13.7.19

सहसा हृास नहीं होता है

दोष प्रचुर संरक्षण पाते,
आँखें मूंदी जाती होगी,
मति-क्षति-विकृति, ज्ञात नहीं पर,
नित अनगढ़ बढ़ जाती होगी,
धरने और सहन करने के,
आग्रहयुत संवाद उपेक्षित,
संरचना की स्मृति मन में
व्यक्तकर्म में रही प्रतीक्षित,
अर्ध-अंधमय क्षय-लय तब,
किञ्चित आभास नहीं होता है,
सहसा ह्रास नहीं होता है।

द्वार खड़ा चेतन प्रहरी है,
दोष कभी धीरे से आते,
आकर्षण तो रहता मन में,
अकुलाते फिर भी सकुचाते,
दोष पनपता, निर्णय अपना,
मन को प्रहरी पर वरीयता,
वर्षों के सत्कृत जीवन पर,
भारी पड़ जाती क्षण-प्रियता,
आहत हो व्याकुल हो जाता,
तब वह पास नहीं होता है
सहसा हृास नहीं होता है।

वैश्विक उत्थानों से गिरकर,
देखो हम अब कहाँ पड़े हैं,
जहाँ जगत संग दौड़ लगानी,
हम दलदल में क्षुब्ध खड़े हैं,
नहीं एक दिन यह कारण,
सदियाँ खोयी अलसायी सी,
वर्तमान हतमान तिरोहित,
दिवास्वप्न में बौरायी सी,
दिशाछलित अवक्षरित पतित पथ,
क्यों विश्वास नहीं होता है?
सहसा हृास नहीं होता है।

श्रेष्ठ और उत्कृष्ट, शब्द दो,
परिचय कर्मशीलता प्रेरित,
कालजयी यात्रा की संतति,
हस्ताक्षर स्पष्ट उकेरित,
प्राप्त बढ़त, आगत संसाधन,
सुविधाओं में मोड़े होंगे,
एक नहीं शत शत नित अवसर,
हमने रण में छोड़े होंगे,
स्थिति यथा टिके रहने का,
क्यों अभ्यास नहीं होता है?
सहसा हृास नहीं होता है।

है हतभाग, वृहद, विस्तृत यह,
मन उद्वेलित नहीं तनिक भी,
कल की भाँति आज संयोजित
उत्कण्ठा भी नहीं क्षणिक सी,
जो है, जैसा, जैसे भी हो,
जीवन जी कर पार कर रहे,
भाग्य सहारे, सर्व बिसारे,
यथारूप स्वीकार कर रहे,
क्षणवत कणवत अवगति पाते,
क्यों मन त्रास नहीं होता है ?
सहसा हृास नहीं होता है।

परत चढ़ाये हम वर्षों से,
विगति बनाये बैठे हैं,
मनस सहस्त्रों दोष छिपाये,
तमस चढ़ाये बैठे हैं,
लज्जा कैसी कह देने में,
मुक्ति नहीं है, अन्य कहीं,
जड़ें अभी गहरी जीवन की,
पुनः प्रखर हों जमें वहीं,
अपने अपनापन तज देते,
जब संवाद नहीं होता है,
सहसा हृास नहीं होता है।

7 comments:

  1. हमेशा की तरह बढ़िया रचना

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  2. बेहतरीन अभिव्यक्ति।
    श्रेष्ठ और उत्कृष्ट, शब्द दो,
    परिचय कर्मशीलता प्रेरित,
    कालजयी यात्रा की संतति,
    हस्ताक्षर स्पष्ट उकेरित,
    प्रेरणादायक शब्दों का अद्भुत संगम।

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  3. बहुत दिनों बाद आपको पढ़ा
    सम्रद्ध शब्दो की अनुभूति को नमन

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  4. बहुत से सत्यों को समेटे सुंदर और विचारणीय कविता। सादर धन्यवाद

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  5. उत्कृष्ट रचना।

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  6. बहुत ही सुंदर,अभिभूत करने वाली रचना।

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  7. सही कहा । बहुधा सजग होने के बाद भी उभर ही आता है सब ।

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