tag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post774978604663911364..comments2024-03-17T19:33:00.050+05:30Comments on न दैन्यं न पलायनम्: विस्तार जगत का पाना हैप्रवीण पाण्डेयhttp://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.comBlogger64125tag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-5720871214899054382012-09-25T04:26:15.444+05:302012-09-25T04:26:15.444+05:30यदि संस्कार क्षयमान हुये, होती परिलक्षित फूहड़ता,
...यदि संस्कार क्षयमान हुये, होती परिलक्षित फूहड़ता,<br />वह शक्ति-प्रदर्शन, अट्टहास, लख राजनीति की लोलुपता,<br />जीवन शापित हर राहों में, भर कुरुक्षेत्र दो बाहों में,<br />कर छल-बल, पल पल खेल रही, पूछूँगा, कैसी जनसत्ता ।।६।।<br /><br />चहुँ ओर हताशा बिखरी है, बन बीज जगत के खेतों में,<br />देखूँगा निस्पृह, जुटे हुये, सब भवन बनाते रेतों में,<br />जीवन के पाँव बढ़ायेंगे, अपने उत्तर पा जायेंगे,<br />सब चीख चीख बतलाना है, कब तक कहते संकेतों में ।।७।।<br /><br />आज के परिवेश का यथार्थ कह रही है कविता, आवाज़ तो इसके विरोध में उठ रही हैं और उठनी चाहिये । Asha Joglekarhttps://www.blogger.com/profile/05351082141819705264noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-74185965744748228502012-09-16T17:09:40.628+05:302012-09-16T17:09:40.628+05:30मेघों का गर्जन अर्थयुक्त, पृथ्वी का कंपन समझूँगा,
...मेघों का गर्जन अर्थयुक्त, पृथ्वी का कंपन समझूँगा,<br />माँ प्रकृति छिपाये आहत मन, आँखों का क्रन्दन पढ़ लूँगा,<br />सुन चीख गरीबी, भूख भरी, अँसुअन बन मन की पीर ढरी,<br />तन कैसे जीवन ढोता है, अध्याय हृदयगत कर लूँगा ।।५।।<br />वाह वाह वाह बेहद खूबसूरत एक एक शब्द एक खूबसूरत सन्देश देता हुआ |Minakshi Panthttps://www.blogger.com/profile/07088702730002373736noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-38371833750199187422012-09-13T22:10:39.054+05:302012-09-13T22:10:39.054+05:30कितना कुछ करना है । प्रेरक ।कितना कुछ करना है । प्रेरक ।Asha Joglekarhttps://www.blogger.com/profile/05351082141819705264noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-62059336485057690242012-09-12T11:58:23.329+05:302012-09-12T11:58:23.329+05:30सुन्दर प्रेरणा से ओतप्रोत अभिव्यक्ति. सुन्दर प्रेरणा से ओतप्रोत अभिव्यक्ति. P.N. Subramanianhttps://www.blogger.com/profile/01420464521174227821noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-44519496011808872122012-09-12T07:51:58.229+05:302012-09-12T07:51:58.229+05:30जी, धन्यवाद। ठीक कर लिया है।जी, धन्यवाद। ठीक कर लिया है।प्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-9954405931913738632012-09-12T02:39:09.482+05:302012-09-12T02:39:09.482+05:30
यदि संस्कार क्षयमान हुये, होती परिलक्षित फूहड़ता,...<br />यदि संस्कार क्षयमान हुये, होती परिलक्षित फूहड़ता,<br />वह शक्ति-प्रदर्शन, अट्टाहस, लख राजनीति की लोलुपता,<br />जीवन शापित हर राहों में, भर कुरुक्षेत्र दो बाहों में,<br />कर छल-बल, पल पल खेल रही, पूछूँगा, कैसी जनसत्ता.<br /><br />अट्टाहस की जगह अट्टहास होना चाहिए था, शायद.<br />कविता तीन दिन तक मन को मथती रही. गहरे प्रतीक हैं. अद्भुत रचना है.santosh pandeyhttp://sarerang.blogspot.innoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-83317639463024466102012-09-12T00:18:31.301+05:302012-09-12T00:18:31.301+05:30Bade dino baad bilkul hindi ki sudhta ka ehsaah hu...Bade dino baad bilkul hindi ki sudhta ka ehsaah hua hai yahan aakar. Aaata rahunga. Sadhuwaad! बेईमान शायरhttps://www.blogger.com/profile/14983189752575300196noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-6036137220786724622012-09-12T00:09:41.596+05:302012-09-12T00:09:41.596+05:30
विस्तार जगत का पाना है
आयाम विचारों का सीमित, रह ...<br />विस्तार जगत का पाना है<br />आयाम विचारों का सीमित, रह चार दीवारों के भीतर,<br />लगता था जान गया सब कुछ, अपने संसारों में जीकर,<br />आदमी के घर घुस्सू पन कूप मंडूकता को ललकारते हुए यह रचना आत्मालोचन करती हुई आगे बढती है.अपने ही स्व :का अतिक्रमण कर कवि सारी कायनात और उसकी खूबसूरती और पीड़ा दोनों से जुड़ता है और कुछ नया करने के लिए छटपटाता है .<br /><br /><br /><br />मेघों का गर्जन अर्थयुक्त, पृथ्वी का कंपन समझूँगा,<br />माँ प्रकृति छिपाये आहत मन, आँखों का क्रन्दन पढ़ लूँगा,<br />सुन चीख गरीबी, भूख भरी, अँसुअन बन मन की पीर ढरी,<br />तन कैसे जीवन ढोता है, अध्याय हृदयगत कर लूँगा ।।५।।<br /><br />तिहाड़ खोर राजनीति के टुकड़ खोरों की भी अच्छी खबर लेता है <br /><br /><br />यदि संस्कार क्षयमान हुये, होती परिलक्षित फूहड़ता,<br />वह शक्ति-प्रदर्शन, अट्टाहस, लख राजनीति की लोलुपता,<br />जीवन शापित हर राहों में, भर कुरुक्षेत्र दो बाहों में,<br />कर छल-बल, पल पल खेल रही, पूछूँगा, कैसी जनसत्ता <br /><br />उसका स्व :विस्तारित हो एक बड़े फलक पर फ़ैल जाता है कविता को भी वह लय ताल छंद से मुक्त कर नए विषय आँचल में अपने भर लेने का आवाहन करता चलता है .<br /><br />ram ram bhai<br />मंगलवार, 11 सितम्बर 2012<br />देश की तो अवधारणा ही खत्म कर दी है इस सरकार ने<br />virendra sharmahttps://www.blogger.com/profile/02192395730821008281noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-19494406513366907382012-09-11T23:59:53.810+05:302012-09-11T23:59:53.810+05:30संदेशपरक!
चलायमान रहना कविता का जीवन भी है, आत्मा ...संदेशपरक!<br />चलायमान रहना कविता का जीवन भी है, आत्मा भी और प्रगति भी।<br />यह चलता रहे! Avinash Chandrahttps://www.blogger.com/profile/01556980533767425818noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-29733033144619628732012-09-11T20:28:48.544+05:302012-09-11T20:28:48.544+05:30सुंदर प्रस्तुति पांडेय जी सुंदर प्रस्तुति पांडेय जी travel ufohttps://www.blogger.com/profile/15497528924349586702noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-28835640639978470382012-09-11T18:27:04.043+05:302012-09-11T18:27:04.043+05:30न दैन्यं न पलायनम्
8.9.12
विस्तार जगत का पाना है
...न दैन्यं न पलायनम्<br />8.9.12<br /><br />विस्तार जगत का पाना है<br />आयाम विचारों का सीमित, रह चार दीवारों के भीतर,<br />लगता था जान गया सब कुछ, अपने संसारों में जीकर,<br />आदमी के घर घुस्सू पन कूप मंडूकता को ललकारते हुए यह रचना आत्मालोचन करती हुई आगे बढती है.<br /><br />अपने ही स्व :का अतिक्रमण कर कवि सारी कायनात और उसकी खूबसूरती और पीड़ा दोनों से जुड़ता है और कुछ नया करने के लिए छटपटाता है .<br /><br /><br /><br /> मेघों का गर्जन अर्थयुक्त, पृथ्वी का कंपन समझूँगा,<br />माँ प्रकृति छिपाये आहत मन, आँखों का क्रन्दन पढ़ लूँगा,<br />सुन चीख गरीबी, भूख भरी, अँसुअन बन मन की पीर ढरी,<br />तन कैसे जीवन ढोता है, अध्याय हृदयगत कर लूँगा ।।५।।<br /><br />तिहाड़ खोर राजनीति के टुकड़ खोरों की भी अच्छी खबर लेता है <br /><br /><br />यदि संस्कार क्षयमान हुये, होती परिलक्षित फूहड़ता,<br />वह शक्ति-प्रदर्शन, अट्टाहस, लख राजनीति की लोलुपता,<br />जीवन शापित हर राहों में, भर कुरुक्षेत्र दो बाहों में,<br />कर छल-बल, पल पल खेल रही, पूछूँगा, कैसी जनसत्ता <br /><br />उसका स्व :विस्तारित हो एक बड़े फलक पर फ़ैल जाता है कविता को भी वह लय ताल छंद से मुक्त कर नए विषय आँचल में अपने भर लेने का आवाहन करता चलता है .virendra sharmahttps://www.blogger.com/profile/02192395730821008281noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-72271536062761198192012-09-11T17:04:34.832+05:302012-09-11T17:04:34.832+05:30बेहद सशक्त भाव लिए उत्कृष्ट अभिव्यक्ति ... आभा...बेहद सशक्त भाव लिए उत्कृष्ट अभिव्यक्ति ... आभार सदाhttps://www.blogger.com/profile/10937633163616873911noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-66225607485804942062012-09-11T16:24:26.596+05:302012-09-11T16:24:26.596+05:30कविता संग रहते ऊब गयी, उसको भी भ्रमण कराना है,
एक ...कविता संग रहते ऊब गयी, उसको भी भ्रमण कराना है,<br />एक नयी हवा, एक नयी विधा, जीवन में उसके लाना है,<br />अभिव्यक्ति बनी थी जीवन की, बनकर औषधि मेरे मन की,<br />वह संग रही, पर उसको भी, विस्तार जगत का पाना है ।।८।।<br /><br />बहुत खूब भावो को विस्तार दिया है।vandana guptahttps://www.blogger.com/profile/00019337362157598975noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-292010723812323592012-09-11T14:48:50.161+05:302012-09-11T14:48:50.161+05:30वर्तमान परिदृश्य को इंगित करती ..सुन्दर रचना ...!!...वर्तमान परिदृश्य को इंगित करती ..सुन्दर रचना ...!!Aditi Poonamhttps://www.blogger.com/profile/07454848082907747001noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-41507391448405419412012-09-11T14:17:50.534+05:302012-09-11T14:17:50.534+05:30आपका जीवन यूँ ही विस्तार पाता रहे ....ये ही जिंदगी...आपका जीवन यूँ ही विस्तार पाता रहे ....ये ही जिंदगी का मूल मंत्र भी हैं :)))Anju (Anu) Chaudharyhttps://www.blogger.com/profile/01082866815160186295noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-40674635143791292432012-09-11T14:06:30.424+05:302012-09-11T14:06:30.424+05:30गहन सोच और प्रेरणादायक सुन्दर रचना !..आभारगहन सोच और प्रेरणादायक सुन्दर रचना !..आभारMaheshwari kanerihttps://www.blogger.com/profile/07497968987033633340noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-57307500656302374772012-09-11T13:48:03.921+05:302012-09-11T13:48:03.921+05:30बहुत सुंदर, विस्तार जगत का अनंत है और उसको पाना क...बहुत सुंदर, विस्तार जगत का अनंत है और उसको पाना कठिन भी फिर भी अपनी सीमाओं और संकल्पों से पाना असंभव तो नहीं है. प्रेरणादायक कविता के लिए आभार !रेखा श्रीवास्तवhttps://www.blogger.com/profile/00465358651648277978noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-79290634473076084432012-09-11T13:43:30.622+05:302012-09-11T13:43:30.622+05:30वन, कुंजों में कोयल कूँके, गूँजे मधुकर मधु-उपवन मे...वन, कुंजों में कोयल कूँके, गूँजे मधुकर मधु-उपवन में,<br />नदियाँ कल कल, झरने झर झर, बँध प्रकृति पूर्ण आलिंगन में...<br /><br />वाह मनमोहक काव्यात्मक अभिव्यक्ति .... <br />मज़ा आ गया प्रवीण जी कमाल की रचना है ...दिगम्बर नासवाhttps://www.blogger.com/profile/11793607017463281505noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-73463866809256790102012-09-11T13:29:48.741+05:302012-09-11T13:29:48.741+05:30चहुँ ओर हताशा बिखरी है, बन बीज जगत के खेतों में,
द...चहुँ ओर हताशा बिखरी है, बन बीज जगत के खेतों में,<br />देखूँगा निस्पृह, जुटे हुये, सब भवन बनाते रेतों में,<br />जीवन के पाँव बढ़ायेंगे, अपने उत्तर पा जायेंगे,<br />सब चीख चीख बतलाना है, कब तक कहते संकेतों में <br /><br />बशर्ते की सुनने वाले बहरे न हों !<br />सुन्दर रचना !पी.सी.गोदियाल "परचेत"https://www.blogger.com/profile/15753852775337097760noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-91764928962563308962012-09-11T09:11:40.457+05:302012-09-11T09:11:40.457+05:30बहुत खूब सर .ड्रग रेजिस्टेंस सरल शब्दों में समझा द...बहुत खूब सर .ड्रग रेजिस्टेंस सरल शब्दों में समझा दिया .<br />शरीर यदि दवाओं को पहचानने से इन्कार कर बैठे तो इलाज कौन करेगा भला..virendra sharmahttps://www.blogger.com/profile/02192395730821008281noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-67423832976789626582012-09-10T22:37:22.621+05:302012-09-10T22:37:22.621+05:30आपकी इस उत्कृष्ट रचना की चर्चा कल मंगलवार ११/९/१२ ...आपकी इस उत्कृष्ट रचना की चर्चा कल मंगलवार ११/९/१२ को राजेश कुमारी द्वारा चर्चा मंच पर की जायेगी आपका स्वागत है Rajesh Kumarihttps://www.blogger.com/profile/04052797854888522201noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-25384149547365151942012-09-10T22:15:43.057+05:302012-09-10T22:15:43.057+05:30वाह!
घुघूतीबासूती वाह!<br />घुघूतीबासूती ghughutibasutihttps://www.blogger.com/profile/06098260346298529829noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-86390519655958667372012-09-10T21:34:35.775+05:302012-09-10T21:34:35.775+05:30कविता संग रहते ऊब गयी, उसको भी भ्रमण कराना है,
एक ...कविता संग रहते ऊब गयी, उसको भी भ्रमण कराना है,<br />एक नयी हवा, एक नयी विधा, जीवन में उसके लाना है,<br />अभिव्यक्ति बनी थी जीवन की, बनकर औषधि मेरे मन की,<br />वह संग रही, पर उसको भी, विस्तार जगत का पाना है---बहुत उत्कृष्ट अभिव्यक्ति बहुत ही ज्यादा पसंद आई आपकी ये कविता Rajesh Kumarihttps://www.blogger.com/profile/04052797854888522201noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-30696857824566427782012-09-10T17:47:09.231+05:302012-09-10T17:47:09.231+05:30गहन और प्रेरणादायक.. काफी विस्तार को समेटा है..गहन और प्रेरणादायक.. काफी विस्तार को समेटा है..Pratik Maheshwarihttps://www.blogger.com/profile/04115463364309124608noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-47595106166421709022012-09-10T14:51:16.791+05:302012-09-10T14:51:16.791+05:30मोहक रचना
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नया 3D Facebook Like Box 6 स्टाइल्...मोहक रचना<br /><br />----<br /><a href="http://techprevue.blogspot.in/2012/09/3d-facebook-like-box-professional.html" rel="nofollow">नया 3D Facebook Like Box 6 स्टाइल्स् में</a><br /><a href="http://techprevue.blogspot.in/2012/09/add-google-transliteration-tool-near-comment-box.html" rel="nofollow">Google IME को ब्लॉगर पर Comment Form के पास लगायें</a>Vinayhttps://www.blogger.com/profile/08734830206267994994noreply@blogger.com