tag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post552975035103642718..comments2024-03-17T19:33:00.050+05:30Comments on न दैन्यं न पलायनम्: नव विरागप्रवीण पाण्डेयhttp://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.comBlogger88125tag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-87367687770346445082011-04-30T16:23:24.607+05:302011-04-30T16:23:24.607+05:30@ maheshwari Kaneri
बहुत धन्यवाद आपका, निश्चय ही आ...@ maheshwari Kaneri<br />बहुत धन्यवाद आपका, निश्चय ही आपके ब्लॉग से भी कुछ सीखने का प्रयास करूँगा।।<br /><br />@ Kashvi Kaneri<br />बहुत धन्यवाद आपका।प्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-81576713419593093792011-04-30T16:23:08.811+05:302011-04-30T16:23:08.811+05:30@ Ashish (Ashu)
पता नहीं, पर भारत में सम्भावनायें ...@ Ashish (Ashu)<br />पता नहीं, पर भारत में सम्भावनायें सर्वाधिक हैं।<br /><br />@ Akshita (Pakhi)<br />बहुत धन्यवाद आपका पाखीजी।<br /><br />@ Navin C. Chaturvedi<br />अब अन्तर और भी स्पष्ट दिखता है।<br /><br />@ Kailash C Sharma<br />जीवन जब सिमटना चाहता है, सब संग्रह व्यर्थ सा लगने लगता है।<br /><br />@ Rachana<br />बहुत धन्यवाद आपका।प्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-39691290874000276932011-04-30T16:22:51.883+05:302011-04-30T16:22:51.883+05:30@ shikha varshney
सही कहा आपने, अस्थिरता जितनी अधि...@ shikha varshney<br />सही कहा आपने, अस्थिरता जितनी अधिक होगी, विराग उतना शीघ्र आयेगा।<br /><br />@ विजय रंजन<br />कभी कभी व्यवस्था को समझने के लिये व्यवस्था के ऊपर उठना पड़ता है, विराग उसी सिद्धान्त का निष्कर्ष है संभवतः।<br /><br />@ अपर्णा मनोज<br />बहुत धन्यवाद आपका।<br /><br />@ संतोष पाण्डेय<br />कुछ अध्यात्मिक तत्व तो हैं हम सबके अन्दर अन्यथा हम आकर्षित नहीं होते विराग के प्रति।<br /><br />@ Abhishek Ojha<br />यही अस्थिरता के बीज बन जाते हैं।प्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-49500844461160695502011-04-30T16:22:31.487+05:302011-04-30T16:22:31.487+05:30@ संजय @ मो सम कौन ?
चक्रीय परिवर्तन में हम सबको उ...@ संजय @ मो सम कौन ?<br />चक्रीय परिवर्तन में हम सबको उतराना है।<br /><br />@ ***Punam***<br />जब तक वह दृष्टिकोण नहीं आयेगा, जीवन अधूरा ही रहेगा।<br /><br />@ सदा<br />बहुत धन्यवाद आपका।<br /><br />@ Vijay Kumar Sappatti<br />मन की दुविधा ही हमें अपने स्वरूप में स्थिर नहीं होने देती है।<br /><br />@ नरेश सिह राठौड़<br />सुविधीशील जीवनशैली की यही हानियाँ हैं।प्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-49637770254156674462011-04-30T16:22:10.600+05:302011-04-30T16:22:10.600+05:30@ G.N.SHAW
यही विडम्बना है जीवन की।
@ विष्णु बैरा...@ G.N.SHAW<br />यही विडम्बना है जीवन की।<br /><br />@ विष्णु बैरागी<br />सही समय पर सही भाव उभारना होता है।<br /><br />@ ऋषभ Rishabha<br />विराग जीवन को विचारशील बना देता है, नहीं तो मात्र क्रियाशीलता तो थका डालती है।<br /><br />@ ललित शर्मा<br />संस्कार रहेंगे तो समय आने पर विराग के भाव भी जाग जायेंगे।<br /><br />@ Smart Indian - स्मार्ट इंडियन<br />लड़ना तो भौतिकता के मूल में है, शास्त्र पढ़ने से समझ बढ़ती ही है।प्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-68555823900267539542011-04-30T16:21:53.636+05:302011-04-30T16:21:53.636+05:30@ ज्ञानदत्त पाण्डेय Gyandutt Pandey
हमारी समझ को य...@ ज्ञानदत्त पाण्डेय Gyandutt Pandey<br />हमारी समझ को यही देरी प्रभावित करती है, विराग का भय चला जायेगा यदि उसमें निहित सिद्धान्त हम समझ लेंगे.<br /><br />@ रचना दीक्षित<br />वैराग्य को समझने का प्रयास ही अपने आप में स्वयं का तन्त्र समझने में सहायक हो सकता है।<br /><br />@ देवेन्द्र<br />अपने से बतियायेंगे तभी वह तत्व समझ में आयेंगे।<br /><br />@ cmpershad<br />बहुत धन्यवाद आपका।<br /><br />@ honesty project democracy<br />भौतिकता में अधिक लिप्त होना अन्ततः दुख ही देता है, अच्छा है कि विराग के बीज हमारे समाज में पड़े रहें।प्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-77234775538241200522011-04-30T16:21:33.648+05:302011-04-30T16:21:33.648+05:30@ Gopal Mishra
बहुत धन्यवाद आपका।
@ संगीता स्वरुप...@ Gopal Mishra<br />बहुत धन्यवाद आपका।<br /><br />@ संगीता स्वरुप ( गीत )<br />विराग के अनुराग में हम भी घूम रहे हैं यहाँ पर।<br /><br />@ निवेदिता<br />संस्कारी, विरागी और पलायनवादी का अन्तर बच्चों को समझाना ही होगा। त्यागियों का मान तो बना रहेगा।<br /><br />@ कविता रावत<br />बहुत धन्यवाद आपका।<br /><br />@ दिगम्बर नासवा<br />अपनी धरती में यही गुण पाये जाते हैं।प्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-9036723533906038642011-04-30T16:21:13.995+05:302011-04-30T16:21:13.995+05:30@ udaya veer singh
बहुत धन्यवाद आपका।
@ अनामिका क...@ udaya veer singh<br />बहुत धन्यवाद आपका।<br /><br />@ अनामिका की सदायें ......<br />कान्वेन्ट में भेजकर हम निश्चिन्त हो जाते हैं कि कम से कम बच्चा विरागी नहीं होगा।<br /><br />@ Dinesh pareek<br />बहुत धन्यवाद आपका।<br /><br />@ amit srivastava<br />पारे के गुण विराग तत्व से कितने मिलते हैं।<br /><br />@ संगीता पुरी<br />बहुत धन्यवाद आपका।प्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-70186974370976178502011-04-30T16:20:55.856+05:302011-04-30T16:20:55.856+05:30@ mahendra verma
अध्यात्मिक तत्वों से बच्चों को दू...@ mahendra verma<br />अध्यात्मिक तत्वों से बच्चों को दूर करने की हानि अन्ततः माता पिता को हो ही जाती है।<br /><br />@ Sunil Kumar<br />बहुत धन्यवाद आपका।<br /><br />@ चला बिहारी ब्लॉगर बनने<br />अनुराग और विराग में उलझा देश का जनमानस।<br /><br />@ मनोज कुमार<br />बहुत धन्यवाद आपका।<br /><br />@ राज भाटिय़ा<br />बुद्ध को दुखी करने वाले कारण निश्चय ही हमें भी दुखी करते हैं। उनका विराग तत्व निश्चय ही सान्ध्र होगा।प्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-14655523483545331392011-04-30T16:19:50.730+05:302011-04-30T16:19:50.730+05:30@ ashish
उद्धव का विराग गोपियों के अनुराग के सामने...@ ashish<br />उद्धव का विराग गोपियों के अनुराग के सामने ढीला पड़ गया था।<br /><br />@ महेन्द्र मिश्र<br />बहुत धन्यवाद आपका।<br /><br />@ महेन्द्र मिश्र<br />यही बीज हर ओर बिखरे पड़े हैं।<br /><br />@ dhiru singh {धीरू सिंह}<br />मेहनत और ईमानदारी भी सबसे नहीं हो पाती है। वही कर लें, संस्कार उसी में हैं।<br /><br />@ anupama's sukrity !<br />हम अपनी आवश्यकताओं का आकार बढ़ाते रहते हैं, उनको धीरे धीरे कम करना ही नव विराग समझ लें।प्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-88535155110031648062011-04-30T16:16:31.698+05:302011-04-30T16:16:31.698+05:30@ Mrs. Asha Joglekar
विरागियों के प्रति श्रद्धा हो...@ Mrs. Asha Joglekar<br />विरागियों के प्रति श्रद्धा होने के बाद भी इस विषय में अपने को न जाने देने का हठ विचारणीय विषय है।<br /><br />@ गिरधारी खंकरियाल<br />नव विराग उसी विराग का नया रूप है, तत्व वही हैं।<br /><br />@ वन्दना<br />अपनी आवश्यकतायें समेटते जाना ही वास्तव में विराग है। जीवन प्रारम्भ करते हैं और धीरे धीरे हम वस्तुओं और सम्बन्धों को जोड़ते जाते हैं। जीवन के अन्तिम पड़ाव में पहुँचने के पहले धीरे धीरे अपना बोझ कम करना होगा।<br /><br />@ Dr (Miss) Sharad Singh<br />बहुत धन्यवाद आपका।<br /><br />@ Mukesh Kumar Sinha<br />हमारे देश में यही दुविधा रह रहकर मुखरित होती रही है।प्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-77013588167218109242011-04-30T16:16:14.730+05:302011-04-30T16:16:14.730+05:30@ संतोष त्रिवेदी
संस्कार के महत्व में सदा ही विराग...@ संतोष त्रिवेदी<br />संस्कार के महत्व में सदा ही विराग के बीज पाये जाते हैं। <br /><br />@ भारतीय नागरिक - Indian Citizen<br />जीन भी बीन के सामने नाच रही हैं।<br /><br />@ रश्मि प्रभा...<br />इसी कारण मन दोनों ओर बहक जाता है, अनियन्त्रित।<br /><br />@ Coral<br />वैराग्य का स्थान सदा ही ऊँचा रहा है, भारतीय संस्कृति में।<br /><br />@ संजय भास्कर<br />बहुत धन्यवाद आपका।प्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-86934808779627942272011-04-30T16:15:47.154+05:302011-04-30T16:15:47.154+05:30@ Rakesh Kumar
वर्तमान में अन्य विषयों से ध्यान हट...@ Rakesh Kumar<br />वर्तमान में अन्य विषयों से ध्यान हटा लेना ही विराग है। सार्थकता में तो सदा ही रहना पड़ेगा हम सबको।<br /><br />@ दिनेशराय द्विवेदी Dineshrai Dwivedi<br />जब जगत के प्रति अनुराग वृहद हो जाता है, व्यक्ति और परिवार से विराग होने लगता है। <br /><br />@ ajit gupta<br />राग विराग में झूलता जीवन।<br /><br />@ Patali-The-Village<br />बहुत धन्यवाद आपका।<br /><br />@ खुशदीप सहगल<br />विराग जगे या अनुराग, दिशा बदल जाती है।प्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-50267513702450995452011-04-30T16:15:27.252+05:302011-04-30T16:15:27.252+05:30@ सुशील बाकलीवाल
त्याग का आदर तो है पर अपने घर में...@ सुशील बाकलीवाल<br />त्याग का आदर तो है पर अपने घर में नहीं।<br /><br />@ ZEAL<br />वही रह रहकर उभरने लगता है।<br /><br />@ Ratan Singh Shekhawat<br />सच कहा आपने, अब यही अवधारणा हर ओर बसी हुयी है।<br /><br />@ Arvind Mishra<br />वानप्रस्थ में दस वर्षों की सेंध तो सरकारी नौकरियों ने लगा रखी है, शेष आधुनिक जीवनशैली समय के पहले ही जगत से विदा करवा देती है।<br /><br />@ अरुण चन्द्र रॉय<br />बहुत धन्यवाद आपका।प्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-10260882459893723322011-04-30T16:15:07.105+05:302011-04-30T16:15:07.105+05:30@ Udan Tashtari
सब कुछ रहने के बाद भी मन कई बार उच...@ Udan Tashtari<br />सब कुछ रहने के बाद भी मन कई बार उचाट हो जाता है, विराग के तत्व आज भी उपस्थित हैं।<br /><br />@ डॉ॰ मोनिका शर्मा<br />स्थायी संतुलन की आवश्यकता, असंतुलित अवस्था में अधिक पड़ती है। आधुनिक जीवन में असंतुलन अधिक है। <br /><br />@ Vivek Rastogi<br />अनुरागी कुछ न कुछ खोजने में लगे हैं, विरागी भी शान्ति की खोज में हैं।<br /><br />@ सतीश सक्सेना<br />जितना भी छाते जायेंगे, विराग के बीज उतना ही अकुलायेंगे।<br /><br />@ Rahul Singh<br />हम सत्य को व्यस्तता में छिपाने का प्रयास करने लगते हैं।प्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-18739699589165679002011-04-27T13:08:22.847+05:302011-04-27T13:08:22.847+05:30हैलो अंकल !
मैने आप के ब्लांग देखे काफी उत्साह व...हैलो अंकल !<br /> मैने आप के ब्लांग देखे काफी उत्साह वर्धक हैं। मेरे ब्लांग में भी आप आये और मेरे दोस्त बने तो मुझे खुशी होगी धन्यवाद…Kashvi Kanerihttps://www.blogger.com/profile/02171434693302239505noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-866072877834999262011-04-26T22:38:13.635+05:302011-04-26T22:38:13.635+05:30आप के विचारों से पूर्णत: सहमत हूँ
आप के सारे ब्ल...आप के विचारों से पूर्णत: सहमत हूँ <br />आप के सारे ब्लांग पढ़ती हूँ, काफी उत्साह वर्धक हैं। मेरे ब्लांग में भी आप आये तो मुझे खुशी होगी धन्यवाद…maheshwari Kanerihttp://kaneriabhivainjana.blogspot.comnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-28931678338992114082011-04-26T21:14:35.760+05:302011-04-26T21:14:35.760+05:30gahri soch ,uttam vishleshan .sachchi baat likhi h...gahri soch ,uttam vishleshan .sachchi baat likhi hai aapne <br />ek ek pankti pathniye<br />rachanaRachanahttps://www.blogger.com/profile/15249225250149760362noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-16284778642352332502011-04-26T14:06:31.352+05:302011-04-26T14:06:31.352+05:30बुद्ध को बुद्ध करने वाले तथ्य आज भी हैं, आवरण चढ़ा...बुद्ध को बुद्ध करने वाले तथ्य आज भी हैं, आवरण चढ़ा लें हम उपसंस्कृतियों के, ओढ़ लें चादरें दिग्भ्रमों की, पर हम निश्चिन्त नहीं सो पायेंगे, बुद्ध और अर्जुन का वैराग्य यहाँ के वातावरण में घुला है, नव विराग बनकर.....<br /><br />आप का कथन पूर्णतः सत्य है...हम चाहे कितना भी दुनियां से अनुराग रखें, लेकिन एक ऐसा समय अवश्य आता है जब सब कुछ छोडने को दिल करता है..बहुत सार्थक पोस्टKailash Sharmahttps://www.blogger.com/profile/12461785093868952476noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-46406791848492016042011-04-26T12:45:55.486+05:302011-04-26T12:45:55.486+05:30सच कहा है आधुनिक परिवेष कुछ ऐसा ही हो गया हैसच कहा है आधुनिक परिवेष कुछ ऐसा ही हो गया हैwww.navincchaturvedi.blogspot.comhttps://www.blogger.com/profile/07881796115131060758noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-73069809985019436212011-04-26T09:46:00.666+05:302011-04-26T09:46:00.666+05:30बहुत सुन्दर बात लिखी आपने ...बधाई.
_____________...बहुत सुन्दर बात लिखी आपने ...बधाई. <br />________________________<br />'पाखी की दुनिया' में 'पाखी बनी क्लास-मानीटर' !!Akshitaa (Pakhi)https://www.blogger.com/profile/06040970399010747427noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-44651109991269043992011-04-26T03:03:09.800+05:302011-04-26T03:03:09.800+05:30नव विराग..कही हमे भी ना हो जाय :)नव विराग..कही हमे भी ना हो जाय :)Ashish (Ashu)https://www.blogger.com/profile/17298075569233002510noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-64089771660088200912011-04-26T00:23:04.086+05:302011-04-26T00:23:04.086+05:30"बुद्ध को बुद्ध करने वाले तथ्य आज भी हैं"..."बुद्ध को बुद्ध करने वाले तथ्य आज भी हैं" - सत्य वचन.Abhishek Ojhahttps://www.blogger.com/profile/12513762898738044716noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-30139496444445442312011-04-25T23:23:22.616+05:302011-04-25T23:23:22.616+05:30सही है. आज जीवन इन्द्रियजनित सुखों के पीछे भागने क...सही है. आज जीवन इन्द्रियजनित सुखों के पीछे भागने का नाम है. जिसमे सुख नहीं, सुख का आभास है. सच तो यह है कि इसमें जीवन ही नहीं है.लेकिन अफ़सोस यही है कि जिन आँखों ने उजाला नहीं देखा वे उजाले का सपना भी नहीं देख पातीं.संतोष पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/06184746764857353641noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-70110851438279663902011-04-25T21:36:31.919+05:302011-04-25T21:36:31.919+05:30नव विराग की अवधारणा .. विचारोत्तेजक है .नव विराग की अवधारणा .. विचारोत्तेजक है .अपर्णा मनोजhttps://www.blogger.com/profile/00114034100822076336noreply@blogger.com