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20.7.11

काबिनी

घना जंगल, न आसमान का नीलापन, न धरती पर सोंधा रंग, न कोई सीधी रेखा, न ही दृष्टि की मुक्त-क्षितिज पहुँच, संग चलता आच्छादित एक छाया मंडल, छिन्नित प्रकाश को भी अनुमति नहीं, बस हरे रंग के सैकड़ों उपरंगों से सजी प्रकृति की अद्भुत चित्तीकारी, रंग कुछ हल्के, कुछ चटख, कुछ खिले, पर सब के सब, बस हरे। हरी चादर ओढ़े प्रकृति का श्रंगार इतना घनीभूत होता जाता है कि संग बहती हुयी शीतल हवा का रंग भी हरा लगने लगता है। बहती हवा को अपनी सिहरनों से रोकने का प्रयास करती झील अपनी गहराई में ऊँचे शीशम वृक्षों के प्रतिबिम्ब समेटे हरीतिमा चादर सी बिछी हुयी है।

घना जंगल, गहरी झील, बरसती फुहारें, शीतल बयार, पूर्ण मादकता से भरा वातावरण।

मैं स्वप्न में नहीं, काबिनी में हूँ।

मैसूर से 80 किमी दक्षिण की ओर, केरल की सीमा से 20 किमी पहले, काबिनी नदी पर बने बाँध ने घने जंगल के बीच 22 वर्ग किमी की एक विशाल जलराशि निर्मित की है और साथ में दिया है न जाने कितने जीव जन्तुओं को एक प्राकृतिक अभयारण्य, निश्चिन्त सा जीवन बिताने के लिये, विकास की कलुषित छाया से सुरक्षित, मनमोहक और रमणीय।

बंगलोर से सुबह 6 बजे निकल कर 11 बजे पहुँचने के बाद जंगल के बीचों बीच बने अंग्रेजों के द्वारा निर्मित कक्ष में जब स्वयं को पाया तो यात्रा की थकान न केवल उड़न छू हो गयी वरन एक उत्साह सा जाग गया, प्रकृति की गोद में निश्छल खेलने का, न टीवी, न फोन, बस प्रकृति से सीधा संवाद। बच्चे तो पल भर के लिये भी नहीं रुके और बाहर जाकर खेलने लगे। थोड़ी ही देर में हम सब निकल पड़े, जीप सफारी में जंगल की सैर करने। 

जंगल के बीच 3 घंटे की जीप-सफारी में इंजन की सारी आवृत्तियाँ स्पष्ट सुनायी पड़ती हैं और जीप रुकने पर आपकी साँसों की भी। बीच बीच में जंगल के जीव जन्तुओं के संवाद में अटकती आपकी कल्पनाशक्ति, साथ में चीता या हाथी के सामने आने का एक अज्ञात भय और उनकी एक झलक पा जाने के लिये सजग आँखें। चीता यद्यपि नहीं दिखा पर उसके पंजों को देख कर उस राजसी चाल की कल्पना अवश्य हो गयी थी।

रात्रि में भोजन के पहले एक वृत्तचित्र दिखाया गया जिसमें मानव की अन्ध विकासीय लोलुपता और अस्पष्ट सरकारी प्रयासों के कारणों से लुप्त हो रहे चीतों की दयनीय दशा का मार्मिक चित्रण था।

सुबह 6 बजे से 3 घंटे की बोट-सफारी में हमने पक्षियों की न जाने कितनी प्रजातियाँ देखी, झील के जल में पानी पीते और क्रीड़ा करते जानवरों के झुण्ड देखे, पेड़ों से पत्तियाँ तोड़ते स्वस्थ हाथियों का समूह देखा, धूप सेकने के लिये बाहर निकला एक मगर देखा। बन्दर, हिरन, मोर, जंगली सुअर, चील, गिद्ध, नेवले और न जाने कितने जीव जन्तु हर दृश्य में उपस्थित रहे।

वातावरण तो वहाँ पर कुछ और दिन ठहरकर साहित्य सृजन करने का था, पर प्रशासनिक पुकारों ने वह स्वप्न अतिलघु कर दिया। वहाँ के परिवेश से पूर्ण साक्षात्कार अभी शेष है।  

वन आधारित पर्यटन की एक सशक्त व्यावसायिक उपलब्धि है, जंगल लॉज एण्ड रिसॉर्ट। वन के स्वरूप को अक्षुण्ण रखते हुये, मानवों को उस परिवेश में रच बस जाने का एक सुखद अनुभव कराता है यह उपक्रम। वन विभाग के अधिकारियों द्वारा संचालित इस स्थान का भ्रमण अपने आप में एक विशेष अनुभव है और संभवतः इसी कारण से इण्टरनेट पर संभावित पर्यटकों के बीच सर्वाधिक लोकप्रिय भी है।

न जाने क्यों लोग विदेश भागते हैं घूमने के लिये, काबिनी घूमिये।