28.6.15

कब तुम्हारा स्मरण हो

आज कोई दुख नहीं है, निशा सुख में डूबती है,
समय का आवेग भी निश्चिन्त बहता जा रहा है,
जब समुन्दर राग और आह्लाद के लेते हिलोरें,
सुध स्वयं की ही नहीं है, कब तुम्हारा स्मरण हो ?

इस तरह यदि सुखों का प्राधान्य चलता ही रहेगा,
पंथ व्यवधानों बिना सामान्य मिलता ही रहेगा,
जीवनी की विविधता और मदों में आसक्त होकर,
यहाँ सुविधा में पड़ा हूँ, कब तुम्हारा स्मरण हो ?

बता तेरे उपकरण से ध्यान हटता ही नहीं है,
कब तुम्हारा अनुसरण हो, कब तुम्हारा स्मरण हो ?

16 comments:

  1. वाह , बेहतरीन भाव अभिव्यक्ति !

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  2. बहुत सुन्दर ! वैसे भी कहावत है कि सुख के समय कोई भगवान को याद नहीं करता !

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  3. यहाँ सुविधा में पड़ा हूँ, कब तुम्हारा स्मरण हो ?
    अति सुन्दर

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  4. यहाँ सुविधा में पड़ा हूँ, कब तुम्हारा स्मरण हो
    अति सुन्दर

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  5. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (29-06-2015) को "योग से योगा तक" (चर्चा अंक-2021) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक

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  6. सुविधा न मिले तो भी तकलीफ मिले तो भी, बेचारा इंसान क्या करे. मस्त है

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  7. (बता तेरे उपकरण से ध्यान हटता ही नहीं है,) मोबाइल का प्रयोग कम कर दीजिये, समय निकल आयेगा।

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  8. अपने काव्‍य से आप उसका स्‍मरण कर ही रहे हैं।

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  9. समय के साथ चलने की जद्दोजहद में जिए जा रहे हैं...
    बहुत बढ़िया

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  10. बहुत खूब सर

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  11. बहुत खूब सर !पदार्थ से संलिप्त हूँ मैं चेतना लेकर करून क्या ?

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  12. दुख में सुमिरन सब करें सुख में करे न कोय
    जो सुख में सुमिरन करे दुख काहे को होय

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