tag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post7722364369462586974..comments2024-03-17T19:33:00.050+05:30Comments on न दैन्यं न पलायनम्: उथल पुथल में क्रमप्रवीण पाण्डेयhttp://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.comBlogger49125tag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-15642205752059061172013-08-01T12:21:12.153+05:302013-08-01T12:21:12.153+05:30सुव्यवस्था में जो आनंद है वो और कहीं नहीं ।सुव्यवस्था में जो आनंद है वो और कहीं नहीं ।विकास गुप्ताhttps://www.blogger.com/profile/01334826204091970170noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-83553969173359062082013-07-25T23:17:50.630+05:302013-07-25T23:17:50.630+05:30क्या बात कही है. वास्तव में एक स्थिर धुरी पर ही चा...क्या बात कही है. वास्तव में एक स्थिर धुरी पर ही चाक घूमता है. <br />गति के केंद्र में स्थिरता आवश्यक है।संतोष पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/06184746764857353641noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-35525878286140848652013-07-25T01:34:08.315+05:302013-07-25T01:34:08.315+05:30बहुत सुन्दर जीवन दर्शनबहुत सुन्दर जीवन दर्शनAnonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-59028189900865086812013-07-21T18:38:19.147+05:302013-07-21T18:38:19.147+05:30नियंत्रण के कीड़ों के भी भिन्न स्तर होंने चाहिये.....नियंत्रण के कीड़ों के भी भिन्न स्तर होंने चाहिये.....पशु....बनस्पति.....मनुष्य और प्राकृतिक संघटकों के अस्तित्व के स्तरों और वैभिन्न को देखते हुऎ, ऎसा प्रतीत होता है? क्या यह बुद्धि करती है? क्योंकि सचराचर जीव जगत में ही नहीं मनुष्यों में भी बुद्धि का विकास समान नहीं होता। क्या यह विकास जीव की जीवन-यात्रा के नैरंतर्य मे हर पड़ाव पर एक नऎ स्तर की पर्त जमनें से हो सकता है, जिसे हम शास्त्रीय भाषा में संस्कार कहते हैं? यदि ऎसा नहीं है तो इस गुण-सूत्र को बुद्धि से किस प्रकार पृथक कर देखा/समझा जा सकता है?sumant mishrahttp://raashtrachintan.blogspot.comnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-88021116385080094072013-07-21T17:45:42.793+05:302013-07-21T17:45:42.793+05:30नियंत्रण के कीड़ों के भी भिन्न स्तर होंने चाहिये.....नियंत्रण के कीड़ों के भी भिन्न स्तर होंने चाहिये.....पशु....बनस्पति.....मनुष्य और प्राकृतिक संघटकों के अस्तित्व के स्तरों और वैभिन्न को देखते हुऎ, ऎसा प्रतीत होता है? क्या यह बुद्धि करती है? क्योंकि सचराचर जीव जगत में ही नहीं मनुष्यों में भी बुद्धि का विकास समान नहीं होता। क्या यह विकास जीव की जीवन-यात्रा के नैरंतर्य मे हर पड़ाव पर एक नऎ स्तर की पर्त जमनें से हो सकता है, जिसे हम शास्त्रीय भाषा में संस्कार कहते हैं? यदि ऎसा नहीं है तो इस गुण-सूत्र को बुद्धि से किस प्रकार पृथक कर देखा/समझा जा सकता है?sumant mishrahttp://raashtrachintan.blogspot.comnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-4158077741997262682013-07-21T15:50:42.164+05:302013-07-21T15:50:42.164+05:30chaos is a necessary evil :)
Sometimes lil derail...chaos is a necessary evil :) <br />Sometimes lil derailment from the regular things is not only good but vitalJyoti Mishrahttps://www.blogger.com/profile/01794675170127168298noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-13426683380782301882013-07-21T15:39:47.713+05:302013-07-21T15:39:47.713+05:30उथल पुथल के बिना जीवन अधूरा है।उथल पुथल के बिना जीवन अधूरा है।गिरधारी खंकरियालhttps://www.blogger.com/profile/07381956923897436315noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-81296175469499944352013-07-21T15:38:29.052+05:302013-07-21T15:38:29.052+05:30सोचते तो पशु भी हैं किन्तु व्यक्त नही कर पाते।सोचते तो पशु भी हैं किन्तु व्यक्त नही कर पाते।गिरधारी खंकरियालhttps://www.blogger.com/profile/07381956923897436315noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-75692343747012653992013-07-19T08:53:22.849+05:302013-07-19T08:53:22.849+05:30क्रमिक तरतीबवार अध्ययन ही किसी भी चीज़ का विज्ञान ...क्रमिक तरतीबवार अध्ययन ही किसी भी चीज़ का विज्ञान है विष ज्ञान .,बे -तरतीबी में तरतीबी virendra sharmahttps://www.blogger.com/profile/02192395730821008281noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-2736620591165724362013-07-19T00:12:05.268+05:302013-07-19T00:12:05.268+05:30अपनी निजी जीवन के उथल पुथल में क्रम हम ढूढ ही लेंग...अपनी निजी जीवन के उथल पुथल में क्रम हम ढूढ ही लेंगे या फिर भुगतेंगे पर आवश्यकता है कि कोई देश की उथलपुथल में क्रम ढूढे और उसे व्यवस्थित करे ।<br />विचार प्रवर्तक लेख ।Asha Joglekarhttps://www.blogger.com/profile/05351082141819705264noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-63447880209635170792013-07-18T18:11:07.408+05:302013-07-18T18:11:07.408+05:30क्रमबध्ता ही सबसे महत्वपूर्ण है किसी भी काम को सही...क्रमबध्ता ही सबसे महत्वपूर्ण है किसी भी काम को सही तरह से अंजाम देने के लिए। Pallavi saxenahttps://www.blogger.com/profile/10807975062526815633noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-17245907416331494722013-07-18T15:47:21.345+05:302013-07-18T15:47:21.345+05:30उथल पुथल को भी सूत्रबद्ध करता सुन्दर आलेख..उथल पुथल को भी सूत्रबद्ध करता सुन्दर आलेख..Amrita Tanmayhttps://www.blogger.com/profile/06785912345168519887noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-49769059384246688842013-07-18T09:09:04.139+05:302013-07-18T09:09:04.139+05:30इस मानसिक एंट्रॉपी के कारण ही हम ध्वस्त नहीं होते ...इस मानसिक एंट्रॉपी के कारण ही हम ध्वस्त नहीं होते हैं, आप ऊष्मागतिकी का चौथा नियम प्रतिपादित क्यों नहीं करते हैं?प्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-52752701333062068592013-07-18T09:06:04.366+05:302013-07-18T09:06:04.366+05:30डॉ अजयजी, आपका अवलोकन अक्षरशः सत्य है। यदि दिशा ही...डॉ अजयजी, आपका अवलोकन अक्षरशः सत्य है। यदि दिशा ही न ज्ञात हो तो दौड़ते रहने का क्या लाभ? जीवन के मूल प्रश्न पहले उत्तरित हो, शेष सब निष्कर्ष स्वतः निकल आते हैं।प्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-36286152001959801372013-07-18T07:59:04.945+05:302013-07-18T07:59:04.945+05:30आदरणीय श्री प्रवीण पांडे जी ,
सादर प्रणाम ...
एक न...आदरणीय श्री प्रवीण पांडे जी ,<br />सादर प्रणाम ...<br />एक निश्चित पैटर्न जरुरी हैं ,बेहतर परिणाम के लिए |<br />अक्सर लोग कहते हैं ...अमुक क्षेत्र में मेहनत करियो ...मेहनत लगा कर करियो...पर अगर किसी क्षेत्र में कोई ज्यादा ही मेहनत करे तो असफलता की ओर बढ़ रहा हैं क्यूंकि शायद वह इस कार्य के लिए नही बना हैं |जो कार्य आप बिना मेहनत के करते हैं ,जो आपका शौक हैं {अगर व्ही प्रोफेसन ,बन जाए तो क्या बात हों }<br />डॉ अजय <br />http://drakyadav.wordpress.com/Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-74150186123593748272013-07-18T06:42:31.816+05:302013-07-18T06:42:31.816+05:30शुक्रिया आपकी निरंतर टिप्पणियों का .ॐ शान्ति विस्त...शुक्रिया आपकी निरंतर टिप्पणियों का .ॐ शान्ति विस्तार व्यर्थ पैदा कर सकता है .बहुत सुन्दर .लक्ष्य केन्द्रित और संपृक्त रहो निरंतर .virendra sharmahttps://www.blogger.com/profile/02192395730821008281noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-80917234165425320552013-07-18T06:40:54.020+05:302013-07-18T06:40:54.020+05:30शुक्रिया आपकी निरंतर टिप्पणियों का .ॐ शान्ति शुक्रिया आपकी निरंतर टिप्पणियों का .ॐ शान्ति virendra sharmahttps://www.blogger.com/profile/02192395730821008281noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-82781563434953364292013-07-18T01:14:02.256+05:302013-07-18T01:14:02.256+05:30उपर्युक्त वाक्य में 'कर्म' नहीं क्रम* पढ़े...उपर्युक्त वाक्य में 'कर्म' नहीं क्रम* पढ़ें Alpana Vermahttps://www.blogger.com/profile/08360043006024019346noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-52591134198665658002013-07-18T01:13:10.091+05:302013-07-18T01:13:10.091+05:30अस्त-व्यस्तता में कर्म ढूंढ कर आगे बढ़ते रहना हर ...अस्त-व्यस्तता में कर्म ढूंढ कर आगे बढ़ते रहना हर किसी के लिए संभव नहीं हो पाता इसीलिये हर कोई कुशल प्रबन्धक नहीं हो सकता.<br />एक अच्छा लेख.Alpana Vermahttps://www.blogger.com/profile/08360043006024019346noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-24573114945441448842013-07-17T20:43:34.805+05:302013-07-17T20:43:34.805+05:30पैटर्न समझ आ जाये तो विचार सुलझ जाते हैं।पैटर्न समझ आ जाये तो विचार सुलझ जाते हैं।संजय @ मो सम कौन...https://www.blogger.com/profile/14228941174553930859noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-43057538785537594152013-07-17T19:48:04.270+05:302013-07-17T19:48:04.270+05:30क्रमबद्धता ही सबसे पहली सीढी है व्यवस्थित व सफल जी...क्रमबद्धता ही सबसे पहली सीढी है व्यवस्थित व सफल जीवन की । हमेशा की तरह विचारणीय ।गिरिजा कुलश्रेष्ठhttps://www.blogger.com/profile/07420982390025037638noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-67195458083361971762013-07-17T19:47:03.065+05:302013-07-17T19:47:03.065+05:30क्रमबद्धता ही सबसे पहली सीढी है व्यवस्थित व सफल जी...क्रमबद्धता ही सबसे पहली सीढी है व्यवस्थित व सफल जीवन की । हमेशा की तरह विचारणीय ।गिरिजा कुलश्रेष्ठhttps://www.blogger.com/profile/07420982390025037638noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-89349456488148363072013-07-17T18:52:50.786+05:302013-07-17T18:52:50.786+05:30क्योंकि ये सोचने की खासियत सिर्फ इंसानों को ही प्र...क्योंकि ये सोचने की खासियत सिर्फ इंसानों को ही प्राप्त है !पी.सी.गोदियाल "परचेत"https://www.blogger.com/profile/15753852775337097760noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-54010749941144718682013-07-17T18:30:05.712+05:302013-07-17T18:30:05.712+05:30जीवन दर्शन...संभाल कर रखने वाली पोस्ट जीवन दर्शन...संभाल कर रखने वाली पोस्ट संजय भास्कर https://www.blogger.com/profile/08195795661130888170noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-71924705578071688812013-07-17T16:56:54.818+05:302013-07-17T16:56:54.818+05:30रोचक ... सूत्र में भी या सब ज्ञान स्वतः ही पिरो जा...रोचक ... सूत्र में भी या सब ज्ञान स्वतः ही पिरो जाता है ... <br />जीवन दर्शन या रहस्य ... दिगम्बर नासवाhttps://www.blogger.com/profile/11793607017463281505noreply@blogger.com