tag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post7079979023560042060..comments2024-03-17T19:33:00.050+05:30Comments on न दैन्यं न पलायनम्: नाम, शब्द, रूपप्रवीण पाण्डेयhttp://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.comBlogger42125tag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-83719658511987205902013-09-03T23:49:02.907+05:302013-09-03T23:49:02.907+05:30बहुत ही सुंदर और आध्यात्मिक आलेख । अत्यन्त विचारणी...बहुत ही सुंदर और आध्यात्मिक आलेख । अत्यन्त विचारणीय । मैने तो इसे अपने पॅाकेट एप्प मे सेव कर लिया है जिससे मै इस आलेख को जब चाहूँ जहाँ चाहूँ पढ सकता हूँ ।विकास गुप्ताhttps://www.blogger.com/profile/01334826204091970170noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-2674133475441603192013-08-31T01:46:37.472+05:302013-08-31T01:46:37.472+05:30jeevan me aisee bahut see bate vicharniy hain kint...jeevan me aisee bahut see bate vicharniy hain kintu ham hi unhen talte hain aur bhram kee sthiti me pade rahte hain .Shalini kaushikhttps://www.blogger.com/profile/10658173994055597441noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-23456338669107450602013-08-29T09:20:38.129+05:302013-08-29T09:20:38.129+05:30This comment has been removed by the author.संजय भास्कर https://www.blogger.com/profile/08195795661130888170noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-15555872549308366012013-08-27T05:15:07.008+05:302013-08-27T05:15:07.008+05:30@ यदि हम जलेबी कहते हैं तो सामने जलेबी उपस्थित हो ...@ यदि हम जलेबी कहते हैं तो सामने जलेबी उपस्थित हो जायेगी।<br />- स्वादिष्ट चिंतन!Smart Indian - अनुराग शर्माhttps://www.blogger.com/profile/00609348818544161042noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-53640571491042612722013-08-26T21:08:42.575+05:302013-08-26T21:08:42.575+05:30चिंतन!!चिंतन!!Udan Tashtarihttps://www.blogger.com/profile/06057252073193171933noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-59682699750632721342013-08-26T14:52:11.218+05:302013-08-26T14:52:11.218+05:30बहुत ही गहन और सारगर्भित आलेख...बहुत ही गहन और सारगर्भित आलेख...Kailash Sharmahttps://www.blogger.com/profile/12461785093868952476noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-55017238114370948812013-08-26T13:15:51.572+05:302013-08-26T13:15:51.572+05:30बहुत ही गहन विचार बहुत ही गहन विचार रश्मि प्रभा...https://www.blogger.com/profile/14755956306255938813noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-87113944020120319432013-08-26T11:52:38.962+05:302013-08-26T11:52:38.962+05:30मन से पृथक हुए बिना, मन से ऊपर उठे बिना मन को समझन...मन से पृथक हुए बिना, मन से ऊपर उठे बिना मन को समझने का प्रयास मन के ही खेल का हिस्सा है. संतोष पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/06184746764857353641noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-41827771532658291242013-08-26T07:40:27.355+05:302013-08-26T07:40:27.355+05:30प्रवीण भाई यह श्रंखला बहुत अच्छी जा रही है ...... ...प्रवीण भाई यह श्रंखला बहुत अच्छी जा रही है ...... www.navincchaturvedi.blogspot.comhttps://www.blogger.com/profile/07881796115131060758noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-92030974706646867342013-08-25T21:05:38.442+05:302013-08-25T21:05:38.442+05:30बहुत ही उपयोगी और गहन लेख..आभारबहुत ही उपयोगी और गहन लेख..आभारMaheshwari kanerihttps://www.blogger.com/profile/07497968987033633340noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-60352205608911261722013-08-25T21:01:56.819+05:302013-08-25T21:01:56.819+05:30विषय तो गूढ़ है ही विवेचना भी गूढ़ । हम तो बंद आँख...विषय तो गूढ़ है ही विवेचना भी गूढ़ । हम तो बंद आँखों से ही अक्सर मन ही मन उनके मन की बात जान लेते हैं । पता नहीं कैसे होता है यह , और हम जानना भी नहीं चाहते । बस इतना जानते हैं कि परस्पर प्रेम हो अगर तो संवाद के लिए न कोई माध्यम चाहिए और न कोई भाषा । बस मन में उमंग हो ,तरंग हो न हो । amit kumar srivastavahttps://www.blogger.com/profile/10782338665454125720noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-34551547226305349452013-08-25T20:55:31.222+05:302013-08-25T20:55:31.222+05:30मानवीय अनुभितियाँ भी अनंत हैं ,इसका आयाम भी अनंत ह...मानवीय अनुभितियाँ भी अनंत हैं ,इसका आयाम भी अनंत है, अत : मानव की हर अनुभूति को शब्द व्यक्त नहीं कर सकता ,गुड मीठा ,शक्कर मीठा है ,शहद मीठा है पर हर मिठास अलग अलग है ,उस अंतर को निश्चित रूप से बताने वाला कोई शब्द नहीं है .ईश्वर के आसपास हम घूमते हैं पर ईश्वर तक पहुँच नहीं पाते कालीपद "प्रसाद"https://www.blogger.com/profile/09952043082177738277noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-19470726279873926922013-08-25T20:44:31.036+05:302013-08-25T20:44:31.036+05:30हर शब्द की उत्पत्ति इन्सान ने किसी विशेष अर्थ /अनु...<br />हर शब्द की उत्पत्ति इन्सान ने किसी विशेष अर्थ /अनुभव /एहसास इत्यादि व्यक्त करने के लिए किया है इसीलिए शब्द शक्ति सिमित है ,ईश्वर को इन शब्दों में व्यक्त नहीं किया जा सकता क्योंकि ईस्वर अनंत है असीमित है .यही कारण है आजतक कोई भी धर्मशास्त्र ईश्वर का सही स्वरुपम को व्यक्त करने में असमर्थ है .कोई धर्म शास्त्र पूर्ण नहीं है जबकि ईश्वर पूर्ण हैं <br />latest post<a href="http://kpk-vichar.blogspot.in/2013/08/blog-post_23.html#comment-form" rel="nofollow"> आभार !</a><br />latest post<a href="http://vichar-anubhuti.blogspot.in/2013/08/blog-post_22.html#comment-form" rel="nofollow"> देश किधर जा रहा है ?</a><br />कालीपद "प्रसाद"https://www.blogger.com/profile/09952043082177738277noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-36189661777433716072013-08-25T20:29:42.872+05:302013-08-25T20:29:42.872+05:30चंद पोस्टों तक जाती एक गली , जिसमें हमने आपका एक ठ...<a href="http://bulletinofblog.blogspot.in/2013/08/blog-post_25.html" rel="nofollow">चंद पोस्टों तक जाती एक गली , जिसमें हमने आपका एक ठिकाना भी सहेज़ लिया है , और उसके साथ एक मुस्कुराहट के लिए चंद शब्द जोड दिए हैं , आइए मिलिए उनसे और दोस्तों के अन्य पोस्टों से , आज की ब्लॉग बुलेटिन पर </a><br /><br />अजय कुमार झाhttps://www.blogger.com/profile/16451273945870935357noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-59239052895613907322013-08-25T15:30:14.928+05:302013-08-25T15:30:14.928+05:30प्रवीण जी आप लिखते तो बहुत अच्छा है पर मैने आज पहल...प्रवीण जी आप लिखते तो बहुत अच्छा है पर मैने आज पहली बार ही आपका ब्लोग पढ़ा है. शायद आपकी पोस्ट का अर्थ मैं 16 वर्ष की कम आयु होने के कारण नही समझ पाया. किन्तु अपनी हिन्दी को और शुद्ध करने के लिए आपका ब्लोग पढ़ रहा हुँ. कृप्या <br /><br />न दैन्यं न पलायनम् <br /><br /> का अर्थ बताएँ.साहिल कुमारhttps://www.blogger.com/profile/13881630548252111159noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-1833152343990841492013-08-25T14:54:36.497+05:302013-08-25T14:54:36.497+05:30 अर्थात् नाम ,शब्द, रूप, एक दूसरे के पूरक हैं। अर्थात् नाम ,शब्द, रूप, एक दूसरे के पूरक हैं।गिरधारी खंकरियालhttps://www.blogger.com/profile/07381956923897436315noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-22497248626289631142013-08-25T14:23:44.155+05:302013-08-25T14:23:44.155+05:30बहुत ही उपयोगी गहन वैचारिक लेख ।बहुत ही उपयोगी गहन वैचारिक लेख ।संजय भास्कर https://www.blogger.com/profile/08195795661130888170noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-63888803677296021482013-08-25T10:30:07.840+05:302013-08-25T10:30:07.840+05:30थोड़ा समझकर वापस पढूंगी। थोड़ा समझकर वापस पढूंगी। अजित गुप्ता का कोनाhttps://www.blogger.com/profile/02729879703297154634noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-77252558578047906432013-08-25T08:10:14.116+05:302013-08-25T08:10:14.116+05:30"जिस विश्व में नाम रूप का भेद नहीं वहाँ पर आप...<br />"जिस विश्व में नाम रूप का भेद नहीं वहाँ पर आप जो भी इच्छा करेंगे, जो भी कहेंगे, वह अपने रूप में आ जायेगा। वहाँ पर शब्द सशक्त और असीम ऊर्जायुक्त हैं और अपने अर्थ में आकार ग्रहण गढ़ लेते हैं। यही कल्पवृक्ष का सिद्धान्त है कि आप जो भी माँगे, वह आपको मिल जाता है।" <br />अद्भुत है यह व्याख्या! पाश्चात्य तर्क व सिद्धांत कहता है कि हम किसी वस्तु या व्यक्ति के बारे वस्तुतः चित्र रूप, पिक्सल में सोचते हैं, वस्तु का नाम तो बस एक भाषा की सहूलियत मात्र है ।<br /><br />इसके विपरीत हमारा आध्यात्म व दर्शन नाम के महत्व सर्वोपरि रखता है,कहते हैं -राम से अधिक राम कर नामा अर्थात् राम से अधिक प्रभावी राम का नाम है । <br /><br />अति रोचक,तथ्यपूर्ण व नवचिंतन को उत्प्रेरित करता अति सार्थक लेख श्रृंखला ।बहुत बहुत बधाई।<br /><br />http://ddmishra.blogspot.in/2013/08/blog-post_24.html?m=1देवेंद्रhttps://www.blogger.com/profile/13104592240962901742noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-62675901176146649962013-08-25T05:33:46.875+05:302013-08-25T05:33:46.875+05:30मानवी अनुभूतियाँ सीमित हैं -सब भिन्नभिन्न मार्गों ...मानवी अनुभूतियाँ सीमित हैं -सब भिन्नभिन्न मार्गों से आत्मस्थ होती हैं ,तब कुछ समग्रता लगती है लेकिन उसे भी पूर्णता कैसे कहें ?प्रतिभा सक्सेनाhttps://www.blogger.com/profile/12407536342735912225noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-8157987787990811182013-08-24T23:38:08.794+05:302013-08-24T23:38:08.794+05:30आज की ब्लॉग बुलेटिन वाकई हम मूर्ख हैं? - ब्लॉग बु...आज की ब्लॉग बुलेटिन <a href="http://bulletinofblog.blogspot.in/2013/08/blog-post_6678.html" rel="nofollow"> वाकई हम मूर्ख हैं? - ब्लॉग बुलेटिन </a> मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... <br /><br />सादर आभार !ब्लॉग बुलेटिनhttps://www.blogger.com/profile/03051559793800406796noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-29838201194980523972013-08-24T23:04:14.379+05:302013-08-24T23:04:14.379+05:30--सुन्दर चर्चा.....
या अनुरागी चित्त की, गति समुझ...--सुन्दर चर्चा.....<br /><br />या अनुरागी चित्त की, गति समुझे नहिं कोय |<br />ज्यों ज्यों बूढे श्याम रंग त्यों त्यों उज्वल होय |<br /><br />ज्ञाता ज्ञान औ ज्ञेय का, भेद रहे नहिं रूप,<br />वह तो स्वयं प्रकाश है, परमानंद स्वरुप | <br /> shyam guptahttps://www.blogger.com/profile/11911265893162938566noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-62726624986255610922013-08-24T23:00:48.881+05:302013-08-24T23:00:48.881+05:30बहुत ही दार्शनिक विषय को सरल शब्दों में बताया है, ...बहुत ही दार्शनिक विषय को सरल शब्दों में बताया है, बहुत सुन्दर आलेख , पुनः पढना होगा .. :)Neeraj Neerhttps://www.blogger.com/profile/00038388358370500681noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-74191516228258273942013-08-24T22:07:45.303+05:302013-08-24T22:07:45.303+05:30नमस्कार आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (25-0...नमस्कार आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (25-08-2013) के <a href="http://charchamanch.blogspot.in" rel="nofollow">चर्चा मंच -1348</a> पर लिंक की गई है कृपया पधारें. सूचनार्थअरुन अनन्तhttps://www.blogger.com/profile/02927778303930940566noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-49326786033004222992013-08-24T20:29:59.909+05:302013-08-24T20:29:59.909+05:30विषय को बहुत ही सहज रूप से समझाने की आपने कोशीश की...विषय को बहुत ही सहज रूप से समझाने की आपने कोशीश की है और उसमें सफ़ल भी रहे हैं. शायद एक अवस्था पर पहुंचने के बाद कबीर ने जिसे गूंगे का गुड कह कर अभिव्यक्त किया है, वही हाल हो जाता है.<br /><br />बहुत ही उपयोगी, ज्ञान व विज्ञान से परिपूर्ण श्रंखला चल रही है, बहुत आभार.<br /><br />रामराम ताऊ रामपुरियाhttps://www.blogger.com/profile/12308265397988399067noreply@blogger.com