कुछ दिन हुये अभिषेकजी घर पधारे, एक क्षण के लिये भी नहीं लगा कि उनसे यह प्रथम भेंट है। सहजता से बातें हुयीं, घर की, नौकरी की, जीवन के प्रवाह की, न किये विवाह की, ब्लॉगरों की, अभिरुचियों की, त्रुटियों की, सम्बन्धों की, प्रबन्धों की और विविध विविध। वातावरण आत्मीय बना रहा, बिना विशेष प्रयास के, दोनों ही ओर से। एक श्रेय तो निश्चय ही अभिषेकजी के मिलनसार व्यक्तित्व को जाता है, पर साथ ही साथ हिन्दी-ब्लॉग जगत की भी सक्रिय भूमिका है, मिलनों की इस अन्तर्निहित सहजता में। श्री विश्वनाथजी और श्री अरविन्द मिश्रजी से भी स्नेहात्मक भेटें इसी प्रकार की रही थी। वर्धा का सम्मिलित उल्लास तो संगीतात्मक स्वर बन अभी तक मन में गूँज रहा है।
बहुत से ऐसे ब्लॉगर हैं जिनसे अभी तक भेंट तो नहीं हुयी है पर मन का यह पूर्ण विश्वास है कि उन्हें हम कई वर्षों से जानते हैं। उनकी पोस्टें, हमारी टिप्पणियाँ, हमारी पोस्टें, उनकी टिप्पणियाँ, सतत वार्तालाप, विचारों के समतल पर, बीच के सारे पट खुलते हुये धीरे धीरे, संकोच के बंधन टूटते हुये धीरे धीरे। इतना कुछ घट चुका होता है प्रथम भेंट के पहले कि प्रथम भेंट प्रथम लगती ही नहीं है।
किसी को भी जानने का एक भौतिक पक्ष होता है और एक मानसिक। भौतिक पक्ष को जानने में कुछ ही मिनट लगते हैं और उसके बाद मानसिक पक्ष उभर कर आने लगता है। ब्लॉग पढ़ते रहने से मानसिक पक्ष से कब का परिचय हो चुका होता है, ऐसी स्थिति में भौतिक पक्ष बस एक औपचारिकता मात्र रह जाता है।
यदि कुछ छिपाने की इच्छा होती तो कोई ब्लॉगर बनता ही क्यों? हृदय को सबके सामने उड़ेल देने वाली प्रजाति का व्यक्तित्व सहज और सरल तो होना ही है। यदि नहीं है तो प्रक्रियारत है। यही कारण है एक अन्तर्निहित पारस्परिक आत्मीयता का।
हिन्दी-ब्लॉग ने भले ही कोई आर्थिक लाभ न दिया हो, पर विचारों का सतत प्रवाह, घटनाओं को देखने का अलग दृष्टिकोण, नये अनछुये विषय, भावों के कोमल धरातल और व्यक्तित्वों के विशेष पक्ष, क्या किसी लाभ से कम है? नित बैठता हूँ ब्लॉग-साधना में और कुछ पाकर ही बाहर आता हूँ, हर बार। ब्लॉग को तो नशा मानते हैं सतीशजी, पर यह तो उससे भी अधिक धारदार है।
धन कमा कर भी इन्ही सब सुखों की ही खोज में तो निकलेंगे हम।
हिन्दी-ब्लॉग ने भले ही कोई आर्थिक लाभ न दिया हो, पर विचारों का सतत प्रवाह, घटनाओं को देखने का अलग दृष्टिकोण, नये अनछुये विषय, भावों के कोमल धरातल और व्यक्तित्वों के विशेष पक्ष, क्या किसी लाभ से कम है..!
ReplyDeleteयही सच है..!
नित बैठता हूँ ब्लॉग-साधना में और कुछ पाकर ही बाहर आता हूँ, हर बार।'
ReplyDeleteवाकई ब्लाग के जरिये आर्थिक लाभ मिले न मिले पर जो लाभ मिल रहा है वह अमूल्य है और सबसे प्रमुख है विचारों की निरंतरता .. वर्ना क्या देर लगती जड़ हो जाने में ;
अविश्वास , छींटाकशी , आरोप -प्रत्यारोप के दौर में इस तरह की आशावादी पोस्ट को पढना अच्छा लगा ...!
ReplyDeleteहिन्दी-ब्लॉग ने भले ही कोई आर्थिक लाभ न दिया हो, पर विचारों का सतत प्रवाह, घटनाओं को देखने का अलग दृष्टिकोण, नये अनछुये विषय, भावों के कोमल धरातल और व्यक्तित्वों के विशेष पक्ष, क्या किसी लाभ से कम है?
ReplyDeleteब्लॉग जगत में अभी तक यह विशेषता बरकरार है .....आपने बहुत गंभीरता से प्रकाश डाला है..हमें जिन्दगी में आत्मीय और भावनात्मक संबंधों की जरुरत ही तो होती है ...तिलयार ब्लॉग सम्मलेन की यादें मुझे कभी भी नहीं भूलेंगी ...आत्मीयता और स्नेह का दुर्लभ संगम था वो ....शुक्रिया
ह्म्म्म,मै भी मिलती हूँ, जैसे ही मौका मिलेगा...
ReplyDeleteसंजयकुमार(http://sanjaykuamr.blogspot.com/)जी परिवार से मिलने का अनुभव हुआ है,बहुत ही सुखद...
और हाँ जिस तरह हम यहाँ बात करते है शायद उससे बेहतर मिलकर भी न कर पाएं...आपका क्या विचार है...हा हा हा
धन कमा कर भी इन्ही सब सुखों की ही खोज में तो निकलेंगे हम।
ReplyDeleteकाश कि सब यही सोचें तो जगत की दशा और दिशा कुछ और ही होगी।
आपकी इस ब्लॉगरीय आत्मीयता को देखकर मुग्ध हूँ।
यार प्रवीण भाई ,
ReplyDeleteआपके ब्लॉग का तो गैटअप ही कमाल है एकदम कोरा कुंवारा सा हमें तो मजा आ गया आज ही आपको सबस्क्राईब कर लिया है , ब्लॉग तो सब करते हैं हमने आपको ही कर लिया है ।
आपने सच कहा वैसे हम तो सोच रहे थे कि , आभासी को आभास तक सीमित कर दें मगर आपकी पोस्ट ने तो फ़िर से हमें औकात पर ला दिया , मतलब जो हैं सो हैं .....शुभकामनाएं
यदि कुछ छिपाने की इच्छा होती तो कोई ब्लॉगर बनता ही क्यों? हृदय को सबके सामने उड़ेल देने वाली प्रजाति का व्यक्तित्व सहज और सरल तो होना ही है। यदि नहीं है तो प्रक्रियारत है। यही कारण है एक अन्तर्निहित पारस्परिक आत्मीयता का।
ReplyDelete....एकदम दिल की बात लिखी है आपने। हर बार की तरह लाजवाब पोस्ट।
प्रवीण जी,
ReplyDeleteधन कमा कर भी इन्ही सब सुखों की ही खोज में तो निकलेंगे हम।
एक दम सीधी सच्ची बात, हम ज्ञान तृप्ती और आत्मीयता की तलाश में ही तो है।
लगाव युक्त प्रस्तूतिकरण
चलिये जल्दी से एक गेट-टुगेदर कराइये..
ReplyDeleteहम भी पहुंचते हैं.. आप सब से मिलने..
बहुत अच्छी पोस्ट है. ब्लौगिंग में अपने दो वर्षों के अनुभव को समेटने वाली एक पोस्ट लिखने वाला हूँ जिसमें ब्लौगिंग और ब्लौगरों से परिचय होने के बाद जीवन में आये परिवर्तनों की बात कहूँगा.
ReplyDeleteमेलमिलाप में आत्मीयता बढ़ती है. इसमें भी सुख है जिसका पता प्रिय ब्लौगर से मिलने पर ही पता चलता है.
ब्लौगिंग जीवन का पर्याय तो नहीं पर स्वयं को अभिव्यक्त करने और रचनाशील बने रहने का सबसे उपयुक्त माध्यम तो बन ही गया है.
अब यह लगता ही नहीं कि आपसे कल ही मिले. विराट चेतना एक दूसरे से सम्बद्ध होने के लिए न जाने कौन से प्रतिरूप गढ़ती है.
... vaah vaah ... laajawaab abhivyakti ... prasanshaneey post !!!
ReplyDeleteप्रवीण जी, लेखक कभी भी आर्थिक पक्ष के बारे में नहीं सोचता। पत्रकार भी पूर्व में समाज को जागरूक करने के लिए ही कार्य कर रहे थे लेकिन जब से इनके मध्य पैसा आया है मिशन समाप्त हो गया है और ये सारे ही भ्रष्टाचार की जड़ बन चुके हैं। इसलिए ब्लाग जगत में भी जब तक ऐसे लोग हैं जो लेखकीय प्रवृत्ति के हैं और जिन्हें आर्थिक पक्ष से लेना-देना नहीं है तभी तक यहाँ भी भ्रष्टाचार नहीं है। नहीं तो पैसे के कारण यहाँ भी समाचार जगत जैसा ब्लेकमेल चालू हो जाएगा। यहाँ हम तो केवल मानसिक खुराक की तलाश में ही आते हैं। आप जैसे लोगों से मिलकर इसकी पूर्ति होती है तो बहुत अच्छा लगता है।
ReplyDeleteलिखना सरल नहीं है, जब विषय आपका व्यक्तित्व खोल कर रख देने की क्षमता रख देता हो
ReplyDeleteबहुत ही सटीक बात कही आपने और जो ऐसा कर पातें हैं वही सच्चे ब्लोगर हैं...! बांकी सब बकबास.....
अब हम तो उस दौर में पहुँच ही चुके हैं कि ब्लोगिंग में सुख तलाश लें .... अब भले ही वास्तविक रूप में किसी से मिलना न हुआ हो पर वाकई ऐसा लगता है कि हम कितने सारे ब्लोगर्स को जानते हैं ...
ReplyDeleteआत्मीयता से भरी यह पोस्ट बहुत अच्छी लगी ..
ब्लॉग, ब्लॉगर, ब्लॉगरी, टिप्पणी और टिप्पणी पर टिप्पणी की पोस्टों से उबने के बावजूद भी इस पोस्ट में ताजगी महसूस हुई, बेशक नजरिया और प्रस्तुति का कमाल है.
ReplyDeleteमुझे लगता है वह कोई ब्लॉगर ही रहा होगा जिसने यह गाया था, लिखा था .... अन्य सभी ब्लॉगर्स के लिए ... न तुम हमें जानों, न हम तुम्हें जानें .... मगर लगता है कुछ ऐसा ...!
ReplyDeleteबहुत आत्मीय लगा पढकर।
मनोज .... फ़ुरसत में ..
राजभाषा हिन्दी-पुस्तक चर्चा – हिंद स्वराज
बहुतोंने आपके आलेख के कुछ अंश उद्धृत किये हैं. संभवतः ऐसा करने से आत्मीयता बढती है. अतः हम भी कर रहे हैं "ब्लॉग पढ़ते रहने से मानसिक पक्ष से कब का परिचय हो चुका होता है, ऐसी स्थिति में भौतिक पक्ष बस एक औपचारिकता मात्र रह जाता है।" यह बिलकुल सही है. पढ़कर ही हम ने अनेक चिट्ठों से कन्नी काट ली है.
ReplyDeleteसही है,
ReplyDeleteआपस में एक दूसरे को पढ़ते हम एक दूसरे के मानस को लगातार जानते हुए इतने नजदीक आ चुके होते हैं कि भौतिक मिलन वास्तव में औपचारिक रह जाता है।
आपकी और अभिषेकजी की मुलाकात के विषय में अभिषेक जी की पोस्ट पढने के बाद से ही आपकी तरफ से भी पोस्ट का इंतजार था ..... अच्छा लगा रहा है क्योंकि उम्मीद से ज्यादा ही मिल रहा है.... आपने बहुत खूबसूरत ढंग से इस आत्मीयता की व्याख्या की है....
ReplyDeletePraveen jee..aapka ullass aur khushi jhalak raha hai aapke post me...:)
ReplyDeletepictures ke baare me kuchh details dete to maja aa jata...!!
प्रवीण जी,
ReplyDeleteनमस्कार !
आपकी इस ब्लॉगरीय आत्मीयता को देखकर मुग्ध हूँ।
मेलमिलाप में आत्मीयता बढ़ती है. इसमें भी सुख है जिसका पता प्रिय ब्लौगर से मिलने पर ही पता चलता है.
शब्द चयन, वाक्य विन्यास , सरल और धारा प्रबाह, स्पष्ट लेखन की कला से आप की आत्मीयता, और कोमल स्वभाव का अवलोकन सहज ही होने लगता है बहुत सुंदर प्रस्तुति . आभार .
ReplyDeleteसच है की अगर कुछ छुपाना हो तो ब्लॉग क्यू लिखा जाय . हम किसी की लिखी पोस्टो से उसकी सोच और व्यक्तित्व का अनुमान तो लगा ही लेते है. अच्छी लगी आपकी आत्मीय पोस्ट .
ReplyDelete"धन कमा कर भी इन्ही सब सुखों की ही खोज में तो निकलेंगे हम।"
ReplyDeleteवाह! अति उत्तम विचार है यह।
सधे शब्दों में सब कुछ आपने कह दी.. सच है कुछ गहरे लिखने वालों को जब भी पढ़िए मोती लेकर हम निकलते हैं...
ReplyDeleteवाह
ReplyDeleteगम्भीर रिपोर्ट
सारे बिंदूओं को समो कर उत्तम प्रस्तुति
नेटकास्टिंग:प्रयोग
लाईव-नेटकास्टिंग
Editorials
कुछ छिपाने की ही इच्छा थी तो ब्लॉगर बनता ही क्यों
ReplyDeleteप्रणाम
आप जैसे सरल ब्लोगर कम ही हैं प्रवीण भाई ...
ReplyDeleteब्लॉग जगत के माध्यम से, जो अभिव्यक्ति की आज़ादी मिली है उसे ईमानदारी से व्यक्त करने की कमी अभी खलती है, अतः लेखों में वह सजीवता नहीं आ पाती जो कि उन्मुक्तता में मिलती है फिर भी काफी हद तक किसी के भी लेखन से उसका व्यवहार और चरित्र उजागर हो जाता है ! शायद यही ब्लागिंग की शक्ति है !
वाकई ब्लागिंग एक नशा है प्रवीण जी ! घर के कई बहुत जरूरी कार्य रह जाते हैं क्योंकि घर पर जब भी होते हैं, कंप्यूटर पर ही बैठना अच्छा लगता है ! :-(
ठलुआ लोगों के लिए शायद यह वरदान होगा ! मुझे इस स्थिति में आने के लिए ४ साल और हैं, देखता हूँ तब कैसा लगेगा ?
अभी तो अपने ऊपर झुंझलाहट होती है !
आपको लत न लगे ...शुभकामनायें देता हूँ !
:-)
ReplyDeleteआपके ब्लॉग पर आते समय ज्ञानदत्त जी हमेशा याद आते हैं !
इनसे मैं कभी नहीं मिला और न फोन पर बात की मगर मेरे मन में, उनके प्रति वही सम्मान है जो शायद शिव कुमार शर्मा जी के मन में होगा !
भाई ज्ञानदत्त जी उन चंद लोगों में से एक हैं जिनका मैं आभार मानता हूँ और आज भी इन्हें अपने मार्गदर्शक के रूप में देखना पसंद करता हूँ !
सच कहा है आपने भौतिक रूप से परिचय में कम समय लगता है लेकिन किसी का मानसिक परिचय काफी मुशिकल होता है
ReplyDeleteब्लॉग एक नशा जरुर है.इस बात को मैं भी मानता हूँ..वैसे ब्लॉग ही नहीं, इन्टरनेट ही एक नशा जैसा है..फेसबुक, ऑरकुट और न जाने क्या क्या..लेकिन इसी ब्लॉग के चलते तो इतने लोगों से मिलना संभव हुआ मेरा.
ReplyDeleteआप जैसे लोग अपने बने..दिल से जुड़े....इसके लिए ब्लॉग का मैं बहुत आभारी हूँ.
एक बात तो है, की ब्लॉग के माध्यम से मानसिक पक्ष दूसरों का हमें पता चल जाता है..उनके पोस्ट्स से कुछ और उनकी टिप्पणियों से कुछ..
मिलना बस एक औपचारिकता रह जाती है..
आपसे, विवेक भईया से, रश्मि दी से और भी बहुत लोगों से जब पहली बार बात हुई तो ऐसा बिलकुल नहीं लगा की हम पहली बार बात कर रहे हैं...
ये बस इसीलिए की ब्लॉग के माध्यम से आप लोगों से अच्छी तरह परिचित पहले ही हो चूका था मैं...:)
आपने तो पूरा ट्रेलर बना दिया
ReplyDeleteचित्रहार की भांति चला दिया
बहुत अच्छा जचा है
अपना भी चौखटा
कहीं तो फंसा ही होगा
आओ अमेरिका चलें
हिन्दी-ब्लॉग ने भले ही कोई आर्थिक लाभ न दिया हो,..........
ReplyDeleteबिलकुल सच है .और इसी सुख की खोज में तो ब्लोगर बनते हैं लोग.
भले ही किसी से मिलना न हो पर उनकी पोस्ट से उनके स्वभाव का काफी अनुमान लगा लेते हैं हम.
बहुत अच्छी लगी आपकी पोस्ट.
प्रवीणजी
ReplyDeleteहमारी आपसे मुलाकात दो महीने पहले हुई थी।
आज निशांतजी भी आप से हुई भेंट के बारे में लिखे हैं।
मेरे अनुभवों के बारे में भी आप निशांतजी के ब्लॉग पर मेरी टिप्पणी पढकर जान सकते हैं।
कडी है
http://mishnish.wordpress.com/2010/11/27/praveenjee/
यदि क्रम ऐसा ही चलता रहा तो आप बहुत जल्द बेंगळूरु का सबसे आकर्षक और लोकप्रिय Tourist Attraction बन जाएंगे!
सावधान!
शुभकामनाएं
जी विश्वनाथ
किसी भी चीज को देखने का आपका एक अलग ही नजरिया है, कुछ दार्शनिक और बहुत सा व्याव्हारिक।
ReplyDeleteसंवाद का यह माध्यम हमें तो अच्छा लगा, अभी तक। कितना नजदीक आना है किसी के, कितना गैप रखना है, काफ़ी कुछ अपने हाथ में है। किसी के प्रोफ़ाईल से इस बात का अंदाजा तो लग ही जाता है कि किस स्तर का इंटरैक्शन शुरुआती स्तर पर रख सकते हैं। वैसे जब पढ़ते हैं ब्लॉगर्स के आपस में मिलने की तो लगता तो अच्छा ही है। चलिये, हमारी शुभकामनायें उन्हें, जो आपस में मुलाकात कर पाते हैं।
ब्लॉगरीय आत्मीयता को माध्यम बना कर लिखा गया एक उत्तम विचारों से परिपूर्ण आलेख प्रवीण जी ! ऐसे कुछ ही आलेख होते है इस ब्लॉग जगत में जिन्हें पूरा पढ़ डालने का मन करता है !
ReplyDeleteमुझे लगता है बिना साक्षात हुए व्यक्तित्व का समग्र परिचय संभव नहीं है -मैं खुद लोगों की लेखनी से परिचित होता रहा हूँ मगर मिलने पर कुछ नया प्रिय या अप्रिय दिख जाता है ..मैं आपको भी सावधान करना चाहता हूँ ... :) मगर यह भी ठीक है कि ना जाने किस भेष में ईश्वर ही मिल जायं -एक मेल मिलाप क्वचिद पर भी है और आप वहां उद्धृत है ,,ठीक उसी समय जब आप मुझे उद्धृत कर रहे होंगे दूरबोध मुझे भी श्याद स्पंदित कर रहा था .
ReplyDelete
ReplyDeleteNice Expression of organised thoughts !
I keep on reading you, but today could not hold myself offering my felicitation, ignoring the moderation barrier.
bahut khub....apne bhaavo ko prabhavshali tarike se kahne ka sath hi sabhi bloggers se batchit k liye blog wakai bahut acha jariya hai....bahut ache se apne apne bhav prakat kiye hai....bhadai....
ReplyDeleteयही तो ब्लोगिंग की खासियत है अन्जानो को भी आत्मीय बना देती है…………सारगर्भित आलेख्।
ReplyDeleteप्रवीन जी ..
ReplyDeleteऐसा होता है कभी कभी हम किसी से पहली बार मिलते है और लगता ही नहीं ही पहली बार है ... हालाँकि ब्लॉग्गिंग करते कुछ ही समय हुआ है पर ऐसा लगने लगा है की कही बहुतों को अछे सा जानती हूँ ...
आपने सही कहा ब्लॉग्गिंग बहुत धारदार है ... और बहुतों के लिए emotional outlet की तरह काम भी करता है ... अच्छा लगा आपकी पोस्ट पढ़ कर ... धन्यवाद
डॉ अरविन्द मिश्र की बात अच्छी ही नहीं , ध्यान देने योग्य भी है .
ReplyDeleteआज पाबला जी की माताजी की अरदास पर पधारे थे रायपुर से संजीत त्रिपाठी और पंकज अवधिया । सही है ब्लॉगर मित्रो से मिलकर ऐसी ही अनुभूति होती है ।
ReplyDeleteधन कमा कर भी इन्ही सब सुखों की ही खोज में तो निकलेंगे हम।
ReplyDeletebahut sahi kaha aapne.
लगे रहो मुन्ना भाई...
ReplyDeleteजय हिंद...
सुन्दर आत्मीय लेख - आभार !
ReplyDeleteसुन्दर विचारपूर्ण अभिव्यक्ति..इस तरह के मिलन कार्यक्रम होते रहना चाहिए ... आभार
ReplyDeleteब्लॉगजगत एक परिवार की तरह से लगता है, पहले नाम से लोगों को पहचानते हैं, फिर तस्वीरों से और फिर उसके विचारों से. बहुत से ब्लोगेर अपने विचार खुले दिल से पेश करते हैं. ऐसे ब्लोगेर अपने से लगते हैं.
ReplyDeleteशुक्रिया इस पोस्ट के लिए. बहुत कम लोगों को ऐसा मौक़ा मिला करता है जो हम ब्लोगेर्स को मिल रहा है.
"हिन्दी-ब्लॉग ने भले ही कोई आर्थिक लाभ न दिया हो, पर विचारों का सतत प्रवाह, घटनाओं को देखने का अलग दृष्टिकोण, नये अनछुये विषय, भावों के कोमल धरातल और व्यक्तित्वों के विशेष पक्ष, क्या किसी लाभ से कम है"
ReplyDeleteबिलकुल सही कहा आपने... आपसी मेलजोल से जो ख़ुशी मिलती है, अपनत्व मिलता है वह करोड़ों रुपयों होने पर भी कभी प्राप्त नहीं हो सकता है.
प्रेमरस.कॉम
बिलकुल ठीक कहा है आपने, आपकी बात अक्षरश: सच है... ब्लोगिंग करते हुए ७-८ मास ही हुए हैं पर अभी तक जितने भी ब्लॉगर्स से मिला हूँ.. मानसिक जान पहचान है...
ReplyDeleteमनोज
धन कमा कर भी इन्ही सब सुखों की ही खोज में तो निकलेंगे हम......बिलकुल सही कहा आपने. आत्मीयता लिए हुए यह पोस्ट बेहद पसंद आया.
ReplyDeleteरोहतक ब्लॉग मिलन में जाना तय था, पर जाना न हो सका, अगले मिलन में ज़रूर जाऊँगा, कहीं भी हो :)
ReplyDeleteआपके विचारों से अक्षरशः सहमत हूँ...जल्द ही मुलाकात की आस है.
ReplyDeleteहम्म... बात तो सही लग रही है आपकी. लेकिन मुझे नहीं लगता की किसी के पोस्ट्स से आप उनके बारे में जो छवि बना लें वो हमेशा सही हो. क्या बिल्कुल अलग भी नहीं हो सकती?
ReplyDeleteसच मे मै दो ब्लागरो से मिला हूं ऎसा नही लगा जैसे मै पहली बार मिला हूं उनसे . एक रिश्ता सा लगता है .
ReplyDeleteकई बार कुछ लोगों से सुना है..."जिनक लिखा अच्छा लगता है...उनसे मिलने में डर लगता है...पता नहीं असली व्यक्तित्व कैसा हो?"...और ह़र बार मैं यही कहती हूँ...कि किताबो के लेखक के लिए यह बात भले ही सही हो..पर ब्लॉगर्स के लिए नहीं....अक्सर अपनी पोस्ट में अपना दिल खोल कर रख देना..सतत टिप्पणियाँ करना उसमे कभी कभी उत्तर-प्रतिउत्तर...उसके व्यक्तित्व का पूरा परिचय दे देती हैं ....इसलिए लगता ही नहीं यह पहली मुलाकात है...
ReplyDelete‘बहुत से ऐसे ब्लॉगर हैं जिनसे अभी तक भेंट तो नहीं हुयी है’
ReplyDeleteइसमें हमारा भी नाम जोड़ लीजिए :)
@ 'अदा'
ReplyDeleteअर्थमयी दुनिया में हमारे नापने के पैमाने भी अर्थमयी हो गये हैं। यदि चीजों को उनके खालिस रूप में ही ग्रहण कर लिया जाये तो भी आनन्द। हर वस्तु को धन में बदलना आवश्यक भी तो नहीं।
@ M VERMA
हिन्दी विकास का आधार तैयार हो रहा है जिसमें न्यूनतम प्रयास से सारे सुधीजन जुड़ रहे हैं, विचार विनिमय हो रहा है, प्रतिक्रियायें मिल रही हैं और यह सब कुछ त्वरित गति से हो रहा है। यह अपने में बहुत है प्रारम्भिक अवस्था के लिये।
@ वाणी गीत
विश्वास व्यक्त हो किसी व्यवस्था व प्रयोग में तो उपयोगी चीजें मिलने ही लगती हैं।
@ केवल राम
दूसरों को समझ लेने की सहनशीलता विकसित करने के बाद आत्मीयता स्वतः आ जाती है। आत्मीय वातावरण में निर्बाध ज्ञानार्जन होता है और साहित्य-सृजन भी।
@ Archana
आपको कितनी बार स्वागत निमन्त्रण भेज चुके हैं, आप आइये गानों की श्रंखला सुननी है आपसे। बैखकर बहुत सी ऐसी बातें ज्ञात हो जाती हैं जो ब्लॉग में नहीं दिख पाती हैं।
@ Vivek Rastogi
ReplyDeleteमौलिक सुखों को जी लेने की प्रवृत्ति कम हो गयी है और धन को ही सुखों की माप स्वरूप हम ले आते हैं जीवन में। जब तक हमको इस भूल का भान होता है, धन जीवन की हानि कर चुका होता है।
@ अजय कुमार झा
जो बताने का है वह पोस्ट में ही डाल देते हैं, इतर बताने का कुछ नहीं है जिससे ब्लॉग सज पायेगा। बहुत धन्यवाद आपका कि आपको ब्लॉग अच्छा लगा।
ब्लॉग जगत को आभासी अवश्व कहा जा सकता है पर सुख का अनुभव मौलिक है। हम तो उसी की खोज में ब्लॉग ब्लॉग धूमते रहते हैं।
@ देवेन्द्र पाण्डेय
जितनी खुलकर बातें ब्लॉगजगत में हो जाती हैं, कहीं और पर संभव नहीं है। सशक्त माध्यम बनकर उभरा है यह हमारे भावों की अभिव्यक्ति का। सुख भी बहुत है इसमें।
@ सुज्ञ
आत्मीयता का कोई मोल नहीं है। संग में गुजारे हुये आत्मीय क्षण एक आनन्दकोष के रूप में जीवन पर्यन्त साथ बने रहेंगे।
@ भारतीय नागरिक - Indian Citizen
आपका स्वागत है, जब आपके पग दक्षिणाभिमुख होना चाहें, हमें सूचित कर दीजियेगा।
@ hindizen.com
ReplyDeleteअवचेतन में मेलमिलाप के पहले ही एक पूरा खाका बन जाता है, पारस्परिक सम्बन्ध निश्चय ही एक विराट चेतना लेकर आया है। आत्मिक सुख के साथ साथ उसी में ही हिन्दी उत्थान के बीज छिपे हैं। हमारी रचनाशीलता, सृजनशीलता और सामाजिकता, तीनों अपना मूर्त स्वरूप पा जाते हैं ब्लॉगिंग में।
@ 'उदय'
बहुत बहुत धन्यवाद इस उत्साहवर्धन का।
@ ajit gupta
हिन्दी ब्लॉग जगत का जन्म एक अभिरुचि के रूप में हुआ था। लगाव भी साहित्यप्रेमियों का व्यक्तिगत ही था। अब एक सामूहिक चेतना का संवाहक बन जाने के पश्चात आर्थिक संभावनायें भी दिखने लगी हैं लोगों को, पर बह प्राथमिक और मूलभूत उद्देश्य तो हो ही नहीं सकता है। धन के लाभ कम हैं, हानि अधिक। भगवान करे ब्लॉग जगत उन अवगुणों से बचा रहे।
@ honesty project democracy
गहरा लिखने में आत्म खुल जाने का खतरा बना रहता है। हल्का लिखने में आत्मिक आनन्द नहीं मिलता। कृत्रिम आवरण क्यों ओढ़ा जाये, मौलिक सुखों को खोजने वालों को।
@ संगीता स्वरुप ( गीत )
अच्छा लिखने से और अच्छा पढ़ने से सुख मिलने लगता है। सुखमयी परिचय विचारों के विनिमय से होता है, जिसके लिये ब्लॉग जगत सबसे उपयुक्त स्थान है।
@ Rahul Singh
ReplyDeleteब्लॉग पर लिखा साहित्य उन बिन्दुओं को छूने का प्रयास भर है जो हम सभी कभी न कभी अनुभव करते है अपनी ब्लॉग यात्रा में। उन्ही को सरल श्दों में लिख देने का प्रयास भर था यह।
@ मनोज कुमार
मैं तो जितने ब्लॉगरों को पढ़ पाता हूँ, मुझे तो वो सारे जाने पहचाने लगते हैं।
@ PN Subramanian
मानसिक परिचय अधिक प्रगाढ़ होता है और तब और भी अधिक जब ब्लॉगों के माध्यम से दोनों पक्षों के मन पूर्णतया व्यक्त हों। गुणवत्ता से रहित और कृत्रिमता से पूर्ण पोस्टों पर अभिरुचि लम्बे समय तक नहीं रह पाती है।
@ दिनेशराय द्विवेदी Dineshrai Dwivedi
पोस्टें पढ़ने के बाद लगने लगता है कि कितना कुछ जानते हैं औरों के बारे में।
@ डॉ॰ मोनिका शर्मा
अभिषेक जी के गुण तो विस्तार से बता नहीं पाया, आत्मीयता के ही दर्शन में उतर गया।
@ Mukesh Kumar Sinha
ReplyDeleteइण्टरनेट से लुकाछिपी चल रही है ट्रेन यात्रा में, घर पहुँच कर चित्रों के कैप्शन दे दिये जायेंगे।
@ संजय भास्कर
आत्मीयता तो ब्लॉग पढ़कर सारपूर्ण टिप्पणी देने से ही प्रारम्भ हो जाती है। मिल जाने से और प्रगाढ़ होने लगती है।
@ गिरधारी खंकरियाल
बहुत बहुत धन्यवाद आपका, इन उत्साहपूर्ण शब्दों के लिये।
@ ashish
लेखन के माध्यम से हृदय का मर्म समझा जाता है। कुछ छिपाने की आस रखने वाले लेखन में कभी नहीं आयेंगे। यह तो उदार व पारदर्शी जनों का समूह है।
@ Saurabh
हमें सुखों को उसके मौलिक स्वरूप में जीना चाहिये, आर्थिक कृत्रिमता में ओढ़कर नहीं।
@ सागर
ReplyDeleteहमारे सहेजे बहुत से मोतियों पर आपका अधिकार है।
@ Girish Billore 'mukul'
बहुत धन्यवाद आपका।
@ अन्तर सोहिल
दिल उड़ेलकर रख देने वाली प्रजाति में शामिल हैं हम सब।
@ सतीश सक्सेना
अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता का सदुपयोग साहित्य संवर्धन के लिये हो सकता है, दुरुपयोग की तो सीमायें ही नहीं और उसके ढेर प्रमाण उपस्थित भी हैं ब्लॉग जगत में। आत्मीयता एक दिशा निर्धारित करती है सृजन की। अभी ब्लॉगजगत उस परिपक्व स्थिति में नही है कि हम मन के कलुष भाव उसमें उड़ेलें।
ज्ञानदत्तजी से ब्लॉगर के रूप में एक बार भी नहीं मिला हूँ पर पथ प्रदर्शक के रूप में लगता है कि वह सदा ही साथ रहते हैं।
@ नरेश सिह राठौड़
मानसिक परिचय ही पूर्ण परिचय कहलाता है, संभवतः।
@ abhi
ReplyDeleteब्लॉग एक नशा है मेरे लिये क्योंकि पढ़ने में असीमित रुचि है और ब्लॉगजगत उसे परिपूर्ण करने में सक्षम है। पहली बार मिलना एक औपचारिकता मात्र रह जाती है।
@ अविनाश वाचस्पति
आप तो हर सम्मेलन के प्रमुख अंग हैं, आप तो छूट ही नहीं सकते हैं।
@ shikha varshney
आत्मीयता में एक बड़ा सुख छिपा है। कोई हँसकर आपके सुख दुख के बारे में दो शब्द ही पूँछ ले, और क्या चाहिये जीवन को?
@ G Vishwanath
आपका सारा विवरण पढ़ लिया। स्टेशन में मिली तनिक आत्मीयता की मिठास आपको नुकसान नहीं करेगी। मैडम घर नहीं आ पायीं अतः संकोच में हम असंयत अनुभव कर रहे हैं। सपरिवार पुनः घर आयें फ्रीडम पार्क देखने, तब आगमन पूर्ण माना जायेगा।
दिल्ली में दो-तीन घंटों का समय था हाथ में, निशान्त जी से मिलने की इच्छा भी थी, ईश्वर ने संयोग बना दिया। आत्मीयता की मधुरतम मिठास उनके घर में मिली हमें, आनन्द आ गया।
@ मो सम कौन ?
विचारों का विनिमय प्रधान है, मेल तो माध्यम है। यह लेख पूर्णतया व्यवहारिक है, दर्शन बस पाये हुये सुख की अभिव्यक्ति में है। आपसे मिलने की इच्छा हमारे अन्दर बहुत है।
@ पी.सी.गोदियाल
ReplyDeleteईश्वर का अतिशय धन्यवाद जो आपकी सराहना के योग्य लिख पाये।
@ Arvind Mishra
जीवन सदा ही आपको कुछ न कुछ आश्चर्य अवश्य पकड़ाता है और उसके लिये आगाह भी करता रहता है। प्रेम ढूढ़ने वालों को तो विष पिलाने का और सर्प से कटवाने का इतिहास भी है यहाँ पर। सर्व सह्यम् कृष्णार्थम्। मन तरंग ढूढ़ लेती है अपनापन।
@ डा० अमर कुमार
बहुत धन्यवाद आपका, यह जानकर लेखन को और बल मिलेगा।
@ zindagi-uniquewoman.blogspot.com
अनुभवजन्य भाव ही प्रकट किये हैं, आत्मीयता के बारे में। आपका बहुत धन्यवाद।
@ वन्दना
विचार प्रमुख होते हैं आत्मीयता के लिये। बहुत धन्यवाद आपका।
@ क्षितिजा ....
ReplyDeleteअभी तक तो ब्लॉगिंग और ब्लॉगरों का अनुभव आनन्ददायक रहा है, जिन सुखों को खोजते हुये आया था, सब के सब मिल रहे हैं यहाँ। एक गाना याद आता है...मेरा तुझसे है पहले का नाता कोई, यूँ ही नहीं दिल लुभाता कोई।...
@ सतीश सक्सेना
सुख की खोज करने वालों के लिये दुख का अनुभव तो आना ही है।
@ शरद कोकास
यह अनुभूति ही ऐसी है।
@ Poorviya
सुखों को पहचानना और अपना लेना एक कला बनकर रह गया है इस जीवन में।
@ खुशदीप सहगल
बहुत धन्यवाद आपका।
@ ZEAL
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद आपका।
@ महेन्द्र मिश्र
जहाँ चाह बनेगी, राह अवश्य निकलेगी।
@ एस .एम .मासूम
एक बड़ा सा परिवार है, अपना प्यार, अपनी तकरार।
@ Shah Nawaz
आपसी मेल जोल में बड़ा सुख है जो धन नहीं खरीद सकता है।
आत्मीयता का उजास फ़ैलाती, सुंदर प्रस्तुति. आभार.
ReplyDeleteसादर
डोरोथी.
@ Manoj K
ReplyDeleteयही मानसिक जान पहचान विस्तृत विचार निनिमय और आत्मीयता का आधार बनती है। अगले मिलन में आपकी प्रतीक्षा रहेगी।
@ Vandana ! ! !
बहुत धन्यवाद आपका।
@ Udan Tashtari
दिल्ली बुला रही है, सीटी बजा रही है।
@ अभिषेक ओझा
पूरी छवि तो निश्चित ही नहीं बनायी जा सकती है पर एक रूपरेखा तो खिंच ही जाती है।
@ dhiru singh {धीरू सिंह}
हमसे भी भेंट का योग निकलवाईये।
@ rashmi ravija
ReplyDeleteयह भय आपको रोकेगा नहीं और भगवान कभी भी इतना निष्ठुर हो ही नहीं सकता। मानसिक आत्मीयता धीरे धीरे विकसित होती है और बहुत लम्बे समय तक रहती है।
@ cmpershad
पर भेंट की इच्छा है।
@ Dorothy
ReplyDeleteईश्वर करे ब्लॉग जगत का भाव आत्मीयता प्रधान बना रहे।
shayad yah atmeeyata bhi lekhkiya dharm hai.
ReplyDeleteहिन्दी-ब्लॉग ने भले ही कोई आर्थिक लाभ न दिया हो, पर विचारों का सतत प्रवाह, घटनाओं को देखने का अलग दृष्टिकोण, नये अनछुये विषय, भावों के कोमल धरातल और व्यक्तित्वों के विशेष पक्ष, क्या किसी लाभ से कम है..!
ReplyDeleteबिना लाग लपेट कम शब्दों में सीधी और सच्ची बात बहुत अच्छी लगी पोस्ट बहुत अच्छी लगी
Nice post.
ReplyDeleteआपने बहुत सरल भाषा में बिना लाग लपेट के अपनी बात कही है |बहुत अच्छा लगा पोस्ट देख कर |बहुत बहुत बधाई
ReplyDeleteआशा
@ Hari Shanker Rarhi
ReplyDeleteजो अपना हृदय खोल देने का निश्चय कर चुका हो उसके लिये आत्मीयता स्वाभाविक ही है।
@ रचना दीक्षित
धन और मान के अँधियारे में जीवन के मौलिक सुखों को भूल जाना घातक हो सकता है हम सबके ही लिये।
@ HAKEEM YUNUS KHAN
बहुत धन्यवाद आपका।
@ Asha
भाव तो सरल ही होते हैं, मन के रास्ते बाहर आते हैं तो जटिल हो जाते हैं, हृदय के रास्ते आयें तो सरलता बची रह सकती है।
abhi pichle dinon main bhi salil sir (chala bihari wale) se mila...unse milne par lga hi nahi ki pahli baar mil raha hun... blogjagat wakai kuch acche logon se milaya hai... :)
ReplyDelete@ स्वप्निल कुमार ' आतिश '
ReplyDeleteजहाँ एक ओर ब्लॉग जगत कई अच्छे लोगों से मिलाता है वहीं कई बहुत अच्छे आलेखों व कविताओं को पढ़ाकर मन प्रसन्न कर जाता है।
यह कारवाँ बढ़ता रहे।
िआर्थिक लाभ शायद उतना सुख नही देता जितना मानसिक लाभ देता है। अगर हम ब्लाग के लिये खर्च नही करेंगे तो उस खाली समय मे और कहीं कर देंगे बात वहीं रहेगी लेकिन वो मानसिक सुख नही मिलेगा जो यहाँ मिलता है। कितने जाने अनजाने रिश्ते, सनेह मार्गदर्द्शन और नित नई ऊर्जा मिलती है। पता ही नही चलता कब दिन बीत जाता है, माह बीत जाता है। और क्या चाहिये। बस ब्लागजगत का ये स्नेह बना रहे। शुभकामनायें, आशीर्वाद।
ReplyDeleteअकसर हम दूसरों के किये-धरे पर टीपते हैं और उसमें अतिशय आनंद आता है,ख़ासकर राजनीतिक-विषय में इस तरह का बड़ा 'स्कोप' है,पर अपने किये-धरे पर,वह भी ईमानदारी से ,कुछ कह पाना सरल नहीं होता .ब्लागरों की दुनिया एक इंद्रजाल-सी है,जिसमें जितना पहुँचोगे,कम ही होगा.आपने विस्तार से हम-सबकी, अन्दर-बाहर की परख की है,इसके लिए हम तो बस एक "टीप" ही दे सकते हैं !
ReplyDeleteबहुत ही सहज -
ReplyDeleteसटीक बातें लिखीं हैं आपने -
प्रशंसा के पात्र हैं -
बधाई एवं शुभकामनाएं
यदि कुछ छिपाने की इच्छा होती तो कोई ब्लॉगर बनता ही क्यों? बहुत ही सटीक बात कही आपने यही सच है..
ReplyDeleteफ़िर से धमाका... इस पोस्ट न तो बहुतों का दिल खोलकर रख दिया सर जी...
ReplyDeleteपहले तो धन्यवाद दूसरे ब्लोगर्स से भी मिलवाने का... और आपकी इस पोस्ट की कई बातों से मै सहमत हूँ... जैसे स्संनेवाला न ओले तो उसके व्यक्तित्व का आवलोकन, या मिलनसारी लोगों से मिलने की खुशी... ब्लॉग या कुछ भी लिखने से मिलने वाला आत्मीय सुख और धन कम कर भे अतार्मन की ख़ुशी की खोज...
जान पहचान तो स्वतः पल्लवित पुष्पित हो जाती है; आत्मीयता अनायास ही हो जाती है....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर पोस्ट!
आभार!
पैसा, हिन्दी लेखन में कितना है...यह तो मुझे पता नहीं (अलग से बहस विषय हो सकती है) पर, हिन्दी ब्लागिंग, लेखन से भी बढ़कर है. बाक़ी जगह तो आमतौर से लेखक की छवि उसके लेखन के कारण ही उभरती है, जो ज़रूरी नहीं कि वैसी हो भी. जबकि यहां, व्यक्ति व उसके व्यक्तित्व में आमतौर से बहुत बड़ा अंतर नहीं मिलता है क्योंकि यहां अतिरिक्त कृतित्व के, हम लेखक से भी आए दिन दो चार होते ही रहते हैं...
ReplyDeleteभाई प्रवीण जी आपका ब्लाग बहुत पसन्द आया।
ReplyDeleteधन कमा कर भी इन्ही सब सुखों की ही खोज में तो निकलेंगे हम।
ReplyDeleteबहुत सही संदेश दिया है आपने !प्रवीन जी आपका ब्लॉग बहुत अच्छा है ! शिवसमुद्रम पोस्ट बहुत पसंद आई ! बहुत बहुत बधाई ! कभी ऊष्मा पर भी आयें !
ब्लॉग लेखन और साहित्य लेखन में आधारभूत अंतर यही है कि ब्लॉग लिखने वाले के व्यक्तित्व का अंदाज़ा उनके लेखन से कमोबेश लग ही जाता है और वह चित्र पारदर्शी न हो तो पारभासी अवश्य होता है. कई बार मन मचल उठता है मिलने को, कई बार रिश्ते बन जाते हैं. आपके बेंगलुरू से सरिता दी मेरी बड़ी बहन बन गईं, उत्साही जी बड़े भाई हैं, अभिषेक अपना भतीजा. और यह सारे रिश्ते सिर्फ दिखावा नहीं, बहुत सोच समझकर बने और बनाए हैं. कोई बाबूजी कहता है फोन पर और कोई पापा और कोई चाचा, तो मन भर जाता है.
ReplyDeleteप्रवीण जी आपने दानापुर का ज़िक्र किया तो मन में एक आत्मीयता सुगबुगाई, आपने रेलवे का ज़िक्र किया तो मिलने की इच्छा हुई. ये सब स्वाभाविक हैं. बस आवश्यकता है दिल से सोचने की दिमाग से नहीं.. क्योंकि ये दिल ही पागल है!!
@ निर्मला कपिला
ReplyDeleteहिन्दी साहित्य प्रेमवश और सृजनात्मतावश, ब्लॉग जगता का गुरुतर योगदान है हम सबके जीवनों में।
@ संतोष त्रिवेदी ♣ SANTOSH TRIVEDI
ब्लॉगजगत बड़ा अवश्य है पर अपनी रुचि के अनुसार सबको कुछ न कुछ मिल जाता है इसमें।
@ anupama's sukrity !
बहुत बहुत धन्यवाद है आपका।
@ Sunil Kumar
बहुत धन्यवाद इस बात को बल देने का।
@ POOJA...
संभवतः लोग इसे नशा केवल इस कारण से कहते हैं क्योंकि इसमें प्रसन्नता मिलती है और अधिक समय देने का मन करता है।
@ अनुपमा पाठक
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद आपका।
@ Kajal Kumar
हमारे लेखन के बारें में प्रतिक्रिया का तुरन्त मिल जाना हमारे लेखन को उत्तरोत्तर सुधारता रहता है, यही कारण रहेगा कि ब्लॉग जगत साहित्य संवर्धन में एक महती भूमिका निभायेगा।
@ जयकृष्ण राय तुषार
बहुत धन्यवाद आपका।
@ usha rai
बहुत धन्यवाद आपके उत्साहवर्धन का।
@ चला बिहारी ब्लॉगर बनने
ब्लॉगों का स्वरूप हमारी विचार प्रक्रिया के अनुरूप है अतः यह विकसित अवश्य होगा। आपका बंगलोर में स्वागत है।
वर्चुअल ही सही जान-पहचान तो हुई है और व्यक्तित्व तथा विचारधारा का अन्दाज़ भी लगा है। कुछ चुनिन्दा लोगों से चैट और वार्ता का सुअवसर भी प्राप्त हुआ है।
ReplyDeleteहर एक शब्द बहूत कुछ कहता हुआ ...सुन्दर प्रस्तुति ...।
ReplyDelete@ Smart Indian - स्मार्ट इंडियन
ReplyDeleteकिसी का लिखा पढ़ने से कितना कुछ जाना जा सकता है लेखक के बारे में।
@ sada
बहुत धन्यवाद आपका।
Blog ke jariye ek vistrat vishaal gagan mil gaya jahaan pankh faila kar oonchi udaan idi ja sakti hai ... aur sahity saadhna bhi ki ja sakti hai ...
ReplyDelete@ दिगम्बर नासवा
ReplyDeleteकल्पनाओं के पंख लगा कर उड़ जाने का मन करता है, इस विस्तृत आसमान में। केवल चिन्तन और लेखन, आपके और पाठकों के बीच केवल एक बटन की दूरी।
ब्लॉगजगत को इसी परिचयात्मक शक्ति का वरदान प्राप्त है। सारे ब्लॉगर अपने ब्लॉगों के माध्यम से व्यक्त हैं, अन्य ब्लॉगरों के लिये।
ReplyDeleteहृदय को सबके सामने उड़ेल देने वाली प्रजाति का व्यक्तित्व सहज और सरल तो होना ही है। यदि नहीं है तो प्रक्रियारत है।
प्रथमागन पर ही ब्लाग की शक्लोसूरत देखकर मंत्र मुग्ध हूं. जितनी सादगी ब्लाग के गेटअप में दिखाई देती है उसी के अनूरूप पोस्ट भी जेठ की दुपहरी में ठंडी बयार की तरह है.
आपने सहजता और सरलता को प्रक्रियारत कहकर मेरी शंका का समाधान कर दिया वर्ना मुझ जैसे प्राणी तो अब थक कर किनारा करने के मूड में हैं.
बहुत बहुत शुभकामनाएं.
रामराम.
@ ताऊ रामपुरिया
ReplyDeleteआपकी छत्रछाया में कुरुवंश पल रहा है, थोड़ा बहुत मल्लयुद्ध कर लेने दें उन्हें। पिछली भूलों से सीख अब मिलजुल कर रहेंगे, यदि महाभारत फिर भी मचा तो संचय भाई से रनिंग कमेन्ट्री सुनी जायेगी, चाय और पकौड़ी के साथ।
आपने आकर मेरे ब्लॉग का मान बढ़ा दिया है।
बहुत अच्छा ब्लोगरों का मिलन है .बधाई .
ReplyDeleteआत्मीयता से लिखी गई पोस्ट अंतर्मन को छु गई |मिलना न मिलना ये अलग बात है कितु ब्लाग के जरिये उस व्यक्ति के विचारो से एक आत्मीय सम्बन्ध तो बन ही जाता है |मेरे लिए तो ये सम्बल ही बड़ी पूंजी है |
ReplyDeleteबधाई इतनी सुन्दर पोस्ट के लिए |
अभिषेक जी से मुलाकात क्या हुई आपने तो एक अच्छी खासी पोस्ट लिख ली । यह आपने सही कहा कि जब आप औरों को पढते हैं तो कुछ पाकर ही उठते हैं । कितने सारे लोग हैं इस ब्लॉग जगत में मै तो अभी तक किसी से भी नही मिली पर लगता है सब को जानती हूँ । छींटाकशीं, आरोप प्रत्यारोप तो चलते ही रहते हैं किसी परिवार की तरह पर कुछ समझदार व्तॉगर मामलों को शांत भी कर लेते हैं जैसे कि परिवार के बुजुर्ग करते हैं । बहुत भला लगा यहां आना और आपको पढना ।
ReplyDelete@ अशोक बजाज
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद आपका।
@ शोभना चौरे
ब्लॉग के माध्यम से जब एक आत्मीय सम्बन्ध बन जाता है तब विचार विनिमय और भी सरल हो जाता है।
@ Mrs. Asha Joglekar
आरोप प्रत्यारोपों वाली पोस्टों में तो कुछ मिलता ही नहीं है, यदि मिले तो उन्हें भी पढ़ने में कोई हानि नहीं है। उसके इतर बहुत से लोग बड़ा सार्थक लिख रहे हैं।
abhishek ji ke blog pe aapke mulakaat ke baare main padha tha. aapka yeh post pdhke bhi bahut accha laga.!
ReplyDeleteगहरी पोस्टें कठिन होती हैं लिखने में, पर हृदय खोलकर रख देती हैं, पाठकों के सामने...
ReplyDeleteऐसा ही होता है। वैसे सतही ब्लॉगिंग भी जरूरी है, धीरे-धीरे इससे जुड़े लोग गहराई तक घुसते जाते हैं। अच्छा लिखा है आपने।
one of the best post i have ever read on blogging, blogger and beyond.
ReplyDeleteबिलकुल संतुलित, सधा हुआ और आत्मीय आलेख. ब्लॉग्गिंग के बारे में ऐसे विचार कम पढ़ने को मिलते हैं. सकारात्मक लेखन ऐसा ही होता है.
आपको पढके लगता है आप कि सोच काफी पोसिटिव है.
@ SEPO
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद आपका।
@ satyendra...
सबसे पहले आकर्षण होता है, सतही लहरों का ही, पर जब पता लगता है कि लहरों का स्रोत कितना गहरा है तब उस सागर में कूदने का मन करता है।
@ Puja Upadhyay
बहुत धन्यवाद इतनी प्रशंसा उड़ेलने के लिये। जब मैं लिखता हूँ कि गहरी पोस्टें हृदय खोल कर रख देती हैं तो उस समय आपकी पोस्टों का स्मरण रहता है मुझे।
सच है कि ब्लॉग जगत लोगों को लोगों से जोड़ने का काम कर सकता है अगर सही तरीके से इस्तमाल किया जाय ...
ReplyDelete@ Indranil Bhattacharjee ........."सैल"
ReplyDeleteनिश्चय ही ब्लॉग जगत के माध्यम से पता नहीं कितने समान मानसिकता के लोग पारस्परिक सम्पर्क में हैं।
ये आत्मीयता कमाल की लगी!!... बिल्कुल अपनी आवज जैसी..
ReplyDelete"आस पास देखें, ब्लॉग जगत से परे, बहुत ऐसे व्यक्तित्व दिख जायेंगे जो कभी खुलते ही नहीं, स्वयं को कभी भी व्यक्त नहीं करते हैं, शब्दों में तो कभी भी नहीं। उनका चेहरा नित देखकर भी बड़ा अपरिचित सा लगता है। उन्हें यदि हम जान भी पाते हैं तो स्वयं के अवलोकन से। "
यह बात मेरे उपर भी लागू होती है.. मुझे वास्तविक जीवन में शायद ही कोई जानता हो... मेरी कोई पहचान नही है.. यूनिवर्सिटी के कुछ जूनियर्स को कहते सुना हैं.. ये हमारे सीनियर हैं क्या?
@ Manish
ReplyDeleteपर ब्लॉग जगत में आप अपने गहन लेखों के द्वारा स्पष्ट रूप से व्यक्त हैं और लगता है कि आपको वर्षों से जानते हैं हम।
hindi blog ne hame avasar diya hai ham ek behatar insaan bane aur samaaj me kuchnaya contribute kare.. aapke is post ne dil ko choo liya .. mujhse baatkare , bangalore aaunga to jarur milunga ..
ReplyDeletevijay
poemsofvijay.blogspot.com
09849746500
@ Vijay Kumar Sappatti
ReplyDeleteबंगलोर में आपका स्वागत है, ब्लॉगरों के सम्पर्क में आ एक नया अध्याय खुल गया है जीवन में।