tag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post579833548723454128..comments2024-03-17T19:33:00.050+05:30Comments on न दैन्यं न पलायनम्: एक बड़ा था पेड़ नीम काप्रवीण पाण्डेयhttp://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.comBlogger44125tag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-81018563649477610652012-11-10T20:22:02.692+05:302012-11-10T20:22:02.692+05:30किस विकास को भेंट, ढह गया किस कारणवश,
किस लालच ने ...किस विकास को भेंट, ढह गया किस कारणवश,<br />किस लालच ने छीना मेरा प्रात-सुखद-रस,<br />आह ।Asha Joglekarhttps://www.blogger.com/profile/05351082141819705264noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-75535641167747176352012-11-02T20:34:19.400+05:302012-11-02T20:34:19.400+05:30सबने मिल कर काटा उसको,
बढ़ा लिया टुकड़ा जमीन का,
ए...सबने मिल कर काटा उसको,<br />बढ़ा लिया टुकड़ा जमीन का,<br />एक बड़ा था पेड़ नीम का।<br /><br />...बहुत बढ़िया सार्थक प्रस्तुति ....शुक्र है हमारे बगीचे के नीम के पेड़ को शहर की हवा नहीं लगी है अब तक ..कविता रावत https://www.blogger.com/profile/17910538120058683581noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-47141671377859492482012-11-02T20:01:23.867+05:302012-11-02T20:01:23.867+05:30एक प्रतिक्रया ब्लॉग पोस्ट :2
एक बड़ा था पेड़ नीम ...एक प्रतिक्रया ब्लॉग पोस्ट :2<br /><br />एक बड़ा था पेड़ नीम का<br />बचपन की सुन्दर सुबहों का भीना झोंका,<br />आँख खुली, झिलमिल किरणों को छत से देखा,<br />छन छन कर जब पवन बहे, तन मन को छूती,<br />शुद्ध, स्वच्छ, मधुरिम बन थिरके प्रकृति समूची,<br /><br />आज सबेरा झटके से उग आया पूरा,<br />नही सलोनी सुबह, लगे कुछ दृश्य अधूरा,<br />आज नहीं वह पेड़, कभी जो वहाँ बड़ा था,<br />तना नहीं, ईटों का राक्षस तना खड़ा था,<br /><br />पत्तों की हरियाली हत, अब नील गगन है,<br />नीम बिना भी पवन मगन है, सूर्य मगन है,<br />वही सुबह है, विश्व वही, है जीवन बहता,<br />आज नहीं पर, हृदय बसा जो तरुवर रहता,<br /><br />खटक रहा अस्तित्व सुबह का, निष्प्रभ सूरज,<br />आज नहीं है नीम, बड़ा था, चला गया तज,<br />किस विकास को भेंट, ढह गया किस कारणवश,<br />किस लालच ने छीना मेरा प्रात-सुखद-रस,<br /><br /><br />सबने मिल कर काटा उसको,<br /><br />बढ़ा लिया टुकड़ा जमीन का,<br /><br />एक बड़ा था पेड़ नीम का।<br /><br />आधुनिक रीअल्टर्स ,वाड्राज़ पर करारा व्यंग्य .<br /><br />महाकाल के हाथ पे गुल (पुष्प /गुम होना )होतें हैं पेड़ ,<br /><br />सुषमा तीनों लोक की कुल होतें हैं पेड़ .<br /><br />पेड़ पांडवों पर हुआ ,जब जब अत्याचार ,<br /><br />ढांप लिए वट भीष्म ने, तब तब दृग के द्वार .<br /><br />महानगर ने फैंक दी ,मौसम की संदूक ,<br /><br />पेड़ परिंदों से हुआ ,कितना बुरा सुलूक .<br /><br />एक बुजुर्ग (पेड़ )के न होने की पीड़ा से हताहत है कवि इस पोस्ट में .बेहतरीन रचना हमारे समय का विद्रूप पारि <br /><br />तंत्रों के साथ भी खुला खेल फर्रुखाबादी .<br /><br />virendra sharmahttps://www.blogger.com/profile/02192395730821008281noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-3571852149962034632012-11-02T19:59:34.733+05:302012-11-02T19:59:34.733+05:30एक बड़ा था पेड़ नीम का
बचपन की सुन्दर सुबहों का भी...एक बड़ा था पेड़ नीम का<br />बचपन की सुन्दर सुबहों का भीना झोंका,<br />आँख खुली, झिलमिल किरणों को छत से देखा,<br />छन छन कर जब पवन बहे, तन मन को छूती,<br />शुद्ध, स्वच्छ, मधुरिम बन थिरके प्रकृति समूची,<br /><br />आज सबेरा झटके से उग आया पूरा,<br />नही सलोनी सुबह, लगे कुछ दृश्य अधूरा,<br />आज नहीं वह पेड़, कभी जो वहाँ बड़ा था,<br />तना नहीं, ईटों का राक्षस तना खड़ा था,<br /><br />पत्तों की हरियाली हत, अब नील गगन है,<br />नीम बिना भी पवन मगन है, सूर्य मगन है,<br />वही सुबह है, विश्व वही, है जीवन बहता,<br />आज नहीं पर, हृदय बसा जो तरुवर रहता,<br /><br />खटक रहा अस्तित्व सुबह का, निष्प्रभ सूरज,<br />आज नहीं है नीम, बड़ा था, चला गया तज,<br />किस विकास को भेंट, ढह गया किस कारणवश,<br />किस लालच ने छीना मेरा प्रात-सुखद-रस,<br /><br /><br />सबने मिल कर काटा उसको,<br /><br />बढ़ा लिया टुकड़ा जमीन का,<br /><br />एक बड़ा था पेड़ नीम का।<br /><br />आधुनिक रीअल्टर्स ,वाड्राज़ पर करारा व्यंग्य .<br /><br />महाकाल के हाथ पे गुल (पुष्प /गुम होना )होतें हैं पेड़ ,<br /><br />सुषमा तीनों लोक की कुल होतें हैं पेड़ .<br /><br />पेड़ पांडवों पर हुआ ,जब जब अत्याचार ,<br /><br />ढांप लिए वट भीष्म ने, तब तब दृग के द्वार .<br /><br />महानगर ने फैंक दी ,मौसम की संदूक ,<br /><br />पेड़ परिंदों से हुआ ,कितना बुरा सुलूक .<br /><br />एक बुजुर्ग (पेड़ )के न होने की पीड़ा से हताहत है कवि इस पोस्ट में .बेहतरीन रचना हमारे समय का विद्रूप पारी<br /><br /> तंत्रों के साथ भी खुला खेल फर्रुखाबादी .<br />virendra sharmahttps://www.blogger.com/profile/02192395730821008281noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-77964080720572351802012-11-01T23:07:19.012+05:302012-11-01T23:07:19.012+05:30वाह ...कड़वे नीम की मिठास भरी बातें ..वाह ...कड़वे नीम की मिठास भरी बातें ..सु-मन (Suman Kapoor)https://www.blogger.com/profile/15596735267934374745noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-28430846780879679352012-11-01T21:41:39.776+05:302012-11-01T21:41:39.776+05:30बढती जनसँख्या पेड़ों की दुश्मन है. सुंदरता से विषय...बढती जनसँख्या पेड़ों की दुश्मन है. सुंदरता से विषय को उठाया है.रचना दीक्षितhttps://www.blogger.com/profile/10298077073448653913noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-26799410921098717022012-11-01T19:47:28.556+05:302012-11-01T19:47:28.556+05:30यही स्थिति रही तो ..अभी कितनों की और बली चढ़ेगी..यही स्थिति रही तो ..अभी कितनों की और बली चढ़ेगी..Maheshwari kanerihttps://www.blogger.com/profile/07497968987033633340noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-35649220663688247432012-11-01T18:06:16.326+05:302012-11-01T18:06:16.326+05:30इस देश की भावी संतानें कहीं नीम की छाँव और सुरभित ...इस देश की भावी संतानें कहीं नीम की छाँव और सुरभित समीर से वंचित न रह जाएँ।।।ZEALhttps://www.blogger.com/profile/04046257625059781313noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-64865437773122350162012-11-01T15:17:00.539+05:302012-11-01T15:17:00.539+05:30उफ़ ! एक और बलिदान..मानव खुद अपना ही विनाश करने पर...उफ़ ! एक और बलिदान..मानव खुद अपना ही विनाश करने पर तुला है..Anitahttps://www.blogger.com/profile/17316927028690066581noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-59799314798520323972012-11-01T12:53:38.782+05:302012-11-01T12:53:38.782+05:30Sad! Only redemption is to plant and look after fe...Sad! Only redemption is to plant and look after few neem saplings.<br />Raravihttps://www.blogger.com/profile/06067833078018520969noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-28521787349106226692012-11-01T09:39:32.287+05:302012-11-01T09:39:32.287+05:30बहुत सुन्दर रचना !!!
दो दिन पहले ही हमने भी नीम के...बहुत सुन्दर रचना !!!<br />दो दिन पहले ही हमने भी नीम के पेड़ पर ही कुछ स्मृतियाँ सजाई हैं ,जल्द ही पोस्ट करूंगी....Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-78626517321348022982012-10-31T21:59:33.050+05:302012-10-31T21:59:33.050+05:30नीम बिना भला पवन कहाँ मगन है, सूर्य कहाँ मगन है,दो...नीम बिना भला पवन कहाँ मगन है, सूर्य कहाँ मगन है,दोनों ही व्यग्र,क्लांत,उदास व क्रुद्ध हैं। किंतु दुर्भाग्य से यही हमारी दुष्कृति और फलस्वरूप यथायोग्य नियति है।देवेंद्रhttps://www.blogger.com/profile/13104592240962901742noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-31712333699805125352012-10-31T21:56:21.088+05:302012-10-31T21:56:21.088+05:30Deeply touched my heart.Deeply touched my heart.Unknownhttps://www.blogger.com/profile/03370192202368493378noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-81164871425319644402012-10-31T21:07:03.835+05:302012-10-31T21:07:03.835+05:30ओह ! बहुत दर्द भरा | ओह ! बहुत दर्द भरा | डॉ. नूतन डिमरी गैरोला- नीतिhttps://www.blogger.com/profile/08478064367045773177noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-58716078792226645042012-10-31T20:32:23.456+05:302012-10-31T20:32:23.456+05:30सशक्त अभिव्यक्ति
जारी है प्रकृति की ह्त्या सशक्त अभिव्यक्ति <br />जारी है प्रकृति की ह्त्या M VERMAhttps://www.blogger.com/profile/10122855925525653850noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-86997905059724665622012-10-31T19:11:17.766+05:302012-10-31T19:11:17.766+05:30सम मात्रा न होने के बाद भी इस कविता में गायकी प्र...सम मात्रा न होने के बाद भी इस कविता में गायकी प्रचुरता से अनुभव होती है।विष्णु बैरागीhttps://www.blogger.com/profile/07004437238267266555noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-74855875108071714402012-10-31T18:27:02.385+05:302012-10-31T18:27:02.385+05:30बहुत सुन्दर.बहुत सुन्दर.shikha varshneyhttps://www.blogger.com/profile/07611846269234719146noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-44892055788764584392012-10-31T18:17:36.729+05:302012-10-31T18:17:36.729+05:30सुन्दर कविता. विद्यालय परिसर में खड़ा वो नीम का पे...सुन्दर कविता. विद्यालय परिसर में खड़ा वो नीम का पेड़ याद आया, जो अब शायद नहीं है.सुमंत देशपांडेhttps://www.blogger.com/profile/00791719359020105305noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-12644110509317952602012-10-31T17:45:03.875+05:302012-10-31T17:45:03.875+05:30ग़र एक जाये और दस लगायें , तो बात बने. ग़र एक जाये और दस लगायें , तो बात बने. डॉ टी एस दरालhttps://www.blogger.com/profile/16674553361981740487noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-8584160400990274432012-10-31T17:06:10.971+05:302012-10-31T17:06:10.971+05:30सर जी सुन्दर कविता | मै शुक्रवार को गरीब रथ लेकर ...सर जी सुन्दर कविता | मै शुक्रवार को गरीब रथ लेकर यशवंतपुर आ रहा हूँ | आप का स्वागत है |G.N.SHAWhttps://www.blogger.com/profile/03835040561016332975noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-5846084691246469482012-10-31T16:50:02.623+05:302012-10-31T16:50:02.623+05:30बहुत ही सशक्त अभिव्यक्ति .. आभार
बहुत ही सशक्त अभिव्यक्ति .. आभार<br />सदाhttps://www.blogger.com/profile/10937633163616873911noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-3400333230308668712012-10-31T16:18:42.620+05:302012-10-31T16:18:42.620+05:30शायद हम यूँ ही देखते रहेंगे पेड़ो का कटना. क्षोभ स...शायद हम यूँ ही देखते रहेंगे पेड़ो का कटना. क्षोभ सा होने लगा है अब ashishhttps://www.blogger.com/profile/07286648819875953296noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-70952233889818063832012-10-31T14:06:52.647+05:302012-10-31T14:06:52.647+05:30प्रभावित करती अति सुन्दर रचना..प्रभावित करती अति सुन्दर रचना..Amrita Tanmayhttps://www.blogger.com/profile/06785912345168519887noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-63699445573074732492012-10-31T13:55:24.954+05:302012-10-31T13:55:24.954+05:30उम्मीद कर रहा था कि गाँव से लौटने के बाद एक उम्दा,...उम्मीद कर रहा था कि गाँव से लौटने के बाद एक उम्दा, संवेदना से भरपूर रचना पढने को मिलेगी. यह कविता इस उम्मीद पर खरी है.शायद द्वार पर पर कोई नीम का पेड़ रहा होगा, जो विकास क़ी भेंट चढ़ चुका है. आज के इस दौर में जब लोग आदमी क़ी ही परवाह नहीं करते पर्यावरण क़ी फिक्र कौन करे?Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-34343549301520808032012-10-31T13:14:48.295+05:302012-10-31T13:14:48.295+05:30भौतिकता के लिए प्राकृतिक बलि भौतिकता के लिए प्राकृतिक बलि रश्मि प्रभा...https://www.blogger.com/profile/14755956306255938813noreply@blogger.com