tag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post2322103210345184246..comments2024-03-17T19:33:00.050+05:30Comments on न दैन्यं न पलायनम्: मा पलायनम्प्रवीण पाण्डेयhttp://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.comBlogger84125tag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-6652367861260749982010-11-25T08:25:23.685+05:302010-11-25T08:25:23.685+05:30@ Dr Parveen
इस उत्साहवर्धन के लिये अतिशय धन्यवाद।...@ Dr Parveen<br />इस उत्साहवर्धन के लिये अतिशय धन्यवाद।<br /><br />@ Rahul Singh<br />घर से भागे तारों को आसमान से टपकने नहीं दिया, बस।प्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-81858005025982869592010-11-24T18:08:30.385+05:302010-11-24T18:08:30.385+05:30'तारे जमीं पर', इस बार रेलगाड़ी से उतर कर....'तारे जमीं पर', इस बार रेलगाड़ी से उतर कर.Rahul Singhhttps://www.blogger.com/profile/16364670995288781667noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-16755161024571220782010-11-23T18:53:39.302+05:302010-11-23T18:53:39.302+05:30दूर से 13-14 साल के दो बच्चों को देखता हूँ, अपने व...दूर से 13-14 साल के दो बच्चों को देखता हूँ, अपने विद्यालय की ड्रेस मे, पकड़े जाने के बाद भी चुपचाप से खड़े हुये। कुछ खटकता है, अगले स्टेशन पर अपने साथ उन्हें भी उतार लेने को कह देता हूँ। <br /><br />और जो आपने लिखा कि घर आकर यह तसल्ली थी कि एक पुण्य का काम हो गया.....<br />आप की संवेदनशीलता के बारे में क्या कहूं? शब्द नहीं हैं। <br />शुभकामनायें।Dr Parveen Choprahttps://www.blogger.com/profile/17556799444192593257noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-56530811186400049592010-11-21T07:35:41.444+05:302010-11-21T07:35:41.444+05:30@ Akanksha~आकांक्षा
बिना बच्चों के प्रति हुये, सुन...@ Akanksha~आकांक्षा<br />बिना बच्चों के प्रति हुये, सुनहरे भविष्य की कल्पना कैसे कर सकते हैं हम।<br /><br />@ RAJWANT RAJ<br />जिज्ञासु बच्चों में एक ललक बनी रहती है कुछ न कुछ सीखते रहने की, हर समय। यह उन्हें प्रेरित करती रहती है कुछ न कुछ सोचते रहने के लिये।<br /><br />@ kapil<br />शिक्षा व्यवस्था एक उत्प्रेरक हो जो बच्चों की प्रतिभाओं को निखारती रहे, उभारती रहे। जब तक यह स्थापित नहीं होता तब तक सुधार करते रहने की आवश्यकता है।<br /><br />@ भारतीय नागरिक - Indian Citizen<br />सच है, स्थितियाँ तो सामान्य रही नहीं।<br /><br />@ विनोद शुक्ल-अनामिका प्रकाशन <br />गांधीजी के विचार पढ़े हैं, और गहनता से पढ़ते हैं।प्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-91977657140896845682010-11-20T10:23:35.112+05:302010-11-20T10:23:35.112+05:30अपने यहां शिक्षा पद्धति के साथ और बहुत कुछ बदले जा...अपने यहां शिक्षा पद्धति के साथ और बहुत कुछ बदले जाने की जरूरत है। गान्धी जी का ’हिन्द स्वराज’ शिक्षा के संदर्भ में बार बार पढा जाना और अपनाया जाना चाहिये। इस संदर्भ में विस्तार से आप ’वचन’ पत्रिका के ९वे अंक में छपा अरुणेश नीरन का लेख- ’हिन्द स्वराज में शिक्षा विमर्श’ पढ सकते हैं।विनोद शुक्ल-अनामिका प्रकाशनhttps://www.blogger.com/profile/18173585318852399276noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-31422377934681392962010-11-20T02:28:48.144+05:302010-11-20T02:28:48.144+05:30भारत में हर चीज में आमूल-चूल परिवर्तन की आवश्यकताह...भारत में हर चीज में आमूल-चूल परिवर्तन की आवश्यकताहै..भारतीय नागरिक - Indian Citizenhttps://www.blogger.com/profile/07029593617561774841noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-35411769253705404502010-11-20T00:36:27.901+05:302010-11-20T00:36:27.901+05:30aaj kal ki shiksha vyavastha vastav me hi bahut be...aaj kal ki shiksha vyavastha vastav me hi bahut bekar hai |<br />Ise to badalna hi chahiyekapilhttp://www.kapiljain.co.innoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-73358355665148760572010-11-19T15:28:21.967+05:302010-11-19T15:28:21.967+05:30bchchho ko pdhaku bnane se jyada agr bachpan se hi...bchchho ko pdhaku bnane se jyada agr bachpan se hi jigysu bnne ki or prerit kiya jaye to kafi had tak smsya se mukabla kiya ja skta hai .knowladge har halat me jyada kargr sidh hoti hai .RAJWANT RAJhttps://www.blogger.com/profile/15964389673143254011noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-69517247613819648962010-11-19T09:47:17.542+05:302010-11-19T09:47:17.542+05:30अभिभावक यह तथ्य समझें और विद्यालय इसको कार्यान्वित...अभिभावक यह तथ्य समझें और विद्यालय इसको कार्यान्वित करें। बच्चों का बचपन व भविष्य हम सबकी धरोहर है। जीवन जीने के लिये है, पलायन के लिये नहीं।<br />**********चलिए पुण्य भी हो गया और लोगों के लिए सीख भी.Akanksha Yadavhttps://www.blogger.com/profile/10606407864354423112noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-83507740945098176702010-11-19T09:16:03.519+05:302010-11-19T09:16:03.519+05:30@ अन्तर सोहिल
आप बंगलोर आ जायें, घुमाने की जिम्मेद...@ अन्तर सोहिल<br />आप बंगलोर आ जायें, घुमाने की जिम्मेदारी मेरी। ईश्वर को अपने कार्य करा लेने होते हैं, माध्यम चुन कर वह हमसब पर कृपा करता रहता है बारी बारी।<br /><br />@ दिगम्बर नासवा<br />ज्ञानार्जन कर समझभरी बातें करते बच्चे बहुत ही सुहाते हैं। पर जब सारा समय रटने में ही निकल जायेगा, समझ कहाँ से विकसित होगी?<br /><br />@ Apanatva<br />पढ़ाई होनी चाहिये पर विधि ऐसी न हो कि मानसिक दबाव पड़े। मानक ऐसे न बनाये जायें कि बच्चा पहले ही हताश हो जाये। असफलता को इतना गम्भीर न बना दिया जाये कि बच्चा घर छोड़ने को बाध्य हो जाये।<br />बंगलोर में यदि ऐसे विद्यालय हों तो कृपया मुझे भी बता दें।<br /><br />@ रंजना <br />वास्तविक समझ तो अनुभव से विकसित होती है न कि रटने से। अनुभव खेल खेल में आता है, वस्तुओं को प्रत्यक्ष निहारने से। खेल पर आधारित प्राथमिक शिक्षा हो हम सबकी।<br /><br />@ kumar zahid<br />सच कह रहे हैं आप, व्यवस्था का कुहासा ही आमजन के भाग्य में बदा है। स्वस्थ चिन्तन को अव्यवहारिकता का चोंगा पहना कर देश के कर्णधार छिपाते आये हैं। अब तो क्रियान्वयन हो श्रेष्ठ विधियों का, बस।प्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-43645453869497037302010-11-19T09:02:03.292+05:302010-11-19T09:02:03.292+05:30@ Shekhar Suman
यदि कुछ धन पास में होता है तो व्यक...@ Shekhar Suman<br />यदि कुछ धन पास में होता है तो व्यक्ति यही सोचता है कि कितना अभी खर्च करे और कितना भविष्य के लिये बचा कर रखे। धन के क्षेत्र का अनुभव जीवन में भी उपयोगी है। एक संतुलन बना कर रखना होता है कि कितना वर्तमान में जिया जाये और कितना भविष्य के लिये तैयार किया जाये। बचपन तो बिना जिये ही निकले जा रहे हैं, पता नहीं किस भविष्य की तैयारी कर रहे हैं हम?<br />मानक इतने कठिन कर दिये हैं कि जीवन का सुख ही नहीं रहता है जीवन में। जिनका जीवन में कुछ भी उपयोग नहीं, ऐसी चीजें याद करनी पड़ती है और भी प्रतियोगी परीक्षाओं के लिये। ज्ञानार्जन उतना जितना आवश्यक हो जीवन के लिये और थोड़ा सा अधिक जिससे विकास की प्यास बनी रहे सतत।प्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-58138459568912780472010-11-19T08:40:32.068+05:302010-11-19T08:40:32.068+05:30साहस और स्वस्फूर्ति से भरा है आपका चिन्तन..नामकरण ...साहस और स्वस्फूर्ति से भरा है आपका चिन्तन..नामकरण सर्वथा उपयुक्त भी है - ‘न दैन्यं न पलायनम्’<br /><br />शिक्षा के स्वरूप पर हमेशा चिन्तापरक चर्चाएं होती रहती हैं और व्यवस्था जन्य कुहासों से सिर्फ अंधेरा सरककर इस तरफ आ जाता है..पर गीता कहती है ..मा क्लैव्यम्kumar zahidhttps://www.blogger.com/profile/16434201158711856377noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-77326095017276479912010-11-18T18:40:34.623+05:302010-11-18T18:40:34.623+05:30" रटने के बाद उसे परीक्षाओं में उगल देना श्रे..." रटने के बाद उसे परीक्षाओं में उगल देना श्रेष्ठता के पारम्परिक मानक हो सकते हैं पर इतिहास में विचारकों ने इस तथ्य को घातक बताया है। उद्देश्य ज्ञानार्जन हो, अंकार्जन न हो। "<br /><br /><br /><br />काश कि अभिभावक और शिक्षण संस्थान दोनों ही यह बात समझ पायें ....<br /><br />लेकिन ऐसा होता दीखता नहीं...<br /><br />मैंने अपने विद्यार्थी जीवन में यही मंत्र अपनाया था,लेकिन हर पल मुझे इस तरह बेवक़ूफ़ ठहराया गया कि मुझे सोचने को बाध्य होना पड़ता था कि कहीं मैं गलत तो नहीं...लेकिन मेरे मन ने कभी इसे गलत नहीं माना....रंजनाhttps://www.blogger.com/profile/01215091193936901460noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-19745191753154862202010-11-18T14:56:34.170+05:302010-11-18T14:56:34.170+05:30school ka chayan kee aur dhyan dena jarooree hai.....school ka chayan kee aur dhyan dena jarooree hai......aajkal homework nahee milta 4th standard tak to school me exams bhee nahee hote..........mere bacche jis bangalore ke school me pade hai vanha.admission ke baad ek din bhee parents ko school nahee jana hota....... agar baccha class me padaee me pichad raha hai to teachers school ke baad ruk kar padatee hai aur extra fees nahee hotee.........balki dance music jo bhee interest bacche ko hai free me hee school me classes hai.......aur result 100% distinction aap samajh gaye honge kis school kee baat kar rahee hoo.........Apanatvahttps://www.blogger.com/profile/07788229863280826201noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-53514482166001046482010-11-18T13:53:41.781+05:302010-11-18T13:53:41.781+05:30आपकी बात से सहमत हूँ पर फिर भी जब अपने बच्चों की ब...आपकी बात से सहमत हूँ पर फिर भी जब अपने बच्चों की बात आती है चाहता हूँ की वो पढ़ें और बस पढ़ते ही रहें .... शायद हमारी शिक्षा पद्धति ही ऐसी है ...दिगम्बर नासवाhttps://www.blogger.com/profile/11793607017463281505noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-91411231644636482372010-11-18T12:39:00.651+05:302010-11-18T12:39:00.651+05:30जरा अपना फोन नम्बर देना जी, कभी टिकट ना रहने पर का...जरा अपना फोन नम्बर देना जी, कभी टिकट ना रहने पर काम आयेगा :)<br /><br />ईश्वर अपने आप चुन लेता है किसके हाथों क्या कार्य उचित है।<br /><br />हरियाणा में आठवीं कक्षा तक परीक्षा लेने पर रोक लगा दी गई है। मासिक टेस्ट लिये जा सकते हैं। परीक्षाओं में बच्चे बहुत ज्यादा तनाव में आ जाते हैं। <br /><br />"शिक्षा का उद्देश्य ज्ञानार्जन हो नाकि अंकार्जन" यही मैं सोचता हूँ जी, आभार<br /><br />प्रणामअन्तर सोहिलhttps://www.blogger.com/profile/06744973625395179353noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-89424493618451594972010-11-18T09:34:00.421+05:302010-11-18T09:34:00.421+05:30पता नहीं क्यूँ इस ब्लॉग पर आने में देर हो जाती है ...पता नहीं क्यूँ इस ब्लॉग पर आने में देर हो जाती है ....<br />इस जद्दोजहद का परिणाम हमारी अगली पीढ़ी को भुगतना होगा | पता नहीं भविष्य क्या हो, मेरे भतीजा अभी मात्र ३ साल का है अगले साल से स्कूल जाने लगेगा | मुझे लगता है उसका बचपन इतना छोटा बीता कि बड़े होने पर उसे कुछ भी अच्छा याद न रह जायेगा.. उसकी बचपन की यादों में केवल भारी बस्ते और अधूरा होमवर्क ही होगा |<br />कब तक माता पिता रेस के घोड़े तैयार करते रहेंगे | आज कल तो अपेक्षाएं सिर्फ पढाई में ही नहीं बल्कि पेंटिंग, सिंगिंग, डांसिंग में भी हो गयी हैं | टीवी में रिअलिटी शो के नाम पर नयी अपेक्षाएं बेचीं जा रही हैं |Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-51854569600596017312010-11-18T08:09:10.975+05:302010-11-18T08:09:10.975+05:30@ प्रवीण शाह
कभी कभी अमानवीय मानक रख दिये जाते है...@ प्रवीण शाह <br />कभी कभी अमानवीय मानक रख दिये जाते हैं तो बच्चा बिना प्रयास किये ही पलायन कर जाता है। अभिभावकों को ही समझना है मूलतः। जैसा कि धीरू सिंह जी ने कहा कि बच्चों को अपना 100% देने के लिये कहा जाये और इस विषय पर कम ध्यान दिया जाये कि बाकी घोड़े कहाँ भागे जा रहे हैं।<br />जीविकोपार्जन के 80% से भी अधिक साधन बिना प्रतियोगी परीक्षाओं के ही मिल जाते हैं।<br /><br />@ अनामिका की सदायें .....<br />यदि अभिभावक ही दबाव में आ जायें तब तो कुछ भी सम्हालना कठिन हो जायेगा।<br /><br />@ Smart Indian - स्मार्ट इंडियन<br />पता नहीं कितने ही ऐसे भागे हुये बच्चे हैं जिन पर अच्छे लोगों की नज़र नहीं पड़ पाती है और दुर्जनों द्वारा उन्हें आसरा दे दिया जाता है।प्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-79442218193584194222010-11-18T07:58:42.299+05:302010-11-18T07:58:42.299+05:30@ डॉ॰ मोनिका शर्मा
अभिभावक पर बढ़ती हुयी बेरोजगारी...@ डॉ॰ मोनिका शर्मा<br />अभिभावक पर बढ़ती हुयी बेरोजगारी में अपने बच्चों के लिये एक अदद सी नौकरी ढूढ़ लेने का मानसिक दबाव है। उद्यमिता पर कोई ध्यान नहीं देता है। अध्यापकों का कम ध्यान, इस विषय पर स्थितियों को जिस दिशा में प्रेरित करता है, वह उचित नहीं है। भ्रष्टाचार के कारण सरकारी नौकरी पा जाने के लिये लोग कितना भी धन घूस में देने को तैयार बैठे रहते है। यदि वातावरण स्वस्थ नहीं होगा, देश विकास नहीं करेगा।<br /><br />@ प्रवीण त्रिवेदी ╬ PRAVEEN TRIVEDI<br />आपके बिन्दु से सहमत हैं, यदि एक ओर से भी रस्सी ढीली की जायेगी, बच्चों पर तनाव कम हो जायेगा। यदि पढ़ने पर इतना दबाव बना रहा तो खेलने का समय कहाँ से निकाल पायेंगे बच्चे और बचपन कैसे संरक्षित रह पायेगा तब?<br /><br />@ चला बिहारी ब्लॉगर बनने<br />बच्चों के बारे में ये दोनो ही तथ्य दुर्भाग्यपूर्ण हैं। या तो रटाया जा रहा है या बच्चे स्कूल ही नहीं जा पा रहे हैं। बच्चों के भविष्य के साथ यह संवेदनहीन खिलवाड़ कम से कम उस देश को शोभा नहीं देता है जहाँ पर ज्ञान और शिक्षा की स्वस्थ परम्परायें रही हों।<br /><br />@ Puja Upadhyay<br />अंग्रेजी में थोड़ा लिखने का सोचा था पर चिन्तन ने अंग्रेजी में सोचने से सपाट मना कर दिया। चिन्तन हिन्दी में और अभिव्यक्ति अंग्रेजी में, मौलिकता को मूल्य चुकाना पड़ा।<br />यदि चिड़ियाघर के अनुभव भी रटाये जायें तो अनुभव की क्या आवश्यकता जीवन में?<br /><br />@ वन्दना अवस्थी दुबे<br />कभी कभी तो यह जानकर कि बच्चे दौड़ नहीं पायेंगे घोड़ों की भाँति, अभिभावक हाँक हाँक कर अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर लेते हैं। यदि अभिभावक ही संवेदना खो बैठे तो अध्यापकों को दोष क्यों दिया जाये?प्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-82535784705230406212010-11-18T07:38:09.510+05:302010-11-18T07:38:09.510+05:30@ mahendra verma
संभवतः इसे कहते हैं, सब जानकर भी ...@ mahendra verma<br />संभवतः इसे कहते हैं, सब जानकर भी आँख मूदे रहना। सिक्षा का व्यवसायीकरण सर चढ़कर इस हद तक बोल रहा है कि गुणवत्ता और समर्पण इतिहास की विषयवस्तु बन चुके हैं। पहले जब अध्यापक मेरे घर आते थे औऱ चाय पर मासिक समीक्षा होती थी तब लगता था कि बच्चों पर ध्यान दिया जा रहा है। अब तो लगता है कि किसी के पास समय ही नहीं।<br />एक शिक्षक 50 के ऊपर बच्चों को सम्हालता है। अध्यापकों की शैक्षणिक और मानसिक स्तर की गुणवत्ता पर कोई ध्यान ही नहीं।<br />भारत में हमने जड़ों को पानी देना बन्द कर दिया है, निष्कर्ष भयावह और प्रत्यक्ष हैं। बच्चे भाग रहे हैं।प्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-34053405733628562182010-11-18T06:24:27.390+05:302010-11-18T06:24:27.390+05:30हा हा हा!
यह आपकी पोस्ट के लिये नहीं, विश्वनाथ जी ...हा हा हा!<br />यह आपकी पोस्ट के लिये नहीं, विश्वनाथ जी के चुटकुले के लिये स्पेशल टिप्पणी है।Smart Indianhttps://www.blogger.com/profile/11400222466406727149noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-57367097347107357532010-11-18T06:21:15.329+05:302010-11-18T06:21:15.329+05:30कठिन परिस्थिति है। शिक्षा की आवश्यकता बच्चों से कह...कठिन परिस्थिति है। शिक्षा की आवश्यकता बच्चों से कहीं अधिक बडों को है। सन्योग की बात है कि आप और अकबर जी वहाँ थे वरना घर से निकले कितने बच्चों का तो कभी पता ही नहीं चलता। <br />बेहतरीन प्रस्तुति, आभार!Smart Indianhttps://www.blogger.com/profile/11400222466406727149noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-4993558706110288742010-11-17T23:33:40.359+05:302010-11-17T23:33:40.359+05:30आज कम्पीटिशन इतना हो गया है यहाँ तक की बच्चो में भ...आज कम्पीटिशन इतना हो गया है यहाँ तक की बच्चो में भी की वो खुद ही अपने साथियों में हीन भावना का शिकार हो जाता है..ऐसे में अगर अभिभावक भी उसी पंक्ति में आ जाएँ तो बच्चा क्या करेगा ? काश अभिभावक बच्चे के मन को समझ सके.<br /><br />बहुत अच्छी पोस्ट.अनामिका की सदायें ......https://www.blogger.com/profile/08628292381461467192noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-74058950328471913402010-11-17T23:24:24.183+05:302010-11-17T23:24:24.183+05:30.
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उद्देश्य ज्ञानार्जन हो, अंकार्जन न हो।
एक ....<br />.<br />.<br /><b>उद्देश्य ज्ञानार्जन हो, अंकार्जन न हो। </b><br /><br />एक आदर्श स्थिति में होना तो यही चाहिये परंतु जब उच्च शिक्षा की सीटों व अच्छी नौकरियों की संख्या सीमित हो तो योग्यता के आकलन के लिये कभी न कभी तो अंकों या प्रतियोगिता का पैमाना लगेगा ही... मेरे विचार में समस्या बच्चों के अभिभावकों के साथ अधिक है, जो बच्चे की क्षमताओं की ओर ध्यान दिये बगैर अपनी अपेक्षाओं का बोझ उस पर लाद देते हैं...<br /><br />एक और बात... आप कितनी ही आदर्श स्थितियाँ बना लें...प्रतिस्पर्धा व मूल्यांकन को समाप्त कर दें... कुछ पलायनवादी फिर भी रहेंगे ही... तमाम दवाइयों व चिकित्सा क्षेत्र के विकास के बावजूद मानव समाज में आत्महत्या की दर लगातार एक सी बनी हुई है।<br /><br /><br />...प्रवीण https://www.blogger.com/profile/14904134587958367033noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-10535689861990686662010-11-17T23:19:24.804+05:302010-11-17T23:19:24.804+05:30बहुत अच्छी पोस्ट है प्रवीण जी. सच है आज की शिक्षा ...बहुत अच्छी पोस्ट है प्रवीण जी. सच है आज की शिक्षा पद्धति केवल घुड़दौड़ बन के रह गई है, लेकिन बच्चे तो घोड़े नहीं हैं न? कैसे दौड़ पायेंगे? बहुत बहुत सुन्दर पोस्ट.वन्दना अवस्थी दुबेhttps://www.blogger.com/profile/13048830323802336861noreply@blogger.com