tag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post1592345085700814137..comments2024-03-17T19:33:00.050+05:30Comments on न दैन्यं न पलायनम्: आधारभूत गर्तप्रवीण पाण्डेयhttp://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.comBlogger55125tag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-74681654413949800522012-06-04T12:21:37.238+05:302012-06-04T12:21:37.238+05:30बीमा एजेण्ट हूँ। घर-घर घूमता हूँ। लगा कि जिन्दगी...बीमा एजेण्ट हूँ। घर-घर घूमता हूँ। लगा कि जिन्दगी ही अपने आप में एक जुआ है।विष्णु बैरागीhttps://www.blogger.com/profile/07004437238267266555noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-26680380628628386132012-05-17T17:01:36.523+05:302012-05-17T17:01:36.523+05:30आधारभूत गर्त में एक हारे हुये मूर्ख जुआरी का जीवन ...आधारभूत गर्त में एक हारे हुये मूर्ख जुआरी का जीवन जी रहे हैं हम सब। truly said----a aadhaarbhoot saty.........<br /><br />----kuchh log ise vikaas kah rahe hain......yah anaavashyak ati-vikaas hai.....yhee vaastav men RAVAN yaa KANS aadi hote hain.....ati-vikaas men jab manavataa vyathit hone lagati hai to ...RAM/ KRISHN naamak praakratik shaktiyaan ---apraakratik vikaas ko nasht kar detee hain.....<br />----itihaas gavaah hai ki sadaa.......ati-vakasit sabhyataayen sadaa kam vikasit sabhyataaon se paraajit huee hain .... shyam guptahttps://www.blogger.com/profile/11911265893162938566noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-61582798263791108542012-05-16T12:12:41.550+05:302012-05-16T12:12:41.550+05:30हम सबने सुविधाओं के नाम पर विकास के जुये में इतना ...हम सबने सुविधाओं के नाम पर विकास के जुये में इतना बड़ा दाँव लगा दिया कि हार का कष्ट असहनीय हुआ जा रहा है, इतनी बार दाँव लगाया है कि जीने के लिये कुछ बचा भी नहीं। पुरानी स्थिति में भी नहीं लौटा जा सकता है क्योंकि सुविधाओं ने उस लायक नहीं छोड़ा है कि पुरानी जीवनशैली को पुनः अपनाया जा सके। इस आधारभूत गर्त में एक हारे हुये मूर्ख जुआरी का जीवन जी रहे हैं हम सब। <br /><br />बिलकुल सही कहा है ... इच्छाएँ अनियंत्रित हैं .... आदतें बदल चुकी हैं ... न पुरानी जीवन शैली अपना सकते हैं और नयी के लिए सुविधाएं कम होती जा रही हैं ...संगीता स्वरुप ( गीत )https://www.blogger.com/profile/18232011429396479154noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-81163761679848310242012-05-16T02:12:43.024+05:302012-05-16T02:12:43.024+05:30निश्चित ही सुविधाओं के नाम पर हमने बहुत बड़ा जुआ ख...निश्चित ही सुविधाओं के नाम पर हमने बहुत बड़ा जुआ खेला. जीवन को दाव को पर लगाकर सब कुछ हारते रहे, अंततः जीवन भी.संतोष पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/06184746764857353641noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-57869390863972526272012-05-15T19:19:39.859+05:302012-05-15T19:19:39.859+05:30हम सबने सुविधाओं के नाम पर विकास के जुये में इतना ...हम सबने सुविधाओं के नाम पर विकास के जुये में इतना बड़ा दाँव लगा दिया कि हार का कष्ट असहनीय हुआ जा रहा है, इतनी बार दाँव लगाया है कि जीने के लिये कुछ बचा भी नहीं। पुरानी स्थिति में भी नहीं लौटा जा सकता है क्योंकि सुविधाओं ने उस लायक नहीं छोड़ा है कि पुरानी जीवनशैली को पुनः अपनाया जा सके। इस आधारभूत गर्त में एक हारे हुये मूर्ख जुआरी का जीवन जी रहे हैं हम सब। <br />ऐसा लगा जैसे आपने खुद ही प्रश्न किया और खुद ही उसका उत्तर भी दे दिया विचारणीय एवं बहुत ही सार्थक आलेख.....Pallavi saxenahttps://www.blogger.com/profile/10807975062526815633noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-20556103229950840352012-05-15T18:57:22.475+05:302012-05-15T18:57:22.475+05:30त्वरित टिप्पणी से सजा, मित्रों चर्चा-मंच |
छल-छंदी...त्वरित टिप्पणी से सजा, मित्रों चर्चा-मंच |<br />छल-छंदी रविकर करे, फिर से नया प्रपंच ||<br /><br />बुधवारीय चर्चा-मंच<br />charchamanch.blogspot.inरविकर https://www.blogger.com/profile/00288028073010827898noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-59706722094077213032012-05-15T18:37:21.628+05:302012-05-15T18:37:21.628+05:30ये भी तो एक जूअया ही है जो विकास की आद में खेला जा...ये भी तो एक जूअया ही है जो विकास की आद में खेला जा रहा है ... <br />पर पता नहीं किस स्तर खेला जाएगा ये ...दिगम्बर नासवाhttps://www.blogger.com/profile/11793607017463281505noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-44139112515157632902012-05-15T17:06:48.248+05:302012-05-15T17:06:48.248+05:30बिल्कुल सही ...कहा है आपने इस आलेख में ... बेहतरी...बिल्कुल सही ...कहा है आपने इस आलेख में ... बेहतरीन प्रस्तुति।सदाhttps://www.blogger.com/profile/10937633163616873911noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-85329783857038308542012-05-15T14:41:04.659+05:302012-05-15T14:41:04.659+05:30vicharneeye post. shubhakaamanaayenvicharneeye post. shubhakaamanaayenनिर्मला कपिलाhttps://www.blogger.com/profile/11155122415530356473noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-17033814010682288402012-05-15T11:22:33.347+05:302012-05-15T11:22:33.347+05:30बहुत सशक्त आलेख हमेशा कि तरह रोचक भी सही कहा है वि...बहुत सशक्त आलेख हमेशा कि तरह रोचक भी सही कहा है विकास के इस जुए का खामियाजा छोटे शहर ,कसबे गाँव भुगत रहे हैं आबादी कि रफ़्तार बढती ही जाती है एक वक़्त आएगा घर बनाने के लिए जगह भी नहीं होगीRajesh Kumarihttps://www.blogger.com/profile/04052797854888522201noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-62873085841958799582012-05-15T00:07:22.469+05:302012-05-15T00:07:22.469+05:30अधिक से अधिक वसूलने का खामियाज़ा कभी न कभी तो भुगत...अधिक से अधिक वसूलने का खामियाज़ा कभी न कभी तो भुगतना ही पड़ेगा.प्रतिभा सक्सेनाhttps://www.blogger.com/profile/12407536342735912225noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-21013554434006728832012-05-14T20:55:59.692+05:302012-05-14T20:55:59.692+05:30सुन्दर, गम्भीर, सारगर्भित आलेख...बहुत बहुत बधाई......सुन्दर, गम्भीर, सारगर्भित आलेख...बहुत बहुत बधाई...प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' https://www.blogger.com/profile/03784076664306549913noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-65134612657388699542012-05-14T20:41:53.251+05:302012-05-14T20:41:53.251+05:30बहुत सटीक विश्लेषण किया है आपके आलेख ने... विकास क...बहुत सटीक विश्लेषण किया है आपके आलेख ने... विकास की गति और हमारे दाँव का!अनुपमा पाठकhttps://www.blogger.com/profile/09963916203008376590noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-48467497286825600982012-05-14T18:38:27.815+05:302012-05-14T18:38:27.815+05:30History of gambling (DYUT KREEDA) goes down to M...History of gambling (DYUT KREEDA) goes down to Mahabharat era.Marriage in India is a gamble and so is every day life of a resource less person.Good post .virendra sharmahttps://www.blogger.com/profile/02192395730821008281noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-7410435177567314892012-05-14T08:46:42.052+05:302012-05-14T08:46:42.052+05:30दांव लगे सी बिजली-पानी.दांव लगे सी बिजली-पानी.Rahul Singhhttps://www.blogger.com/profile/16364670995288781667noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-9046985528270973182012-05-13T23:28:57.913+05:302012-05-13T23:28:57.913+05:30Dhoodhta hai tu kya dekh kar bahut hassi aye :)Dhoodhta hai tu kya dekh kar bahut hassi aye :)SEPOhttps://www.blogger.com/profile/18165767356704947895noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-2221861055422654312012-05-13T22:39:28.326+05:302012-05-13T22:39:28.326+05:30सुविधाओं की आदत हो जाने पर उनकी उपलब्धता सुनिश्चित...सुविधाओं की आदत हो जाने पर उनकी उपलब्धता सुनिश्चित करना एक मानवीय दुर्बलता ही है ,जोकि हम सामान्यतया करते ही रहते हैं ....निवेदिता श्रीवास्तवhttps://www.blogger.com/profile/17624652603897289696noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-74730884953846301742012-05-13T22:33:31.227+05:302012-05-13T22:33:31.227+05:30सुविधाओं की आदत है कि हड्डियों में समा जाती हैं......सुविधाओं की आदत है कि हड्डियों में समा जाती हैं...<br /><br /> डा.अंजना संधीर की कविता ,अमरीका सुविधायें देकर हड्डियों में समा जाता है, <br /><br /><br />डा.अंजना संधीर की कविता का अंश: <br />............ <br />............ <br />इसीलिए कहता हूँ कि <br />तुम नए हो, <br />अमरीका जब साँसों में बसने लगे, <br />तुम उड़ने लगो, तो सात समुंदर पार <br />अपनों के चेहरे याद रखना। <br />जब स्वाद में बसने लगे अमरीका, <br />तब अपने घर के खाने और माँ की रसोई याद करना । <br />सुविधाओं में असुविधाएँ याद रखना। <br />यहीं से जाग जाना..... <br />संस्कृति की मशाल जलाए रखना <br />अमरीका को हड्डियों में मत बसने देना । <br />अमरीका सुविधाएँ देकर हड्डियों में जम जाता है!Udan Tashtarihttps://www.blogger.com/profile/06057252073193171933noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-874984877971157252012-05-13T17:37:11.058+05:302012-05-13T17:37:11.058+05:30द्यूतं छलयतामस्मि...!!द्यूतं छलयतामस्मि...!!चला बिहारी ब्लॉगर बननेhttps://www.blogger.com/profile/05849469885059634620noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-79596554947914844172012-05-13T17:22:40.656+05:302012-05-13T17:22:40.656+05:30आपकी सोच जायज है ,परन्तु जीवन, विकास का क्रमांक है...आपकी सोच जायज है ,परन्तु जीवन, विकास का क्रमांक है ,ठौर बदलती रहती है ,प्राथमिकताएं भी / अस्थायित्व विकास का जड़ विन्दु है..... कल का सवेरा विकास का उद्दगम स्थल हो इंकार नहीं किया जा सकता ......हाँ विकास की वगडोर, असंतुलित व असमर्पित हाथों में होने से गति धीमी व कष्टकारी होती है .....हम जुआ नहीं सहभागिता में हैं ...यदि सहकारिता का स्थान लेता तो बात कुछ और होती /<br />हाँ यह भी सच है की ,भारत की आधी से अधिक आबादी ,उर्जा उपयोग से दूर व वंचित है ....जरा सोचें हालात क्या होंगे .... विकास की दौड़ में हम कहाँ होंगे ......./ सार्थक सोच व चिंता .. साभारudaya veer singhhttps://www.blogger.com/profile/14896909744042330558noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-42971716106695640472012-05-13T16:43:27.977+05:302012-05-13T16:43:27.977+05:30जुआ अगर खेल की हद तक खेला जाए तो वह ठीक है, पर हार...जुआ अगर खेल की हद तक खेला जाए तो वह ठीक है, पर हार-जीत के प्रश्न के रूप में खेला जाए तो ... विनाश ही है।<br />वैसे जीवन एक जुआ ही है, हर पल कुछ न कुछ दाव पर रहता ही है। कहां तक इससे भागना।मनोज कुमारhttps://www.blogger.com/profile/08566976083330111264noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-8442387610908892582012-05-13T16:41:33.102+05:302012-05-13T16:41:33.102+05:30जुआ खेलने वाले जानते हैं कि दाँव इतना लगाना चाहिये...जुआ खेलने वाले जानते हैं कि दाँव इतना लगाना चाहिये कि एक बार हारने पर अधिक कष्ट न हो, और दाँव इतनी बार ही लगाना चाहिये कि अन्त में जीने के लिये कुछ बचा रहे। <br /><br />बहुत सही कहा है आपने । मरे पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।प्रेम सरोवरhttps://www.blogger.com/profile/17150324912108117630noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-73560377630336751122012-05-13T13:51:20.288+05:302012-05-13T13:51:20.288+05:30ज़िंदगी इक जुआ..
लेकिन न आते वक्त कुछ साथ होता है...ज़िंदगी इक जुआ..<br /><br />लेकिन न आते वक्त कुछ साथ होता है और न जाते वक्त...<br /><br />जय हिंद...Khushdeep Sehgalhttps://www.blogger.com/profile/14584664575155747243noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-79505452372358003102012-05-13T13:33:28.257+05:302012-05-13T13:33:28.257+05:30बहुत सार्थक आलेख...जीवन के विकास चक्र में फंसे हम ...बहुत सार्थक आलेख...जीवन के विकास चक्र में फंसे हम एक जुआ ही तो खेल रहे हैं जिसमें हारने पर भी बीच में खेल छोड़ कर उठा नहीं जा सकता...Kailash Sharmahttps://www.blogger.com/profile/12461785093868952476noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6890512683366084987.post-29289431630579798892012-05-13T12:41:50.565+05:302012-05-13T12:41:50.565+05:30सुबिधाएँ कुछ असुबिधाओं को भी साथ हि साथ जन्म दे रह...सुबिधाएँ कुछ असुबिधाओं को भी साथ हि साथ जन्म दे रही है. जरूरत एक सामंजस्य बैठाने की है.रचना दीक्षितhttps://www.blogger.com/profile/10298077073448653913noreply@blogger.com