभार आपका। राम ने लगभग हर परिस्थिति में वे निर्णय लिये जो उन्हें राम बनाते हैं।

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  10. बार बार पढ़े गए और मन में रचे बसे इस प्रसंग को आपने फिर से जीवंत कर दिया अपनी लेखनी द्वारा । एक एक प्रसंग चित्रमय हो मन में उतर गया । हार्दिक शुभकामनाएं एवम बधाई इतने सुंदर लेखन के लिए।

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    1. जी आभार आपका। मुग्ध करने वाला सौन्दर्य तो राम के चरित्र का है, हम सब भी अपनी लेखनी पवित्र कर लेते हैं।

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