tag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post3239015097706902464..comments2024-03-17T19:33:00.050+05:30Comments on न दैन्यं न पलायनम्: आवारा हूँप्रवीण पाण्डेयhttp://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.comBlogger71125tag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-20299079440535418662010-10-13T08:02:34.968+05:302010-10-13T08:02:34.968+05:30@ उस्ताद जी
आकलन का धन्यवाद।@ उस्ताद जी <br />आकलन का धन्यवाद।प्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-46312169634852608112010-10-13T08:01:54.365+05:302010-10-13T08:01:54.365+05:30@ प्रतिभा सक्सेना
मुक्ति थोड़ा गुरुतर शब्द है, निभ...@ प्रतिभा सक्सेना<br />मुक्ति थोड़ा गुरुतर शब्द है, निभाने में थोड़ा कठिन।<br /><br />@ G Vishwanath<br />दिशा बता देने से कोई न कोई कार्य याद आ जाता है और आवारापन का क्रम टूट जाता है। निष्प्रयोजनीयता बनाये रखें, आनन्द बना रहेगा।<br /><br />@ नीरज गोस्वामी<br />आवारगी में आकर्षण है, शब्दों ने कहाँ सीखा यह गुण।<br /><br />@ abhi<br />मेरी आवारगी आपके अधिक निकट है, होनी भी चाहिये। मेरी आवारगी मेरी सदैव रहती ही कब है? ध्यान से देखिये, आपकी आवारगी मेरे पास बैठी होगी अभी।<br /><br />@ Manoj K<br />थप्पड़ तो मेरा भी आखिरी था, आवारगी छूटी नहीं, फिर भी।प्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-38727437219453176162010-10-10T22:13:04.935+05:302010-10-10T22:13:04.935+05:306/10
very nice6/10<br /><br />very niceउस्ताद जीhttps://www.blogger.com/profile/03230688096212551393noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-47531605451182901612010-10-08T21:53:04.531+05:302010-10-08T21:53:04.531+05:30आपकी पोस्ट पढकर बचपन का एक दिन याद हो आया.. मैं आठ...आपकी पोस्ट पढकर बचपन का एक दिन याद हो आया.. मैं आठवीं में था और स्कूल के बाद दोस्तों के साथ क्रिकेट खेलने का प्रोग्राम बन गया. १.३० बजे घर पहुँचता था और अब ४ बज चुके थे. घर पहुंचा तो माँ गेट के बाहर ढलान पर बैठी थी. मैंने तो सिर्फ ७ रुपये मांगे रिक्शे वाले को देने के लिए, लेकिन उत्तर थप्पड़ था. <br /><br />थप्पड़ आखरी था पर याद अब तक है ..<br /><br />बहुत ही सुन्दर पोस्ट.Manoj Khttps://www.blogger.com/profile/06707542140412834778noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-31748619761629694652010-10-08T17:19:08.922+05:302010-10-08T17:19:08.922+05:30फ़िलहाल इसे फेसबुक और बज्ज पे शेयर करने जा रहा हूँ...फ़िलहाल इसे फेसबुक और बज्ज पे शेयर करने जा रहा हूँ...अपनी सी लगी पोस्ट <br /><br />" 5-6 किमी निष्प्रयोजनीय भ्रमण सड़कों पर, मॉल में, पार्क में, कॉफी की दुकान में, नितान्त अकेले, अपने भूत से विलग, भविष्य से विलग, वर्तमान को धोखा देते, किसी से कोई बात ऐसे ही अकारण, दिशाहीन, अन्तहीन, ध्येयहीन। न किसी को प्रसन्न रखने की बाध्यता, न किसी को दुख देने का मन, मैं और मेरी आवारगी, समय से उचटी, अपने में रमी। "<br /><br />आपने मेरे बारे में कहाँ से जाना :)abhihttps://www.blogger.com/profile/12954157755191063152noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-73331781283513407642010-10-08T12:56:37.362+05:302010-10-08T12:56:37.362+05:30लाजवाब पोस्ट...शब्दों की जादूगरी तो कोई आपसे सीखे....लाजवाब पोस्ट...शब्दों की जादूगरी तो कोई आपसे सीखे...एक बार नहीं दसों बार पढ़ गया हूँ ये पोस्ट...<br />ये दिल ये पागल दिल मेरा क्यूँ बुझ गया आवारगी<br />इस दस्त में इक शहर था वो क्या हुआ आवारगी <br /><br />नीरजनीरज गोस्वामीhttps://www.blogger.com/profile/07783169049273015154noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-13203699914471418222010-10-08T11:24:05.431+05:302010-10-08T11:24:05.431+05:30प्रतिभाजी से सहमत।
अवश्य, यह मुक्ती ही है।
हम थोडी...प्रतिभाजी से सहमत।<br />अवश्य, यह मुक्ती ही है।<br />हम थोडी देर के लिए स्वतंत्र हो जाते हैं।<br />समय की कोई पाबन्दी नहीं, दिशा, लक्ष्य की भी कोई पाबन्दी नहीं।<br /><br />कभी शनिवार/रविवार सुबह सुबह घर से निकल जाता हूँ एक long walk के लिए।<br />एक घंटे से भी ज्यादा हो जाता है हमारे लौटने तक.<br />भटकते समय खूब सोचता हूँ, विश्लेषण करता हूँ और मन को शांत करता हूँ।<br />साथ साथ अच्छा व्यायाम भी हो जाता है।<br />पत्नि को बताता नहीं हूँ क्योंकि यदि बता दूं तो अवश्य कहेगी अपना मोबाईल साथ ले जाना!<br />या फ़िर कहेगी आते समय गैस वाले के पास जरूर जाना और पूछना सिलिंडर कब भेज रहा है या फलां दुकान पर जाकर अमुक सामान खरीद लाना।<br />आवारगी का मज़ा लुट जाता हैं<br />मोबाइल फ़ोन जंजीर बन जाता है जिसे पत्नि जब चाहे खींच सकती है।<br />तब तो इसे हम मुक्ति नहीं कहेंगे। <br />शुभकामनाएं<br />जी विश्वनाथG Vishwanathhttps://www.blogger.com/profile/13678760877531272232noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-73473791428120594432010-10-08T09:37:41.590+05:302010-10-08T09:37:41.590+05:30इस हुड़क को अगर आवारगी के बजाय 'मुक्ति' -क...इस हुड़क को अगर आवारगी के बजाय 'मुक्ति' -कुछ समय की ही सही-कहें तो कैसा रहे ?प्रतिभा सक्सेनाhttps://www.blogger.com/profile/12407536342735912225noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-31283056429850549282010-10-08T08:28:05.097+05:302010-10-08T08:28:05.097+05:30@ दिगम्बर नासवा
खुद से बातें करना अच्छा लगता है, स...@ दिगम्बर नासवा<br />खुद से बातें करना अच्छा लगता है, स्वयं के अनछुये पहलू जान लेना, मन का प्रवाह पहचान लेना कितना सुखद है। <br /><br />@ सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी<br />उसी आवारगी में खिंचे हम भी नागपुर की ट्रेन में बैठ गये हैं।<br /><br />@ महफूज़ अली<br />आपकी आवारगी तो अलमस्त है। जिये रहें उसके साथ। जब जैंगोजी नहीं हैं, उनसे किये हुये सारे वचन निभा डालें।<br />एक बात आपने बहुत पते की की है, वह कि यदि आवारगी स्टाइल में जीनी हो तो बाकी क्षेत्रों में अग्रणी रहा जाये। दिलीप कुमार को भी तो सायराबानू मिल गयी थीं, आपकी कब आ रही हैं।<br /><br />@ Sanjeet Tripathi<br />अब जब अगली पोस्ट का नाम बंजारा रखूँगा आपको ट्रीट देने रायपुर आ जाऊँगा, नोटिस से बचना जो है। <br />आवारगी का सुख वो नहीं समझ सकता जिसने आवारगी अनुभव न की हो।प्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-37747040659726659072010-10-08T08:08:12.583+05:302010-10-08T08:08:12.583+05:30@ हास्यफुहार
बहुत धन्यवाद।
@ Akanksha~आकांक्षा
पु...@ हास्यफुहार<br />बहुत धन्यवाद।<br /><br />@ Akanksha~आकांक्षा<br />पुरानी आवारगीय स्मृतियों में उतरना बहुत भाता है।<br /><br />@ सत्यप्रकाश पाण्डेय<br />बहुत धन्यवाद, हर बार की तरह उत्साहवर्धन के लिये।<br /><br />@ निर्मला कपिला<br />आवारगी को सृजनात्मकता से जोड़ दिया जायेगा तब तो लाइसेन्स मिल जायेगा दिशाहीन भ्रमण का।<br /><br />@ नरेश सिह राठौड़<br />मन पर जब कोई बोझ न रखा जाये तब बहुत कुछ सीखा जा सकता है स्वयं के बारे में।प्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-85336204480208777112010-10-08T07:55:14.159+05:302010-10-08T07:55:14.159+05:30@ Mrs. Asha Joglekar
आवारगी हर मनुष्य के अन्दर बैठ...@ Mrs. Asha Joglekar<br />आवारगी हर मनुष्य के अन्दर बैठी एक उत्कण्ठा है स्वयं में रहने की। घर में यदि वह एकान्त नहीं मिल पाता है तो व्यक्ति बाहर भागता है। <br /><br />@ राम त्यागी<br />सच कह रहे हैं, उस चांटे ने एक सीमा निर्धारित कर दी संभवतः। अब चाह कर भी आवारगी की उन्ही गलियों में जा पाता हूँ जिससे लौटकर जीवन में वापस आ सकूँ। <br /><br />@ 'उदय' <br />बहुत धन्यवाद।<br /><br />@ राजभाषा हिंदी<br />बहुत धन्यवाद आपका।<br /><br />@ Rahul Singh<br />भटकने से राह मिले न मिले पर स्वयं से भेंट हो जाती है।प्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-56505265408018477262010-10-08T00:58:40.562+05:302010-10-08T00:58:40.562+05:30इसे पढ़कर ऐसा लगा जानो आपने मेरे ही मन की बात रख...इसे पढ़कर ऐसा लगा जानो आपने मेरे ही मन की बात रख दी हो, देखिये न, मेरे ब्लॉग का नाम ही आवारा बंजारा है . आज से दस साल पहले जब पहली बार इन्टरनेट की दुनिया में आया तो याहू पर आईडी बनाया "आवारा_झोका_हवा_का", और ये आईडी आज तक कायम है. ये आवारगी न जाने क्यं मुझे अपने व्यक्तित्व का एक हिस्सा क्या, सबसे बड़ा हिस्सा लगती है. इस आवारगी में जो सुख है वह अतुलनीय है.Sanjeet Tripathihttps://www.blogger.com/profile/18362995980060168287noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-38735145144853466622010-10-07T23:04:37.854+05:302010-10-07T23:04:37.854+05:30बहत ही शानदार पोस्ट.... मुझे तो अपनी जवानी के दिन ...बहत ही शानदार पोस्ट.... मुझे तो अपनी जवानी के दिन याद आ गए...जैसे ही बिली जौएल का नाम देखा तो.... मुझे आज भी वी दिंट स्टार्ट द फायर... बट द किंग एंड आई... वी ट्राइड टू फायट... गाना पूरा याद है... और अपने स्कूल के फंक्शन में पूरा गाया था... वो भी क्या दिन थे... जब सिर्फ और सिर्फ अंग्रेज़ी गाना ही सुनते थे... ख़ैर...आज भी मैं अंग्रेज़ी गाना ही ज़्यादा सुनता हूँ... हाँ! यह है कि ....जब किसी लड़की से फ्लर्ट करते करते... सेंटी हो जाता हूँ तो हिंदी गाने भी ज़रूरत और इमोशंस के मुताबिक़ सुन लेता हूँ... मेरे साथ यह बहुत बड़ी प्रॉब्लम है... मैं करता तो फ्लर्ट हूँ.... और हो इमोशनल जाता हूँ... महीने में सात -आठ बार तो इमोशनल ज़रूर होता हूँ... फिर यही सोच कर आगे बढ़ लेता हूँ... कि लड़कियों का क्या है.... एक जाती है तो दूसरी ज़रूर आती है... आएगी ही... आएगी... नहीं आएगी तो ऐसी पर्सनैलिटी पर लानत है... क्यूँ सही कह रहा हूँ ना मैं? ही ही ही ... मेरे पिताजी कहा करते थे.... कि ...साला... आवारा है... अपने आपको दिलीप कुमार समझता है.... मैं कहता था कि गलती आपकी ही है... काहे पैदा किये... इतना हैंडसम लड़का... मैंने तो कहा नहीं था... फिर दो-चार गाली खाता था... और चल देता था अपने कमरे की ओर... वैसे आवारा होने का एक अपना ही मज़ा है... बस यह है कि ... अगर आप आवारा हैं... तो पढने में ज़रूर अच्छे रहिये... पता है ... टॉपर लड़का अगर आवारा भी होगा तो सब उसकी तारीफ़ ही करेंगे... और उसके डेढ़ सौ गुनाह माफ़ होंगे... इसलिए अगर आप आवारा हैं... तो हर जगह टॉप पर ही रहिये... फिर सब उसी आवारगी को स्टाइल कहेंगे... <br /><br />वैसे एक बात बता दूं... मैंने जैंगो से वादा किया था... कि जो लड़की उसे टहलते वक़्त प्यार से पुचकारती थी... उसे किसी दिन ज़रूर पटा लूँगा... साला...पता नहीं था... कि वो दिन देखने के लिए मेरा जैंगो नहीं रहेगा... और आज ही उसे पटा लिया... वो भी ऐसे दिन जब वो जैंगो के कांडोलेंस में आई हुई थी... मैंने ऊपर देख कर जैंगो से कहा... कि अनैदर नम्बर एडेड इन माय डिजिटल डायरी... ही ही ही ही ... <br /><br />वैसे यह नंबर गेम खेलने का एक अपना ही मज़ा है... देखते हैं कितने दिन अब.... <br /><br /><br />मैं बहुत ही शरीफ आवारा हूँ... ऐसा मेरे फादर का भी कहना था.... और मेरी बहुत सारी पास्ट-प्रेजेंट गर्ल फ्रेंड्स तो कहती ही हैं... कई लोग कहते हैं कि शादी मत करना... बीवी भाग जाएगी... ही ही ही ....डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali)https://www.blogger.com/profile/13152343302016007973noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-37085460946899045932010-10-07T22:57:03.908+05:302010-10-07T22:57:03.908+05:30ऐसी आवारगी पर कौन न क़ुरबान हो जाय...! गजब ढाते है...ऐसी आवारगी पर कौन न क़ुरबान हो जाय...! गजब ढाते हैं आप भी। मैं खुद ही आजकल आवारगी का मजा ले रहा हूँ। इस परिवार में आना कम ही हो पा रहा है।<br /><br />वैसे इस आवारगी के पीछे भी यह ब्लॉगरी ही है। वर्धा में आप सबको साथ-साथ देखने की तैयारी है।सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठीhttps://www.blogger.com/profile/04825484506335597800noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-6301974601775858492010-10-07T17:02:02.063+05:302010-10-07T17:02:02.063+05:30ये दिल ये पागल दिल मेरा ....
इस आवारगी में भी ग़ज़...ये दिल ये पागल दिल मेरा ....<br />इस आवारगी में भी ग़ज़ब का नशा होता है ... अपने आपसे उलझे रहना, बातें करना .... कभी कभी अपनी उदासी में भी एक प्रकार का आवारापन रह जाता है जो खुद में ही जीना चाहता है ...... खुशनसीब हो जो इस आवारगी और मस्ती में जी पाते हो ....दिगम्बर नासवाhttps://www.blogger.com/profile/11793607017463281505noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-53319489709384676372010-10-07T15:10:57.551+05:302010-10-07T15:10:57.551+05:30आवारगी के बगैर अपने आपको खोजना मुश्किल है |आवारगी के बगैर अपने आपको खोजना मुश्किल है |naresh singhhttps://www.blogger.com/profile/16460492291809743569noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-33513954022523955632010-10-07T12:35:07.841+05:302010-10-07T12:35:07.841+05:30ांअवारगी अपने अस्तित्व को निखारने और जीने की कला स...ांअवारगी अपने अस्तित्व को निखारने और जीने की कला सीखने के लिये बहुत जरूरी है आवारगी चिन्तन की राह पर ले जाती है तभी तो आपकी हर पोस्ट चिन्तनपरक होती है। बहुत बडिया पोस्ट। शुभकामनायें।निर्मला कपिलाhttps://www.blogger.com/profile/11155122415530356473noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-91006639146781812422010-10-07T11:35:31.899+05:302010-10-07T11:35:31.899+05:30आपने बहुत अच्छा लिखा है, हमेशा की तरह,
मुबारक हो.आपने बहुत अच्छा लिखा है, हमेशा की तरह,<br />मुबारक हो.SATYAhttps://www.blogger.com/profile/17480899272176053407noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-29700163275130805582010-10-07T11:01:35.997+05:302010-10-07T11:01:35.997+05:30आवारगी के बहाने सुन्दर संस्मरण...कई बार पुराने पन्...आवारगी के बहाने सुन्दर संस्मरण...कई बार पुराने पन्नों को पलटना अच्छा लगता है. <br /><br /><br />__________________________<br />"शब्द-शिखर' पर जयंती पर दुर्गा भाभी का पुनीत स्मरण...Akanksha Yadavhttps://www.blogger.com/profile/10606407864354423112noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-92151040613155151732010-10-07T08:48:38.637+05:302010-10-07T08:48:38.637+05:30बहुत अच्छी प्रस्तुति।बहुत अच्छी प्रस्तुति।हास्यफुहारhttps://www.blogger.com/profile/14559166253764445534noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-15943939249252377042010-10-07T08:39:44.930+05:302010-10-07T08:39:44.930+05:30तीर्थ नहीं है, केवल यात्रा, लक्ष्य नहीं है केवल प...तीर्थ नहीं है, केवल यात्रा, लक्ष्य नहीं है केवल पथ ही (शायद बादल सरकार की पंक्तियां). वैसे व्यग्रता ही आवारगी का मार्ग प्रशस्त करता है और जिसने भटकने का साहस किया, राह भी वही खोज पाता है.Rahul Singhhttps://www.blogger.com/profile/16364670995288781667noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-10120721267471430012010-10-07T08:26:24.745+05:302010-10-07T08:26:24.745+05:30बहुत अच्छी प्रस्तुति। राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्र...<b>बहुत अच्छी प्रस्तुति। राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।</b><br /><a href="http://raj-bhasha-hindi.blogspot.com/2010/10/blog-post_07.html" rel="nofollow">मध्यकालीन भारत-धार्मिक सहनशीलता का काल (भाग-२), राजभाषा हिन्दी पर मनोज कुमार की प्रस्तुति, पधारें</a>राजभाषा हिंदीhttps://www.blogger.com/profile/17968288638263284368noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-41895382541219231532010-10-07T07:21:08.738+05:302010-10-07T07:21:08.738+05:30... बहुत खूब ... प्रसंशनीय पोस्ट !... बहुत खूब ... प्रसंशनीय पोस्ट !कडुवासचhttps://www.blogger.com/profile/04229134308922311914noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-27403433735494567092010-10-07T07:14:31.962+05:302010-10-07T07:14:31.962+05:30मुझे तो ये आवारगी कहीं दिशाहीन नहीं लगती आपको देखक...मुझे तो ये आवारगी कहीं दिशाहीन नहीं लगती आपको देखकर - हाँ क्यूंकि उस चांटे ने आपको परिभाषा जो सिखा दी थी ! <br /><br />बढ़िया लेख - बधाई स्वीकारें !राम त्यागीhttps://www.blogger.com/profile/05351604129972671967noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-70816218994016295022010-10-07T05:41:50.003+05:302010-10-07T05:41:50.003+05:30आवारगी का अपना अलग ही लुत्फ है जो सिरफ मरदों को हा...आवारगी का अपना अलग ही लुत्फ है जो सिरफ मरदों को हासिल है । राजकपूर के ये गाने तो हमारे भी प्रिय हैं । नदी का आंखों मे सिमट कर बहने लगना बहुत भाया ।Asha Joglekarhttps://www.blogger.com/profile/05351082141819705264noreply@blogger.com