दिन तो बीता आपाधापी,
यथारूप हर चिंता व्यापी,
कार्य कुपोषित, व्यस्त अवस्था,
अधिकारों से त्रस्त व्यवस्था,
होड़, दौड़ का ओढ़ चढ़ाये,
अवसादों का कोढ़ छिपाये,
कौन मौन अन्तर्मन साधे,
मन के तथ्यों से घबराते,
लगे सभी जब जीवन जपने,
कुछ पल अपने।१।
हमने तो सोचा था जीवन,
होगा अपना करने का मन,
कहाँ पता था, हर पग पग में,
लौहबन्ध और आतुर दृग में,
अँसुअन का अंबार दृष्टिगत,
अनुमोदित अधिकार हस्तगत,
नींव आपके शतकर्मों की,
स्वेद-सुपोषित सत मर्मों की,
जब उत्साह लगा हो छकने,
कुछ पल अपने।२।
जहाँ विकल्पों की सुविधा हो,
जहाँ श्रेष्ठ में नित दुविधा हो,
कौन बताये, क्या अपनायें,
किन मूल्यों पर मार्ग बितायें,
सबके अपने अपने अनुभव,
आशंकित, यदि पंथ चुने नव,
जीवन का वैशिष्ट्य बचाये,
निर्णय को आधार बनाये,
एक संसार लगा है सजने,
कुछ पल अपने।३।
स्थापित पंथों से घर्षण,
छितरे जग जगमग आकर्षण,
स्थितियों के मेरुदण्ड शत,
विश्वासों को उलझाते मत,
ज्ञात प्रात का अन्त भाप सा,
आशान्वित उत्सव विलाप सा,
आदि, अंत का द्वन्द्वयुद्ध जग,
शंका बरसे, संशोधित नभ,
लगता शोधित पंथ बिलखने,
कुछ पल अपने।४।
हर कपाल, एक विश्व रचित सा,
सम प्रायिकता गुण संचित पा,
सहजीवन निष्कर्ष अनन्ता,
हन्त्य चीखते, गुपचुप हन्ता,
अद्भुत खेला, अद्भुत मेला,
भीड़ भरे तत्वों का रेला,
आत्मा की पहचान बचाये,
भय, संभवतः खो न जाये,
मनवेगों को पुनि पुनि मथने,
कुछ पल अपने।५।
हमने तो शाश्वत जाना है,
पल, दिन, जीवन एक माना है,
एक अस्त, दूजा उद्भवमय,
मध्य अवस्थित लुप्त, मृत्यु भय,
कौन ठौर साधे मध्यम का,
जागृत विश्व रहा प्रियतम सा,
मध्य जगी ऊर्जा आगत की,
प्रचुर व्यवस्था है स्वागत की,
अब निद्रा हो, अब हों सपने,
कुछ पल अपने।६।