करवट बदलने पर आज दबा हुआ हाथ असहज अनुभव कर रहा है, बाहर निकलना चाहता है। जानता हूँ कि समय के ढलान में दूसरा हाथ भी यही नौटंकी करेगा, पुनः पीठ के बल लेट जाता हूँ, फिर वही पंखा, आँख जोर से भींच लेता हूँ, संभवतः उसमें बचे हुये खारेपन को प्रत्युत्तर सा कुछ अनुभव हो जाये। पहले तो लगता था कि आँख बन्द होना ही नींद होता है, आज तो पुतलियाँ बन्द आँखों में भी मचल रही हैं, कभी बायें तो कभी दायें। कुछ स्थिर हुयी आँखें तो कान जग गये। घड़ी का स्वर, टिक टिक, समय भाग रहा है, केवल टिक टिक का शब्द रह रहकर सुनाई दे रहा है। अन्य दिन तो यह थकान के पीछे छिप जाता था। आज थकान गौड़ हो गयी है, विचारों ने उसका अपहरण कर लिया है। आज टिक टिक पर ध्यान लग गया है।
एक संतोष था मन में, यदि नल न बंद करता तो न जाने कितना जल बह जाता, वह जल जो जीवन देता है, न जाने कितनों को। शान्ति मिली, मन की अग्नि बुझने सी लगी, नल तो बन्द करना ही होगा, दिन मे भी वही किया और रात में भी।
मुझे तो टप टप सुनायी पड़ता है, आपको सुनायी पड़ रहा है? ध्यान से सुनिये आप भी, जहाँ भी टिक टिक सुनायी पड़े, जायें और तुरंत नयी डिजिटल घड़ी ले आयें, तकनीक अपना लें। टप टप सुनायी दे तो नल को कस कर बन्द कर दें, एक बूँद भी न टपके।
देश के सन्दर्भों में देखेंगे तो न जाने कितना टिकटिकीय कोलाहल उत्पन्न कर दिया है विकास के नाम पर, न जाने कितने नल खोल दिये हैं धनलोलुपों ने और देश की सम्पदा बही जा रही है, न जाने कितने जुझारू पंखो के ऊपर कालिमा पोत दी है जिससे वे कुछ चेष्टा ही न कर सकें।
देश के सन्दर्भों में देखेंगे तो न जाने कितना टिकटिकीय कोलाहल उत्पन्न कर दिया है विकास के नाम पर, न जाने कितने नल खोल दिये हैं धनलोलुपों ने और देश की सम्पदा बही जा रही है, न जाने कितने जुझारू पंखो के ऊपर कालिमा पोत दी है जिससे वे कुछ चेष्टा ही न कर सकें।
न टिक टिक सहन हो, न टप टप, न मूढ़ बकर, न व्यर्थ बूँद भर, निश्चय तो करें। पंखा चले, कालिमा लगे तो लगे।
वह एक प्रयासरत है, हम सब भी प्रयासरत हों, तब जाकर देश चैन से सो पायेगा।
जनता की नींद खुल चुकी है...टप टप बंद करने के लिए कमर कस ली गई है...चौकीदार आवाज देता है- जागते रहो!!!!!! जागते रहो!!!
ReplyDeleteजीवन की दैनिक दिनचर्या की वास्तु से प्रेरणा लेकर लिखना कोई आपसे सीखे.छोटी चीज़ को केंद्र में रखकर बड़ी बात कहते हैं आप.
ReplyDeleteनमस्कार.
हमारा सबेरा हो रहा है आपकी बेआवाजी 'टिक टिक, टप टप' से, शुभ प्रभात.
ReplyDeletejo log bhav-shunya ya ehsaas-rahit hain unko to tik-tik ya tap-tap chhodo hathaude ki awaz bhi nahin sunai deti....!
ReplyDeleteaap ne sun liya,aapka abhar!
बहुत ही सही चिंतन---
ReplyDeleteबहुत से स्वर सुनाई देते है,
विचार हैं- कि घर जमा लेते हैं,
नींद है कि आने का नाम नहीं लेती,
और ये,यहाँ से जाने का नाम नहीं लेते,
स्थिर हुए- तो सब कुछ जड़ हो जाता है,
और अगर हुए कहीं इनसे सम्मोहित-
तो बस मन को साथ ही बहा लेते हैं,
न बहो तो अपह्यत होने का डर है,
बस इसी के कारण हम भी प्रयासरत हैं..
वाह पाण्डेय जी, एक छोटी सी चीज को माध्यम बनाकर खूबसूरती से बड़ी बात कह दी..
ReplyDeleteआप जैसे गंभीर सोच,सार्थक चिंतन तथा जुझारू पंखो के ऊपर कालिमा पोतने की साजिश जारी है...यही इंसानियत और इस देश व समाज का सबसे बड़ा दुर्भाग्य है....?
ReplyDeleteन टिक टिक सहन हो, न टप टप, न मूढ़ बकर, न व्यर्थ बूँद भर, निश्चय तो करें। पंखा चले, कालिमा लगे तो लगे।
ReplyDeleteवह एक प्रयासरत है, हम सब भी प्रयासरत हों, तब जाकर देश चैन से सो पायेगा।
अपनी सोच की चिंगारी से देशभक्ति की ,मानवता की ,सार्थकता की लौ जला रहें हैं आप |इसी जस्बे की आज हम सभी को ज़रुरत है अपने देश की अस्मिता बचाने के लिए |जागो इंसान जागो ......संदेशात्मक लेख के लिए बहुत बहुत बधाई आपको |
पंखा चले , कालिमा लगे तो लगे !
ReplyDeleteकहाँ से चला कहा तक पहुंचा ...विज्ञानं और दर्शन दोनों एक साथ ...
सार्थक चिंतन !
अभी सोने की न सोचें, अभी तो देश को जगाने की आवश्यकता है।
ReplyDeleteगंभीर सोच,सार्थक चिंतन
ReplyDeleteएक छोटी सी चीज को माध्यम बनाकर खूबसूरती से बड़ी बात कह दी
गहन चिंतन. चौतरफा हाथ बढेगा तभी कावेरी/गंगा .... का जल अनावश्यक बहने से बच पायेगा.
ReplyDeleteचलते रहने से कालिमा लगती है तो स्थिर रहने से भी गर्द चढ़ती है...लगभग दोनों ही स्थितियां सामान है... इसलिए चलते रहना ही सार्थक है....
ReplyDeleteसमय का नपना तो बना दिया पर समय को अपना नहीं बनाया...
ReplyDeleteआने वाला पल जाने वाला है,
हो सके तो इसमें ज़िंदगी बिता दो,
पल जो ये जाने वाला है...
जय हिंद...
जो समाज को चलाते हैं, उन्हें कालिमा को धारण करना होता है, और वह कालिमा समाज को दीखती है परंतु समाज देखकर भी अनदेखा कर देता है, जैसे समाज पंखे को करता है।
ReplyDeleteऔर ये टप टप तो एक ऐसा उपक्रम है जो कि इच्छाशक्ति पर निर्भर करता है। परंतु अगर टप टप न हो और पूरा नल ही खुला हुआ हो तो वह तो आलस्य का द्योतक है।
आप की चिंता जायज है प्रवीण भाई
ReplyDeleteयह टिक टिक और टप टप तो अंतस का है प्रवीण जी,वह प्रशांत हो तो बाहर का
ReplyDeleteगर्जन तर्जन तक न सुनायी दे!
वैसे हमें भी कभी कभार ऐसी दुस्वप्न से अहसास हुए हैं -घड़ी तो बंद नहीं कर पाए
नल को उठकर बंद किया है !
यह तो रोज की बात है मगर जब मन अशांत हो ,क्लांत हो तो ये नगण्य डेसिबल के शोर भी असह्य हो उठते हैं !
गद्य में इतना ससक्त और गंभीर विम्ब कम ही देखने को मिलता है.. एक उत्कृष्ट रचना..
ReplyDeleteएक्बार फ़िर......उत्कृष्ट ...
ReplyDeleteविज्ञान पर क्रोध आ रहा है, समय का नपना तो बना दिया पर समय को अपना नहीं बनाया।
ReplyDelete-----
फिर यही कहूँगी की आपका अवलोकन कमाल का है..... दैनिक दिनचर्या से जीवन दर्शन ढूढ़ लेना आसान कहाँ है....?
वह एक प्रयासरत है, हम सब भी प्रयासरत हों, तब जाकर देश चैन से सो पायेगा।
बडी गहरी बात कही आपने....
कहाँ-कहाँ से गुजर गया । वाह...
ReplyDeleteपंखा चलना ही चाहिए कालिख लगे तो लगे ....लगता है जल्द इंतज़ार ख़त्म होगा ! शुभकामनायें प्रवीण भाई !!
ReplyDeleteविकास और कर्त्तव्य का बोध कराती बढिया पोस्ट
ReplyDeleteरोजमर्रा की चीजों को लेकर आपने एक बेहतरीन सन्देश दिया है।
प्रणाम स्वीकार करें
उज्ज्वल भविष्य हेतु आज ये टिक टिक, टप टप जरूरी है |
ReplyDeleteगहन चिन्तन की उपज है ये आलेख …………अब सुबह होने मे देर नही।
ReplyDeleteविकास के साथ प्राकृतिक सामंजस्य और नैतिक सन्देश देता आलेख
ReplyDeleteकई दशक सो चुके हैं हम । अब जागना ही होगा। व्यर्थ बहते संसाधनों को रोकना ही होगा।
ReplyDeleteमंत्र मुग्ध कर देने वाला गंभीर दार्शनिक चिंतन।
ReplyDelete..समय का नपना तो बना दिया पर समय को अपना नहीं बनाया। ...
वाह ! वाह! क्या पंक्ति थमा दी आपने! टिक टिक तो फिर भी अनसुनी कर देंगे...टप-टप बंद करने की तैयारी हो ही रही है मगर इस पंक्ति ने जो कोलाहल दिया है उसे कैसे शांत करें ! आप ही प्रवीण हैं आप ही बतावें आर्य।
आप परासंवेदी हैं जी...।
ReplyDeletena tik tik,na tap tap.....
ReplyDeletejai baba banaras......
जिन रातों में नींद उड़ जाती है
ReplyDeleteक्या कहर की रातें होती है
दरवाज़ों से टकरा जाते हैं
दीवारों से बातें होती है :)
roj ke kolaahal mein saarthakta hoti hai ..jeewan ko aage badhne ki dishaa bhi yaheen se milti hai aur gati bhi. bas hum kis waqt kis tarah se is shor ko sunte hain ye maayne rakhta hai aur sun ke kya kitni pratikriya ,ye bhi . warna ye tik tik aur tap tap sunte to jaane kitna jeevan guzar gayaa hai ..nahi kya ??
ReplyDeleteवाह ...सर आप भी कमाल के है , सोते - सोते भी होशियार !गुल्ली का खेल है
ReplyDeleteभ्रष्टाचार के पदघात से ,जन जीवन शुचिता से क्षीण हुआ
ReplyDeleteस्वर्ण मरीचि के भ्रम में , ह्रदय मानवता का विदीर्ण हुआ
जगो आर्यवर्त के सिंहो ,जाग्रति की अलख जगानी है
कृशकाया पर दृढ प्रतिज्ञ ने , गण मन में भर दी रवानी है ,
बढ़िया चिन्तन!
ReplyDeleteअच्छा आलेख!
जनता का साथ मिला!
जीत हुई लोकतन्त्र की!
टिक टिक टप टप ऐसे ध्वनि शब्दों से गहन चिंतन ...
ReplyDeleteवह एक प्रयासरत है, हम सब भी प्रयासरत हों, तब जाकर देश चैन से सो पायेगा।
सटीक और सार्थक सन्देश
न टिक टिक सहन हो, न टप टप, न मूढ़ बकर, न व्यर्थ बूँद भर, निश्चय तो करें। पंखा चले, कालिमा लगे तो लगे।
ReplyDeletebas nishchay karen
पहले भी कहा था, आप हर चीज में दर्शन ढूंढ लेते हैं चाहे बैडमिंटन का खेल हो या शतरंज का खेल। गाड़ी का चलना हो या पंखे का चलना।
ReplyDeleteबंगलौर आना पड़ेगा आपके दर्शन करने। मुलाकात का समय दीजियेगा न सर?
जितना प्रभावित आपकी लिखने की शैली से होती हूँ उतना किसी और हिंदी ब्लॉग अथवा लेख को पढ़कर बहुत कम ही होती हूँ| आपसे हमेशा प्रेरणा मिलती है|
ReplyDelete.
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शिल्पा
सहज बिम्बो से गहरी बात कह दी आपने.
ReplyDeleteनई सुबह का आगाज हो चुका है.
प्रयास ही तो पहली शर्त है। सफलता प्रयासों को ही मिलती है। जो चलते हैं, मंजिल उन्हीं को मिलती है।
ReplyDeleteविचारणीय सन्देश दिया आपने ,कोशिश करते हैं कुछ सुधरने की ....
ReplyDelete:)
ReplyDeleteशुरूआत तो हो चुकी है
ReplyDeleteप्रयास जारी है, और उम्मीद पर दुनिया कायम है
मंत्र मुग्ध कर देने वाला गंभीर दार्शनिक चिंतन। एक छोटी सी चीज को माध्यम बनाकर खूबसूरती से बड़ी बात कह दी|सार्थक चिंतन|
ReplyDeleteटिक टिक ट्प ट्प हमारे रोजमर्रा मे समा गया है .
ReplyDeleteदेश के सन्दर्भों में देखेंगे तो न जाने कितना टिकटिकीय कोलाहल उत्पन्न कर दिया है विकास के नाम पर, न जाने कितने नल खोल दिये हैं धनलोलुपों ने और देश की सम्पदा बही जा रही है, न जाने कितने जुझारू पंखो के ऊपर कालिमा पोत दी है जिससे वे कुछ चेष्टा ही न कर सकें।
ReplyDeleteन टिक टिक सहन हो, न टप टप, न मूढ़ बकर, न व्यर्थ बूँद भर, निश्चय तो करें। पंखा चले, कालिमा लगे तो लगे।
वह एक प्रयासरत है, हम सब भी प्रयासरत हों, तब जाकर देश चैन से सो पायेगा।
bahut pate ki baat hai ,shuru se lekar aakhri tak laazwaab ,kai baate dil ko bha gayi .
ऐसी टिक-टिक जब तक बंद न करें चैन नहीं लेने देती .अब तो हमारा जो कुछ टप-टप कर छीजता जा रहा है,उसे सँभालने की जो चेतावनी इसमें निहित है ,उस ओर सचेत हो जाने में ही कल्याण है !
ReplyDeleteहवा, पानी, समय और चिंतन...जैसे आइंस्टीन की चार विमाएं जागृति का कोरस गान कर रही हैं।
ReplyDeleteजीवन की दर परत खोलता चित्रण |
ReplyDeleteखोये संसाधनों की कीमत तो समझनी ही पडेगी।
ReplyDeleteविचारणीय और चिंतनीय चिंतन । वैसे पंखें में reverse rotation का provision कर उसे साफ़ करने के तरीके के रूप में ईजाद कर सकते हैं ,बस थोड़ा blade को भी reverse rotate कराते समय angle wise front profile को भी flexible रखना होगा। नल के flow को भी regulate करने के लिये बस time-switch का प्रयोग अत्यंत आवश्यक है ।
ReplyDeleteये टिप टिप अगर हम सुनते होते तो आज ये हालात न होते। सार्थक चिन्तन। शुभकामनायें।
ReplyDeleteबहुत समय लगेगा इस देश से टप टप जाने को..
ReplyDeletePrerak ewam saarthak...
ReplyDelete-------------
क्या ब्लॉगिंग को अभी भी प्रोत्साहन की आवश्यकता है?
गहन सोच, सार्थकचिंतन.......नींद खुलने में तो थोड़ी देर सही पर तप तप टिप टिप खोल ही देगी.. अब जागने में देरी नहीं है....... आपकी लेखन शैली बहुत ही प्रभावकारी है
ReplyDeleteएक छोटी सी चीज को माध्यम बनाकर खूबसूरती से बड़ी बात कह दी
ReplyDeleteगहन विचारों के साथ ...बेहतरीन लेखन ...आभार इस अनुपम प्रस्तुति के लिये ।
ReplyDeleteरात के सन्नाटे में उभरते सूक्ष्म स्वर हमारी चेतना को कैसे जगा जाते हैं. सुंदर विचार.
ReplyDeleteन टिक टिक सहन हो, न टप टप, न मूढ़ बकर, न व्यर्थ बूँद भर, निश्चय तो करें। पंखा चले, कालिमा लगे तो लगे....
ReplyDeleteगहन सोच...अब जनता जाग्रत हो गयी है और आशा है कि यह टिक टिक और टप टप ज्यादा दिन नहीं चलेगी...बहुत प्रेरक चिंतन
@ Udan Tashtari
ReplyDeleteअब तो रह रहकर नल बन्द करना होगा, तभी बर्बादी रुकेगी।
@ Rajesh Kumar 'Nachiketa'
विचारों का क्रम कुछ न कुछ सार्थकता ले आता है चिन्तन में।
@ Rahul Singh
सुबह होते ही यह टप टप टिक टिक कोलाहल में छिप जाती है, रात में ही सुनायी पड़ती है।
@ संतोष त्रिवेदी
सभी संवेदनशील व्यक्तियों को यह स्वर सुनायी पड़ना चाहिये।
@ Archana
इन स्वरों के बीच बर्बादी के स्वरों को तो पहचानना ही होगा।
@ भारतीय नागरिक - Indian Citizen
ReplyDeleteविचारों में यही ज्वार तो उठता रहा रात भर।
@ honesty project democracy
जो औरों को हवा देने हेतु जूझते हैं, उन्हीं को कालिमा झेलना पड़ती है।
@ anupama's sukrity !
इन सबसे ऊपर उठना पड़ेगा तभी देश सुन्दर सबेरा देखेगा।
@ वाणी गीत
विचारों की गति कभी कभी ऊबड़ खाबड़ से होते हुये भी निष्कर्ष तक पहुँचा देती है।
@ दिनेशराय द्विवेदी Dineshrai Dwivedi
रात में जगने पर ही यह टिक टिक व टप टप सुनायी पड़ती है।
@ संजय भास्कर
ReplyDeleteविचारों का ज्वार जब उतरता है, चिन्तन के मोती छोड़ जाता है।
@ M VERMA
सब कुछ बहने से बचाना हो, संसाधन सबके हैं।
@ ललित शर्मा
चलते तो रहना ही होगा, कालिमा लगे तो लगे।
@ खुशदीप सहगल
हर पल में जिन्दगी ढूढ़ लेना ही जीने की कला है।
@ Vivek Rastogi
पूरा नल खुला होना तो खुली लूट का प्रतीक है।
@ Navin C. Chaturvedi
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद आपका।
@ Arvind Mishra
मन की अशांति ही कुछ नयी दिशा दिखाती है, शान्त मन तो नींद को बुला लाता है।
@ अरुण चन्द्र रॉय
बहुत धन्यवाद आपका।
@ Dr. shyam gupta
बहुत धन्यवाद आपका।
@ डॉ॰ मोनिका शर्मा
जब समय अपनेपन की बात करेगा तभी सार्थक होगा, विज्ञान ने अधिक दूर कर दिया है मायावी विकास के माध्यम से।
@ सुशील बाकलीवाल
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद आपका।
@ सतीश सक्सेना
लगता है यह प्रतीक्षा समाप्त हो जायेगी।
@ अन्तर सोहिल
बहुत धन्यवाद आपका। जीवन का दुख जीवन से ही हल होगा।
@ नरेश सिह राठौड़
सब दिखायी तो पड़ता है इसके माध्यम से।
@ वन्दना
बहुत धन्यवाद आपका। वह सुबह निश्चय ही आयेगी।
@ गिरधारी खंकरियाल
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद आपका।
@ ZEAL
अब तो हमको जगना होगा।
@ देवेन्द्र पाण्डेय
जब समय को अपना बना देगा विज्ञान, अपनी सार्थकता जी लेगा।
@ सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी
विचारों का ज्वार यही भाव ले आया।
@ Poorviya
बहुत धन्यवाद आपका।
@ cmpershad
ReplyDeleteऐसी ही बाते कर के निकला हूँ,
मन में रातें भर के निकला हूँ।
@ Lata R. Ojha
कभी कभी ये ध्वनियाँ भी सुननी होंगी, बहुत कुछ कहती हैं ये।
@ G.N.SHAW
जागृत स्वप्न, सुप्त स्वप्नों से अधिक तीक्ष्ण होते हैं।
@ ashish
अब भारत के सिंहों के कानों में महतनाद करना होगा।
@ डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक (उच्चारण)
लोकतन्त्र अब विजय पताका फहरायेगा,
पुनः तिरंगा उन्मत होकर लहरायेगा।
@ संगीता स्वरुप ( गीत )
ReplyDeleteजब मन अशान्त हो तो यही शब्द दिशा दे जाते हैं।
@ रश्मि प्रभा...
यही निश्चय बस करना होगा।
@ संजय @ मो सम कौन ?
आपका बंगलोर में हार्दिक स्वागत है, मुझे बहुत प्रसन्नता होगी।
@ Shilpa
यह मेरे लिये सौभाग्य होगा यदि मैं ऐसे ही लिखता रहूँ।
@ shikha varshney
नई सुबह बस आने को है।
@ विष्णु बैरागी
ReplyDeleteप्रयास तो करना ही होगा, बिना प्रयास तो कुछ भी नहीं मिलेगा.
@ nivedita
बहुत धन्यवाद आपका।
@ Apanatva
बहुत धन्यवाद आपका।
@ Deepak Saini
टप टप सुनाई पड़े तो उठकर तुरन्त ही नल बन्द करना होगा।
@ Patali-The-Village
छोटी छोटी बातों में बड़े दर्शन के बीज छिपे रहते हैं।
@ dhiru singh {धीरू सिंह}
ReplyDeleteअब उसे सुनकर उसे जीवन से अलग करना होगा।
@ ज्योति सिंह
बहुत धन्यवाद आपका। यदि समुचित विकास चाहिये तो ये दोनों बन्द करना होगा मिलकर।
@ प्रतिभा सक्सेना
पहले तो टप टप की ध्वनि सुनने की आदत डालनी होगी।
@ mahendra verma
हवा, पानी, समय और चिंतन - संभवतः यही चार विमायें आवश्यक है।
@ sunil purohit
बहुत धन्यवाद आपका।
@ Smart Indian - स्मार्ट इंडियन
ReplyDeleteयदि टप टप का अर्थ समझ आ जाये तो लूट बंद हो जायेगी।
@ अमित श्रीवास्तव
रिवर्स रोटेशन ही उपाय है। टाइम स्विच भी विज्ञान के सही उपयोग से आयेगा।
@ निर्मला कपिला
जब से ही सुनायी पड़ने लगे, तभी सबेरा।
@ Kajal Kumar
सुनने के बाद बन्द करना पड़ेगा कसकर, हम सबको।
@ ज़ाकिर अली ‘रजनीश’
बहुत धन्यवाद आपका।
@ Coral
ReplyDeleteटप टप और टिक टिक तो रात में ही सुनायी पड़ेगी और वह भी जगने पर।
@ शिवकुमार ( शिवा)
बहुत धन्यवाद आपका।
@ सदा
बहुत धन्यवाद आपका।
@ मेरे भाव
रात की स्तब्धता कभी कभी सर्वोत्तम ले आती है।
@ Kailash C Sharma
अब जनता जागती है,
निराशा देखो भागती है।
रात की निस्तब्धता से उभरते स्वरों और शांत दिखते मन के कोलाहल का मंथन करके आपने लोकहित के बिंदुओं को सुंदरता से सामने रखा है. बहुत ही बढ़िया लगा. कल्याणकारी रचना.
ReplyDelete@ Bhushan
ReplyDeleteरात्रि के वातावरण में यह स्वर स्पष्ट सुनायी पड़ते हैं. दिन के कोलाहल में वही छिप जाते हैं।
टिक..टिक...टप..टप...मुझे भी खूब सुनाई दे रहा है.
ReplyDeleteत्रिभुवन जननायक मर्यादा पुरुषोतम अखिल ब्रह्मांड चूडामणि श्री राघवेन्द्र सरकार
ReplyDeleteके जन्मदिन की हार्दिक बधाई हो !!
न टिक टिक सहन हो, न टप टप, न मूढ़ बकर, न व्यर्थ बूँद भर, निश्चय तो करें।
ReplyDeleteसत्य है! संसाधन तो अनमोल हैं।
@ Akshita (Pakhi)
ReplyDeleteआपको देश सम्हालना है, आपको तो और ध्यान से सुनना पड़ेगा।
@ अमित शर्मा---Amit Sharma
आपको भी बहुत बहुत बधाई।
@ Vivek Jain
संसाधनों को तो बचाना होगा।
रामनवमी की हार्दिक शुभकामनाएँ|
ReplyDelete@ Patali-The-Village
ReplyDeleteआपको भी बहुत बहुत बधाई।
राजेश कुमारजी की बात से बिलकुल सहमत हु. उम्दा लेख.!!!
ReplyDeleteBahut khoob Pandey ji...Yatra ka safar hamari zindgi ka safar ho gaya..chintan aur vichar kafi saamyik aur sampreshan lajawab.
ReplyDelete@ blogtaknik
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद आपका।
@ VIJUY RONJAN
बहुत धन्यवाद आपका।
विलक्षण गद्य लेखन ...
ReplyDeleteप्रवीण भाई...अब आप मुझे अपना पूरा परिचय दीजिए..कल समय कम था..मुझे निराला जी की '''राम की शक्ति पूजा'' का स्मरण हुआ..मन में प्रेरणा हुई कि श्री हनुमान जी की स्तुति उसी छंद में करूं और ये एक छंद ही लिख पाया...
आपने मेरी मनः स्थिति को ही अंकित कर दिया.. अद्भुत ... आदरणीय ...
@ परावाणी : Aravind Pandey:
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद आपका।
अपना ही समझिये, बहुत सीखना है आपसे।
जल देख प्यास लगना शाश्वत परम्परा है...हा हा हा
ReplyDeleteतभी तो हम आपके ब्लॉग पर हैं.
इतना अच्छा आलेख और सबको धन्यवादना..!!!
धन्य हैं आप.
भारतवर्ष यूँ ही नहीं जीवित है, जिलाए हुए हैं आप जैसे लोग...संजीवनी बूटी की तरह.