tag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post7562148215653517585..comments2024-03-17T19:33:00.050+05:30Comments on न दैन्यं न पलायनम्: कपड़ों से ढका एक गुणप्रवीण पाण्डेयhttp://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.comBlogger52125tag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-86638666273710539212013-12-03T12:22:58.253+05:302013-12-03T12:22:58.253+05:30विचारणीय शब्दावली है किंतु वह धन किस काम का जिसका ...विचारणीय शब्दावली है किंतु वह धन किस काम का जिसका पूर्णतया उपयोग न किया जा सके ।हम तो यही कहेंगे आप को चार पैंट और ले लेनी चाहिए। Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/15114638127229194463noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-65344414087965025422013-11-20T11:31:11.401+05:302013-11-20T11:31:11.401+05:30अच्छी पोस्ट .... साथ ही विचारात्मक भी
आभार अच्छी पोस्ट .... साथ ही विचारात्मक भी <br />आभार सदाhttps://www.blogger.com/profile/10937633163616873911noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-31260644601848286102013-11-18T02:00:24.324+05:302013-11-18T02:00:24.324+05:30विचारणीयविचारणीयUdan Tashtarihttps://www.blogger.com/profile/06057252073193171933noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-22287565588644358312013-11-17T19:15:40.190+05:302013-11-17T19:15:40.190+05:30विचारणीय बात .... संग्रह हमारी आदत बन चुका है , कप...विचारणीय बात .... संग्रह हमारी आदत बन चुका है , कपडे सम्भवतः सभी के पास ज़रुरत से अधिक ही मिलेंगें .... डॉ. मोनिका शर्मा https://www.blogger.com/profile/02358462052477907071noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-39138378207555077942013-11-17T18:32:45.908+05:302013-11-17T18:32:45.908+05:30दिगंबर नासवा और विकेश जी दोनों की बात से पूर्णतः स...दिगंबर नासवा और विकेश जी दोनों की बात से पूर्णतः सहमति है। Pallavi saxenahttps://www.blogger.com/profile/10807975062526815633noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-33325967483401955012013-11-16T21:03:52.860+05:302013-11-16T21:03:52.860+05:30यह तो है कि वस्त्रादि आवश्यकतानुरुप ही संग्रहीत ...यह तो है कि वस्त्रादि आवश्यकतानुरुप ही संग्रहीत होने चाहिए। इस सन्दर्भ में लाल बहादुर शास्त्री के जीवन से बेहतर उदाहरण भला और क्या हो सकता है।Harihar (विकेश कुमार बडोला) https://www.blogger.com/profile/02638624508885690777noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-14610507571173080882013-11-15T21:58:18.442+05:302013-11-15T21:58:18.442+05:30आपकी सोच अनोखी है । हर चीज को एक नये दृष्टिकोण से ...आपकी सोच अनोखी है । हर चीज को एक नये दृष्टिकोण से देखना कोई आपसे सीखे । वैसे हमारा निर्वाह इतने कम कपडों मे नहीं हो सकता है । अपरिग्रह वास्तव मे मानव जीवन मे शांति का एक प्रयास है । ना अधिक आवश्कताएँ रहेगी ना ह उनकी पूर्ति हेतु व्यर्थ की आपाधापी ।विकास गुप्ताhttps://www.blogger.com/profile/01334826204091970170noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-62108789657968707222013-11-15T21:57:04.163+05:302013-11-15T21:57:04.163+05:30चुंकि मैं भी जैन मतावलंवी हूँ तो इन सिद्धांतों से ...चुंकि मैं भी जैन मतावलंवी हूँ तो इन सिद्धांतों से भलीभांति परिचित हूँ..पर अपरिग्रह की जो आधुनिक परिवेश के अनुसार आपने व्याख्या की है और न सिर्फ व्याख्या की है बल्कि इस सिद्धांत का अनुसरण भी किया है वह निश्चित ही सराहनीय है..और आपकी इस पोस्ट के बारे में तो कहना ही क्या...आपकी हर पोस्ट बारंबार पठनीय और साथ ही साथ संग्रहणीय भी होती है..<br /><br />खास तौर पे आपकी इस पोस्ट को मैं अपने एक मित्र को ज़रूर पढाउंगा जो कि नये-नये कपड़ों का डाईहार्ट फैन है..और अपना अमूल्य धन यूँही कपड़ों और तथाकथित फैशन के दिखाने में ज़ाया कर देता है..संभवतः इसे पढ़ने के बाद उसमें कुछ सद्बुद्धि आये।।।Ankur Jainhttps://www.blogger.com/profile/17611511124042901695noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-53106696765152026532013-11-15T13:36:34.466+05:302013-11-15T13:36:34.466+05:30जिसका अंतर जितना समृध्द होता है वह बाह्य आडम्बरों ...जिसका अंतर जितना समृध्द होता है वह बाह्य आडम्बरों से उतना ही दूर होता है। जो भीतर से दीन-हीन होता है , वह बाहर से उसे भरने की कोशिश करता है। सारी समस्या परिग्रह के कारण ही है। कुछ लोग भीतर से इतने खाली होते हैं कि उनके हाहीपने का कोई अंत नहीं होता। संतोष पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/06184746764857353641noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-48803330267449198412013-11-15T11:56:40.071+05:302013-11-15T11:56:40.071+05:30पत्नी जी ने कितने ही कपडे बनवा डाले हैं मेरे लिए फ...पत्नी जी ने कितने ही कपडे बनवा डाले हैं मेरे लिए फिर भी आये दिन कहती रहती हैं एक वो कपडा पड़ा है नयी शर्ट सिला लीजिये// । <br />ये पत्नियां न हों तो जीवन रंगहीन गंधहीन ही रह जाय :-) Arvind Mishrahttps://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-60376943174199537482013-11-15T07:10:42.906+05:302013-11-15T07:10:42.906+05:30सहज और सरल, दो शब्द, पर समझ गुह्यतम।सहज और सरल, दो शब्द, पर समझ गुह्यतम।प्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-32652616167431618092013-11-15T07:09:05.337+05:302013-11-15T07:09:05.337+05:30तेन त्यक्तेन अध्यात्म की उच्चतम अवस्था है, पहले अप...तेन त्यक्तेन अध्यात्म की उच्चतम अवस्था है, पहले अपने को परिभाषित करना तत्पश्चात शेष के प्रति अपरिग्रह का भाव।प्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-46918233853987476222013-11-15T07:07:01.658+05:302013-11-15T07:07:01.658+05:30हर रंग है, टीशर्ट में। कार्यालय में तो बहुधा श्वेत...हर रंग है, टीशर्ट में। कार्यालय में तो बहुधा श्वेत की अधिकता है।प्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-64028397091285313802013-11-15T07:05:21.998+05:302013-11-15T07:05:21.998+05:30श्रीमतीजी को पता चल गया है कि कपड़े भेंट करने का क...श्रीमतीजी को पता चल गया है कि कपड़े भेंट करने का कोई अर्थ नहीं। हाँ जब भी कुछ नया लेना होता है, श्रीमतीजी की संस्तुति से ही लिया जाता है।प्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-48022408988803722672013-11-15T07:03:01.628+05:302013-11-15T07:03:01.628+05:30ठीक है, जब आयेंगे तब अपनी एक कम करके ही आयेंगे।ठीक है, जब आयेंगे तब अपनी एक कम करके ही आयेंगे।प्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-91168623893575903542013-11-15T07:02:04.187+05:302013-11-15T07:02:04.187+05:30बिटिया के आदेशों के लिये मन में स्थान अभी से बना र...बिटिया के आदेशों के लिये मन में स्थान अभी से बना रखा है, कपड़े के प्रति कोई अन्यथा आग्रह नहीं है, जो कहेगी माना जायेगा।प्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-74896756280117948102013-11-15T06:59:39.851+05:302013-11-15T06:59:39.851+05:30यदि टूर लम्बा होता है तो सारा वार्डरोब सूटकेस में ...यदि टूर लम्बा होता है तो सारा वार्डरोब सूटकेस में समा जाता है और साथ में साबुन की एक बट्टी भी।प्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-3975996928251604442013-11-15T06:55:31.923+05:302013-11-15T06:55:31.923+05:30बाधित जीवन जीने का निश्चय ही मन नहीं है, कपड़े अच्...बाधित जीवन जीने का निश्चय ही मन नहीं है, कपड़े अच्छे ही पहनता हूँ, पर कम रखता हूँ। संस्कृति का पक्षधर हूँ पर आधुनिकता और समय के संग संग। अनावश्यक छोर तक जाकर, जीकर और समझकर वापस आ जाता हूँ और सीमा व्यव्यस्थित कर लेता हूँ, वही मेरे लिये अपरिग्रह है।<br />जहाँ तक हिन्दी की बात है, संप्रेषण उसी में अच्छा लगता है। अंग्रेजी बाधा नहीं है, पर अनावश्यक लगती है जब अपनो से बात करनी हो। संवाद प्रमुख है, आप किसी भी भाषा में करें, सप्रेम स्वीकार्य है।प्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-63650716823846483642013-11-15T06:48:27.303+05:302013-11-15T06:48:27.303+05:30आधुनिक और गुणवत्ता भरे कपड़ों से कोई बैर नहीं, उलझ...आधुनिक और गुणवत्ता भरे कपड़ों से कोई बैर नहीं, उलझन उनकी अधिकता से हो जाती है।प्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-11189057852873373722013-11-15T06:46:50.628+05:302013-11-15T06:46:50.628+05:30हाँ यही मेरे साथ भी चल रहा है, तनिक भार बढ़ता है त...हाँ यही मेरे साथ भी चल रहा है, तनिक भार बढ़ता है तो कपड़े बदलने का डरावना विचार मन में आने लगता है। तुरन्त ही व्यायाम प्रारम्भ कर देते हैं।प्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-35283615906005498212013-11-14T22:26:38.668+05:302013-11-14T22:26:38.668+05:30आपको पढता हूँ तो आपके लेख में खो सा जाता हूँ सर। न...आपको पढता हूँ तो आपके लेख में खो सा जाता हूँ सर। निजी कारणों से आपके कुछ लेख नहीं पाया, अब समय मिला है उनको भी पढ़ता हूँ। Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/03331897204755328396noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-40027015707257151262013-11-14T19:24:36.903+05:302013-11-14T19:24:36.903+05:30क्या बात,
बहुत सुंदर
मित्रों कुछ व्यस्तता के चलत...क्या बात, <br />बहुत सुंदर<br /><br />मित्रों कुछ व्यस्तता के चलते मैं काफी समय से <br />ब्लाग पर नहीं आ पाया। अब कोशिश होगी कि<br />यहां बना रहूं।<br />आभारमहेन्द्र श्रीवास्तवhttps://www.blogger.com/profile/09549481835805681387noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-90638964918893140342013-11-14T16:46:43.439+05:302013-11-14T16:46:43.439+05:30kuch bhi ho aparigrah ka matlab samajh aa gya........kuch bhi ho aparigrah ka matlab samajh aa gya......achha lekhAnonymoushttps://www.blogger.com/profile/06397123807749655603noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-85743256194078247712013-11-14T15:55:40.308+05:302013-11-14T15:55:40.308+05:30अपरिग्रह जैन धर्म का मूल सिद्धांत है पर आज जैन धर्...अपरिग्रह जैन धर्म का मूल सिद्धांत है पर आज जैन धर्म मानने वाले इस सिद्धांत पर कायम नहीं ! खैर....वो उनका निजी मामला !<br />पर ये सिद्धांत बहुत बढ़िया है सादगी भी बनाये रखता है !! Gyan Darpanhttps://www.blogger.com/profile/01835516927366814316noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-6888658528795658232013-11-14T15:53:01.967+05:302013-11-14T15:53:01.967+05:30बेहतरीन, कभी इधर भी पधारें
बहुत बहुत बधाई
सादर मद...बेहतरीन, कभी इधर भी पधारें<br />बहुत बहुत बधाई <br />सादर मदन Madan Mohan Saxenahttps://www.blogger.com/profile/02335093546654008236noreply@blogger.com