tag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post6769227117425905975..comments2024-03-17T19:33:00.050+05:30Comments on न दैन्यं न पलायनम्: बचपन, भाषा, देशप्रवीण पाण्डेयhttp://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.comBlogger56125tag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-47355318235274294122014-07-23T12:43:00.636+05:302014-07-23T12:43:00.636+05:30सार्थक लेख सार्थक लेख सु-मन (Suman Kapoor)https://www.blogger.com/profile/15596735267934374745noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-84605018205119839212013-10-31T19:20:15.865+05:302013-10-31T19:20:15.865+05:30कल ही किसी के लेख में बांचा कि दो भाषायें सीखने से...कल ही किसी के लेख में बांचा कि दो भाषायें सीखने से बच्चे पर विपरीत असर नहीं पड़ता। :) अनूप शुक्लhttps://www.blogger.com/profile/07001026538357885879noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-55438181950190217732013-10-31T00:28:04.460+05:302013-10-31T00:28:04.460+05:30भाषा को सीखने के लिए सच ही हम बच्चों के मस्तिष्क प...भाषा को सीखने के लिए सच ही हम बच्चों के मस्तिष्क पर ज्यादा दवाब बनाते हैं ..... होना क्या चाहिए था उस पर नहीं सोचा जाता ...लेकिन जो हो रहा है उसके अनुरूप बच्चों को ढाला जाता है । सार्थक लेख । संगीता स्वरुप ( गीत )https://www.blogger.com/profile/18232011429396479154noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-61651373665522874952013-10-30T13:31:28.242+05:302013-10-30T13:31:28.242+05:30सारगर्भित विवेचन .मन में इक्षा हो तो हम सीख सकते ह...सारगर्भित विवेचन .मन में इक्षा हो तो हम सीख सकते हैं .राहुल सांस्कृत्यायन बहुत भाषाओँ के ज्ञाता थे .उनसे प्रभावित मैंने भी ज्यादा से ज्यादा भाषाओँ को लिखना पढना बोलना जाना .मौका भी मिला भाग्य भी रहा . हाँ हिंदी अंगरेजी प्रमुख रहीं .RAJ SINHhttps://www.blogger.com/profile/01159692936125427653noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-63249063537229333492013-10-30T03:29:13.058+05:302013-10-30T03:29:13.058+05:30ये आपने बहुत महत्वपूर्ण मुद्दे पर लेख लिखा है। आपक...ये आपने बहुत महत्वपूर्ण मुद्दे पर लेख लिखा है। आपका ये सुझाव कि प्रदेश की राजधानी में भाषा सीखने के लिये विद्यालय होने चाहिये भी बहुत बढिया है।<br />बचपन में हम आराम से दो भाषायें सीख लेते है खास कर भारतीय भाषायें जिनका उगम संस्कृत से हुआ है। जैसे मराठी भाषी को हिंदी या गुजराती सीखने यै समझने में परेशानी नही होती। अंग्रेजी के लिये विशेष परिश्रम की जरूरत पडती है। पर इसके बिना तो गुजारा नही है सारा तकनीकी ज्ञान तो इसी में उपलब्ध है । दक्षिण की भाषाओं में तेलुगु तथा मलयालम में काफी संस्कृत शब्द हैं पर लिपि एकदम अलग। तामिल एकदम अलग है उसका उगम भी संस्कृत से नही है।<br />शुरु में हम कलकत्ता में रहे तो मेरा बेटा पहले सिर्फ बंगला बोलता था उसकी आया कि वजह से, पर हम घर में मराठी बोलते तो वह भी सीख गया । भाषा सीखना किसी के लिये आसान होता है तो किसी के लिये महा मुश्किल इसके लिये ेक ही पैमाने पर सबको नही जांचा जा सकता।<br />Asha Joglekarhttps://www.blogger.com/profile/05351082141819705264noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-66663759248955838932013-10-29T23:50:19.339+05:302013-10-29T23:50:19.339+05:30भाषा का झगड़ा खासकर तभी शुरू होता है जब कोई अपनी भ...भाषा का झगड़ा खासकर तभी शुरू होता है जब कोई अपनी भाशा को अनावष्यक रूप से अन्य सभी भाषाओं से ऊपर रखना चाहता है। इसमें संदेह नहीं कि ऐसा व्यक्ति या तो दंभी, अज्ञानी अथवा स्वार्थी होता है। वस्तुतः भाषाओं में आपसी बहनापा होता है और एक भाषा को समझने में दूसरी भाषा मदद ही करती है। जिन लोगों को भाषा का क-ख-ग नहीं आता वे भाषाई विभाजन और भाषाई आंदोलन का रास्ता पकड़ते हैं। थोड़ा जल्दी नाम और काम मिल जाता है। हिंदी के साथ यह विडम्बना बहुत अधिक है। तुलसी -सूर -कबीर से लेकर प्रेमचंद ने हिंदी के समर्थन में कोई राजनीतिक आंदोलन नहीं चलाया था, लेकिन हिंदी आज उन्हीं के दम पर खड़ी है। और तो और, देवकी नंदन खत्री को भी हम भूल गए हैं जिनका योगदान स्वयं हिंदी नहीं भूल पाई है। जहां तक अंगरेजी के प्रचार-प्रसार की बात है, उसमें या तो अफसरनुमा लोग लगे हैं या फिर अधकचरे अंगरेजीदां लोग। अंगरेजी का एक अच्छा जानकार हिंदी का विरोधी तो हो ही नहीं सकता। अंगरेजी ने हिंदी साहित्य को भी बहुत कुछ दिया है। चाहिए तो उन लोगों की लंबी सूची उठाकर देख लीजिए जो अंगरेेजी की उच्च shiksha प्राप्त करने के बावजूद हिंदी में लिखते रहे और तमाम हिंदीवादियों से अच्छा लिखे। Hari Shanker Rarhihttps://www.blogger.com/profile/10186563651386956055noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-29590981591125343652013-10-28T18:16:03.868+05:302013-10-28T18:16:03.868+05:30शिक्षा का प्रथम माध्यम आंचलिक भाषा होनी चाहिए | तम...शिक्षा का प्रथम माध्यम आंचलिक भाषा होनी चाहिए | तमिलनाडु में तमिल नाडू में तमिल आसाम में आसामी ,पंजाब में पंजाबी .....इत्यादि |दक्षिण में अहिन्दी भाषी क्षेत्र में दूसरी भाषा हिंदी होना चाहिए और हिंदी क्षेत्र में एक दक्षिण की भाषा ... तमिल, तेलुगु मलयालम ,कन्नड़ अनिवार्य रूप से पढाई जानी चाहिए .इससे भाषाई नफरत कम होगी | शिक्षा का माध्यम मातृभाषा होने से शिक्षा गहराई से होगी दूसरी भाषा भार नहीं लगेगी | अंग्रजी बादमे शिखा जा सकता है |<br />नई पोस्ट <a href="http://kpk-vichar.blogspot.in/2013/10/blog-post_27.html#links" rel="nofollow"> सपना और मैं (नायिका )</a>कालीपद "प्रसाद"https://www.blogger.com/profile/09952043082177738277noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-64857849909857414612013-10-28T17:08:37.238+05:302013-10-28T17:08:37.238+05:30बहुत सुन्दर विषय पर सुन्दर विचार , प्रवीण भाई
नई ...बहुत सुन्दर विषय पर सुन्दर विचार , प्रवीण भाई<br /> नई पोस्ट -: <a href="http://www.samadhaaninhindi.blogspot.in/2013/10/blog-post_28.html?m=1/" rel="nofollow">प्रश्न ? उत्तर भाग - ५</a><br />बीती पोस्ट --: <a href="http://www.samadhaaninhindi.blogspot.in/2013/10/tribute-to-damini.html?m=1/" rel="nofollow"> प्रतिभागी - गीतकार के.के.वर्मा " आज़ाद " ---> A tribute to Damini</a>आशीष अवस्थीhttps://www.blogger.com/profile/05326902845770449131noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-3649797285372847162013-10-28T11:59:15.948+05:302013-10-28T11:59:15.948+05:30सार्थक और उपयोगी विषय चुना आपने, कोई भी भाषा विवाद...सार्थक और उपयोगी विषय चुना आपने, कोई भी भाषा विवाद को विवाद का मुदा ना बनाकर उसे सीखने की ललक होनी चाहिये, उसी से ज्ञान और समझ विस्तृत होगी.<br /><br />रामराम. ताऊ रामपुरियाhttps://www.blogger.com/profile/12308265397988399067noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-67610735897875750002013-10-28T08:20:16.990+05:302013-10-28T08:20:16.990+05:30निज भाषा उन्नति अहै ,सब उन्नति को मूल ,
बिन निज भ...निज भाषा उन्नति अहै ,सब उन्नति को मूल ,<br /><br />बिन निज भाषा ज्ञान के मिटे न हिय को शूल। <br /><br />अपनी मातृ भाषा में पारंगत होना ज़रूरी है। उसके बाद जितनी मर्ज़ी भाषा सीखो। खिड़कियाँ खोलो। <br /><br />आज हालत यह है जब बच्चा पेट में आता है माताएं खुद अंग्रेजी सीखना शुरू कर देती हैं। इंटर व्यू <br /><br />माता पिता का ही होता है। virendra sharmahttps://www.blogger.com/profile/02192395730821008281noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-49421726178312852802013-10-28T05:17:24.830+05:302013-10-28T05:17:24.830+05:30सारगर्भित एवं विचारणीय संदर्भ!!सारगर्भित एवं विचारणीय संदर्भ!!Udan Tashtarihttps://www.blogger.com/profile/06057252073193171933noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-82119470493757379092013-10-28T00:08:51.892+05:302013-10-28T00:08:51.892+05:30bahut is acha post hai,,,bahut is acha post hai,,,SEPOhttps://www.blogger.com/profile/18165767356704947895noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-3384515391988183492013-10-27T22:56:25.186+05:302013-10-27T22:56:25.186+05:30"गहराई में नीचे उतरने के लिये अपनी ही भाषा का..."गहराई में नीचे उतरने के लिये अपनी ही भाषा काम में आती है, शेष भाषा सामाजिकता की सतही आवश्यकतायें पूरी करती हुयी ही दिखती हैं, समझ विस्तारित तो होती है, गहरे उतरने से रह जाती है।"...<br /><br />---- पर यह पूर्ण सत्य नहीं है ...वस्तुतः बचपन से घर में जो भाषा बोली-पढी जाती है वही भाव-सम्प्रेषण हेतु सुविधाजनक होती है ...जहां तक गहराई में उतरने की बात है वह तो विषयानुसार होता है ..जिस विषय को आपने जिस भाषा में गहराई से पढ़ा है, अध्ययन किया है उसी भाषा में आप उसकी गहराई में उतर सकते हैं .... यदि आपने विज्ञान अंग्रेज़ी में पढ़ा है तो वैज्ञानिक विषयों पर हिन्दी में बात स्पष्ट करने में कठिनाई आयेगी व अंग्रेज़ी में अधिक गहराई.से स्पष्ट कर सकेंगे .........<br />---मस्तिष्क बचपन में काफी उर्वर होता है उसे कोइ अंतर नहीं पड़ता वह एक या दो-तीन भाषाएँ भी सीख सकता है ...परन्तु निश्चय ही उसकी सामान्य बोलचाल की भाषा मातृभाषा ही होपायेगी जो घर-बाहर हर जगह, हर ओर बोली जाती है ....<br />----अतः निश्चय ही उचित यही है कि प्राथमिक शिक्षा तो अवश्य ही मातृभाषा में दी जाय बल्कि सभी प्रकार की उच्च शिक्षा भी मातृभाषा में ही दी जाय ....एवं अन्य भाषाएँ तत्पश्चात आवश्यकतानुसार ...जो शायद इस सुन्दर व सटीक आलेख के लेखक का मूल मंतव्य है ....जब प्रत्येक विषय का अपनी मातृभाषा में उचित प्रकार से ज्ञान, अनुभव एवं विवेक होजायेगा तो अन्य भाषा सीखना अत्यंत सरल होजायेगा.... <br />---- जिसप्रकार पुराकाल में संस्कृत ..देश के सभी क्षेत्रों में संपर्क भाषा का कार्य करती थी क्योंकि भारत की सभी भाषाएँ संस्कृत से ही उद्भूत हैं ....उसीप्रकार आज हिन्दी ही एकमात्र संपर्क भाषा होसकती है क्योंकि वह सीधी संस्कृत से उत्पन्न हुई है | अतः सभी अन्य सभी भारतीय भाषायें उससे मिलती-जुलती हैं.....वास्तव में तो हिन्दी का प्रारम्भ ही दक्षिण भारत से हुआ है ...दक्खिनी हिन्दी ही सबसे पहली हिन्दी भाषा है जो आज की हिन्दी--खड़ीबोली बनी....<br />---- अंग्रेज़ी को तो निश्चय ही विदा होना ही चाहिए .... वास्तव में तो हम आज बच्चों को इसलिए अंग्रेज़ी पढ़ाते हैं कि हमारा अपना कुछ नहीं है ...हम अंग्रेज़ी देशों की क्लर्की करके ( चाहे किसी भी क्षेत्र -विषय में हो --सर्वोच्च ज्ञान का विषय चिकित्सा में भी डाक्टर यही कर रहे हैं... हम बस नक़ल पर ही आधारित हैं और क्लर्कों की भाँति ही कार्य करके खुश होलेते हैं ) बस बहुत सा धन कमाना चाहते हैं | <br />--- शासन को निश्चित करना होगा कि --कोइ भी कहीं की, किसी भी देश की कंपनी हो उसे यदि भारत में कार्य करना है तो ..प्रादेशिक भाषा व हिन्दी में करना होगा ... भारतीय कम्पनियां हिन्दी एवं स्थानीय भाषा में कार्य करें ....सच यही है कि उद्योग-धंधे की जो भाषा होगी वही सीखी, पढी व लिखी जायेगी .....डा श्याम गुप्तhttps://www.blogger.com/profile/03850306803493942684noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-5129523554383916382013-10-27T20:06:40.583+05:302013-10-27T20:06:40.583+05:30वाह... उम्दा, बेहतरीन अभिव्यक्ति...बहुत बहुत बधाई....वाह... उम्दा, बेहतरीन अभिव्यक्ति...बहुत बहुत बधाई...प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' https://www.blogger.com/profile/03784076664306549913noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-7035289257029722222013-10-27T19:15:54.307+05:302013-10-27T19:15:54.307+05:30behad sarthak lekhan , hardik badhai ,aapki post p...behad sarthak lekhan , hardik badhai ,aapki post par aana sadaiv sukhad hota hai , .shashi purwarhttps://www.blogger.com/profile/04871068133387030845noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-56475483519723774612013-10-27T19:02:51.658+05:302013-10-27T19:02:51.658+05:30जहाँ हमारे संपर्क बिन्दु दो परस्पर भाषायें होनी थी...जहाँ हमारे संपर्क बिन्दु दो परस्पर भाषायें होनी थीं, किसी व्यवस्थित भाषायी प्रारूप के आभार में वह सिकुड़ कर अंग्रेजी मान्य होते जा रहे हैं।..............इस प्रकार भाषा के विविध आयामों को लेकर लिखना, पढ़ना प्रशासन की आवश्यकता होनी चाहिए। तब ही भाषाई नैतिकता का व्यावहारिक स्वरुप तय हो सकेगा।Harihar (विकेश कुमार बडोला) https://www.blogger.com/profile/02638624508885690777noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-1433887838768269672013-10-27T15:39:34.793+05:302013-10-27T15:39:34.793+05:30बचपन के लिए मातृ भाषा ही उपयोगी है।बचपन के लिए मातृ भाषा ही उपयोगी है।गिरधारी खंकरियालhttps://www.blogger.com/profile/07381956923897436315noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-47990757864442317012013-10-27T15:36:01.903+05:302013-10-27T15:36:01.903+05:30आप समग्र विश्व की भाषायें सीखीये और बोलिए, किसी से...आप समग्र विश्व की भाषायें सीखीये और बोलिए, किसी से दुराग्रह नही, किन्तु जीवन के प्रथम दशक कितनी भाषायें सीखनी उपयोगी हैं? इस की प्रामाणिक आवश्यकता है।गिरधारी खंकरियालhttps://www.blogger.com/profile/07381956923897436315noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-71038943122664687572013-10-27T15:09:10.603+05:302013-10-27T15:09:10.603+05:30सभी भाषाओँ सम्मान होना चाहिए,लेकिन हिन्दी हमारे दे...सभी भाषाओँ सम्मान होना चाहिए,लेकिन हिन्दी हमारे देश की मुख्य भाषा है ,,,<br />सारगर्भित एवं विचारोतेज्जक आलेख....<br /><br /><b>RECENT POST </b><a href="http://dheerendra11.blogspot.in/2013/10/blog-post_26.html#links" rel="nofollow">-: तुलसी बिन सून लगे अंगना</a> धीरेन्द्र सिंह भदौरिया https://www.blogger.com/profile/09047336871751054497noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-22800046201972592642013-10-27T13:15:53.611+05:302013-10-27T13:15:53.611+05:30सार्थक भाषा चिंतन ...
बहुत ज़रूरी है देश में देश क...सार्थक भाषा चिंतन ... <br />बहुत ज़रूरी है देश में देश की समस्त भाषाओं के लिए किसी न किसी नीति का निर्माण होना ... देश की एकता अखंडता की तरफ सोचने का सार्थक प्रयास होगा ये ...दिगम्बर नासवाhttps://www.blogger.com/profile/11793607017463281505noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-76238333344497281932013-10-27T10:23:30.334+05:302013-10-27T10:23:30.334+05:30तार्किक और सारगर्भित
जियो भाई तार्किक और सारगर्भित <br />जियो भाई www.navincchaturvedi.blogspot.comhttps://www.blogger.com/profile/07881796115131060758noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-34540333027267220842013-10-27T09:35:04.377+05:302013-10-27T09:35:04.377+05:30बहुत ही सारगर्भित , सामयिक एवं विचारोतेज्जक आलेख ....बहुत ही सारगर्भित , सामयिक एवं विचारोतेज्जक आलेख . भाषा अभिव्यक्ति का माध्यम जब तक हैं सहज है , जब ये मजबूरी बन जाएँ तो झगड़े का कारन बन जाती है . .. आपकी इस रचना के लिंक की प्रविष्टी सोमवार (28.10.2013) को <a href="http://blogprasaran.blogspot.in/" rel="nofollow">ब्लॉग प्रसारण</a> पर की जाएगी, ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया पधारें .Neeraj Neerhttps://www.blogger.com/profile/00038388358370500681noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-20105327574281136712013-10-27T07:54:30.218+05:302013-10-27T07:54:30.218+05:30भाषाओँ का ज्ञान दूसरों से जोड़ता है , किसी व्यक्त...भाषाओँ का ज्ञान दूसरों से जोड़ता है , किसी व्यक्ति से उसकी भाषा में संवाद करने पर आत्मीयता महसूस होती है , बस मजबूरी ना हो !वाणी गीतhttps://www.blogger.com/profile/01846470925557893834noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-44549408396480289202013-10-27T07:04:41.377+05:302013-10-27T07:04:41.377+05:30विचारोत्तेजक, सारगर्भित आलेख।
इन भाषाओं ने मेरा भ...विचारोत्तेजक, सारगर्भित आलेख।<br /><br />इन भाषाओं ने मेरा भी मगज़ खूब खाया है। हिंदी-अंग्रेजी, हिंदी-संस्कृत अनुवाद सीखते-सीखते स्पेलिंग और रूप याद करते-करते पढ़ाई से बार-बार मन उचटा है। अब जब मेरे घर और कार्यक्षेत्र का माहौल ऐसा है कि न संस्कृत की आवश्यकता पड़ती है न अंग्रेजी की। परिणाम यह हुआ कि न मुझे अंग्रेजी आती है न संस्कृत। अब लगता है अध्ययन के समय का बड़ा हिस्सा मात्र अनुवाद सीखने में ही बीत गया। वाहियात शिक्षा पद्धति है। इसमे परिवर्तन होना चाहिए। जब आवश्यकता हो तब व्यक्ति भाषा सीख ही लेगा। जिस भाषा क्षेत्र में चार-छः महीना गुजारेगा वहीं वह वहाँ की काम भर की भाषा सीख लेगा। आवश्यकता पड़ने पर भाषा सीखने की सुविधा मिलनी चाहिए बस्स। एक उम्र तक एक ही भाषा में पढ़ना-पढ़ाना चाहिए। लेकिन अब हालात यह हैं कि बिना अंग्रेजी के बच्चा पढ़ ही नहीं सकता। :( भाषा अभिव्यक्ति का माध्यम है। काश! पूरी दुनियाँ मिलकर एक भाषा निर्धारित कर लेती और बाकी सब भाषा को मिटा देती। :)देवेन्द्र पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/07466843806711544757noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-30145651093744184792013-10-27T01:52:05.874+05:302013-10-27T01:52:05.874+05:30इसमें कोई शक नहीं कि मातृभाषा का ज्ञान जितना अच्छा...इसमें कोई शक नहीं कि मातृभाषा का ज्ञान जितना अच्छा होगा उसके बाद दूसरी भाषा का ज्ञान भी काफी बेहतर हो सकता है....पर हमारे यहां अनुवाद के ज्यादा चलन के कारण अधिकतर लोग अंग्रेजी भाषा का इस्तेमाल करते तो हैं..परंतु उनमें गहराई कम होती है...दूसरी बात ये है कि जो व्यक्ति जिस परिवेश में रहता है वहां की भाषा के नजदीक हो जाता है...जहां तक हिंदी की बात है तो सहज हिंदी और साहित्य की हिंदी अलग होती है...जिसको साहित्य किसी भाषा में रचना है तो वो उस भाषा को गहराई से जानेगा...Rohit Singhhttps://www.blogger.com/profile/09347426837251710317noreply@blogger.com