कर लो प्रारम्भ महाभारत, निष्कर्ष बताने बैठा हूँ,
तुम रोज उजाड़ो घर मेरा, मैं रोज बनाने बैठा हूँ।
आवारापन मेरे मन का, कुछ और जमीनें पायेगा,
मर्यादा की जो दरक रही, दीवार हटाने बैठा हूँ।
सम्बन्धों के क्षण मैंने, हो उन्मादित निर्बाध जिये,
निश्चिन्त रहो, अब आहुति बन, अस्तित्व लगाने बैठा हूँ।
उलझन हर तल पर बैठी है कहॉ जायें कैसे सुलझायें
ReplyDeleteनिराकरण कैसे पायें हम दुख को किस विधि दूर भगायें?
पीडा जिस तल पर पलती हो उस तल पर दुख कम न होगा
कुछ ऊपर यदि हम उठ जायें समाधान का पुष्प खिलेगा ।
यदि दुख है काया के तल पर तन के पास नहीं उपचार
किन्तु देह से एक तल ऊपर मन कर सकता तरणी पार ।
मन में हो यदि पीडा भारी समाधान मन दे नहीं सकता
युक्ति बताएगा विवेक जब मन का दुख फिर रह नहीं सकता।
बुध्दि पडे जब कठिनाई में विवेक नहीं पा सकता हल
आत्मा के हम निकट चलें तो पा सकते हैं मीठा फल ।
आत्मा यदि आए संकट में समर्थ नहीं वह पाए पार
समाधान परमात्मा देगा हर लेगा आत्मा का भार ।
इससे सिध्द हुआ इतना ही दुख पाते जिस तल पर हम
उससे कुछ ऊपर उठ जायें पीडा होगी निश्चित कम ।
बहुत ही प्रेरक कविता
Deleteविकास जी धन्यवाद ।
Deleteये रचना आपके विचलित होने की सूचना है ?
ReplyDeleteGod ब्लेस्स you
सुंदर शब्दो का घेरा
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति...
ReplyDeleteआप ने लिखा...
मैंने भी पढ़ा...
हम चाहते हैं कि इसे सभी पड़ें...
इस लिये आप की ये रचना...
19/05/2013 को http://www.nayi-purani-halchal.blogspot.com
पर लिंक गयी है...
आप भी इस हलचल में अवश्य शामिल होना...
संवेदनशील उदगार...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर शब्दों से भा्व को मुखर किया है..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDelete--
आपकी इस' प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (18-05-2014) को "पंक में खिला कमल" (चर्चा मंच-1615) (चर्चा मंच-1614) पर भी होगी!
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
तुम रोज उजाड़ो घर मेरा, मैं रोज बनाने बैठा हूँ।
ReplyDeletevery nice .
तुम रोज उजाड़ो घर मेरा, मैं रोज बनाने बैठा हूँ।
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति।
बहुत सुन्दर .....
ReplyDeleteकर लो प्रारम्भ महाभारत, निष्कर्ष बताने बैठा हूँ,
ReplyDeleteतुम रोज उजाड़ो घर मेरा, मैं रोज बनाने बैठा हूँ।
शायद जनता भी यही सोच लेकर मैदान में उतरी है ! बहुत सुन्दर !
latest post: रिस्ते !
बहुत खूब ... भावों का ताना बाना काव्य रूप में ..
ReplyDeleteमनोभावों की सुन्दर अभिव्यक्ति ....... तुम रोज उजाड़ो घर मेरा, मैं रोज बनाने बैठा हूँ। आपके दृढ निश्चयता एवं आत्मबल की परिचायक है
ReplyDeleteआवारापन मेरे मन का, कुछ और जमीनें पायेगा,
ReplyDeleteमर्यादा की जो दरक रही, दीवार हटाने बैठा हूँ।
जबरदस्त ...
अभी-अभी तो देश का चुनावी महाभारत समाप्त होकर निष्कर्ष पर पहुंच चुका है, तो फिर ये चिन्ता क्यों?
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ReplyDeleteदर्द में कवि का जवाब नहीं ! मंगलकामनाएं आपको !
बहुत ही सुन्दर
ReplyDeleteअति सुन्दर काव्य रचना
ReplyDeleteBahut hi sundar rachna...
ReplyDeleteसुंदर रचना.
ReplyDeleteऐसी जिजीविषा,इतना दृढ संकल्प हो तो घर उजड़ ही नहीं सकता।
ReplyDeleteसशक्त सुंदर भाव ...!!बहुत सुंदर रचना ...!!
ReplyDeleteसशक्त भाव !!!!
ReplyDeleteसुंदर रचना
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